10 December 2018

WISDOM --- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

     इस  स्रष्टि  में  सबसे  महत्वपूर्ण    मनुष्य  के  कर्म  हैं   l  जीवन  में  पुण्य  कर्मों  के   उदय  होने  से   मनुष्य  सफलता , सम्मान , यश   प्राप्त  करता  है  ,  वहीँ  पाप  कर्मों  के  उदय  होने  से   अपयश ,  असफलता  ,  रोग  व  पीड़ा  का  भागी  बनता  है  l 
इस  संसार  में   ऐसा  कभी  नहीं  होता  कि  अच्छे  या  बुरे कर्म  किये  जाएँ   और  उनका  तुरंत  फल  मिल  जाये   l  व्यक्ति  कर्म  तो  करता  है  ,  लेकिन  उसका  फल  कब  मिलेगा   , यह  काल  ( समय )  निश्चित  करता है  l 
  एक  प्रसंग  है ----- राजा  के  यहाँ  चोरी  हुई  तो  ऋषि मांडव्य  के  आश्रम  में छिपे   डाकू  पकड़े  गए  l    राज्य  के  अधिकारी  डाकुओं  के  साथ  उन्हें  आश्रय  दिए  जाने  के  अपराध  में   ऋषि  को  भी  पकड़ कर   ले  गए  l  न्यायालय  में  वहां  के  नियम  के  अनुसार   सभी  को  सूली पर  चढ़ाने  का  दंड  मिला   l  अन्य  ऋषियों  ने  दरबार  में  आकर    ऋषि  मांडव्य  की  निर्दोषता  बताई  l  राजा ने  फांसी  तुरंत  रुकवा  दी    और  उन्हें  तख्ते  से   नीचे  उतार  लिया  गया  l   तब  नतक  उन्हें  काफी  शारीरिक ,  मानसिक  यातना  मिल  चुकी  थी   l  राजा  ने  क्षमा  मांगी  l  ऋषि  मांडव्य  ने  कहा  ---- " जब  मैं  सूली  पर  था  ,  तब  ध्यान  में  जाकर  देखा  ---- पूर्वजन्म  में  मैंने  अनेक  पशु - पक्षियों  को  सताया  था  l  उसी  के  कारण    भारी  यातनाओं  के   साथ  मरना   मेरे  विधान  में  लिखा  था  ,  पर  मेरी  इस  जन्म  की  तपस्या   और  सेवा  ने   उन  कष्टों  को  घटा  दिया  l  पूर्णत:  शमन   तो  किसी  पापकर्म  का  नहीं  हो  सकता  l  आप परेशान  न  हों  l  जितना  भुगतना  था ,  उतना  मैंने  भुगत  लिया   l  " 
            तप  से ,  सेवा  कार्य  से  कर्म बंधन  शिथिल  किए  जा  सकते  हैं  l  कर्मों  के  फल  से  कोई  बच  नहीं  सकता   l