6 July 2019

WISDOM ----- पुण्य कार्यों का पैसे से कोई संबंध नहीं , पुण्य तो भावना से खरीदा जाता है l

 पुण्य  और  पाप  किसी  कार्य  के  बाह्य  रूप  के  ऊपर  नहीं   वरन  उस  काम  को  करने  वाले  की  भावना  के  ऊपर  निर्भर  है  l   दुनिया  को  भ्रम  या  भुलावे  में  डाला  जा  सकता  है , परन्तु  परमात्मा  को  धोखा  देना  असंभव  है  l  ईश्वर  के  दरबार  में  काम  के  बाहरी  रूप  को  देखकर  नहीं  वरन  काम  करने  वाले  की  भावनाओं  को  परख  कर  धर्म - अधर्म  की  नाप तोल  की जाती  है  l   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' भारतीय  संस्कृति  के  आधारभूत  तत्व '  में  लिखा  है ---- ' आज  हम  अनेक  ऐसे  धूर्तों  को  अपने  आसपास  देखते  हैं  जो  करने  को  तो  बड़े - बड़े  अच्छे  काम  करते  हैं  पर  उनका  भीतरी  उद्देश्य  बड़ा  ही  दूषित  होता  है  l   अनाथालय , विधवा आश्रम ,  गोशाला   आदि  पवित्र  संस्थाओं  की  आड़  में  बहुत  से  बदमाश  अपना  उल्लू  सीधा  करते  हैं  ,  यज्ञ  करने  के  नाम  पर  पैसा  बटोर  कर  कई  आदमी  अपना  घर  भर  लेते  हैं  l '
              आचार्यजी  ने  आगे  लिखा  है --- 'जीवन  के  हर काम  की  अच्छाई  और  बुराई  कर्ता  की  भावनाओं  के  अनुरूप  होती  है  l  बाहरी  द्रष्टि  से  देखने  पर   अनाथालय , विधवाश्रम , गोशाला  चलाना , बच्चों  के  आश्रय - गृह , साधु, उपदेशक  बनना , मंदिर  बनवाना  आदि  सब  अच्छे  और  पुण्य कार्य  हैं  , इनके  करने  वाले  को  पुण्यफल  मिलना  चाहिए  किन्तु  यदि  करने  वाले  की  भावनाएं  विकृत  हैं  , पापमय  विचार  हैं  , इनके  माध्यम  से  वह  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करता  है   तो  वह  पापी ही  बनेगा   और  ईश्वरीय  न्याय  के  अनुसार  उसे  पाप  का कठोर  दंड   अवश्य  ही  मिलेगा  l   भावना  की  सच्चाई  और  सात्विकता  के  साथ  आत्म त्याग  और  कर्तव्य  पालन '   यही  धर्म  का  पैमाना  है  l  '