31 March 2020

WISDOM -----

 वैज्ञानिक  प्रगति  के  इस  युग  में  मनुष्य  को  सब  कुछ  मिला   परन्तु  जो  हमसे  छीन  गया  वह  है ---- मानवीय  संवेदना  l  संवेदनहीन  व्यक्ति  और  समाज  ही  व्यवसाय  कर  सकता  है  , वह  लाभ - हानि  ढूंढता  है  l  चिकित्सा  और  चिकित्स्क  वहीँ  प्रभावशाली  हैं  , जहाँ  सम्पन्नता  है  , अन्यथा  निर्धन  रोगी  सड़कों  और  गलियों  में   दम   तोड़  देता  है   l
  बीमारी , महामारी  न  ऊंच - नीच  देखती  ,  न  जात - पांत ,  न  अमीर - गरीब  l  एक  ओर   गरीब  व्यक्ति   अपनी गरीबी , अभाव , भूख ,   रहने  को  घर  नहीं ,  गाँव  में  अच्छी  चिकित्सा  सुविधाएँ  नहीं  और  शहरों  में  व्यवसायिक  लूट   की  वजह  से  मरता  है  l   तो  दूसरी   ओर  अमीर , धनसम्पन्न  व्यक्ति   भोग - विलास  का  जीवन  जीने ,  कामना - वासना  की  अंधी  दौड़  में  अपनी   जीवनी शक्ति  को  खो देता  है  l   महँगी  दवाइयाँ , अच्छे  डॉक्टर   भी  उसका  जीवन  नहीं  बचा   पाते  l
   अधिकाधिक  लाभ  कमाने  की  प्रवृति  को   त्याग  कर  ' जियो  और  जीने  दो ' के  सिद्धांत  पर  चलकर  ही  मानवता  सुखी  हो  सकती  है  l 

WISDOM ---- ईश्वर सत्य है

  राजा  विक्रमादित्य  के  समय  की  बात  है --- राजा  रात्रि  को  वेश  बदलकर  अपनी  प्रजा  का  हाल  जानने  जाया  करते  थे  l  इसी  क्रम  में  वे  एक  रात्रि  को  एक   गाँव  में  पहुंचे ,  वहां  एक  घर  से  उन्हें  कराहने  की  आवाज  आई  l   पूछने  पर  पता  चला  कि   उस  ग्रामीण  की  पत्नी  प्रसव  वेदना  से  कराह  रही  है  l   ग्रामीण  ने  राजा  को  पहचाना  नहीं   , फिर  कहा  आप  बाहर  बैठो  , पुत्र  जन्म  होगा   , हमारी  ख़ुशी  में  सम्मिलित  होना  l   राजा  बरामदे  में  चारपाई  पर  विश्राम  करने  लगे  l  थोड़ी  ही  देर  में  बच्चे  के  रोने  की  आवाज  आई  और  ग्रामीण  ने  आकर  राजा  को  पुत्र जन्म  की  खुशखबरी  सुनाई  l
  राजा  को  निद्रा  नहीं  आ  रही  थी  वे  टहल  रहे  थे  l   अचानक  उन्होंने  देखा  एक  आकृति  नवजात  शिशु  के  कमरे  में  प्रवेश  करने  जा  रही  है  l   राजा  विक्रमादित्य  ने  तुरंत  जाकर  उसे  रोका  और  पूछा  -- इतनी  रात ,  को  तुम  इस  कमरे  में  क्यों  जा  रहे  हो   ?
  उस  आकृति  ने  कहा --- ' मैं  विधाता  हूँ ,  इस  बच्चे  का  भाग्य  लिखने  जा  रही  हूँ  l '
 राजा  ने  रोका  नहीं , लेकिन  जब  विधाता  बाहर  आये  तो  राजा  ने  उन्हें  रोक  लिया   और  कहा  कि   वे  बताएं  कि   उसके  भाग्य  में  क्या  लिखा  है 
विधाता  ने  कहा  -- और  बातें  तो  हम  नहीं  बताएँगे ,  लेकिन  मृत्यु  अटल  है  ,  उस  पल  को  बदला  नहीं  जा  सकता  l   विधाता  ने  राजा  को  बता  दिया  कि   इस  बालक   को   15  वर्ष  की  आयु  में  निश्चित  समय  में  शेर  खा  जायेगा  l
राजा  विक्रमादित्य  बहुत  वीर  थे  ,  उन्होंने  विधाता  के  इस  लेख  को  बदलने  का  निश्चय  किया  l प्रात:काल  होने  पर  ग्रामीण  को  अपना  परिचय  दिया  , उस  बालक  की  परवरिश  की  जिम्मेदारी  ली   फिर  राज्य  में  पहुंचकर  एक  बहुत  मजबूत  महल  बनवाना  शुरू  किया  जिसमे  शेर  तो  क्या  एक  परिंदा  भी  पर  नहीं  मार  सकता  था  l   बालक  15  वर्ष  का  हुआ  ,  उसे  उस  महल  के  बीचोबीच  एक  बड़े   सुरक्षित  कमरे  में  रखा  गया  ,  उसके  मन  बहलाने  का हर  सामान  वहां  था  l  कमरे    को  बहुत   सुन्दर  पेंटिंग ,  पक्षियों , जानवरों  के  चित्र  आदि  से  सजा  रखा  था  l  विधाता  द्वारा  बताये  निश्चित  समय  से  बहुत  पहले  ही  राजा  स्वयं  तलवार  लेकर  अपनी  सेना  सहित  उपस्थित  थे    l  सभी  चौकन्ने  थे  l  निश्चित  पल  पर  शेर  की  दहाड़  सुनाई  दी  ,  सब  लोग  बालक  के  कमरे  की  ओर   दौड़े ,  देखा  खून  से  लथपथ  बालक  मरा   पड़ा  है  l   कहते  हैं  दीवार  पर  बने  शेर  के  चित्र  ने  ही  शेर  का  रूप  ले  लिया  और  बालक  का  वध  कर  दिया  l
कथा   में  सत्यता  हो  न  हो ,  यह  तो  सत्य  है  कि   मृत्यु  अटल  है  ,  जो  इस  संसार  में  आया  है  उसे  जाना  है  l   आप  किसी  को  हजार  तालों  में  बंद  कर  दो ,  जब  हमें  मिली  हुई  साँसे  पूरी  हो  गईं ,  तब  उससे  एक  पल  ज्यादा  के  लिए  भी  संसार  की  कोई  ताकत  नहीं  रोक  सकती  l
हाँ ,  हमारे  धर्म  ग्रंथों  में  बताया  गया  है   और  आचार्य ,   ऋषियों  ने  इस  बात  पर  बहुत  जोर  दिया  है  कि   निरंतर  सत्कर्म  कर  के  हम  अकाल  मृत्यु  को   रोक  सकते  हैं ,  बड़ी  से  बड़ी  दुर्घटना  एक  छोटी  सी  सुई  चुभने  में  बदल  सकती  है  ,  हमारे  सत्कर्म ,  हमारा  निश्छल  मन  हमारे परिवार  पर  आये  हुए  बड़े  से  बड़े  संकट  को  टाल   सकता  है  l  बस ! सत्कर्मों  की  पूंजी  और  ईश्वर  की  कृपा  होनी  चाहिए  l 

30 March 2020

WISDOM ----- थोड़ी सी असावधानी मनुष्य के लिए एक बड़ा संकट उत्पन्न कर सकती है

 इस  सत्य  को  समझाने   वाली  एक  कथा  है ----  किसी  नगर  का  प्रमुख  शहद  खा  रहा  था  l  उसके  प्याले  में  से  थोड़ा  सा  शहद  टपककर  जमीन   पर  गिर  पड़ा  l
  उस  शहद  को  चाटने   मक्खियां  आ  गईं  l   मक्खियों  को  इकट्ठी  देख  छिपकली  ललचाई  और  उन्हें  खाने  के  लिए  आ  पहुंची  l   छिपकली  को  मारने   बिल्ली  पहुंची ,  बिल्ली  पर  दो - तीन  कुत्ते  टूट  पड़े  l  बिल्ली  भाग  गई   और  कुत्ते  आपस  में  लड़कर  घायल  हो  गए  l
  कुत्तों  के  मालिक  अपने - अपने  कुत्तों  के  पक्ष  का  समर्थन  करने  लगे    और  दूसरे  का  दोष  बताने  लगे  l  उस  पर  लड़ाई  ठन   गई  l  लड़ाई  में  दोनों  ओर   की  भीड़  बड़ी   और  आखिर  सारे  शहर  में  बलवा  हो  गया  l  दंगाइयों  को  मौका  मिला ,  उन्होंने  लूटपाट  की ,  कई  जगह  आग  लगा  दी  l
  नगर  प्रमुख  ने  जांच  कराई  और  इतने  बड़े  उपद्रव  का  कारण  पूछा    तो  मंत्री  ने  जांचकर  बताया  कि --- राजन  !  आपके  द्वारा  असावधानी  से  गिराया  हुआ  थोड़ा  सा  शहद  ही  इतने  बड़े  दंगे  का  कारण  बन  गया  है  l '
 यह  बात  सबको  समझ  में  आई  कि  थोड़ी  सी  असावधानी  मनुष्य  के  लिए  कितना  बड़ा  संकट  उत्पन्न  कर  सकती  है  l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ---- ' सद्बुद्धि  ही  संसार  में  समस्त  कार्यों  में  प्रकाशित  है  l  यही  सबसे  बड़ी  सामर्थ्य  है  l   हम  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें  l '

WISDOM ----- मौन रहें

 इमर्सन  ने  कहा  है --- ' आओ  हम  चुप  रहें  ,  ताकि  फरिश्तों  के  वार्तालाप  सुन  सकें  l '
  प्रकृति  निरंतर  हमसे  कुछ  कहना  चाहती  है  l  शान्त   और  एकाग्र  मन  से  ही    उनसे  वार्तालाप  संभव  है   l   मौन  रहकर  ही   अपने  अंतराल  में  उतरने  वाले  ईश्वर  के  दिव्य  संदेशों  , प्रेरणाओं  को  सुना - समझा  जा  सकता  है   l
  विश्व  के  अधिकांश  देशों  में  फैली  इस  महामारी  ने   मनुष्य  द्वारा  अपने  सामाजिक  जीवन  में  किये  जाने  वाले  व्यवहार  को  विकराल  रूप  में  प्रकट  कर  मानवता  को  एक  सन्देश  दिया  है  ----  संसार  के  विभिन्न  देशों  में    मनुष्य  ने  जाति ,  धर्म , लिंग , रंगरूप , नस्ल ,  अमीर - गरीब ,  ऊंच - नीच   आदि  पर  भयानक  भेदभाव  किया  l   स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझकर  दूसरे  पक्ष  पर  अमानवीय  अत्याचार  किये ,  उन्हें  तिरस्कृत  किया l   सरल  भाषा  में  कहें  तो   जिसको  अपने  से  हीन   समझा ,  निम्न  श्रेणी  का  समझा   उसको  अपने  से  दूर  रहने  को  कहा  ,  उसको  छूने  से ,  उसके  साथ  उठने  बैठने  से  इनकार   किया  l
  इस  वैश्विक  महामारी  ने  सबको  एक  श्रेणी  में  ला  दिया ,  एक  दूसरे  से  दूरी   बनाकर  रहो  ,  टच  न  करो l   प्रकृति  में  कहीं  कोई  भेदभाव  नहीं  है   l   सूर्य  का  प्रकाश  सबको  समान   रूप  से  मिलता  है  l
  विशेषज्ञ  इस  महामारी  से  निपटने  के  तरीके  बताते  हैं  l   ईश्वर  सर्वोपरि  है   l   संसार  में  सब  लोग  मिलकर  ईश्वर  से  प्रार्थना  करें  और  संकल्प  लें  कि   वे  हमारी  रक्षा  करें  ,  स्थिति  सामान्य  होने  पर  हम  सब  भेदभाव  मिटाकर   सच्चे  इनसान   बनकर  रहेंगे  l
 सच्चे  दिल  से  की  गई  प्रार्थना  अवश्य  सुनी  जाती  है  ,  ईश्वर  हम  सबके  हृदय  में  है  ,  इसलिए  छल - कपट   ईश्वर  को  पसंद  नहीं  l 

29 March 2020

WISDOM ------- निष्काम सेवा ही असली सेवा है

 महर्षि  वेदव्यास  ने  अपने  अठारह  पुराणों  में  एक  ही  बात  सार  रूप  में  लिखी  है --- परोपकाराय    पुण्याय  पापाय   परपीडनम  l '  अर्थात  परोपकार  करने  से  पुण्य  और  दूसरों  को  सताने  से  पाप  मिलता  है  l   रामचरितमानस  में  भी   गोस्वामीजी  ने  लिखा  है --- ' परहित  सरिस  धर्म  नहीं  भाई  l   पर  पीड़ा  सम  नहिं   अधमाई  l '
  शास्त्रों   में  कहा  गया  है  कि  यदि  सेवा  कर्तव्यपालन   या  आत्मिक  उन्नति  के  लिए  की  जा  रही  है  तो  वह  असली  सेवा  है   और  अगर  किसी  लालच  से  की  जा  रही  है  ,  तो  वह  आडंबरमात्र  है  l
  कल्याण  मासिक  पत्रिका  के  संपादक  श्री  हनुमान प्रसाद  पोद्दार जी   भीषण  ठंड   के  दिनों  में   गीता  वाटिका  ( गोरखपुर )  से  चुपचाप  निकलते  थे  और  ठण्ड  से  सिकुड़  रहे   गरीबों  को  कम्बल - चादर  ओढ़ा  दिया  करते  थे  l   एक  बार  एक  पत्रकार  ने   गरीबों  को  कम्बल  ओढ़ाते  हुए   उनका  फोटो  ले  लिया  ,  तो  पोद्दार जी  ने  बड़ी  विनम्रता  से   उससे  कहा --- " यह  फोटो  अख़बार  में  मत  छापना   ,  न  ही  इसके  बारे  में  किसी  दूसरे  को  बताना ,  नहीं  तो   मैं  पुण्य  की  जगह  पाप  का  भागी  बनूँगा  l  प्रचार  के  उद्देश्य  से  की  गई  सेवा  पुण्य  नहीं , पाप  का  मार्ग  बताई  गई  है  l  "
  हमारे  शास्त्रों  में  लिखा  है  -- निष्काम  सेवा  यही  है  जिसमे  हम  यश - मान - अपमान  से  कोसों  दूर  होते  हैं  l  यदि  इस  सेवा  में  अहंकार  की  गंध  हो  , यश  प्राप्ति  की  कामना  और  किसी  प्रकार  का  लालच  हो   तो  वह  सेवा  ही  नहीं  है  l  
  ईसामसीह   भी  सेवा  करने  की  भावना  को  बहुत  महत्व   देते  थे  l उनके  एक  शिष्य  की  शेखी  बघारने  की  बहुत  आदत  थी  l  एक  दिन  वह  महात्मा  ईसा  के  दर्शन  को  पहुंचा   और  बोला --- " आज  मैं  पांच  गरीबों  को  खाना  खिलाकर  आया  हूँ  l  जब  तक  मैं  किसी  की  सहायता  न  कर  दूँ  ,  मुझे  चैन  नहीं    मिलता  l  "  इस  बात  पर  ईसा  ने  उसे  समझाया --- ' तुम्हारा  आज  का  सेवा - पुण्य  समाप्त  हो  गया  l   जो  दिखावे  के  लिए   किसी  की  सहायता  करता  है  , समझ  लो  कि   वह  नाटक  करता  है  l   इसलिए  किसी  की  सहायता  गुप्त  रूप  से  करनी  चाहिए  l  ' उन्होंने  आगे  कहा --- ' सेवा - सहायता  का  कार्य  तुम्हारा  इतना  गुप्त  हो  कि  तुम्हारे  बांये  हाथ  को  भी  पता  न  चल  सके  कि   दाहिने  हाथ  से  तुमने  दान  किया  है   या  किसी  की  मदद  की  है  l  परमेश्वर  तुम्हारे  गुप्त  कार्यों  को  भी  देखता  है  l  ढिंढोरा  पीटने  से  कोई  लाभ  नहीं  l ' 

WISDOM ------- शक्ति की शोभा दुर्बल पर जोर दिखाने में नहीं , गिरे हुओं को उठाने में होती है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  पेड़  की  एक  डाल   पर  तोता  और  दूसरी  डाल   पर  बाज  बैठे  थे  l   तोते  को  देखकर  बाज  अकड़कर  बोलै --- "अरे  तोते  ! अच्छा  है  कि   मेरा  पेट  भरा  है  ,  नहीं  तो  क्षण  भर  में   मैं  तेरे  टुकड़े  कर  दूँ  ,  पर  तू  ऐसे  दुस्साहस  के  साथ   मेरे  सामने  खड़ा  है  l "
  तोते  ने  कहा --- " आप  ठीक  कहते  हैं  कि   आप  मुझसे  ज्यादा  शक्तिशाली  हैं  ,  पर  शक्ति  की  शोभा  दुर्बल  पर  जोर  दिखाने   में  नहीं ,  गिरे  हुओं  को  उठाने  में  होती  है  l  भक्षण  तो  कोई  भी  कर  सकता  है  ,  पर  रक्षण  करना  बलवान  का  दायित्व  है  l  "  बात  बाज  की  समझ  में  आई  और  उसकी  समझ  में  परिवर्तन  आ  गया  l 

28 March 2020

WISDOM ----- आज संसार को ' गाँधीवादी अर्थशास्त्र ' की जरुरत है

  गांधीजी  ने  कहा  था  कि   हमारी  धरती  के  पास  प्रत्येक  व्यक्ति  की  आवश्यकता  के  लिए  बहुत  कुछ  है   पर  किसी  के  लालच  के  लिए  कुछ  नहीं  l   गांधीजी  का  मन्त्र  था --- जब  भी  कोई  काम  हाथ  में  लो  ,  यह  ध्यान  रखो  कि   इससे  सबसे  कमजोर  और  गरीब  व्यक्ति  को  क्या  लाभ  होगा  l   मानव  मात्र  की  ख़ुशी  ही  उनकी  मूल  कसौटी  थी   l   
गांधीजी  चाहते  थे  प्रत्येक  गाँव  आत्मनिर्भर  हो   l  लोग  अपरिग्रह  के  सिद्धांत   को  अपनाएं  जिससे  समाज  में  आर्थिक  असमानता  दूर  हो  सके  l   उनके  विचार  केवल  भारत  के  लिए  नहीं  अपितु  समस्त  संसार  के  कल्याण  के  लिए  थे  l 

WISDOM ----- वर्तमान समस्या का सबसे बड़ा कारण मनुष्य का संवेदनहीन होना है

 लोभ , लालच ,  कामना  वासना  के  जाल  में  मनुष्य  इस  तरह  उलझ  गया  है  कि  उसके  हृदय  में  संवेदना  का  स्रोत  ही  सूख   गया  है  l   कभी - कभी  प्रकृति  भी  ऐसी  विकट   परिस्थितियां  रचकर  मनुष्य  की  परीक्षा  लेती  है   कि    उच्च    आदर्शों   की  बात  करने  वाले  मनुष्य  की  सच्चाई  क्या  है  ? 
 मनुष्य  ने   अपने  स्वार्थ  के  लिए   प्रकृति  को  उपेक्षित  किया  ,  जल , थल , वायु  समूचे  पर्यावरण  को   प्रदूषित  कर  दिया,   अपनी   मानसिक  कमजोरियों  से  , अनैतिक  और  अपराधिक  गतिविधियों  से   वातावरण  में  नकारात्मकता  भर  दी  l
  प्रकृति  हमें  विभिन्न  तरीकों  से  समय - समय  पर  सन्देश  देती  रही  की-- सुधर  जाओ ,  सन्मार्ग  पर  चलो  लेकिन  मनुष्य  ने  समझा  नहीं   l   इस  बार  प्रकृति   अपनी    उपेक्षा  सहते- सहते   बहुत  क्रुद्ध  हो  गईं  l   कब  किस  पर  प्रकोप  हो  जाये  ----  कोई  नहीं   जानता  l
  हम  प्रकृति  के  सन्देश  को  समझें  ,  शासकीय  नियमों  में  रहते  हुए    संवेदनशील  बने  ,    गरीबी , मजबूरी  ,  जाति , धर्म ,  रंग  , ऊंच - नीच   आदि  विभिन्न  आधारों  पर  किसी  को    उपेक्षित   न  करें  l 
पं. श्रीराम  शर्मा आचार्य जी  का   कहना  है  --- इस  संसार  की  सभी  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  संवेदना  है  l   हम  किसी  को  दुःख  न   दें  l   अपनी  सामर्थ्य  के  अनुसार  उसकी  पीड़ा  का  निवारण  करें  l 

27 March 2020

WISDOM ------- हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें

   कहते  हैं --- ' मन  के  हारे  हार  है , मन  के  जीते  जीत  l '     जीवन  में  हमें   जो  पल  मिले  हैं  उन्हें  सार्थक  करने  में  ही  हमारी  भलाई  है   l   शासन  ने  तो   लॉक  डाउन  कर  दिया  अब  यह  हमारे  हाथ  में  है  कि   हम  इस  समय  का  सार्थक  उपयोग  करते  हैं   या   इसे  व्यर्थ  गँवा  देते  हैं  l   कुछ  समय   बाद  ये    दिन   इतिहास  बन     जायेंगे     ,  हमारी  यादों  में   रहेंगे  l   महामारी   से  बचने  के  लिए   प्रतिरोधक        शक्ति  जरुरी  है  जो  नियम , संयम , प्राणायाम ,  संतुलित  भोजन   के  साथ  पारिवारिक  शांति  और  मन  में  संतोष  पर  निर्भर  है  l
  महाभारत  में  प्रसंग  है  --- जब  पांडव  जुए  में  हार  गए   और  उन्हें  12 वर्ष  का  वनवास  और  एक  वर्ष  का  अज्ञातवास  हुआ   l  इस  अज्ञातवास  में  वे   निष्क्रिय  होकर  नहीं  रहे   l   वे  लोग  वेश  बदल  कर   राजा  विराट  के  यहाँ  रहे  l   अर्जुन  ने  उस  अवधि  में   वहां  नृत्य - संगीत  सिखाने   का  कार्य  किया  l   शक्तिशाली  भीम  ने  रसोइये  का  कार्य  किया  l   यज्ञ  से  उत्पन्न  हुई  द्रोपदी  ने  महारानी  की  सेवा  , उनके  साज श्रंगार  का  कार्य  किया  l इसी  तरह  नकुल , सहदेव  और   युधिष्ठिर  ने  अलग - अलग  कार्य  किये  l   सम्पूर्ण  वनवास  की  अवधि  में  और  फिर  अज्ञातवास  में  निरंतर  सक्रिय   रहकर   ही   उन्होंने  वो  ऊर्जा  संचित  की  जिससे  वह  महाभारत  के  युद्ध  में  विजयी  हुए  l   इस  अवधि  में  पांचों  पांडव  और  द्रोपदी  परस्पर  मेलजोल  से  परिस्थितियों    से  संतुलन  बनाकर  रहे  l
  दूसरी  तरफ  कौरव  भोग - विलास   और  छल - कपट  और  षड्यंत्र  जैसे    नकारात्मक   कार्यों  में  अपनी  ऊर्जा   नष्ट  करते  रहे  l   इसलिए  पराजित  हुए  l 

26 March 2020

WISDOM ----- आत्मविश्वास ही ईश्वर विश्वास है

  किसी  भी  समस्या  से  चाहे  वह  सामाजिक  हो , पारिवारिक  हो  या  फिर  कोई  महामारी  हो  उससे  निपटने  के  लिए  आत्मविश्वास  जरुरी  है  l   आत्मविश्वास  ही  ईश्वर  विश्वास  है   l  आत्मविश्वासी  को  हर  पल  यह  बोध  होता  है  कि   ईश्वर  उसके  साथ  है  ,  उसे  सद्बुद्धि  देते  है  कि   उसका  कोई  कदम  गलत  न  हो   l  '  जब  हम  किसी  का  बुरा  नहीं  करेंगे  तो  हमारा  भी  बुरा  नहीं  होगा  l
पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  वाङ्मय  में  लिखा  है ---- ' उपासना  के  माध्यम  से  परमात्मा  के  समीप  रहने  वाले  व्यक्तियों  पर   जिन  गुणों  का  अनुग्रह  होता  है   उनमे  से  धैर्य  तथा  सहिष्णुता  मुख्य  हैं   l  संसार  में  दुःखद   घटनाएं  सदा  सम्भाव्य  मानी  गईं   हैं  ,  वे   प्राय:  सभी  के  जीवन  में  आती  हैं    तथापि   धीर  व्यक्ति   उनको  सामान्य  घटना  की  तरह  सहकर  अपनी  आत्मा  को  प्रभावित  नहीं  होने  देते  हैं  l   जीवन  और  जगत  को  ठीक  से  समझ  लेने  वाले   बुद्धिमान  व्यक्ति   किसी  भी  परिस्थिति  में   अपने  को  विचलित  नहीं  होने  देते   और  ज्वाला  के  समान   जलते  हुए   संयोगों  के  बीच  से  अप्रभावित  हुए  निकल  जाते  हैं   l 

WISDOM ----- आज संसार को महात्मा गाँधी के आदर्शों पर चलने की जरुरत है

  ' विचार  कभी  नष्ट  नहीं  होते  ,  लोग  उन्हें  मिटाने   का  कितना  ही  प्रयत्न  करें  वे  जीवित  रहते  हैं  l   महात्मा  गाँधी  ने  जो  सिद्धांत  दिए   वे  केवल  बोलकर , भाषण  देकर  नहीं  दिए  ,  उन्होंने  अपने  आचरण  से  संसार   के  सामने  उदाहरण  प्रस्तुत  किया  l   गांधीजी  की  कथनी  और  करनी  एक  थी   l 
  आज  जब  सारा  संसार  इस  वैश्विक  महामारी  की  चपेट  में  है  तो  गांधीजी  के  विचारों  पर  अमल  करने  की  जरुरत  है  l   उन्होंने  कहा  था ---- किसी  भी  जीव   को  मत  सताओ , हिंसा  न  करो ,  मांसाहार  से  दूर  रहो  l   संयमित  जीवन  जिओ  l   अपनी  आवश्यकताएं  सीमित   रखो  , सादगी  से  रहो ,  अनावश्यक  संग्रह  न  करो   l  मौन  और  ब्रह्मचर्य  से  अपनी  प्रतिरोधक  शक्ति  को  बढ़ाओ ,  अपनी  ऊर्जा  संचित  रखो  l   गांधीजी  जब  विदेश  में  भी  रहे  कभी  मांसाहार  नहीं  किया  l एक  बार  भयंकर  फ्लू  फैला  था   तब  गांधीजी  भी  उससे  संक्रमित  हो  गए  थे  तब  उन्होंने  मौन , एकांतवास ,  तरल  पदार्थों  का  सेवन  और  नियम  संयम  का  पालन  कर  के  उस  बीमारी  को  दूर  भगाया  था  l
  हम  अपनी  सोच  सकारात्मक  रखें  और  इसे  ईश्वरीय  व्यवस्था  ही  माने  कि   ये  ' कोरोना ' नवरात्रि   में  आया  l   इन  दिनों  में  लोग  स्वेच्छा  से  नियम - संयम  का  पालन  करते  हैं ,  जो  कोरोना  को  हराने   का  मुख्य  अस्त्र  है  l  लोग    रामायण  पाठ , मन्त्र जप ,  भजन - पूजन  आदि   विभिन्न  तरीके  से    ईश्वर  का  स्मरण   करते  हैं  l   इन  सबके  लिए  हमारे  पास  पर्याप्त  समय  भी  है  l   इस  संसार  में  शुरू  से  ही   असुरता  और  देवत्व   में  युद्ध  चलता  है  और  अंत  में   असुरता को  पराजित  होना  ही  पड़ता  है  l   हम  अपने  भीतर  के  देवत्व  को  विकसित  करें   अपनी  दुष्प्रवृतियों  को  नियंत्रित  कर  सन्मार्ग  पर  चलें  ,  कोरोना  का  असुर  पराजित  होकर  ही  रहेगा  l 

25 March 2020

WISDOM ------ यह समय अपनी भूलों को सुधारने का है

  आज    विश्व  में  अधिकांश  देशों  के  लोग  इस  महामारी  के  कारण  एकांतवास  में  है  l  यह  एकांत   का  समय  हम  किसी  को  दोष  देने  में  न  गंवाएं  बल्कि  चाहे  कोई  सामान्य  व्यक्ति  हो , धन - संपन्न , उच्च  पदवीधारी  हो  या  बड़ी  सरकारें  हो  ,  यह  आत्मविश्लेषण  का  वक्त  है  ,  आखिर  कौन  सी  गलतियां  हैं  जिनकी  वजह  से  प्रकृति  हमसे  नाराज  हो  गई  ? 
 चाहे  जो  भी  गलतियां  हों  उनके  पीछे  कुछ  लोगों  का  अहंकार  व  स्वार्थ  है  और  गलती  भी   श्रंखलाबद्ध  होती  है  जिससे  पूरा  पर्यावरण  प्रदूषित  हो  जाता  है    जैसे ----- मनुष्य  जो  भी  व्यवसाय  करता  है  ,  वह  लाभ  की  आशा  से  करता  है   , और  लाभ  कब  होगा  ?  जब  मॉल  बिकेगा ,  बाजार  में  उस  माल  की  मांग  अधिक  होगी  l  अब  यदि  हृदय  में  संवेदना  का  स्रोत  सूख   गया  है  तो  व्यवसायी  वह  हर  संभव  कार्य  करेगा  जिससे  उसका  माल  बिक  जाये  l   युद्ध  के  लिए  बड़े - बड़े  मारक  हथियार , बम , टैंक  आदि , दंगे - फसाद  आदि  के  लिए  हर  तरह   के मारक  अस्त्र  आदि l   इनकी  मांग  जितनी  अधिक  होगी  उतना  ही  लाभ  होगा   और  इस  व्यवसाय  में  लाभ  का  अर्थ  है  --- सम्पूर्ण  संसार  को  हानि , तनाव , कभी  न  मिटने  वाले  दुःख  !
  कहते  हैं  विनाशकारी  बम  आदि  बनाने  के  लिए  धरती  को  बहुत  गहरे  खोद  कर   आवश्यक  खनिज   निकाले    जाते  हैं   l   हमारे  धर्मशास्त्रों  में  धरती  को  माँ  कहा  गया  है  , माँ  हम  सबका  पालन  करती  है   इसलिए  जो  बहुत  हानिकारक  पदार्थ  हैं  उनको  माँ  ने   अपने  गर्भ  में  , बहुत  गहराई  में  छुपा  कर  रखा   ताकि  धरती  पर  रहने  वाली  उसकी  सन्तानो  को   कोई  नुकसान  न  पहुंचे  लेकिन  मनुष्य  ने  भूल  की l
  एक  तो  धरती माँ  को  कष्ट  दिया  दूसरे   अपने  अहंकार  की  पूर्ति  के  लिए  संसार  में  बेवजह  के  युद्ध , हमले , दंगे  आदि  होते  हैं   l   निर्दोष  लोग  मारे  जाते  हैं  l   उनकी  आहों  से  पूरे  वायुमंडल  में  नकारात्मकता  भर  गई  है  l   एक  तो  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  है  और  फिर  हाथ  में  हथियार  हों   ?---       अभी  भी  वक्त  है  l   गीता  में  कहा  गया  है    भगवन  बड़े  से  बड़े  पापी  का  भी  उद्धार  कर  देते  हैं   ,  हम  उनकी  शरण  में  जाये , प्रेम  और  भाईचारे  से  रहने  का  संकल्प  लें  , विश्व - प्रेम , विश्व - बंधुत्व  का  भाव  हो  l   मृत्यु  को  सामने  देख  कर  भी  अब  हम  न  सुधरें   तो  कब  सुधरेंगे  ?  ?
     

24 March 2020

WISDOM -------

        इस  संसार  में  एक  पत्ता  भी  हिलता  है  तो  उसकी  कोई  वजह  होती  है  ,  कोई  भी  घटना  अकारण  नहीं  होती  l   फिर  यह  जो  महामारी  है  ,  इसके  बारे  में  सोचें  तो  यह  भयावह  है  लेकिन  हमें  हर  बुराई  में  भी  अच्छाई  को  खोजना  है  l   ---- हम  आधुनिकता  की  दौड़  में  भटक  गए  थे ,  अपनी  संस्कृति  को  भूलते  जा  रहे  थे   l   इस  महामारी  के   बहाने  से  ईश्वर  चाहते  हैं  कि   हम  अपने  पुरातन  मूल्यों  को  पहचाने ,  उनका   महत्व   समझे  l   परिवार  में  मिलजुलकर  रहें ,  नियम , संयम , मर्यादा  का  पालन  करें  l   लोग  सुख - शांति   पाने  के  लिए  बाहर  भागते  हैं   लेकिन  अब  घर  में  रहकर  हमें  समझना  होगा   कि   शांति  हमारे  ही  भीतर  है  ,  अपनी  इच्छाओं  को   सीमित    करें ,  परिस्थितियों  से  तालमेल  बैठाएं  l
  इसी  तरह  हम  ईश्वर  को  खोजने  धार्मिक  स्थलों  में ,  तीर्थ  स्थानों  में  भटकते  हैं l   इन  स्थानों  पर  कितनी  भीड़  होती  है   l   यदि  यहाँ  जाने  वाले  सब  लोग  सच्चे  भक्त  होते   तो   आज  संसार  में  सुख - शांति  होती  l    ईश्वर चाहते  हैं  हम  अंतर्मुखी  बने  l   इस  सत्य  का  अनुभव  करें  कि   ईश्वर  ने  हम  सबको  गिनती  की  सांसे  दी  हैं   उन्हें  हम  धर्म , जाति ,  ऊंच - नीच  के  आधार  पर  लड़ने  में  न  गंवाएं  ,  इस  धरती  पर  प्रेम  से  रहना  सीखें  l 

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ----- ' समय - समय  पर  महाकाल  की  सत्ता  विभिन्न  रूपों  में   मानवी  चेतना  को  झकझोरने  आती  रही  है  l  उसे  पहचानकर   अवसर  का  लाभ  जिसने  उठा  लिया  , वह  निहाल  हो  गया  l   मानव  जीवन  दुबारा   नहीं  मिलता  l  वह  क्षय  हेतु  नहीं  ,  गरिमा  के  अनुरूप  शानदार  जीवन  जीने  को  मिला  है  l 

23 March 2020

WISDOM ----- मानव - धर्म

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---  इस  सृष्टि  के  संचालक  ने  मनुष्य  को  घृणा  करने  के  लिए  नहीं   वरन  प्रेम  करने  के  लिए  संसार  में  भेजा  है   और  उसी  के  लिए  हमको  सदैव  प्राणपण  से  सचेष्ट  रहना  चाहिए  l   क्षुद्र  और  संकीर्ण  स्वार्थों  के  वशीभूत  होकर  मनुष्य  ने  अपना  बहुत  आत्मिक  पतन  कर  लिया  है    और    मनुष्य  ने  स्वयं  को  ही  एक  महाभयंकर  संकट  के  सामने  पहुंचा  दिया  है  l  '
   कहते  हैं   जब  पृथ्वी  पर  अत्याचार , अन्याय , लूट - खसोट , छल - कपट , जाति , धर्म , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब   आदि  के  आधार  पर  भेदभाव  , शोषण  बहुत  बढ़  जाता  है   तो  सामूहिक  दंड  के  रूप  में  प्राकृतिक  आपदा ,  महामारी  आदि  का  प्रकोप  होता  है  l   अपने  कष्टों  के  लिए  मनुष्य  स्वयं  उत्तरदायी  है   l   हमारे  ऋषियों , आचार्य  आदि  का  कहना  है   --- ईश्वर  स्वयं  किसी  का  भला - बुरा  नहीं  करते ,  मनुष्य  को  अपनी  पसंद , अपनी  चॉयस  के  अनुसार  ही  सब  कुछ  मिलता  है   l   हम  अपने  प्रत्येक  क्रिया - कलाप  द्वारा  प्रकृति  को  मैसेज  देते  हैं  कि   हमें  क्या  पसंद  है  जैसे  ---    लड़ाई - झगड़ा ,  दूसरों  का  हक़  छीनना , अपने  से  कमजोर  को  सताना , बेवजह  लोगों  को  तंग  करना , उनका  जीवन  दुखमय  बनाना , हत्या , युद्ध ,   आदि  घृणित  कार्य  करता  है   तो  प्रकृति  में  यह  सन्देश  जाता  है   कि   मनुष्य  को  यह  सब  पसंद  है  इसी  लिए  वह   ये  अनैतिक  कार्य  कर  रहा  है  l
  अब  मनुष्य  को  उसकी  यह ' पसंद ' उसकी ' चॉयस ' कब  और  किस  रूप  में  मिलेगी  यह  काल  तय  करता  है  l
  ईश्वर  ने  मनुष्य  को   ' चुनने '  का  अधिकार  दिया  है  यह  हमारे  हाथ  में  है   कि   हम   अहंकार  वश  अनैतिकता  का  मार्ग  चुने ,  या  समाज  में  करुणा , संवेदना , भाईचारे  बढ़ाने  का  रास्ता  चुने  l 
  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  कहा  है  --- आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  सद्बुद्धि  की  है   l   यदि  सद्बुद्धि  होगी   तो  मनुष्य  अपने  जीवन  की  सही  दिशा  चुनेगा  ,   सारे  भेदभाव  भूलकर  एक  सच्चा   इनसान   बनेगा  
जंगली    और  पालतू  जानवर  भी  आपस  में  इतना  नहीं  लड़ते   जैसा  कि   इतना  बुद्धिजीवी  होने  पर  भी  मनुष्य    मार - काट ,  दंगा - फसाद   करता  है  l 

22 March 2020

WISDOM ------

 ' आपत्तियां  एक  प्रकार  से   ईश्वरीय  चेतावनियां  हैं  ,  जिनसे  ठोकर  खाकर   मनुष्य  सजग  हो  और
 गलत  मार्ग  से  पीछे  लौटे  l '----- प. श्रीराम  शर्मा  आचार्य
  आचार्य  श्री  ने  वाङ्मय  में  लिखा  है  कि --- पृथ्वी  पर  नवयुग  की  स्थापना  तो  होगी   लेकिन   यदि  लोगों  की   मानसिक  वृत्ति  ऐसी  जड़  बनी   रही  और  लोगों  ने  अपने  दोषों  को  त्याग  कर  न्याय  पक्ष  को  अपनाने  का  प्रयत्न  नहीं  किया   तो  प्रकृति  स्वयं  उनके  दुष्कर्मों  का  दंड  देकर   उनको  सुमार्ग  पर  लाने   को  विवश  करेगी  l   वर्तमान  समाज  में  इतनी   विकृतियां  आ  गईं   हैं   और  बहुसंख्यक  व्यक्ति  स्वार्थवश   या  स्वभाव   पड़   जाने  से   अन्याय  मार्ग  पर  चलने  के  ऐसे  अभ्यस्त   हो  गए  हैं  कि   जब  तक  दैवी  दंड   द्वारा  उनका  कायाकल्प   नहीं  किया  जायेगा  तब  तक  वे  न  तो  स्वयं  सुधरेंगे  और  न  संसार  का  सुधार  होने  देंगे  l '
  इसी  तरह  प्रभु  जगद्बन्धु   ने  अपने  उद्गारों  में   ऐसे  संसार  व्यापी  महान  परिवर्तन  की   सूचना    दी  है   जिसमे  हमारे  समाज  का  एक  बड़ा  भाग  अपने  दोष - दुर्गुणों  सहित   डूब   जायेगा  और  एक  नूतन  समाज  की  रचना  होगी   l
आचार्य  श्री  चेतावनी  देते  हैं  कि   यह  महाकाल  की  योजना  है  ,  अभी  भी  वक्त  है  अपने  दोष - दुर्गुणों  को  त्याग  कर  सन्मार्ग  पर  चलो  l 

21 March 2020

प्रभु जगद्बन्धु ---- जिन्होंने सामूहिक प्रार्थना - कीर्तन के माध्यम से समाज का कल्याण किया

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  वाङ्मय  - ' हमारी  संस्कृति - इतिहास  के  कीर्ति  स्तम्भ '  में  प्रस्तुत  प्रसंग  का  एक  अंश ----   बात  उन  दिनों  की  है ---- ' जब  कलकत्ते  में  प्लेग  का  प्रकोप  हुआ  , समस्त  नगर  में  प्रलय काल  का  सा  दृश्य  दिखाई  पड़ने  लगा  l  प्राणो  के  भय  से  दल   के  दल  व्यक्ति  शहर  छोड़कर  भागने  लगे  l   इससे  सरकारी  अधिकारियों  को  यह  भय  हुआ  की  यह  महामारी  कस्बों   और  गांवों  में  भी  फैल   जाएगी  l   इस  विपत्ति  से  बचने  के  लिए  तत्कालीन  गवर्नर  लार्ड  कर्जन  ने  आदेश  दिया   कि   कोई  व्यक्ति  कलकत्ता  छोड़कर  बाहर  न  जाये   l   इसलिए  चारों  तरफ  पुलिस  और  फौज  का  पहरा  लगा  दिया   l   यह  बड़ा  भयंकर  समय  था   l   एक  के  बाद  एक  बड़े  नगर  प्लेग  के  प्रहार  से  वीरान  बनते  जा  रहे  थे  l   कलकत्ता  शहर  की  एक  सप्ताह  में  ही  दुर्दशा  हो  गई  थी  l   स्वामी  विवेकानंद  ने  इस  अवसर  पर  अपने  संन्यासी  समुदाय  को  प्लेग  पीड़ितों  की  सहायतार्थ  लगा  दिया  था  l
  महामारी  का  प्रकोप  अधिक  बढ़ते  देख  महात्मा  शिशिर  घोष  ने   गवर्नर  जनरल  लार्ड  कर्जन  इस  संबंध   में  परामर्श  किया   और  फिर  अनेक  गणमान्य  नागरिकों  के  सहयोग  से  जिनमे  हाईकोर्ट  के  प्रधान  जज  श्री  द्वारिकानाथ  मिश्र  और  प्रमुख  जमींदार  यतीन्द्रमोहन  ठाकुर  भी  थे  ,  एक  बहुत  बड़ी  सार्वजनिक   सभा  का  आयोजन  किया  गया   l   इस  सभा  में  चम्पटी   ठाकुर  ने   ' हरिनाम  संकीर्तन '  द्वारा   इस  महाविपत्ति  से  परित्राण   पाने  के  सम्बन्ध  में  हृदयग्राही  भाषण  दिया  l
    सर्वसम्मति  से  यह  प्रस्ताव  पारित  हुआ   कि   कलकत्ते  के  मैदान  में  सब  धर्मों  की  सम्मिलित
    ' ईश्वर  प्रार्थना '   और  विशाल  संकीर्तन  का  आयोजन  किया  जाये  l
                       प्रभु  जगद्बन्धु  की  प्रेरणा  से   डोम    जाति   के  लोग  उच्च  श्रेणी  के  कीर्तनकार  बन  गए  थे   इसलिए  रामबागान   के   डोमों  को  ही  इस  कार्य  में  अगुआ  बनना  पड़ा  l  प्राणों  के  भय  से  अन्य  उच्च  जाति   के  लोग  भी  कीर्तन  में  भाग  लेने  लगे   l   उस  आपत्तिकाल  में   ब्राह्मण - शूद्र , हिन्दू , मुसलमान ,  ईसाई  आदि  का  भेदभाव  जाता  रहा   और  काळा - गोरे , ऊंच - नीच  सब  मिलकर   परमपिता  की  प्रार्थना  करने  लगे   l   धर्मतल्ला  की  बड़ी  मस्जिद   के  कट्टर  मुल्लाओं  ने  भगवान   की  आरती  में  भाग  लिया  l   स्वयं  लार्ड  कर्जन  भी  इस  अवसर  पर  आये  और  उन्होंने  जूता  तथा  टोपी  उतार  कर   ईश - प्रार्थना   तथा  भगवन्नाम - संकीर्तन  के  प्रति  सम्मान का    भाव  प्रकट  किया  l   इस  अवसर  पर  प्रभु  जगद्बन्धु  भी   वहां  थे  l   उनकी  उपस्थिति  में  असंख्य  कंठों  से  ' हरिध्वनि ' होने  लगी  ,  जिससे  सारा  आकाश  गूंज  उठा   l   इस  महासंकीर्तन  के  पश्चात्  प्लेग  का  बढ़ना  रुक  गया   और  धीरे - धीरे  नगर  में  शांति  हो  गई  l 
  आज  परिस्थितियां  बदल  गईं ,  लेकिन  सामूहिक  प्रार्थना  की  शक्ति  वही  है  l   हम  सब  एक  माला  के  मोती  हैं   इसलिए  अपने  - अपने  घरों  में  रहते  हुए   और  मन  से   सबके  साथ   जैसे  धागे  में  मोती  पिरोये  होते  हैं  ,  ईश्वर  की  प्रार्थना  करें   l   ' निर्धारित  समय '  पर   सामूहिक  प्रार्थना , मन्त्र  जप  आदि  से   कोरोना  भी    रोते   हुए   भाग  जायेगा   l 

WISDOM -----

                ' कलि  काल  कुठार  लिए  फिरता , तुझसे  वह  चोट  झिली  न  झिली  ,
                 भेज  ले  हरि  नाम  अरे  रसना  ,  फिर  अंत  समय  में  हिली  न  हिली  l 
  कहते  हैं -- मौत  के  अनेक  बहाने  होते  हैं ,  लेकिन  जीवन  रक्षा  के  अनेक  सहारे  होते  हैं  l   एक  आखिरी  सहारा  ईश्वर  का  होता  है  l   द्रोपदी  चीर  हरण  के  वक्त  जब  तक  सभासदों  से  अनुनय - विनय  करती  रही  ,  अपने  वीर  पति  की  वीरता  की  दुहाई  देती  रही  तब  तक  भगवान   नहीं  आये  l   जब   वह  सारे  प्रयास  कर  के  थक  गई   और  श्रद्धा  व  विश्वास  से  भगवान   को  पुकारा   तब  भगवान   दौड़े  चले  आये  l
    भगवान   आते  तो  अवश्य  हैं  ,  हम  उन्हें   प्रेम  से  पुकारें  तो   l
  आज  की  संसार  की  परिस्थिति  देखें  तो  लगता  है   सर्वशक्तिमान  प्रकृति  माँ  हमसे  नाराज  हैं  ,  क्रोधित  हो  रहीं  हैं  l   उनकी  नाराजगी  को  दूर  करने  का  एक  ही  तरीका  है  ----- ' एक  निर्धारित  समय '  पर  हम  सब  एक  साथ  बोलकर  या  मानसिक  रूप  से  गायत्री  मन्त्र  का  जप  करें  या  अपनी  सुविधा  अनुसार  जो  भी  आपकी  पूजा  विधि  हो  उससे   अपने  ईश्वर  की  ,  उस  सर्व  शक्तिमान  अज्ञात   शक्ति    की  प्रार्थना  करें  l  और  साथ  ही  अपनी  किसी  एक  बुरी  आदत  को  छोड़ने  का  संकल्प  लें  l 
    हमारे  भीतर   बुराइयां  तो  बहुत  हैं ,  सबको  एक  साथ  छोड़ना  बहुत  कठिन  है  l पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---- हम  अपने  दोषों  को  एक - एक  कर  के  दूर  करें  l   एक  अवगुण  त्यागें  और  उसके  खाली    हुए  स्थान  पर  एक  सद्गुण  ग्रहण  करें  l  इस  तरह  धीरे - धीरे  हमारा  व्यक्तित्व  परिष्कृत  होता  जायेगा  l

20 March 2020

WISDOM -----

  ' इस  संसार  का  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  यही  है  कि   अपनी  आँखों  के  सामने  मृत्यु  का  तांडव  देखते  हुए  भी  व्यक्ति  छल - कपट , लोभ  - लालच ,  षड्यंत्र ,   भोग - विलास  के  जीवन  से  क्षण भर  के  लिए  भी  पीछे  नहीं  हटना  चाहता  l   स्वयं  को  अजर - अमर  समझकर   मनुष्य  जो  भी   नैतिकता  और  मर्यादा  के  विरुद्ध  कार्य  करता  है    उससे  समाज  पर  जो  प्रभाव  पड़ता  है वह  अलग  बात  है ,  ऐसा  कर  के  व्यक्ति    अपने  हाथ  से  अपना  दुर्भाग्य  लिखता  है   l '
  मनुष्य  के  दोहरे  चरित्र  से  अब  प्रकृति  भी  ऊब  गई  ,  प्रकृति  का  कहर  कुछ  ऐसा  हुआ  कि   धार्मिक  स्थल  पर  होने  वाले  कर्मकांड  भी  बंद  हो  गए  l  इस  घटना  के  माध्यम  से  ईश्वर  हमें  यह  सन्देश  देना  चाहते  हैं  कि --- बाहरी  आडम्बर  और  कर्मकांड   तभी  सार्थक  हैं  जब  आपने  अपने  व्यक्तित्व  का  परिष्कार  किया  हो  ,  अपनी  दुष्प्रवृतियों  को  त्याग  कर  सन्मार्ग  पर  चलने  का  ,  सद्गुणों  को  अपने  जीवन  में  अपनाने  का  प्रयास  शुरू  किया  हो   l   प्रकृति  का  स्पष्ट  सन्देश  है   कि   ईश्वर  का  निवास  हम  सबके  हृदय  में  है  ,  हम  अपनी  भावनाओं  को  परिष्कृत  करें , सद्गुणों  को  अपनाकर  ,  सन्मार्ग  पर  चलकर  अपने  हृदय  को  ही  मंदिर  बनायें ,  उसमे  बैठे  ईश्वर  को  जाग्रत  करें  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं कि --- यदि  हम   अपनी  बुराइयों  को  त्याग  कर   सन्मार्ग  पर  चलने  का  संकल्प  लेते  हैं   तो  दैवी  शक्तियां  हमारी  मदद  करती  हैं  ,  लेकिन  ईश्वर  के  दरबार  में  झूठ  और  छल - कपट  नहीं  चलता  l  वे  हमारे  हृदय  में  बैठें  हैं  ,  हम  क्या  कर  रहे  हैं  और  क्या  सोच  रहे  हैं  ,  यह  सब  उनसे  छुपा  नहीं  है  l

19 March 2020

WISDOM ----- आज की सबसे बड़ी जरुरत है ---- नैतिकता के नियमों का पालन

 भौतिकता  की  अंधी  दौड़  में ,  स्वयं  को  आधुनिक  कहलाने  में  गर्व  महसूस  करने  में  मनुष्य  नैतिकता  के  नियमों  को  भूल  रहा  है  l  उनका  पालन  करने  में  यह  भ्रम  था  की  कहीं  लोग  उसे  ' पिछड़ा  हुआ ' 
Backward '  न  कहने  लगे  l हमारे  आचार्यों  ने , ऋषियों  ने    ये  जो  नियम  बनाये   उनके  पीछे  उनकी  वैज्ञानिक  दृष्टि   और  गहरी  सोच  थी  l    ईश्वर  के  लिए  तो  यह  एक  सम्पूर्ण  धरती  है  ,  उसको  विभिन्न  टुकड़ों  में  तो  मनुष्य  ने  बांटा  है   l   इसलिए  ये  नियम  किसी  एक  देश  के  लिए  नहीं  , वरन  सम्पूर्ण  संसार  के  लिए  थे   l     अब  जब  मनुष्यों  ने  नैतिकता  के  इन  नियमों  की  उपेक्षा  करने  की  अति  कर  दी   , तो  अब  प्रकृति   अपने  तरीके  से  इन  नियमों  का  पालन  करने  पर  मनुष्य  को   विवश    कर  रही  है    जैसे --- जब  भी  किसी  से  मिलो   तो   थोड़ी   दूरी    बनाकर  रहो  ,  मिलते  ही  हाथ  न   मिलाओ  और  न  गले  मिलो   l    पर - पुरुष , पर  नारी  के  साथ  एक  आसन    पर  मत  बैठो  l  भोजन  को  ईश्वर  का  प्रसाद  समझ  कर  ग्रहण  करो ,  किसी  का  झूठा  भोजन न   खाओ  और  न  झूठा  पानी  पियो  l  अश्लील  चित्र  व  अश्लील  साहित्य   मनुष्य  की  प्रतिरोधक  शक्ति  को  कम   कर  देते  हैं   इसलिए  इनसे  दूर  रहो  l  इसके  साथ  ही   सच्चाई , ईमानदारी , दया , करुणा , संवेदना  , कर्तव्यपालन  आदि  सद्गुण  भी  जरुरी  हैं  l
         स्वस्थ  रहने  के  लिए  जागरूक  होना  जरुरी  है  l   हमारे  धर्म  ग्रंथों  में  सूर्य  को  प्रत्यक्ष  देवता  कहा  गया  है  l   कोई  किसी  भी  जाति   अथवा  धर्म  का  हो   सबको  सूर्य  का  प्रकाश  समान   रूप  से  मिलता  है  l   इसलिए  आचार्य  श्री  का  कहना  है  कि  हम  सविता  देव  का  ध्यान  करें  l  यदि  हम  किसी  ऐसे  देश  में  हैं  जहाँ  सूर्य  के  दर्शन  नहीं  होते   तो  हम  मन  में  सूर्योदय  की , सूर्य  के  प्रकाश  की  कल्पना  कर  सकते  हैं  कि   यह  प्रकाश  हमारे  रोम - रोम  में  समां  रहा  है  l   इससे  हम  स्वस्थ  होंगे  रोग  को  पराजित  कर  सकेंगे  l 

18 March 2020

WISDOM ----- ईश्वरीय आदेश को समझें

   हम  सब  ईश्वर  की  संतान  हैं  l   ईश्वर  चाहते  हैं  कि   उनकी  संतान  सन्मार्ग  पर  चले ,  बुरी  आदतों  को  छोड़  दे  l  लेकिन  जब  लोग  सुधरना   नहीं  चाहते , बच्चे  अपनी  जिद  पर  अड़े  रहते  हैं  तो  पिता  डांटकर , कुछ  सजा  देकर  उन्हें  समझाते    हैं   l  परम  पिता  परमेश्वर  मनुष्य  को  समझा  रहे  हैं  कि   नशा , सिगरेट , मांसाहार , गुटका   की  लत  छोड़  दें  l  सन्मार्ग  पर  चलें  l  घर  में  बंद  होकर  पैसों  के  ढेर  पर  बैठने  में  जीवन  का  आनंद  नहीं  है  l   अब  भी  वक्त  है ,   जागो  !  हर  तरह  का  भेदभाव  भूलकर   सच्चे  इनसान   बनो  l  प्रकृति  रूठ   गई  तो  मनाना   मुश्किल  हो  जायेगा  l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---- पिता  न्याय  करते  हैं , हमारी  गलतियों  की  सजा  देते  हैं  लेकिन  माँ  दुलार  करती  हैं ,  यदि  हम  उनकी  शरण  में  जाएँ , श्रद्धा  और  भक्ति भाव  से  उन्हें  पुकारें  तो  वे  हमें  संरक्षण  देती  हैं  l   आचार्य  श्री  कहते  हैं   कि   यदि  हम  चलते - फिरते , उठते - बैठते , सोते - जागते  गायत्री मन्त्र  का  मानसिक  जप  करेंगे    तो  हमारे  चारों  और  एक  सुरक्षा  कवच  बन  जायेगा   जो  अकाल  मृत्यु  से ,  किसी  भी  मुसीबत  से  हमारी  रक्षा  करेगा  l    मानसिक  पवित्रता  जरुरी  है  l
  आज  जब  सारा  संसार   इस  वायरस  से  दहशत  में  है   तो   गायत्री  माता  का  आँचल  थामने   से  ही  मन  को  शांति  और  जीवन  को   सुरक्षा  मिलेगी  l 

17 March 2020

WISDOM ----- स्वाध्याय और सत्संग दैनिक जीवन का अंग बने --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

   आचार्य श्री  का  कहना  है --- स्वाध्याय  प्रेरित  करता  है   और  सत्संग  इन  प्रेरणाओं  को  प्रगाढ़  बनता  है  l '  बंगाल  क्रांति  के  नवयुवक   श्रीमदभगवद्गीता   के  स्वाध्याय  से  प्रेरणा  पाते   थे  l  अँगरेज  पुलिस  कप्तान  ने  जब   इन  युवकों  को  पकड़ा  तो  इनके  कमरे  से  दक्षिणेश्वर  की  मिटटी  और  श्रीमदभगवद्गीता   बरामद  हुई  l  ये  युवक  दक्षिणेश्वर  की  मिटटी  से  श्रीरामकृष्ण  परमहंस  के  सत्संग  की  भावनात्मक  अनुभूति  पाते  थे  और  गीता  का  स्वाध्याय  उनमे  ऐसी  अद्भुत  शक्ति  का  संचार  करता  था  कि   सम्पूर्ण  अँगरेज   प्रशासन  दहल  जाता  था  l  महर्षि  अरविन्द  ने  अपने  क्रांति  जीवन  के  इस  प्रसंग  को  याद  करते  हुए  कहा  था  कि ----' अंग्रेजों  ने  दक्षिणेश्वर  की  मिटटी  को  बम   बनाने  का  मसाला  समझा  था  और  भगवद्गीता  को   रसायन  विज्ञान   की  एक  ऐसी  पुस्तक  माना  था  ,  जिसमे  बम   बनाने  की  कई  कारगर  विधियां  हैं  l   इसी  के  चलते   उन्होंने  इस  मिटटी  का   भारत  और  लंदन   सहित  कई  प्रयोगशालाओं  में  परीक्षण  करवाया  था  l  भगवद्गीता  के  बारे  में  भी   इन्होने  कई  विद्वानों  को   निर्देश  दिया  था   कि   वे  इसमें  से   बम  बनाने  के  छिपे  हुए  सूत्रों  को  उजागर  करें  l
  श्री  अरविन्द  का  कहना  था  कि   हम  और  हमारे  सभी क्रांतिकारी  युवा    साथी  अंगरेजों   की  इस  मूर्खता  पर  हँसते  हुए  कहते  थे  कि   इन्हे  क्या  पता  कि  स्वाध्याय  और  सत्संग  से   हम  अपने  व्यक्तित्व  को  ही  महाशक्तिशाली  बम   में  बदल  रहे  हैं  l   

14 March 2020

WISDOM ------ प्रकृति को क्रोध करने पर विवश न करें

  ' हम  सब  एक  ही  मोतियों  के  हार  में   गुँथे   हुए  हैं   l   ईश्वर  सभी  जीवों  के  हृदय  में   छिपा  हुआ  है  ,  उस  धागे  की   भांति  है   जो  मोतियों  के  हार  में   उन  मोतियों  को  परस्पर  जोड़ता  है   l '
  जब   लोग  इस  सच्चाई  को   जानते  हुए  भी  अनजान  रहते  हैं   और  अपने  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  धर्म , जाति ,  ऊंच - नीच ,  अमीर  - गरीब , रंगरूप  आदि  विभिन्न  कारणों  से  समाज  में  अन्याय  और  अत्याचार  करते  हैं  , निर्दोष  को  सताना ,  छोटे - छोटे  बच्चों  पर अमानुषिक  अत्याचार  ,  मूक पशु - पक्षियों   की  हत्या  और  सम्पूर्ण  पर्यावरण  को  प्रदूषित  करते  हैं  l   समाज  को  दिशा  देने  वाले  भी  अपनी - अपनी  दुकान  बचाने   में  , अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  में  तत्पर  रहते  हैं  l   तब  प्रकृति  क्रोधित  हो  जाती  है   l   शिवजी  का  तीसरा  नेत्र  खुल  जाता  है   और  तब ' गेंहू  के  साथ  घुन  भी   पिसता   है  l '
    अत्याचार  करने  वाले  और  उसे  चुपचाप   मूक - दर्शक  की  भांति   देखने  वाले  बराबर  के  अपराधी  हैं  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहते  हैं --- 'मनुष्य  सच्चा  इनसान   बने ,  स्वार्थ  के  स्थान  पर  पुण्य - परमार्थ  की  प्रवृति  को  जगाये  ,  भौतिक  प्रगति  के  साथ  चेतना  का  स्तर  ऊँचा  हो  यही  सच्ची  प्रगतिशीलता  है  l '
 आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' मनुष्य  में  सन्मार्ग  पर  चलने  की   स्वाभाविक  इच्छा  होती  है   l  यदि  इस  प्रवृति  को  निरंतर  पुष्ट  किया  जाता  रहे    तो मनुष्य  ऊंचाइयों   के  शिखर  पर  चढ़ता  जाता  है  l   इसमें  ढिलाई  बरतने  पर   बिना  मांजे  बर्तन  की  तरह  वह  मैला  भले  हो  हो  जाये   पर  उसकी  वह  वृत्ति   मरती  नहीं  है   l  "
  लेकिन   जब  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   ,  अनैतिक  और  अमर्यादित   कार्यों  से  वह  ईश्वर  के  अनुशासन  को  चुनौती  देने  लगता  है   तब  प्रकृति   के   डंडे   से   ही   उसकी  दुर्बुद्धि  सद्बुद्धि  में  बदलने  लगती  है  l 

13 March 2020

WISDOM ------

अपने  बौद्धिक  होने  के  अहंकार  में  डूबा  हुआ  व्यक्ति  जब   सन्मार्ग  पर  चलना  नहीं  चाहता  ,   अपनी  गलत  आदतों  को   विभिन्न  तर्कों  से  सही  सिद्ध  करता  है   --- ऐसी  स्थिति  की  जब  अति  हो  जाती  है  तब  प्रकृति  अपने  ढंग  से  मनुष्यों  को  सिखाती  है  --- मांसाहार ,  नशा , असंयम  -- यह   सब  बीमारियों  की  जड़  है   l   यदि  आज   मनुष्य   प्रकृति  के  संदेश   को  समझ  जाये  तो  शाकाहार  अपनाये ,  नशे  से  दूर  रहे  ,  पर्यावरण  को  सुरक्षित  रखे  l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है --- ' वर्तमान  समय  में  विश्व  मानवता  विक्षुब्ध  और  अशांत  है  ,  नैतिकता  की   उपादेयता  आवश्यक  ही  नहीं  अनिवार्य  भी  है  l   इसे  मानव  धर्म  के  रूप  में   स्वीकारा  जाना  चाहिए   l '
 ब्रिटेन  के  शीर्षस्थ  इतिहासकार  अर्नाल्ड  टायनबी  ने  लिखा  है ----' विज्ञान   ने  मनुष्यों  को  जड़  शक्ति  और  मानव  शरीर  पर   नियंत्रण  स्थापित  करने  की  असाधारण  क्षमता  प्रदान  की  है  ,  लेकिन  आत्मनियंत्रण  के   कार्य  में  वह   मनुष्यों  की   कोई  सहायता  नहीं  कर  सकता   और  वस्तुत:  आत्मसंयम  ही   मनुष्य  की  सबसे  बड़ी  समस्या  रही  है  l ------  सच्चे  धर्म  की  कसौटी  यह  होगी   कि   उस  धर्म  में   मानव  कष्टों  से  संबंधित   समस्याओं  का  सामना  करने  की   कितनी  अधिक  क्षमता  है   l  भविष्य  में  हमारे  समक्ष   अग्नि परीक्षा  का  जो  समय  आने  वाला  है  ,  उसमें  हमारे  इन  कष्टों  के   और  भी  अधिक  बढ़  जाने  की  संभावना  है  l "

12 March 2020

WISDOM ------- प्रयत्न के साथ धैर्य जरुरी है

  धीरे - धीरे  रे  मना , धीरे  सब  कुछ  होय  l   माली  सींचे  सौ   घड़ा   ऋतु   आये  फल  होय  l 
      बंदरों   का  एक  दल   आम  के  बाग   में  निवास  करता  था  l   बन्दर  जब  भी  आम  तोड़ने  का  प्रयास  करते   तो  आम  तो  कम   हाथ  लगते  , पर  बाग   के  रखवालों   के  पत्थर  ज्यादा  झेलने  पड़ते  l  तंग  आकर  बंदरों  के  सरदार  ने   एक  दिन  सभी  बंदरों  की  सभा  बुलाई   और  उसमे  घोषणा  की  कि  ' आज  से  हम  लोग   अपना  अलग  बाग  लगाएंगे   और  उसमे  आम  के  पेड़  लगाएंगे  l  इससे  रोज - रोज  के  इस  झंझट  से  तो  मुक्ति  मिले   l
  बात  बाकी   बंदरों  को  जँच   गई  l  सबने  आम  की  एक - एक  गुठली  ली   और  जमीन   में  गड्ढा  कर  के  बो  डाली  l  `प्रसन्नता  की  लहर   व्याप्त  हो  गई  कि   अब  शीघ्र  ही  हर  बन्दर   आम  के  एक  पेड़  का  स्वामी  होगा  l   पर  कुछ  ही  घंटे  गुजरे  थे  कि   बंदरों  ने   जमीन   खोदकर  गुठलियां  बाहर  निकल  लीं ,  ताकि  यह  देख  सकें  कि  गुठलियों  से  पेड़  निकला  या  नहीं   l   बात - ही - बात  में  सारा  बाग   उजड़   गया  l   दूर  से  यह  दृश्य  देखते  हुए   सन्त   ने  अपने  शिष्यों  से  कहा -----  कर्मों  का  इच्छानुसार  फल  प्राप्त  करना  हो  तो   प्रयत्न  के  अतिरिक्त   धैर्य  की  भी  आवश्यकता  होती  है   l  अधीर  मनुष्यों  का  हाल  भी   इन   मूर्ख     वानरों  के  समान   होता  है  l  '
     हर  विकास   के  लिए  एक  समय  विशेष  अनिवार्य  है  l
 
  

11 March 2020

WISDOM ------

   लियो  टालस्टाय  ने  अपनी  कृति  ' समाज  निर्माण ' में  लिखा  है --- ' समाज  सुधार  के  लिए   निश्चय  ही  संसार  में   संतों   और  महामानवों  का  समय - समय  पर  जन्म  होता  रहता  है  ,  पर  वे  भी  व्यक्तियों  द्वारा   इस  दिशा  में   प्रयास - पुरुषार्थ  के  अभाव   में   ज्यादा  कुछ  नहीं  कर  पाते   l   हाँ  , यदि  लोगों  ने  पराक्रम  करना  स्वीकार  कर   प्रयत्न  पूर्वक    एक  कदम  आगे  बढ़ना  अंगीकार   कर   लिया  है  ,  तो  यह  संभव  है  कि   महापुरुष  अपने  आत्मबल  द्वारा   पीछे  से  धक्का  देकर   उन्हें  दो  कदम  और  आगे  बढ़ा  दें  ,  किन्तु  इसका  शुभारम्भ   उन्हें  स्वयं  से  करना  होगा ,  यह  दायित्व  उन्हें  स्वयं  निबाहना  होगा  ,  तभी  ऐसा  संभव  है  l '   वे  आगे  लिखते  हैं --- ' संतों  का  उपदेश   सुनकर   कोई  संत  नहीं  बन  सकता   l   जब  संत  को  अपने  भीतर  पैदा  करेगा  ,  तभी  वह  सज्जन  कहला  सकेगा   l  '
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' वर्तमान  समय  में  टालस्टाय  की  यह  बात  अक्षरश;  लागु  होती  है  l  लोग  यह  समझकर  हाथ  पर  हाथ  धरे   बैठे  हैं  कि   कोई  समर्थ  अवतार  इस  पृथ्वी  पर  आएगा    और  जादू  की  छड़ी  घुमाकर  इस  संसार  को  बदल  कर  रख   देगा  l   यह  हमारा  भ्रम  है  l   यदि  किसी  ऐसी  समर्थ  सत्ता  का  अवतरण  हुआ  भी  ,  तो  यंत्र  हमें  ही  बनना  पड़ेगा  ,  पुरुषार्थ  हमें  ही  करना  पड़ेगा  ,  तभी  समग्र  परिवर्तन  संभव  हो  सकेगा  l  l 

5 March 2020

WISDOM ------ ईश्वर हमारे सबसे बड़े शुभ चिंतक हैं ---- श्रीमद्भगवद्गीता

    गीता   में  भगवान   कहते  हैं  --- मैं  तुम्हारे  लिए  सारी   व्यवस्था  कर  दूंगा  ,  तुम  मुझसे   अनन्य  भाव  से  जुड़ो   तो  सही  l  अनन्य  भाव   का  अर्थ  है  -- पूरी  तरह  परमात्मा   में    घुल  जाना   l   कोई  भौतिकवादी  लालसा  नहीं  l   हर  कर्म  में   ईश्वर  को  ही  सोचना ,   समर्पण  भाव  से  ईश्वर  के  निमित्त  कर्म  करना  l 
  एक  उदाहरण  रामचरितमानस  में  है  कि   भगवान   अपने  अनन्य  भक्त  का  किस  प्रकार  ध्यान  रखते  हैं -------   अरण्यकाण्ड  में  अंतिम  दोहों  में  वर्णन  आता  है  कि   नारद जी   भगवान  श्रीराम  एवं   लक्ष्मण जी  को  वन  में  सीता  को  ढूंढते  हुए  विरह  की  स्थिति  में  देखते  हैं  l   वे  भगवान   के  पास  जाकर   प्रणाम  कर  उनसे  कहते  हैं  ---- "  आपने  अपनी  माया  से  मोहित  कर  ,  एक  बार  मुझे  विवाह  करने  से  रोका  था  l   तब  मैं  विवाह  करने  को  आतुर  था  l   आपने  मुझे  किस  कारण  रोका  ? "
  तब  भगवान   श्रीराम   कहते  हैं --- जो  समस्त  आशा - भरोसा  छोड़कर   केवल  मुझको  ही  भजते  हैं  ( नारद जी  भगवान   के  बहुत  बड़े  भक्त  हैं ),  मैं  सदा  उनकी  वैसे  ही  रखवाली  करता  हूँ ,  जैसे  माता  बालक  की  रक्षा  करती  है ---- करउँ   सदा  तिन्ह  कै   रखवारी  l जिमि   बालक  राखइ   महतारी  l
  लेकिन  जब  पुत्र  सयाना   हो  जाता  है  तो  उस  पर  माता  प्रेम  तो  करती  है  ,  परन्तु  पिछली  बात  नहीं  रहती   l  
आगे  श्रीराम  कहते  हैं  --- "मेरे  सेवक  को ,  मेरे  भक्त  को  केवल   मेरा  ही  बल  रहता  है   लेकिन  ज्ञानी  को  अपना  बल  होता  है   l   भक्त  के  शत्रुओं  को  मारने  की  जिम्मेदारी  तो   मेरी  है  ,   पर  अपने  बल  का  मान  मानने   वाले    ज्ञानी  के  शत्रु  का  नाश  करने  की  जिम्मेदारी  मेरी  नहीं  है   l   ऐसा  विचार  कर  बुद्धिमान  लोग   मुझको  ही  अनन्य  भाव  से  भजते  हैं   l   वे  ज्ञान  प्राप्त  होने  पर  भी  भक्ति  को   नहीं  छोड़ते  l  "    भगवान   अपने  भक्तों  का   योगक्षेम  वहां  करते  हैं   l 
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  कहा  है  --- ' तुम  मेरा  काम  करो  ,  मेरे  विचारों  को  जन  - जन  तक  
पहुंचाओ ,   बुरी  आदतें  सुधार  लो ,  सन्मार्ग  पर  चलो ,---- मैं  तुम्हारा  ध्यान  रखूँगा  l  '
                             

3 March 2020

WISDOM ------ आज की सबसे बड़ी और भयावह समस्या ---- अन्त: संवेदना का मूर्च्छाग्रस्त हो जाना !

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  लिखा  है ---- '' अपने  बौद्धिक  होने  के  अहंकार   और  बढ़ती  निष्ठुरता  के  कारण   मनुष्य  ऐसा  कुछ  कर  रहा  है   जिसे  देखकर  प्राचीन     दैत्यों  के   दिल  दहल  जाएँ  l  जीवित  बछड़ों  का  पेट  फाड़कर   तरल  द्रव  निकालने ,  हँसते - खेलते  खूबसूरत  खरगोशों   को  दबोचकर   चीड़ - फाड़  कर  देने   जैसे  नृशंस  कृत्य   सिर्फ  इसलिए  किये  जाते  हैं  कि   अधिक  से  अधिक  फैशन  का  सामान  बनें  और  सुन्दर  दिख  सकें   l   धन  कमाने  और  वैभव  जुटाने  की   सनक  यहाँ  तक  है  कि   किसी  के  घर - आँगन  की  खुशहाली  - नन्हे - मुन्ने   बालकों  को  पकड़ कर   उनके   अंग  निकालने  और  बेचने  का  धंधा  भी  शुरू  हो  गया  है   l   इनकी  चीख   चिल्लाहट   , तड़फड़ाहट  के   बीच  वह  इसलिए  खुश  होता  है  कि   कमाई  हो  गई   l   यह  सब  और  किसी  का  नहीं   उस   मनुष्य   का  व्यवहार  है   जिसे  अपने  बुद्धिमान  और  सभ्य  होने  पर  गर्व  है   l  "
 डॉ. राधाकृष्णन  ' द   कांसेप्ट  ऑफ   मैन  ' में  लिखते  हैं ---- ' विश्व  के  इतिहास  से  साफ   जाहिर  होता  है   कि   जब  कभी   जहाँ  कहीं  भी   समाज  टूटा - बिखरा  है   उसका  एक  ही  कारण  है   मानव  की  व्यक्तिगत   और  समूहगत  निष्ठुरता  l -----
  राजतन्त्र  को  उलटकर  प्रजातंत्र ,  साम्यवाद   को  उलटकर  समाजवाद  का  स्थापन  ,  यही  है  विश्व  का  इतिहास   l   पर  क्या  मनुष्य  इस  उलट - फेर  में  सुखी  हो  सका  ?   नहीं  !  क्योंकि   उसने  अपने  व्यवहार  का  प्रेरक   तत्व  नहीं  बदला  l   निष्ठुरता  के  स्थान  पर   अन्त: संवेदना  की  स्थापना  नहीं  की  l 
   आचार्य  श्री  लिखते  हैं ---- ' समस्त  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  है  --- भाव - संवेदनाओं  का  जागरण  l   इस  जागरण  के  बाद  ही   उसके  व्यवहार  में  चिर  स्थायी  सुधार  संभव   हो  सकेगा  l   हृदय  में  संवेदना  के  जागते  ही    स्वार्थ  उलट  कर  परमार्थ ,    ध्वंस  को  सृजन    और  क्रूरता  को  दयालुता  में  बदलते  देर  नहीं  लगेगी   l  '

2 March 2020

WISDOM --- विकास की प्रक्रिया की सबसे बड़ी त्रुटि --- मनुष्य की आक्रामक मनोवृत्ति में जरा भी परिवर्तन नहीं आया

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- ' मनुष्य  मूलत:  संवेदनशील  प्राणी  है   l   उसमे  भाव - संवेदना  लबालब भरी  हुई  है   l   यह  संवेदना  किसी  कारणवश  जब  गलत   दिशा  में   मुड़    जाती  है    तो  मनुष्य  को  चोर , डकैत , लुटेरा , हत्यारा ,  आतंकवादी  बना  देती  है   l   हीन   परिस्थिति  और  संगति   में  पढ़कर   आदमी   अपने  भीतर  के   ईश्वरत्व  के  ऊपर  पर्दा  डाल   देता  है  l  '
  आचार्य श्री  लिखते  है ----  ' इन  दिनों  परिस्थिति   एकदम  विपरीत  है   l   सामाजिक  विषमता  इस  कदर  बढ़ी  है   की  आज    मनुष्य     अपने  देवत्व  को   धारण  करना  चाहकर  भी  नहीं  कर  पाता   और  विवशता  में  पढ़कर   असुरता  और  आक्रामकता  की  ओर   फिसल  पड़ता  है  l   कोई  आदमी  कुबेर  जैसी  सम्पति  एकत्रित   कर  के  अपने  कोठार  भरे  है  ,  तो  कहीं  विपन्नता  की  इतनी  गहरी  खाई  है   कि   उसमे   डूब  मरने   के  अतिरिक्त  और  कोई   चारा  नहीं  l   कहीं  अन्न  के  पहाड़   खड़े   हुए  हैं  तो  कहीं   भूखों  मरने  की  नौबत  है   l     पेट  की  ज्वाला  और   उन्नत  बनने  का  सपना    उसे  बुरे  कार्यों  की  और  घसीट  ले  जाता  है    तथा  इनसान````` को  शैतान  बना  डालता   है  l   वह  शक्ति  का , क्रूरता  का  सहारा  लेने  लगता  है   l 
  मनुष्य  में  ईर्ष्या , द्वेष  ,  आक्रमण  आदि  के  जो  तत्व   दिखलाई  पड़ते  हैं  ,  वे  वस्तुत:  दमन , शोषण ,  उत्पीड़न   और    अत्याचार  का  परिणाम  है   l 

1 March 2020

वैज्ञानिक युग / पत्थर - युग

  असुरता  कितनी  नृशंस  हो  सकती  है  ,  आये  दिन  इसके  उदाहरण  हमें  देखने  को  मिल  सकते  हैं  l   इतिहास  का  पन्ना  तो  इससे  भरा  पड़ा  है  l   यह  बर्बरता  सामूहिक  रूप  से  बड़े  पैमाने  पर    और  मात्र  सनक  की  पूर्ति  के  लिए  भी  की  जाती  है   l   छूट - पुट   लड़ाई - झगड़ों  से  लेकर    विश्व  युद्ध  तक  में    जितनी  भी  क्रूरताएं  हुईं    और  विनाश  लीलाएं  रची  गईं   उन  सबके  मूल   में    असुरता  ही  प्रधान  रही  l   क्रूर  कृत्य  में  संलग्न  व्यक्तियों  का  चिंतन  भी    अन्याय  एवं   अनाचारपूर्ण  होता  है   l   चिंतन  के  अनुरूप  आसुरी  तत्व  उन  पर  हावी  हो  जाते  हैं   l
जब  क्रूरता  का  भूत   किसी  पर  सवार  होता  है  तो  वह  उसे  कुछ  भी  कर  गुजरने  की  प्रेरणा  देता  है  ,  पर  अंत  में   वह  भी  उस   क्रूर  प्रवाह  का  शिकार  हुए  बिना  नहीं   रह   पाता  l   इतिहास  में  इसके  अनेकों  जग  प्रसिद्ध   उदाहरण  है   l
  इसलिए  हमारे  ऋषियों  का , आचार्यों  का  कहना  है    कि   चिंतन - चेतना  को  परिष्कृत  किये  बिना   समाज  का  कल्याण  और  संसार  में  शांति   संभव  नहीं  है   l   ' बड़ा  आदमी ' बनने  से  पहले   इनसान   बनना     जरुरी  है   l 
   आज  मनुष्य  ' पत्थर - युग '  में  पहुँच  कर  आदि - मानव  बन  गया   l