26 July 2023

WISDOM ------

   हमारे  देश  में  अनेक  महान  आत्माओं  ने  जन्म  लिया  और  हमारी  संस्कृति  को  जीवित  रखने  का  अथक  प्रयास  किया  l  आदि शंकराचार्य  की  इच्छा  थी  कि  इस  देश  में  ज्ञानक्रांति  के  केंद्र  बनें  l  इसके  लिए  उन्होंने  चार  स्थानों  का  चयन  किया ---पूर्व  में  जगन्नाथपुरी , पश्चिम  में  द्वारका ,  उत्तर  में  बद्रिकाश्रम एवं  दक्षिण  में  श्रंगेरी  l   इन  केन्द्रों  को  स्थापित  करने  के  लिए  धन  की  आवश्यकता  थी  l  राजा  व  श्रेष्ठि  वर्ग   कहते  थे  कि  आप  आदेश  करें  धन  की  कोई  कमी  नहीं  होगी   लेकिन  आचार्य  का  कहना  था  कि  जन  सहयोग  से  कार्य  हो  l  सबके  द्वार  पहुँचने  से  ज्ञान  का  सहज  वितरण  होगा  l  इस  प्रयास  में  पद  यात्रा  करते  हुए  वे  एक  गाँव  में   पहुंचे  l  वहां  कच्चे  माकन  व  फूस  की  झोंपड़ियाँ  थीं  l  लेकिन  आचार्य  का  यश  तो  यहाँ  तक , जन -जन  तक  पहुँच  गया  था  l  जिसके  पास  जो  था  वह  बड़ी  उदारता  से  दान  कर  रहा  था  l  वे  लोग  सोच  रहे  थे  कि  जिन्हें  देने  के  लिए  राजा , महाराजा , संपन्न  वर्ग  उनके  पीछे -पीछे  घूमते  हैं  , वे   आज  हमारे  द्वार  पर  आए  हैं , यह  हमारा  सौभाग्य  है  l   आचार्य  एक  झोंपड़ी  के   द्वार  पर    भिक्षा  के  लिए  पुकार  लगाईं  l  उस  झोंपड़ी  में  एक  वृद्धा  थी  जिसके  पति  व  पुत्र  दोनों  का  ही  आकस्मिक  निधन  हो  गया  था  l  उसके  स्वयं  के  भोजन  पर  संकट  था  l  आचार्य  को  द्वार  पर  देख  वह  झोंपड़ी  खंगालने  लगी   कि  वह  आचार्य  को  क्या  दे  l  कुछ  भी  नहीं  था  उसके  पास  !  उसने  फिर  बाहर  झांककर  देखा  तो  आचार्य  अभी  तक  खड़े  थे  l  उसे  अपनी  गरीबी  पर  तरस  आ  रहा  था  , व्याकुल  होकर  वह  ईश्वर  से  कहने  लगी  --- हे  ईश्वर  !  तूने  मुझे  इतना  गरीब  क्यों  बनाया  ?  ईश्वर  को  उलाहना  देते  हुए  वह  फिर  ढूंढने  लगी  कि  कुछ  तो  मिल  जाये  l  इस  बार  उसे  कोने  में  पड़ा  हुआ  एक  सूखा  आंवला  मिला  l  उसने  आंवला  उठा  लिया  और  बड़े  जातन   से  दौड़ते  हुए  द्वार  पर  आई   l  आचार्य  वहीँ  खड़े  थे  l  उसने  उनके  हाथों  पर  वह  सूखा  आंवला  रख  दिया  l  इस  आंवले  के  रखते  ही  आचार्य  की  हथेली  पर  आँसू  की  चार  बूंदे  गिरी  l  इनमे  से  दो  आँसू   वृद्धा    के  थे  और  दो  आचार्य  के  l  आंवले  के  रूप  में   वृद्धा    अपनी  सम्पूर्ण  संपत्ति  दान  कर  रही   थी  l    ऐसी  उदारता  और  ऐसी  दरिद्रता  के   विरल   संयोग  को  देखकर   आचार्य  भावुक  हो  गए  , उन्होंने  विकल  होकर   माता  महालक्ष्मी  को  पुकारा  --- "  हे  माता  ! इस  उदारता  को  सम्पन्नता  का  वरदान  दो  ! "  उनके  मुख  से  स्वत:  स्फुरित  स्तवन  के  स्वर  फूटने  लगे  --------- आचार्य  द्वारा  किए  जाने  वाले  इस  स्तवन  के  प्रारम्भ  होते  ही   सम्पूर्ण  वातावरण  में  प्रकाश  छा  गया   और  सुगंध  बिखर  गई  l  स्तवन  के  पूर्ण  होते  ही    वृद्धा    की  झोंपड़ी  में  आकाश  से  स्वर्ण  आंवलों  की  कनक धाराएँ  बरसने  लगीं  l  महालक्ष्मी  की  कृपा  और  आचार्य  की  भक्ति  के  सभी  साक्षी  बने  l  आचार्य   द्वारा  कहा  गया   स्तोत्र  --- कनकधारा  स्तोत्र  के  नाम  से   सिद्ध  स्तोत्र  के  रूप  में  वंदित  हुआ  l