18 January 2022

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " उपासना  का  अर्थ  मात्र   मन्दिर   बना  देना  नहीं  है  l   वैसा  जीवन  भी  जीना   होता है  ,  तभी  वह  सफल  है  l  " ------  चित्रगुप्त  महाराज  अपनी  पोथी  के  पृष्ठों  को   उलट   रहे  थे  ,  तभी  यमदूतों  ने   दो  व्यक्तियों  को  उनके  सम्मुख  प्रस्तुत  किया   और  प्रथम  व्यक्ति   का परिचय   कराते  हुए  कहा ---- "  यह  नगर  सेठ  है  l  धन  की  कोई  कमी  नहीं  है   इनके पास  l  खूब  कमाया  और  समाज  के  हित   के  लिए   धर्मशाला , मंदिर , कुंए  और   विद्यालय  जैसे  अनेक  निर्माण  कार्य  कराए  l  "    अब  दूसरे  व्यक्ति  की  बारी  थी ,  यमदूतों  ने  कहा --- "  यह  व्यक्ति  बहुत  गरीब  है  ,  दो  समय  का  भोजन  जुटाना  भी  इसके  लिए  मुश्किल  है   l   एक  दिन  जब  यह  भोजन  कर  रहा  था  तो  एक  भूखा  कुत्ता   इसके  पास  आया  l   इसने  भोजन  न  कर  सारी   रोटियाँ   कुत्ते  को  दे   दीं  l   स्वयं  भूखा  रहकर  दूसरे   की क्षुधा  शांत  की  l   अब  आप   बताइये  इन  दोनों   के लिए  क्या  आज्ञा  है   ? "    चित्रगुप्त  महाराज  ने  गंभीरता  से  कहा ---- "  धनी   व्यक्ति  को  नरक  में  और  निर्धन  व्यक्ति  को  स्वर्ग  में  भेजा  जाए  l  "    उनका  निर्णय  सुनकर  धनी   व्यक्ति  बहुत  परेशान    हो  गया  l    वह पृथ्वी  तो  नहीं  जहाँ  पैसा  खर्च  कर  के    कुछ  काम  बन  जाये ,  चित्रगुप्त  महाराज  के  आगे  भला  किसकी  चलती  है   ?   धनी   व्यक्ति  ने  बड़ी  हिम्मत  जुटा   कर  कहा -- 'महाराज  !  मैंने  तो  इतना  दान - पुण्य  किया  फिर  मुझे  इतनी  सजा  क्यों  ? '  चित्रगुप्त  महाराज  ने  कहा  ---- "  तुमने  निर्धनों  और  असहायों  का  बुरी  तरह  शोषण  किया   l   उनकी  विवशताओं  का  बुरी  तरह  दुरूपयोग  किया   और  उस  पैसे  से  ऐश - आराम  का  जीवन  व्यतीत   किया  l  यदि  बचे  हुए  धन  का   एक  अंश  लोकेषणा   की  पूर्ति  हेतु  व्यय   कर  भी  दिया   तो  उसके  पीछे  भावना  थी  कि   लोग  मेरी  प्रशंसा  करें ,   मेरे  गुण   गायें   l    जबकि  इस   गरीब  ने   पसीना   बहाकर   जो  कमाई  की  , उस  रोटी  को  भी    भूखे  कुत्ते  को  खिला  दिया  l   यदि  यह  साधन - संपन्न  होता  ,  तो  न  जाने  कितने  अभावग्रस्त  लोगों   की  मदद  करता   l   पाप   और पुण्य  का  संबंध   मानवीय  भावनाओं  से  है  ,  क्रियाओं  से  नहीं  l   मेरे  द्वारा   दिया गया  निर्णय  अंतिम  है  l  "