13 October 2017

महात्मा गाँधी विचार देने से ज्यादा विचारों को जीवन में उतारने के हिमायती थे l

   बीस   वर्ष  के   दक्षिण  अफ्रीकी  प्रवास  के  बाद   वे  हिन्दुस्तान  लौटे    l  अपने  गुरु  गोपालकृष्ण  गोखले  की  सलाह  पर   वे  वर्ष  भर  राजनीतिक  रूप  से  मौन  रहे   और  उन्होंने  सम्पूर्ण  भारत  का  भ्रमण  किया  l   इस  यात्रा  के  जरिए  वे  समाज  के  अंतिम  जन  तक  पहुंचना  चाहते  थे  और  पहुंचे  भी  l
  उनका  पहला  राजनीतिक  भाषण  उस  समय  हुआ  जब  1916  में  बनारस  हिन्दू  विश्वविद्यालय  के  शिलान्यास  कार्यक्रम  में   देश  भर  से  बड़े - बड़े  लोगों  को  बुलाया  गया  था ,  जिनमे  बड़े - बड़े  राज्यों  के  महाराज , अन्य  रियासतों  के  राजा , बड़े  व्यापारी   व  राजनीतिज्ञ  शामिल  थे  l  इस  कार्यक्रम  में  वायसराय  को  भी  बुलाया  गया था  l  गांधीजी  को  भी  इस  कार्यक्रम  में  सम्मिलित  होने  का   न्योता  मिला  था  l
  जब  गांधीजी  के  सामने   उपस्थित  व्यक्तियों  को  संबोधित  करने  की  बारी  आई   तो  उन्होंने  कहा  ---- " मुझे  यहाँ  आने  में  देर  लगी  , समय  पर  नहीं  पहुँच  पाया  क्योंकि  शहर  की  इतनी  किलेबंदी  की  गई  थी  कि   सुरक्षा  की  वजह  से   यहाँ  पहुँचने  में  देर  लगी  l  "    उन्होंने  सवाल  उठाया  कि  यदि  देश  का  वायसराय  जो  संप्रभु  है  ,  उसको  अपनी  प्रजा  से  इतना   डर   लगता  है    तो  इससे  अच्छा  है  कि  वह   न  रहे  l  फिर  उन्होंने   सभा  में   भव्यता  के  साथ  पहुंचे  राजा - महाराजाओं  को  आड़े  हाथों  लिया   और  कहा  कि  , ' आप  तो  जनता  की  तिजोरी  में   जितना  सोना - चांदी  और  आभूषण  है  , उसे  अपने  शरीर  पर  लाद  कर  चले  आये  हैं   l  आखिर  यह  किसकी  कमाई  है  ?
 उनके  प्रश्न  जन सामान्य  के  प्रश्न  थे   l