13 January 2018

WISDOM ------ ईर्ष्या के कारण व्यक्ति का आत्मविश्वास लड़खड़ा जाता है

 ईर्ष्यात्मक  जीवन  की  यात्रा  अधूरी  सी  होती  है  ,  जिसमे  जो  मिलता  है ,  उसकी  कद्र  नहीं  होती   और  जो  नहीं  मिल  पाता,  उसका  विलाप   चलता  रहता  है  l  इसलिए  जरुरी  यह   है    कि  दूसरों  की  और  न  देखकर  अपनी  और  देखा  जाये  ,  क्योंकि  हर  इनसान  अपने  आप  में  औरों  से  भिन्न  है  , विशेष  है  ,  उसकी  जगह  कोई  नहीं  ले  सकता  l   ईर्ष्या  तभी  मन  में  प्रवेश  करती  है  जब  हमारी  द्रष्टि  तुलनात्मक  होती  है   और  हम  उसमे खरे  नहीं  उतारते  l  इसलिए  यदि  तुलना  ही  करनी  है   तो  अपने  ही  प्रयासों  में  करनी  चाहिए  कि  हम  पहले  से  बेहतर  हैं  या  नहीं  ,  तभी   ईर्ष्या  रूपी   विष  बीज  को   पनपने  से  रोका  जा  सकता  है  l  
    प्रसिद्द   अंग्रेजी  साहित्यकार अर्नेस्ट  हेमिंग्वे   से   किसी    ने  कहा ---- " मैंने  आज  तक  आप  जैसा  आदर्श    दूसरा  नहीं    देखा  l  सबकी  तुलना  में    आप    सबसे  सज्जन , मिलनसार , विनम्र    और  बुद्धिमान  हैं  l  इस लिए  मेरे  लिए  आप  आदर्श     हैं  l "
    हेमिंग्वे   ने   उत्तर  दिया   -- "  मित्र  !  इनसान  के  जीवन  की  सबसे  बड़ी  उपलब्धि    अन्य  व्यक्तियों  की  तुलना  में  बेहतर  इनसान  होना  नहीं  ,  बल्कि  अपने  पूर्व  जीवन  की  तुलना  में  बेहतर  इन्सान  होना  है  l  मैं  कल  जैसा  व्यक्ति  था  ,  यदि  आज  उससे  बेहतर  हूँ  तो  मैं  अपनी  द्रष्टि  में  आदर्श  हूँ  ,  अन्यथा  इस  मूल्यांकन  का  कोई  आधार  नहीं  है   l "