6 November 2022

WISDOM ----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- 'एक   विभूतिहीन   व्यक्ति  यदि  समाज  का  बहुत  बड़ा  हित  सम्पादित  नहीं  कर  सकता  है   तो  उससे  समाज  को  बहुत  बड़ी  हानि  होने  की  संभावना  भी  नहीं  है  l  पर  जो  विभूतिवान  हैं   वह  यदि  स्वार्थी , संकीर्ण  या  पथ भ्रमित  हुआ   तो  समाज  को  अकल्पित  हानि  पहुंचा  सकता  है  l  '    आचार्य श्री  के  इस  कथन  की  सत्यता  को  आज  समाज  के  विभिन्न  क्षेत्रों  में  देखा -समझा  जा  सकता  है  l  एक से  बढ़कर  एक   विद्वान्  और  विभूतिवान  हैं    लेकिन  धन  का  लालच  कलियुग   के  रूप  में  सिर  पर  सवार  है   कि  उनके  कार्यों  से  समाज  को  हानि  हो  रही  है  जैसे  फ़िल्में  ऐसी  है  जो  अपराध  के  नए -नए  तरीके  सिखाती  हैं , अश्लीलता  की  सीमा  पार  है  जिससे  समाज  का  नैतिक  पतन  हैं ,  विज्ञानं  ने  इतने  घातक  अस्त्र  बना  दिए  हैं  कि  सारा  संसार  बारूद  के  ढेर  पर  खड़ा  है  , चिकित्सा  सामग्री  हो , कृषि , खाद्य  पदार्थ  हों   उनमें  ऐसा  क्या  घोल  दिया  है  कि  कब  कौन  खड़े -खड़े  ही  मर  जाए  --- --यह  सब  बुद्धि  का  दुरूपयोग  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' जिनके  ऊपर  समाज  को  दिशा  और   प्रेरणा  देने  का  उत्तरदायित्व  है  ,  उनके  छोटे  से  छोटे  आचरण  भी   शुद्धतम  होने  चाहिए  l   ज्ञानी  के  उत्तरदायित्वों  की  तुलना   अज्ञानी  के  उत्तरदायित्वों  से  नहीं  की  जा  सकती  l '  एक  कथा  है ---- जय  और  विजय  भगवान  विष्णु  के  द्वारपाल  थे  l  उन्हें  अपने  पद  का  अभिमान  हो  गया  l  एक  दिन  उसी  अहंकार  में   उन्होंने  सनक न, सनंदन , सनातन  और  सनत्कुमार   जैसे  ऋषियों  का  अपमान  कर  दिया   l  परिणामस्वरूप  उन्हें  असुर  होने  का  शाप  मिला   और  तीन  कल्पों  में  हिरण्यक्ष  , हिरण्यकश्यप ,  रावण -कुम्भकरण   और  शिशुपाल , दुर्योधन  के  रूप  में  जन्म  लेना  पड़ा  l       आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---पद जितना  बड़ा  होता  है  , दायित्व  उतने  ही  गंभीर  होते  हैं  l  ऐसा  ही  अपमान  किसी  साधारण  द्वारपाल  ने  किया  होता  तो  इतने  परिमाण  में  दंड  न  चुकाना  पड़ता  l  सामर्थ्य  का  गरिमापूर्ण   एवं  न्यायसंगत  निर्वाह  ही  श्रेष्ठ  मार्ग  है  l  "