यह एक निश्चित तथ्य है कि जो लोग छल - कपट, षड्यंत्र , अत्याचार , अन्याय , अपराध या कोई भी अनैतिक कार्य करते हैं तो इसकी शुरुआत उनके बचपन से ही हो जाती है l यदि उन्हें उसी वक्त उस गलती को करने से रोका जाये , उस गलती के लिए दंडित किया जाये तो वह बुराई आगे नहीं बढ़ेगी लेकिन जब समझदार लोग मूक दर्शक बने रहते हैं तो वह गलती आगे चलकर विकराल रूप ले लेती है महाभारत का प्रसंग है ----- कौरव , पांडव के बचपन का प्रसंग है कि वे सब नदी के किनारे खेल रहे थे तब ईर्ष्यावश दुर्योधन आदि ने भीम के भोजन में विष मिला दिया और उसे नदी में फेंक दिया l भीम की मृत्यु हो जाने से पांडव कमजोर हो जायेंगे और इस तरह उसके मार्ग की सब बाधा दूर हो जाएगी l दुर्योधन की इस गलती पर भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , धृतराष्ट्र, महात्मा विदुर ने कुछ नहीं कहा l इससे दुर्योधन की हिम्मत और बढ़ गई और उसने जीवन भर मामा शकुनि के साथ अनेक षड्यंत्र रचे जिसका परिणाम अंत में महाभारत हुआ l प्रश्न यह है कि इतने वीर , ज्ञानी और धर्मात्मा होते हुए भी वे खामोश क्यों रहे ? जब भीष्म पितामह शर शय्या पर लेटे थे और पांडवों को धर्म का , नीति का उपदेश दे रहे थे तब द्रोपदी को हँसी आ गई l युधिष्ठिर ने पूछा --- ऐसे गंभीर समय में तुम्हे हँसी कैसे आ गई ? द्रोपदी ने कहा --- पितामह के ये उपदेश और धर्म व नीति उस समय कहाँ थी जब मेरा चीर हरण हो रहा था ? तब भीष्म पितामह ने कहा --- उस समय मैं दुर्योधन का कुधान्य खाता था , अब शर शय्या पर लेटने से वह सब रक्त के साथ बह गया और मन निर्मल हो गया , इसलिए यह उपदेश देने में समर्थ हुआ l " आज संसार में इतनी अशांति , इतना तनाव इसीलिए है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए अपराधियों को संरक्षण देते हैं , उनकी सहायता से अपनी अनेक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करते हैं l कामना , वासना , तृष्णा , स्वार्थ , अहंकार ये सब मानसिक विकृतियाँ ही संसार में उत्पात मचाती हैं l
5 March 2022
WISDOM -----
इतिहास में पढ़ते हैं कि जब भारत ज्ञान और वैभव में अपने चरम शिखर पर था , तब यूरोप में असभ्य जातियों का निवास था l इसके बाद उन अनेक देशों ने जिन्हे हम विकसित कहते हैं भौतिक प्रगति तो बहुत की , किन्तु अध्यात्म में रूचि न होने के कारण उनका यह विकास एकांगी रहा l मनुष्य के भीतर देवता और असुर दोनों होते हैं l अध्यात्म का अर्थ है --- व्यक्तित्व का परिष्कार , चिंतन और चेतना का परिष्कार l यह अध्यात्म ही है जो मनुष्य के भीतर के असुर को मार कर उसके देवत्व को जगाता है l विकसित कहे जाने वाले देशों ने विज्ञान के साथ अध्यात्म को नहीं जोड़ा , इसलिए उनके भीतर की असुरता समाप्त नहीं हुई और ज्ञान और बुद्धि के दुरूपयोग से यह असुरता एक विशालकाय असुर में तब्दील हो गई l कहावत है -' हाथ कंगन को आरसी क्या ' वे स्वयं ही संसार को अपनी असुरता का सबूत दे रहे हैं l असुरता में स्वयं ही उसके विनाश के बीज विद्यमान हैं l उन्हें तो अंधकार ही पसंद है l इसलिए प्रकृति उन्हें वापस वहीँ पहुंचा देगी l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " ऊँट को नकेल से , बैल को डंडे से , घोड़े को लगाम से और हाथी को अंकुश के सहारे वश में किया जाता है l सरकस के जानवरों को उनका शिक्षक चाबुक से डराकर इच्छित कृत्य सिखाता है और कराता है l ईश्वर विश्वास और आस्तिकता की भावना मनुष्य की उच्श्रृंखलता पर अंकुश लगाती है l व्यक्ति के जीवन क्रम और चरित्र को बनाने के लिए अध्यात्म की , ईश्वर भक्ति की आवश्यकता है ताकि मनुष्य जाति का जीवन श्रेष्ठ व समुन्नत बना रहे l "