20 November 2018

WISDOM ---- सुख से जीवन जीना है तो तृष्णा को कम करना होगा

 वस्तुओं के  प्रति  आकर्षण ,  अतृप्त  इच्छाओं  का  नाम  ही  तृष्णा  है   l
  'बढ़त  बढ़त  सम्पति  सलिल   मन  सरोज  बढ़  जाये  l
  घटत -घटत  फिर  न  घटे   बस  समूल  कुम्हलाय   l l
  भाव  यह  है  कि  कमल  का  फूल  पानी  में  डूबता  नहीं  l  पानी  बढ़ने   से  कमलनाल  बढ़ती  जाती  है   पर  पानी घटने  से  घटती  नहीं ,  समूल  कुम्हला  जाती  है   l  सम्पतिवानों  की  इच्छाएं  असीम  बढ़ती  जाती  हैं  , पर  जैसे  ही सम्पति  गई   इच्छाएं  घटती  नहीं  ,  भाव ( आदत )  बनी  रहती  है  l 
  यह  तृष्णा  ही  मनुष्य  की  अशांति  और  तनाव  का कारण  है   l   . ' रामचरितमानस '  में  सुरसा  के  प्रसंग  के  माध्यम  से  इसका  समाधान  सुझाया  है -----   श्री हनुमानजी  जब  सीताजी  का  पता  लगाने  के  लिए  लंका  में  अन्दर  जाने  लगे   तो  सुरसा नामक  राक्षसी  ने  उन्हें  पकड़  लिया   और  मुंह  में  रखकर  चबाने  लगी   l  हनुमानजी  ने  अपना  बदन  बढ़ाना  शुरू  किया   तो  सुरसा  ने  भी  अपना  मुंह  फाड़  दिया ----
   " जस - जस  सुरसा  बदनु  बढ़ावा  l
      तासु  दूंगा  कपि  रूप  देखावा  l l "
 बढ़ते - बढ़ते  जब  उन्होंने  देखा  कि  सुरसा  का  मुंह   सोलह  योजन  का  हो  गया   तो  हनुमानजी बत्तीस  योजन  के   हो  गए  l  अब  हनुमानजी  समझ  गए   कि  यह  सुरसा  कम  होने  वाली  नहीं  है  ,  यह  अपना  मुंह  कई  योजन  और  चौड़ा  कर  लेगी  l   अत:  हनुमानजी  ने        ' अति  लघु  रूप  पवनसुत  लीन्हा   l  '
  बहुत  छोटा  सा  रूप  बना  लिया  l
  ' मसक  समान  रूप  कपि  धरी  l '   --- छोटा  सा  रूप  बनाकर   सुरसा  की  दाढ  से    निकल  गए  l
                     मनोकामनाओं   की  कोई  सीमा  नहीं  है   l  रावण , सिकंदर , हिरण्यकशिपु  किसी  की  कामनाएं  पूरी  नहीं  हुईं   फिर  हमारी  और  आपकी  कैसे  पूरी  हो  सकती  हैं   ?