पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " मनुष्य की आत्मा में विवेक का प्रकाश कभी भी पूर्णतया नष्ट नहीं हो सकता l इसलिए पाप का पूर्ण साम्राज्य कभी भी छा नहीं सकेगा l विवेकवान आत्माएं अपने समय की विकृतियों से लड़ती ही रहेंगी और बुरे समय में भी भलाई की ज्योति चमकती रहेगी l " लघु -कथा ---- शिष्य ने प्रश्न किया --- " गुरुदेव ! जब संसार में सभी आदमी एक ही तत्व के एक से बने हैं , तो यह छोटे -बड़े का भेदभाव क्यों है ? " गुरु ने उत्तर दिया ---- " वत्स ! संसार में छोटा -बड़ा कोई नहीं , यह सब अपने -अपने आचरण का खेल है l जो सज्जन हैं वे बड़े हो जाते हैं , जबकि नेकी और सज्जनता के अभाव में वही छोटे कहलाने लगते हैं l " शिष्य की समझ में यह बात आई नहीं l तब गुरुदेव ने उसे समझाया कि युधिष्ठिर अपने आचरण के कारण ही धर्मराज कहलाए l जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तब युधिष्ठिर शाम को वेश बदलकर कहीं जाते थे l भीम अर्जुन आदि की इच्छा हुई कि देखें आखिर वे वेश बदलकर कहाँ जाते है l शाम को युद्ध विराम होने पर जब युधिष्ठिर वेश बदलकर निकले तो चारों पांडव छुपकर उनके पीछे चल दिए l उन्होंने देखा कि युधिष्ठिर युद्ध स्थल पहुंचे और वहां घायल पड़े लोगों की सेवा कर रहे हैं l घायल व्यक्ति कौरव पक्ष का हो या पांडव पक्ष का वे बिना किसी भेदभाव के सबको अन्न -जल खिला -पिला रहें हैं l किसी को घायल अवस्था में अपने परिवार की चिंता है तो उसे आश्वासन दे रहे हैं l अपने निश्छल प्रेम और करुणा से वे घायलों व मरणासन्न लोगों के कष्ट कम कर रहे हैं , उनकी उपस्थिति ही सबको शांति दे रही है l रात्रि के तीन पहर बीत जाने पर जब वे लौटे तो अर्जुन ने पूछा ---- ' आपको छिपकर , वेश बदलकर आने की क्या जरुरत थी ? " युधिष्ठिर ने कहा --- तात ! इन घायलों में से अनेक कौरव दल के हैं , वे हम से द्वेष रखते हैं l यदि मैं प्रकट होकर उनके पास जाता तो वे अपने ह्रदय की बातें मुझसे न कह पाते और मैं सेवा के सौभाग्य से वंचित रह जाता l " भीम ने कहा --- " शत्रु के सेवा करना क्या अधर्म नहीं है ? " युधिष्ठिर ने कहा --- " बन्धु ! शत्रु मनुष्य नहीं पाप और अधर्म होता है l आत्मा से किसी का कोई द्वेष नहीं होता l मरणासन्न व्यक्ति के मृत्यु के कष्ट को यदि हम कुछ कम कर सकें तो यह हमारा सौभाग्य होगा l " नकुल ने कहा --- " लेकिन महाराज , आपने तो सर्वत्र यह कह रखा है कि शाम का समय आपकी ईश्वर -उपासना का है , इस तरह झूठ बोलने का पाप आपको लगेगा l " युधिष्ठिर बोले --- " नहीं नकुल ! भगवान की उपासना जप , तप और ध्यान से ही नहीं होती , कर्म भी उसका उत्कृष्ट माध्यम है l यह विराट जगत उन्ही का प्रकट रूप है l जो दीन -दुःखी हैं , उनकी सेवा करना , जो पिछड़े और दलित हैं उन्हें आत्म कल्याण का मार्ग दिखाना भी भगवान का ही भजन है l इस द्रष्टि से मैंने जो किया वह ईश्वर की उपासना ही है l सत्य और धर्म का आचरण करने के कारण ही वे धर्मराज कहलाए l