2 January 2013

मंद वायू आंधी से बोली -"दीदी मैं जहाँ जाती हूँ ,लोग स्वागत करते हैं ।आपका आभास पाते ही डरते -छिपते हैं ।हमारा लक्ष्य तो लोकमंगल का है ,फिर क्यों आप इस रूप में सबको परेशान करती हैं ।आँधी बोली -"बहन तेरी उपयोगिता अपनी जगह है मेरी अपनी जगह ।स्थान -स्थान पर सड़न ,जहरीला धुआं ,गुबार आदि एकत्रित हो जाते हैं ।कहीं प्राण वायु की मात्रा कम हो जाती है ।इनका निवारण तुम्हारी गति से संभव नहीं है ,इसलिए कभी -कभी मैं सक्रिय हो जाती हूँ ।तुम लोगों को तसल्ली देती हो ,मैं घुटन पैदा करने वाले विकारों का निराकरण करती हूँ ।लोकमंगल के लिये दोनों आवश्यक हैं ।तुम्हारा सौजन्य भी और मेरा पराक्रम भी ।
आइंस्टीन से किसी ने पूछा कि संसार में इतना दुःख और कलह क्यों है ,जबकि विज्ञान ने एक से बढकर एक सुख -साधन उत्पन्न किये हैं ।उत्तर देते हुए उन्होंने कहा -कमी बस एक ही रह गई कि अच्छे मनुष्य बनाने की कोई योजना नहीं बनी ।देश ,संप्रदाय के पक्षधर सभी दीखते हैं ,पर ऐसे लोग नहीं दिखाई पड़ते ,जो अच्छे इन्सान बनाने की योजनाएं बनाये ।