13 February 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'काम , क्रोध , लोभ , मोह  , ईर्ष्या , द्वेष   मनुष्य  की  प्रकृति  में  बड़ी  गहराई  से  अपनी  जड़ें  जमाए   बैठे  हैं  ,  हर  युग  में  उनका  रूप  देखने  को  मिलता  है  l '                     वर्तमान  समय  में  क्योंकि  मनुष्य  कर्मकांड   को  ही  सब  कुछ  समझ  बैठा  है ,  चेतना  के  परिष्कार  पर  ध्यान  नहीं  देता   इसलिए    वर्तमान  समय  में  इन  मनोविकारों  का  रूप   अत्यंत  भयावह  और  विकृत  हो  गया  है  l ये  मनोविकार     उस  व्यक्ति  और  उसके  परिवार  का    अहित    तो   करते   ही  हैं   लेकिन  यदि   इन  मनोविकारों  से  ग्रस्त  व्यक्ति   जितने  ऊँचे   स्तर  का  है   ,   तो  उतने  ही  बड़े   क्षेत्र   में  रहने  वाले  व्यक्तियों   पर  उसका  दुष्प्रभाव  पड़ेगा   l   जैसे  दुर्योधन  अहंकारी  था  ,  उसे  शकुनि  जैसे  छल -कपट  करने  वाले  का   कुसंग  मिला  ,  महाभारत  हो  गया , समूचा  कौरव  वंश  समाप्त  हो  गया  ,  जन - धन हानि   हुई  l   इसी  तरह  रामचरितमानस  में  उल्लेख  है  कि   महारानी  कैकेयी   अपनी  प्रकृति  से  अभिमानी  और  अहंकारी  थीं  l   इससे  भी  अधिक  घातक  था  मंथरा  जैसी  निकृष्ट  दासी  का  कुसंग  l   इसी  कुसंग  ने  महारानी  कैकेयी  के  क्रोध  व  अहंकार  को   इतना    बढ़ा  दिया   कि   उन्होंने  राजा  दशरथ  से   भरत   को  राजगद्दी  और  राम  के  लिए  वनवास  मांग  लिया  l     महारानी  ने   मंथरा   की  सलाह  मानी  ,   उसको  अपने   जीवन  में  हस्तक्षेप  का  मौका  दिया  , परिणाम   दुःखद   हुआ  l   राम  के  जाने  से  अयोध्या  सूनी   हो  गई  ,  पुत्र  वियोग   में   राजा  दशरथ  की  मृत्यु  हो  गई  l   महारानियों  को  वैधव्य  का  दुःख  सहना  पड़ा  l   ये  सब   कथानक  हमें  शिक्षा   देते हैं   कि   हम  होश  में  रहें   l  शकुनि  और  मंथरा  जैसे  लोगों  के   कुसंग  से  बचें  ,  उन्हें  कभी  भी  इतनी  शह   न  दें   कि   वे    हावी  हो  जाएँ   और  पतन  की  राह  पर  धकेल  दें   l