29 May 2019

WISDOM ------

 कहावत   है ---- इतने  मीठे  मत  बनो  कि  लोग  तुम्हे  चट  कर  जाएँ ,  इतने  कडुवे  भी  मत  बनो  कि  लोग  तुम्हे  थूकते  फिरे  l  "  यही  बात  क्रोध  पर  भी  लागू  होती  है   l  जिस  क्रोध  की  ज्वाला  से  हम   स्वयं  और  दूसरे  लोग   दग्ध  हों  ,   हमारा  व  दूसरों  का  अहित  हो   वह  त्याज्य  है   l
  लेकिन   वह  स्वस्थ  क्रोध  जिसे  ' मन्यु ' कहते  हैं  , वह  दवा  बनकर   हमारी  सामजिक  बुराइयों  की   चिकित्सा  करे  , दूषित  तत्वों  का  निवारण  करे  , बिगड़े  हुओं  को   सुधरने   के  लिए  मजबूर  करे  ,  भूल  के  लिए  दंड  दे  , ऐसा  स्वस्थ  क्रोध   आवश्यक  भी  है  और  अनिवार्य  भी   l    जिस  समाज  में  इसका  अभाव  हो  जाता  है   वह  कायर , नपुंसक  व  दीन - हीन  बन  जाता  है  l  उसकी  नैतिक  क्षमता  और  चरित्र  भी  गिर  जाता  है   l
 ऋषियों  की  हड्डियों  के  ढेर  को  देखकर  राम  का  आक्रोश , समुद्र  के  अहंकार  पर  लक्ष्मण  का  कोप ,  क्षत्रियों  के  अत्याचारों  पर  परशुराम  का  क्रोध ,  आततायी  कंस  और  कौरवों  के  प्रति  श्रीकृष्ण  का  विरोध  ,  इसी  मन्यु  शक्ति  का  परिचायक  है  l   अन्याय  और  अत्याचार  से  निपटने  के  लिए ,  दीन - हीन  गरीब  असहायों  के   अधिकारों  की  रक्षा  के  लिए   इसी  ' मन्यु  शक्ति '  की  आवश्यकता  है   l