कर्तव्य का दायित्व बड़ा कठिन होता है l जब देश के सभी प्राणी उसके लिए स्वार्थ त्याग करने को प्रस्तुत हो जाते हैं और अपनी सम्पति , धन -बल , जन -बल , सर्वस्व देश सेवा के लिए अर्पण कर देते हैं l भामाशाह जी प्रशंसा करते हुए एक लेखक ने लिखा है ----- " जिस तरह मेवाड़ की अन्य घटनाएँ अपूर्व हैं उसी तरह भामाशाह की यह स्वामिभक्ति भी अभूतपूर्व तथा अतुलनीय है l उसके स्वार्थ त्याग ने उसका नाम अजर - अमर कर दिया l
जब महाराणा प्रताप अपने को सर्वथा असहाय समझ कर और शत्रु का दबाव बढ़ता देखकर मेवाड़ को त्यागने का विचार कर चुके थे और उसकी सीमा पर पहुँच चुके थे तो यह समाचार भामाशाह ने सुना l वह जाति का वैश्य था , राज्य कार्य और व्यापार आदि के द्वारा उसके पूर्वजों ने अपार सम्पति एकत्र की थी l मेवाड़ की स्वाधीनता के लिए वह सम्पति उन्होंने महाराणा प्रताप को सौंप दी l कहा जाता है की भामाशाह के भंडार में उस समय इतना धन था जिससे पच्चीस हजार सैनिकों का खर्च बारह वर्ष तक चलाया जा सकता था l
जब महाराणा प्रताप अपने को सर्वथा असहाय समझ कर और शत्रु का दबाव बढ़ता देखकर मेवाड़ को त्यागने का विचार कर चुके थे और उसकी सीमा पर पहुँच चुके थे तो यह समाचार भामाशाह ने सुना l वह जाति का वैश्य था , राज्य कार्य और व्यापार आदि के द्वारा उसके पूर्वजों ने अपार सम्पति एकत्र की थी l मेवाड़ की स्वाधीनता के लिए वह सम्पति उन्होंने महाराणा प्रताप को सौंप दी l कहा जाता है की भामाशाह के भंडार में उस समय इतना धन था जिससे पच्चीस हजार सैनिकों का खर्च बारह वर्ष तक चलाया जा सकता था l