पुण्य और पाप किसी कार्य के बाह्य रूप के ऊपर नहीं वरन उस काम को करने वाले की भावना के ऊपर निर्भर है l दुनिया को भ्रम या भुलावे में डाला जा सकता है , परन्तु परमात्मा को धोखा देना असंभव है l ईश्वर के दरबार में काम के बाहरी रूप को देखकर नहीं वरन काम करने वाले की भावनाओं को परख कर धर्म - अधर्म की नाप तोल की जाती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व ' में लिखा है ---- ' आज हम अनेक ऐसे धूर्तों को अपने आसपास देखते हैं जो करने को तो बड़े - बड़े अच्छे काम करते हैं पर उनका भीतरी उद्देश्य बड़ा ही दूषित होता है l अनाथालय , विधवा आश्रम , गोशाला आदि पवित्र संस्थाओं की आड़ में बहुत से बदमाश अपना उल्लू सीधा करते हैं , यज्ञ करने के नाम पर पैसा बटोर कर कई आदमी अपना घर भर लेते हैं l '
आचार्यजी ने आगे लिखा है --- 'जीवन के हर काम की अच्छाई और बुराई कर्ता की भावनाओं के अनुरूप होती है l बाहरी द्रष्टि से देखने पर अनाथालय , विधवाश्रम , गोशाला चलाना , बच्चों के आश्रय - गृह , साधु, उपदेशक बनना , मंदिर बनवाना आदि सब अच्छे और पुण्य कार्य हैं , इनके करने वाले को पुण्यफल मिलना चाहिए किन्तु यदि करने वाले की भावनाएं विकृत हैं , पापमय विचार हैं , इनके माध्यम से वह अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो वह पापी ही बनेगा और ईश्वरीय न्याय के अनुसार उसे पाप का कठोर दंड अवश्य ही मिलेगा l भावना की सच्चाई और सात्विकता के साथ आत्म त्याग और कर्तव्य पालन ' यही धर्म का पैमाना है l '
आचार्यजी ने आगे लिखा है --- 'जीवन के हर काम की अच्छाई और बुराई कर्ता की भावनाओं के अनुरूप होती है l बाहरी द्रष्टि से देखने पर अनाथालय , विधवाश्रम , गोशाला चलाना , बच्चों के आश्रय - गृह , साधु, उपदेशक बनना , मंदिर बनवाना आदि सब अच्छे और पुण्य कार्य हैं , इनके करने वाले को पुण्यफल मिलना चाहिए किन्तु यदि करने वाले की भावनाएं विकृत हैं , पापमय विचार हैं , इनके माध्यम से वह अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो वह पापी ही बनेगा और ईश्वरीय न्याय के अनुसार उसे पाप का कठोर दंड अवश्य ही मिलेगा l भावना की सच्चाई और सात्विकता के साथ आत्म त्याग और कर्तव्य पालन ' यही धर्म का पैमाना है l '