जब कभी अर्थव्यवस्था में मंदी और बेरोजगारी का दौर आता है तो उसका सबसे घातक दुष्परिणाम यह होता है कि --- समाज का नैतिक पतन होने लगता है l इसका कारण है --' भूख ' l
एक ओर लोगों को रोजगार नहीं मिलता तो अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं l
दूसरी ओर वे लोग हैं जिनका व्यापार - व्यवसाय बहुत अच्छा था , परिवार को सुख - सुविधाओं में जीने की आदत पड़ गई थी , उनके उद्दोग - धंधे बंद हो जाते हैं , उन्हें अपने स्थायी कर्मचारियों का वेतन , भवन का किराया आदि अनेक खर्चे करने हैं , लेकिन व्यापार में लाभ नहीं मिल रहा , फिर हर किसी का कर्ज भी माफ नहीं होता , जब - तब साहूकार वसूली के लिए दरवाजे पर खड़ा हो जाता है , ऐसे लोगों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है l
सबसे बुरी स्थिति मध्यम वर्ग की होती है , उनके आमदनी के स्रोत वैसे ही अस्थायी थे , वे भी बंद हो गए l अब क्या करें ? किसके आगे हाथ पसारें ?
यह एक तरह की पराधीनता है l संसार के विभिन्न देश राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र हो गए लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण वे सब जिन बड़े संगठनों और समझौतों से जुड़े हैं , उनके आदेश का पालन करने को मजबूर हैं l
आज गांधीजी के सिद्धांतों की जरुरत है l यदि प्रत्येक गाँव , प्रत्येक शहर आत्मनिर्भर हो , अपने साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करें तो प्रकृति सबका पेट भरने के लिए पर्याप्त देती है l
इस भौतिक विकास ने मनुष्य का सुख - चैन छीन लिया l परिश्रम करने वालों से उनका परिश्रम ही छीन लिया और उन्हें क्या बना दिया l जागरूक होकर हमें अपनी शक्ति और साधनों को समझना होगा l
एक ओर लोगों को रोजगार नहीं मिलता तो अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं l
दूसरी ओर वे लोग हैं जिनका व्यापार - व्यवसाय बहुत अच्छा था , परिवार को सुख - सुविधाओं में जीने की आदत पड़ गई थी , उनके उद्दोग - धंधे बंद हो जाते हैं , उन्हें अपने स्थायी कर्मचारियों का वेतन , भवन का किराया आदि अनेक खर्चे करने हैं , लेकिन व्यापार में लाभ नहीं मिल रहा , फिर हर किसी का कर्ज भी माफ नहीं होता , जब - तब साहूकार वसूली के लिए दरवाजे पर खड़ा हो जाता है , ऐसे लोगों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है l
सबसे बुरी स्थिति मध्यम वर्ग की होती है , उनके आमदनी के स्रोत वैसे ही अस्थायी थे , वे भी बंद हो गए l अब क्या करें ? किसके आगे हाथ पसारें ?
यह एक तरह की पराधीनता है l संसार के विभिन्न देश राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र हो गए लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण वे सब जिन बड़े संगठनों और समझौतों से जुड़े हैं , उनके आदेश का पालन करने को मजबूर हैं l
आज गांधीजी के सिद्धांतों की जरुरत है l यदि प्रत्येक गाँव , प्रत्येक शहर आत्मनिर्भर हो , अपने साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करें तो प्रकृति सबका पेट भरने के लिए पर्याप्त देती है l
इस भौतिक विकास ने मनुष्य का सुख - चैन छीन लिया l परिश्रम करने वालों से उनका परिश्रम ही छीन लिया और उन्हें क्या बना दिया l जागरूक होकर हमें अपनी शक्ति और साधनों को समझना होगा l