18 February 2020

WISDOM ----- जिन पर धर्म - संस्कृति की रक्षा का भार है , उन्हें तो और भी सतर्क होना चाहिए

  इस  तथ्य  को  समझाने   वाली  एक  कथा  है ------  बोधिसत्व  एक  दिन  सुन्दर  कमल  के   तालाब   पास  बैठे  वायु सेवन  कर  रहे  थे  l   सुगंध  इतनी  आकर्षक  थी  कि   वे  सरोवर  में  उतारकर  कमल  के  निकट  जाकर  गंध पान  कर  तृप्त  हो  रहे  थे  l   तभी  किसी  देवकन्या  का  स्वर  सुनाई  दिया --- " तुम  बिना  कुछ  दिए  ही    इन  पुष्पों  की  सुरभि  का  सेवन  कर  रहे  हो  l   यह  चोर  कर्म  है , तुम  गंध  चोर  हो   "  l   तथागत  उसकी  बात  सुनकर  आश्चर्यचकित  रह  गए   l   तभी  एक  व्यक्ति  आया   और  सरोवर  में  घुसकर  निर्दयता पूर्वक   फूल  तोड़ने  लगा   l   उसे  रोकने  के  लिए  किसी  ने  मना  नहीं  किया   l   तब  बुद्ध देव  ने  उस  कन्या  से  कहा ---' मैंने  तो  केवल  गंधपान  ही  किया  , पुष्प  नहीं  तोड़े , तब  भी  तुमने  मुझे  चोर  कहा   जबकि  उस  व्यक्ति  ने  निर्दयता पूर्वक  तालाब  में  घुसकर  कमल पुष्प  तोड़े - मरोड़े  ,  किसी  ने  उसे   मना    भी  नहीं  किया  l  ' 
 तब  वह  देवकन्या   गंभीर  होकर  कहने  लगी ---- " तपस्वी  !  लोभ  तथा  तृष्णाओं  में  डूबे    संसारी  मनुष्य  ,  धर्म  तथा  अधर्म  में  भेद  नहीं  कर  पाते  l  अत :  उन  पर  धर्म  रक्षा  का  भार  नहीं  है   किन्तु  जो  धर्मरत  हैं  , सद - असद  का  ज्ञाता  है  ,  नित्य  अधिक  से  अधिक  पवित्रता  तथा  महानता  के  लिए  सतत  प्रयत्नशील  है  l   उसका  तनिक  सा  पथ भ्रष्ट  होना   एक  बड़ा  पातक  बन  जाता  है  l  "  बोधिसत्व  ने  मर्म  को  समझ  लिया   और  उन्हें  पश्चाताप  हुआ   l 

WISDOM ----

  '  अशुद्ध   वह  नहीं  करता   जो  कुछ  मुंह  में  जाता  है  ,  अशुद्ध  वास्तव   में  वह  करता  है   जो  मुंह  से  बाहर  निकलता  है  l   क्योंकि  जो  मुंह  में  जाता  है   वह  पेट  में  पचकर   मल   होकर  निकल  जाता  है  l   किन्तु  जो  कुछ  मुंह  से  निकलता  है   वह  मन  की  गंदगी  की  गवाही  देता  है   और  वही  मनुष्य  को  गन्दा  करता  है   l   गाली , असत्य , निंदा ,  चुगली   आदि  विकार   मुख   द्वारा   मन  से  निकलते  हैं   और  यही  मनुष्य  को  अशुद्ध  बनाते  हैं   l   बिना  हाथ  धोये  भोजन  करना  उतना  अशुद्ध  नहीं  है  जितना  कि   गन्दी  बात  कहना  l   इसलिए  मैं  तुमसे  कहता  हूँ   कि   बाह्य  क्रियाओं  से  पूर्व   अपने  मन  को  शुद्ध  करने  का  यत्न  करो   l   क्योंकि  पिता  के  स्वर्ग  राज्य  में   तन  की  नहीं  मन  की   शुद्धता  पर  विचार  किया  जाता  है  l' --------  सेंटपाल