पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष मनुष्य की प्रकृति में बड़ी गहराई से अपनी जड़ें जमाए बैठे हैं , हर युग में उनका रूप देखने को मिलता है l ' वर्तमान समय में क्योंकि मनुष्य कर्मकांड को ही सब कुछ समझ बैठा है , चेतना के परिष्कार पर ध्यान नहीं देता इसलिए वर्तमान समय में इन मनोविकारों का रूप अत्यंत भयावह और विकृत हो गया है l ये मनोविकार उस व्यक्ति और उसके परिवार का अहित तो करते ही हैं लेकिन यदि इन मनोविकारों से ग्रस्त व्यक्ति जितने ऊँचे स्तर का है , तो उतने ही बड़े क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों पर उसका दुष्प्रभाव पड़ेगा l जैसे दुर्योधन अहंकारी था , उसे शकुनि जैसे छल -कपट करने वाले का कुसंग मिला , महाभारत हो गया , समूचा कौरव वंश समाप्त हो गया , जन - धन हानि हुई l इसी तरह रामचरितमानस में उल्लेख है कि महारानी कैकेयी अपनी प्रकृति से अभिमानी और अहंकारी थीं l इससे भी अधिक घातक था मंथरा जैसी निकृष्ट दासी का कुसंग l इसी कुसंग ने महारानी कैकेयी के क्रोध व अहंकार को इतना बढ़ा दिया कि उन्होंने राजा दशरथ से भरत को राजगद्दी और राम के लिए वनवास मांग लिया l महारानी ने मंथरा की सलाह मानी , उसको अपने जीवन में हस्तक्षेप का मौका दिया , परिणाम दुःखद हुआ l राम के जाने से अयोध्या सूनी हो गई , पुत्र वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गई l महारानियों को वैधव्य का दुःख सहना पड़ा l ये सब कथानक हमें शिक्षा देते हैं कि हम होश में रहें l शकुनि और मंथरा जैसे लोगों के कुसंग से बचें , उन्हें कभी भी इतनी शह न दें कि वे हावी हो जाएँ और पतन की राह पर धकेल दें l