लघु कथा ----एक बार की बात है घनघोर पानी बरस रहा था l दूर -दूर तक जल ही नजर आता था l ऊपर उड़ती हुई दो बतखों की द्रष्टि एक कछुए पर पड़ी , जो एक पेड़ की टहनी मुँह से पकड़े किसी तरह स्वयं को प्रकृति के प्रहार से बचाने में लगा था l बतखों को कछुए पर दया आ गई , वे उसके पास जाकर बोलीं ---" आओ कछुए भाई ! तुम टहनी पकड़े रहो और हम तुम्हे उड़ाकर सूखी जमीन तक पहुंचा देते हैं l बस , किसी भी स्थिति में अपना मुँह न खोलना l ' कछुए ने सीख को समझे बिना हाँ कर दी l दोनों बतखों ने टहनी के सिरे पकड़े , कछुआ टहनी को बीच से पकड़े था , बतखें उड़ चलीं और पलक झपकते ही दूर आसमान में जा पहुँची l नीचे जमीन पर खड़े बच्चों ने यह अचरज भरा द्रश्य तो जोर -जोर से हँसने लगे l बच्चों को हँसते देख कछुआ क्रोध से भर गया और पलटकर चिल्लाने लगा l मुँह खोलते ही टहनी से उसकी पकड़ छूट गई और वह धड़ाम से जमीन पर आ गिरा l इस कथा से शिक्षा है कि हमें मौन रहने का अभ्यास करना चाहिए l अविवेक के कारण व्यक्ति असमय मुंह खोलता है , ऐसी मूढ़ता का परिणाम विनाशकारी होता है l
12 August 2023
WISDOM ----
सच्चा अध्यात्मवादी कौन ? --- एक व्यक्ति बहुत गरीब था l उसने कड़ी मेहनत और पुरुषार्थ के बल पर धीरे -धीरे काफी संपत्ति अर्जित कर ली और अपने गाँव का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया लेकिन उसे अपनी अमीरी का बिलकुल भी घमंड नहीं था l उसका पुत्र जब बड़ा हो गया तो उसने अपने घर की सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी और स्वयं अपने घर से कुछ दूर जंगल में कुटिया बनाकर रहने लगा , वहीँ ध्यान व भजन करता और जब -तब घर जाकर अपने पुत्र का मार्गदर्शन भी करता l एक दिन देवर्षि नारद उस जंगल से गुजरे l उस व्यक्ति को वहां देख रुक गए l उस व्यक्ति ने नारद जी को अपने परिवार और धन -वैभव के साथ अपनी आध्यात्मिक रूचि और तपस्या के बारे में विस्तार से बताया l नारद जी ने उसकी परीक्षा लेने की सोची , कुछ दिन बाद वह पुन: जंगल में आए तो देखा वह व्यक्ति ध्यान कर रहा है l कुछ देर बाद जब वह ध्यान से बाहर आया तो नारदजी ने उससे कहा -- आपके मकान में भयंकर आग लग गई है , कुछ ही क्षणों में आपका धन -वैभव जल कर राख हो जायेगा l यह सुनकर वह व्यक्ति जरा भी परेशान नहीं हुआ और बोला --- 'वह धन -वैभव प्रभु का दिया हुआ है , जैसी प्रभु की इच्छा l वैसे भी घर में बहुत लोग हैं जो विपत्ति का सामना कर सकते हैं l ' नारदजी प्रसन्न होकर चले गए l कुछ दिनों बाद वे पुन: उस व्यक्ति को देखने आए , तो देखा कुटिया खाली है , वह व्यक्ति वहां नहीं है l नारदजी को उस व्यक्ति पर शक हुआ और वे उसे खोजते हुए उसके गाँव पहुंचे तो देखा , उन दिनों उस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा था और वह व्यक्ति अपनी तपस्या , ध्यान छोड़कर लोगों को अपने हाथ से राशन -पानी , धन , भोजन सामग्री बांटने में लगा है l कोई भी खाली हाथ नहीं जा रहा , सब प्रसन्न होकर जा रहे हैं l नारद जी उसके सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए और बोले --- " तुम्हारी तपस्या हर द्रष्टि से उत्तम है , तुमने अध्यात्म को सही अर्थों में अपनाया है l तुम्हारे भीतर मानव कल्याण की भावना है l तुम में न तो धन -वैभव का अभिमान है और न ही अपनी तपस्या का अभिमान है l तुम्हारे लिए वन और राजमहल दोनों एक समान हैं , तुम सच्चे अध्यात्मवादी हो l " नारदजी ने उसे आशीर्वाद दिया और उससे विदा ली l