1 November 2017

WISDOM ------ सभी समस्याओं का एक ही समाधान है ------- ' संवेदना '

   ' हर  उस  तरह  का  व्यवहार  ' संवेदना  ' है ,  जिसमें  सबके  प्रति  सम्मान  और  सदाशयता    का  भाव  व्यक्त  होता  है   l '  संवेदनशील  व्यक्ति जड़  वस्तुओं  के  प्रति  भी  इस  तरह  का  व्यवहार  करता  है  जैसे  वे  उसके  अति  आत्मीय  स्वजन  हों  l 
     स्वामी  विवेकानन्द    से   योग  सीखने  आई  एक   युवती   ने  पूछा ---- " मुझे    सिद्धि     प्राप्त  करने  में  कितना  समय  लगेगा  ?  कितने  महीनों  में    मैं  साधना  पूरी  कर  सकुंगी  ? "
     तब  स्वामीजी  ने  इस  प्रश्न  का  उत्तर  देते  हुए  कहा  था  ----- "  तुम्हे  इस  मार्ग  पर  गतिशील  होने  में  कई  जन्म  लगेंगे  l "  इसका  कारण  भी  उन्होंने  तुरंत  बताया  कि ,  '  कक्ष  में  प्रवेश   करने  से  पहले  तुमने  अपने  जूते  ऐसे  उतारे  जैसे  उन्हें  फेंक  रही  हो  ,  कुर्सी   की  बांह  लगभग  मरोड़ते  हुए  अंदाज  में  खींची  और  उस  पर  धमक कर  बैठ  गईं  l  फिर  बैठे - बैठे  ही  इसे  मेज  के  पास   घसीटते  हुए  से  खींचा  और  व्यवस्थित  किया   l '
   स्वामीजी  ने  कहा  कि ,--- हम  जिन  वस्तुओं  को  काम  में   लाते   हैं  ,  जो  हमारी  जीवन - यात्रा  और  स्थिति  में   सहायक  हैं   और  जो  हमारे  व्यक्तित्व  का  ही  एक  अंग  हैं  ,   उनके  प्रति  क्रूरता   हमारी  चेतना  का    स्तर    दर्शाती  है   l  दैनिक  जीवन  में  काम  आने  वाली  वस्तुओं  , व्यक्तियों  और  प्राणियों   के  प्रति  भी  मन  में  संवेदना  नहीं  है  ,  तो  विराट  अस्तित्व  से  किसी  व्यक्ति  का   तादात्म्य  कैसे  जुड़  सकता  है  ?  अपने   आसपास  के  जगत  के  प्रति  जो  संवेदनशील  नहीं  है  ,  वह  परमात्मा  के  प्रति   कैसे  खुल  सकता  है  l ' 
  संवेदना  भाव  ह्रदय  का  विषय  है  l  यह  संवेदना  ही  है  जिसे  हमारा  ह्रदय  दूसरों  के  दुःख - दर्द  से  विचलित  होता  है   और  उसके  निवारण  में  तत्पर  l 
     संवेदना  के  जाप  से   यह  उत्पन्न  नहीं  होती  l  स्वामी  विवेकानन्द  की  परम्परा  में  आचार्यों  ने   संवेदना  जगाने  के  व्यवहारिक  उपाय  सुझाये    --- जब  क्रोध  आये ,  किसी  को  कोसने  का मन  करे   तो  कम  से  कम  इतना  नियंत्रण  कर  लिया  जाये  कि  सम्बंधित  व्यक्ति  के  सामने  कुछ  न  कहकर    मन  ही  मन  आकाश  की  और  देखते  हुए  जो  कहना  हो  कह  दें   l  ऐसे  अभ्यास  से  धीरे - धीरे  कठोरता  समाप्त  होती  है  और  संवेदना  जगती  है   l