31 August 2022

WISDOM ----

  " मनुष्य  ईश्वर  की  संतान  है  l  असीम  सत्ता  पर  गहरी  आस्था  और  विश्वास  से  हमें  ऊर्जा  मिलती  है  l  "   ईश्वर  विश्वास  ही  आत्मविश्वास  है  और  आत्मविश्वास  के  कमी ,  भय  और  परिस्थितियों  से  तालमेल  न  कर  सकने  के  कारण  ही  आज  मनुष्य  विपन्न  परिस्थिति  में  है l  धनी  हो  या  निर्धन असंतोष  और  तनाव  से  घिरा  हुआ  है  l  स्वामी  विवेकानंद  ने  अपने  शिष्य  को  एक  कथा  सुनाई ------ एक  तत्वज्ञानी  अपनी  पत्नी  से  कह  रहे  थे  कि  संध्या  आने  वाली  है  l  काम  समेट  लो  l  एक  सिंह  कुटी  के  पीछे   यह  सुन  रहा  था  ,  उसने  समझा  कि  संध्या  कोई  बड़ी  शक्ति  है  जिससे  डर  कर   यह  निर्भय  रहने  वाला  ज्ञानी  भी   अपना  समान  समेटने  को  विवश  हुए  हैं  l  सिंह  चिंता  में  डूब  गया ,  उसे  संध्या  का  डर  सताने  लगा  l  पास  के  घाट  का  धोबी  दिन  छिपने  पर  अपने  कपड़े  समेट  कर  गधे  पर  लाने  की    तैयारी  करने  लगा  l  देखा  तो  गधा  गायब  है  ,  उसे  ढूँढने  ने  देर  हो  गई  l  रात  घिर  आई  और  पानी  बरसने  लगा  l  धोबी  को  एक  झाड़ी  में  खड़खड़ाहट  सुनाई  दी  ,  उसने  समझा  गधा  है  l  तो  लाठी  से  उसे  पीटने  लगा ---धूर्त  यहाँ  छिपकर  बैठा  है  l  सिंह  की  पीठ  पर  लाठियां  पड़ीं  तो  उसने  समझा   यही  संध्या  है  ,  सो  डर  से  थर -थर  कांपने  लगा  l  अँधेरे  में  धोबी  उसे  घसीट  लाया  और  कपडे  लादकर  घर  चल  दिया  l  रास्ते  में  दूसरा  सिंह  मिला  , उसने  अपने  साथी  की  दुर्गति  देखी  तो  पूछा ---यह  क्या  हुआ  ?  तुम  इस  प्रकार  लदे  क्यों  फिर  रहे  हो  l  '  सिंह  ने  कहा --- संध्या  के  चंगुल  में  फँस  गए  हैं  l  यह  बुरी  तरह  पीटती  है  और  इतना  वजन  लादती  है  l  सिंह  को  कष्ट  देने  वाली  संध्या  नहीं  उसकी  भ्रान्ति   थी  जिसके  कारण  धोबी   को  कोई  बड़ा  देव -दानव  समझ  लिया   और  भार  एवम  प्रहार   बिना  सिर  हिलाए  स्वीकार  कर  लिया  l  अपना  स्वरुप  भूल  जाने  के  कारण  मनुष्य  की  भी  ऐसी  ही   दुर्गति  है  l  

30 August 2022

WISDOM----

 लघु  कथा ---- कोयल  और  चींटी   उद्यान  में  एक  साथ  रहकर  आनंद पूर्वक  जीवन  व्यतीत  कर  रहीं  थीं  l कोयल  आम  के  वृक्ष  पर  बैठकर  मधुर  गीत  गाती  रहती  थी  ,  और  चींटी  वृक्ष  की  जड़  के  पास  एक  छोटे  छिद्र  में  रहकर  दिन -रात   अपनी  भोजन  व्यवस्था  में  जुटी  रहती  थी  l  बसंत  का  मौसम  था  ,  चींटी  ने  देखा  कोयल  दिन  भर  अठखेलियाँ  करती  है , गाना  गाती  रहती  है  ,  उसने  कोयल  को  समझाया   कि  सब  दिन  एक  समान  नहीं  रहते ,  कब  कौन  सी  विपत्ति  आ  जाये  , कोई  नहीं  जानता  इसलिए  भविष्य  का  ध्यान  रखना  चाहिए  l  परन्तु  कोयल  ने  उसकी  एक  न  सुनी  l  थोड़े  दिन  बाद  ही  पतझड़  आया  , पत्ते  गिरने  लगे , फूल  मुरझाने  लगे   अब  कोयाल की  सहायता  करने  वाला  कोई  न  था  l  अब  वह   सहायता  के  लिए  चींटी  के  पास  गई   और  बड़ी  नम्रता  से  सहयोग  के  लिए  याचना  की  l  चींटी  बोली  ---- " जब  तुम  झूम -झूमकर  गाती  थीं  , अठखेलियाँ  करती  थीं  ,  तब  शायद  तुम  भूल  गईं  थीं  कि प्रत्येक  बसंत  के  बाद  पतझड़  आता  है  l  मैंने  पतझड़  का  ध्यान  रखा,  श्रम  का  महत्त्व  समझा   और  अब  मैं  तुम्हारी  मदद  करने  की  स्थिति  में  हूँ  l  "

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 ऋषियों  का  वचन  है --- 'तृष्णा  का  कोई  अंत  नहीं  है l आकाश  की  तरह  उसके  पेट  में  बहुत  कुछ  भरा  होने  पर  भी  खाली  ही  रहता  है  l  '  व्यक्ति  स्वयं  समाप्त  हो  जाता  है  लेकिन  तृष्णा  कभी  समाप्त  नहीं  होती  l  ---- महाभारत  में  राजा  ययाति  की  कथा  का  वर्णन  है  l  सुख -भोग  भोगते  हुए  कब  सौ  वर्ष  बीत  गए , उन्हें  पता  ही  नहीं  लगा  l होश  तब  आया  जब  दरवाजे  पर  यमराज  उपस्थित  हुए  और  कहा ---- "ययाति  ! तुम्हारी  आयु  पूर्ण  हुई , कर्मों  की  गठरी  बांधों  और  यमलोक  चलो  l "  ययाति गिड़गिड़ाए  --- " पर  इतनी  जल्दी  कैसे  ! अभी  तो  मेरी  सभी  इच्छाएं   अधूरी  हैं  , कृपया  मुझे  जीवन  दान  दें  l " यम देवता  बोले -- " ऐसा  संभव  नहीं  है  l स्रष्टि  का  शाश्वत  नियम  है  कि  हर  व्यक्ति  को  निश्चित  आयु  भोगने  के  बाद  यहाँ  से  विदा  होना  पड़ता  है  l " ययाति  ने  दीनता  भरे  स्वर  में  कहा --- " देव ! आप  समर्थ  हैं , कुछ  उपाय  करें  l " यम  देवता  ने  कहा --- ' तुम्हारे  सौ  पुत्र  हैं  ,  यदि  कोई  अपना  यौवन  अपनी  आयु  तुम्हे  देने  को  सहमत  हो  जाये  तो  तुम्हारी  इच्छा  पूरी  हो  सकती  है  , फिर  मैं  वापस  लौट  सकता  हूँ  l ' कामग्रस्त  ययाति  विवेकशून्य  हो  चुके  थे  ,  अपने  सभी  सौ  पुत्रों  से  निर्ल्लज  होकर  यौवन  की  भीख  मांगी  l  अपने  पिता  की  वृद्धावस्था  में  ऐसी  मन:स्थिति  देखकर  पुत्रों  को  बहुत  क्रोध  आया  और  आश्चर्य  भी  हुआ  l  सबने  अपना  यौवन  देने  से  मना  कर  दिया  l  सबसे  छोटा  पुत्र  विचारशील  था ,  उसे  अपने  पिता  पर  दया  आ  गई ,  वह  अपनी  आयु  राजा  को  देने  को  सहमत  हो  गया   l  ---- ययाति  ने  सौ  वर्ष  और  भोग  विलास  का  जीवन  जिया   l  पौराणिक  कथा  के  अनुसार  उनके  सैकड़ों  पुत्र  पैदा  हुए  l  प्रत्येक  सौ  वर्ष  बाद  यम देवता  आते  और  ययाति  दीन हीन    बनकर  उनसे  जीवन  की  याचना  करते   l  इस  तरह  ययाति  को  दस  बार   अपने  पुत्रों  से  जीवन  दान  मिला   और  वे  भोग विलास  में  निरत  रहे  l  इस  तरह  हजार  वर्ष  बीत  गए  l  अंतिम  बार  जब  मृत्यु  देवता  उपस्थित  हुए   तो  ययाति  ने  पश्चाताप  व्यक्त  करते  हुए  कहा --- ' देव ! मेरा  जीवन  व्यर्थ  चला  गया  l  पापों  की  गठरी  सिर  पर  लिए  मैं  यह  अनुभव  करते  हुए  जा  रहा  हूँ  कि  कामनाओं -वासनाओं  की   तृप्ति  कभी  नहीं  हो  सकती  l  "  उन्हें  अंततः  नरक  की  अग्नि  में   विक्षुब्ध  होकर  अपनी  नियत  अवधि  पूरी  करनी  ही  पड़ी  l  

29 August 2022

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 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   लघु  कथाओं , घटनाओं  और  कथानकों  के  माध्यम  से  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  जीवन  जीने  की  कला  का  ज्ञान  न  होने  से  ही  आज  संसार  में  हर  व्यक्ति  परेशान  है  , तनाव  में  है  l  उनका    कहना  है  कि  जीवन  में  आने  वाले  सुख -दुःख  को  हम  सहज  भाव  से  लें  l  दिन  के  बाद  जब  रात्रि  आती  है  तो  हम  विचलित  नहीं  होते   क्योंकि  वह  तो  प्रकृति  का  नियम  है  ,  रात्रि  तो  आएगी  ही  ,  फिर  रात्रि  के  बाद  जब  दिन  होता  है  तो  हम  ख़ुशी  से  विचलित  नहीं  होते  ,  रात  के  बाद  दिन  तो  होना  ही  है  l  सुख -दुःख  भी  जीवन  में  इसी  तरह  आते  हैं   , अंतर  केवल  इतना  है  कि  हमारे  कर्मों  के  परिणामस्वरूप  कभी  -कभी  रात  बहुत  लम्बी  हो  जाती  है  ,  यहाँ  हमें  सत्कर्म  करते  हुए  धैर्य  रखना  है  ' सुबह  अवश्य  आएगी  l ----- आचार्य श्री  ने ने  एक  घटना  का  उल्लेख  किया  है --- एक  गाँव  में  एक  आदमी  की  बीस  लाख  की  लाटरी  लग  गई  l  वह  बहुत  ही  गरीबी  में  दिन  काट  रहा  था  l  जब  लॉटरी  की  खबर  आई  उस  समय  वह  गाँव  के  बाहर  था  l  इस  खबर  को  सुनकर  उसकी  पत्नी  को  चिंता  हो  गई , वह  समझदार  थी  ,  उसे  लगा  कि  अति  गरीबी  के  हाल  में  इतना  धन  मिलने  की  खबर  सुनकर  कहीं  उसके  पति  का  हार्ट फेल  न  हो  जाये  l  इसलिए   वह  गाँव  से  कुछ  दूर  बने  मंदिर  में  पुजारी  के  पास  गई  l  पुजारी  को  सब  बात  बताई  और  कहा  आप  तो  बहुत  ज्ञानी  हैं  ,  मेरे  पति  को  ज्ञान  की  बातें  इस  तरह  से  समझाएं  कि  वे  बीस  लाख  मिलने  की  बात  सुनकर  किसी  सदमे  में  न  आएं ,  न  पागल  हों , न  हार्टफेल  हो  l  आप  समर्थ  हैं  उन्हें  ज्ञान  की  बात  समझा  सकते  हैं  l  पुजारी  ने  कहा  --हाँ  ठीक  है , मैंने  बहुत  शास्त्र  पढ़े  हैं ,  मुझे  ज्ञान  है , मैं  उसे  समझा  दूंगा  ,  लेकिन  बदले  में  तुम  मुझे  कितना  दोगी  ?  उस  महिला  ने  कहा --- 'महाराज  1  मैं  आपको  बीस  हजार  दूंगी  l '  पुजारी  भी  बेचारा  बहुत  गरीब  था  ,  बीस  हजार  की  बात  सुनकर  चौंका  l  फिर  उसने  कई  बार बीस  हजार , बीस हजार  दोहराया  ,  फिर  उसे  ह्रदयघात  हुआ  और  वह  मर  गया  l   बीस  हजार  की  ख़ुशी  वह  पुजारी  सह  न  सका  l  इसलिए  सुख  हो  या  दुःख  हम  उसे  सहजता  से  स्वीकार  करें  ,  विचलित  न  हों  l 

28 August 2022

WISDOM ----

   लघु -कथा --- एक  दिन  विन्ध्याचल  प्रदेश  के  राजा  के  दरबार  में  तीन  व्यापारी  अपनी  फरियाद  लेकर  उपस्थित  हुए   और  बोले ---- "महाराज  ! हम  आपके  राज्य  में  व्यापार  करने  आ  रहे  थे  कि  हमें  मार्ग  में  डाकुओं  ने  लूट  लिया  l  हमारे  पास  लेशमात्र  भी  धन  नहीं  है  ,  कृपया  हमारी  मदद  कीजिए  l "  राजा  ने  उन  तीनों  को  एक -एक  बोरी  गेहूँ  देने  का  आदेश  दिया  l  गेहूँ  देते  समय  राजा  बोले  -- "  इस  बोरी  के  गेहूँ  को  स्वयं  ही  साफ  करना  और  स्वयं  ही  उपयोग  में  लाना  l  न  किसी  को  देना  और  न  किसी  की  मदद  लेना  l  एक  माह  बाद  मुझसे  पुन:  मिलना  l " उनमें  से  दो  व्यापारी  आलसी  थे   तो  उन्होंने  गेहूँ  साफ  करने  का  श्रम  न  कर  के  ,  उस  गेहूँ  को  बेच  दिया  l  तीसरा  व्यापारी  परिश्रमी  था  ,  उसने  गेहूँ  को  साफ  करना  शुरू  किया   तो  उसे  बोरी  में  नीचे   एक  अनगढ़  हीरा  मिला  l  उसने  उसे  तराशकर  अपने  पास  रख  लिया  l  एक  माह  बाद  तीनों  व्यापारी  राजा  के  समक्ष  हाजिर  हुए  तो  आलसी  व्यापारियों  ने  राजा  से  पुन:  धन  की  मांग  की  ,  परन्तु  तीसरे  व्यापारी  ने  तराशा  हुआ  हीरा  राजा  को  भेंट  किया  l  राजा  बोले ---- " यह  तुम्हारा  ही  है  ,  इसे  बेचकर  नया  कारोबार  आरम्भ  करो  l "  इसके  बाद  राजा  दूसरे  व्यापारियों  से  बोले ---- "ऐसे  ही  रत्न  तुम्हारी  बोरियों  में  भी  थे  ,  परन्तु  श्रम  का  अनादर  करने  के  कारण  तुम  उनसे  वंचित  रह  गए  l  "  सत्य  यही  है  कि  पुरुषार्थ  के  अभाव  में  मनुष्य  दीन -हीन  बना  रहता  है  l  

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  खलील  जिब्रान  ने  एक  छोटी  सी  कथा  लिखी  है  -- इस  कथा  में  उन्होंने  लिखा  है  कि   उनका  एक  मित्र  अचानक  एक  दिन  पागलखाने  में  रहने  चला  गया  l  वह  जब  उससे  मिलने  गए   तो  उन्होंने  देखा  कि  उनका  वह  मित्र  पागलखाने  के  बाग  में   एक  पेड़  के  नीचे   बैठा    मुस्करा  रहा  था  l  पूछने  पर  उसने  कहा ---- " मैं  यहाँ  बड़े  मजे  से  हूँ  l  मैं  बाहर  के  उस  बड़े  पागलखाने  को  छोड़कर  इस  छोटे  पागलखाने  में  शांति  से  हूँ  l  यहाँ  पर  कोई  किसी  को  परेशान  नहीं  करता  l  किसी  के  व्यक्तित्व  पर  कोई  मुखौटा  नहीं  है  l  जो  जैसा  है  , वह  वैसा  ही  है  l  न  कोई  आडंबर  है  और  न  कोई  ढोंग  है  l "   उसने  खलील  जिब्रान  को  और  आश्चर्य  में  डालते  हुए  कहा  --- " मैं  यहाँ  पर  ध्यान  सीख  रहा  हूँ  ,  क्योंकि  मैं  यह  जान  गया  हूँ  कि  ध्यान  ही  सभी  तरह  के  पागलपन  का  स्थायी  और  कारगर  उपचार  है  l "

27 August 2022

WISDOM

  जिसके  लिए ' परमात्मा  पर्याप्त  है '  वे  कभी  किसी  से  कोई  उम्मीद  नहीं  रखते ' ------ घटना  अकबर  के  शासनकाल  की  है , उस  काल  के  महान  कवि  और  माँ  भगवती  के  परम  उपासक   श्रीपति  के  जीवन  की  है  l  अपने  सद्गुणों  और  जगन्माता  की  कृपा  के  कारण  वे  मुग़ल  बादशाह  अकबर  को  अत्यंत  प्रिय  थे  ,  उनके  विचारों  से  अकबर  का  मन  शांत  और  प्रसन्न  होता  था   इसी  कारण  उन्होंने  श्रीपति  को   दरबार  में  अपना  सलाहकार  बना  रखा  था  l   एक  दिन  जब  दरबारियों  से  अकबर  को  ज्ञात  हुआ  कि  श्रीपति  महान  कवि  हैं   तो  उन्होंने  उनसे  कविता  सुनाने  का  आग्रह  किया  l  श्रीपति  जी  ने  आध्यात्मिक  भावों  के  कुछ  पद  सुना  दिए  l  इससे  अकबर  को  बहुत  संतोष  हुआ   और  उन्होंने  श्रीपति  की  बहुत  प्रशंसा  की  l   इससे  अन्य  दरबारियों  को  बहुत  ईर्ष्या  हुई  और  वे   समय -समय  पर  भक्त  श्रीपति  की  निंदा ,चुगली  करने  लगे  l  जिसे  ईश्वर  का  विश्वास  है  वह  हमेशा  निडर  व  निश्चिन्त  रहता  है  l  एक  दिन    दरबारियों  ने  भक्त  श्रीपति  को  नीचा  दिखाने  के  लिए   एक  युक्ति   की  l  बादशाह  अकबर  का  दरबार  था  ,  उस  समय  बादशाह  के  सामने  श्रीपति  को  छोड़कर   अन्य  सब  दरबारी  कवियों  और  अन्य  दरबारियों  ने  एक  प्रस्ताव  रखा  कि  अगले  दिन  सब  कवि  अपनी  एक  कविता  सुनाएँ   और  इनमें  से  हर  एक  की  कविता  की  अंतिम  पंक्ति  में   यह  वाक्य  अवश्य  रहे  -- ' करौ  मिलि  आस  अकबर  की  " l  बादशाह  ने  भी  हामी  भर  दी  कि  इस  बहाने  भक्त  श्रीपति   की  बुद्धिमत्ता  और  भक्ति  की  परीक्षा  हो  जाएगी  l   अगले  दिन  दरबार  में  भारी  भीड़  हुई  l  सभी  उत्साहपूर्वक  अपनी  कविता  सुनाकर  अकबर  की  प्रशंसा  कर  रहे  थे  l  दरबार  में  सभी  की  द्रष्टि  श्रीपति  पर   टिकी  थी  कि  देखें  वे  क्या  कहते  हैं  l  इधर  श्रीपति जी  मन  ही  मन  जगन्माता  का  ध्यान  कर  निडर  और  निश्चिन्त  थे  l  अपनी  बारी  आने  पर  वे  आसन  से  उठे  और  माता  का  स्मरण  कर  अपनी  स्वरचित  कविता  पढ़ी ------ 'अबके  सुल्तान  फरियान  समान  हैं , बांधत  पाग  अटब्बर  की ,  तजि  एक  को  दूसरे  को  जो  भजे  ,  कटि  जीभ  गिरै  वा  लब्बर  की  l  सरनागत  ' श्रीपति  '  माँ  दुर्गा  की  ,  नहिं  त्रास  है  काहुहि  जब्बर  की ,  जिनको  माता  सो  कछु  आस  नहीं  ,  सो  करौ  मिलि  आस   अकबर  की  l '   भक्त  श्रीपति  जी  ने  निडर  होकर  अपनी  कविता  में  कह  दिया  कि कि  जिसे  जगन्माता  से  कोई  आस  नहीं  है  , वे  ही  अकबर  से  आस  करें  l   बादशाह  अकबर  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  उन्होंने  भक्त  श्रीपति  को  यह  कहते  हुए  गले  लगा  लिया  कि  तुम्हारी  भक्ति  सच्ची  है  ,  जगन्माता  तुम्हारे  चित्त , चिन्तन  और  चेतना  में  विराजती  हैं  l  

26 August 2022

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  स्वामी  दयानंद  के  जीवन  का  प्रसंग  है  --- घटना  उन  दिनों  की  है  जब  स्वामीजी   उपस्थित  जन समुदाय  के  समक्ष   भक्तियोग  का  , भगवान  के  नाम स्मरण  की  महिमा  का  उपदेश  दे  रहे  थे   l  तभी  एक  शंकालु , तार्किक  और  अहंकारी  युवक   उनके  प्रवचन  के  बीच  में  ही  उनके  पास  पहुंचा  और  उनका  प्रतिवाद  करते  हुए  बोला --- " स्वामी जी  भक्ति  और  भगवान  क्या  होते  हैं  ?  नाम स्मरण  से  क्या  फायदा  है  ?  यह  तो  शब्दों  का  जाल -जंजाल  मात्र  है  l  इससे  किसी  को  कुछ  मिलने  वाला  नहीं  l  "  स्वामी जी  चाहते  तो  उस  युवक  की  बात  पर  ध्यान  न  देकर  अपना  प्रवचन  जारी  रख  सकते  थे  ,  लेकिन  उन्हें  उसकी  शंका  का  समाधान  करना  था  l  अत:  स्वामी जी  बड़े  जोश  के  साथ  बोले --- " पागल  कहीं  का ,  जाने  क्या  बक  रहा  है ? कुछ  जानता  भी  नहीं  और  मानता  भी  नहीं  l  अहंकार  इतना  बढ़ा  है  जैसे  कोई  प्रकांड  पंडित  हो  l "  स्वामी जी  के  इन  अपशब्दों  को  सुनकर   वह  युवक  तिलमिला  उठा  और  बोला  "  आप  एक  संन्यासी  हैं  , फिर  भी  आपको  बोलने -चालने  का  ढंग  नहीं  आया  है  l "  अब  स्वामी जी  सहज  स्वभाव  में  शांत  स्वर  में  बोले --- " अरे  भाई  ! आपको  क्या  हो  गया  ?  मैंने  दो -चार  शब्द  ही  तो  बोले  ---- यह  कोरे  शब्द  ही  तो  हैं  ,  पत्थर  तो  नहीं  ,  जिनसे  आपको  चोट  लगती , हड्डी  टूट  जाती  l  आप  स्वयं  भी  तो  कह  रहे  थे  कई  भक्ति  और  भगवान   शब्दों  का  जाल -जंजाल  मात्र  है  l  जब  शब्दों  से  कुछ  बनता  बिगड़ता  ही  नहीं  तो  फिर  आप  इतना  आगबबूला   क्यों  हो  रहे  हैं  ? स्वामी जी  ने  उसे  समझाया  कि  तनिक  गहराई  से  सोच -विचार  करो  तो  पता  चलेगा  कि  जिस  प्रकार  बुरे  शब्दों  की  चोट  ने  आपके  ह्रदय  को  घायल  कर  दिया  ,  यह  शब्द  की  शक्ति  है  l  यदि  भगवान  का  पवित्र  नाम   स्मरण  किया  जाये    तो  उससे  व्यक्ति  के  सद्गुण  विकसित  होते  हैं  ,  दुःख -दर्द  के  घाव  शीघ्र  भर  जाते  हैं   और  मन  शीतल  व  शांत  होता  है  l ----- परिशोधित  -परिष्कृत  होने  पर   शब्द  अमृत  बन  सकते  हैं   और  विकृत  होने  पर  विष  का  काम  कर  डालते  हैं  l  " स्वामी  दयानंद  के  उपदेश  का  उस  युवक  पर  इतना  प्रभाव  पड़ा  कि  वह  श्रद्धा  से  उनके  पैरों  में  गिर  पड़ा  और  बोला --- " गुरुदेव  !  आपके   कथन  से  मेरी  शंका  मिट  गई   और  मुझे  समझ  में  आ  गया  कि   मन्त्र जप , स्रोत पाठ,  नाम स्मरण  आदि   में  व्यक्ति  के  अन्तराल   की  भाव  संवेदनाओं  को  जगाने  की  अलौकिक  शक्ति  है   जिसके  फलस्वरूप  अहंकार  और  अन्य  विकारों  को  विसर्जित  होने  में  जरा  भी  देर  नहीं  लगती  l  "

WISDOM ------

   भगवान  बुद्ध  के  जीवन  का  एक  प्रसंग  है  ---- बुद्ध  आस्वान  राज्य  के  किसी  नगर  से  गुजर  रहे  थे  l  वह  स्थान  उनके  विरोधियों  का  गढ़  था  l  जब  विरोधियों  को  बुद्ध  के नगर  में  होने  का  पता  चला  ,  तो  उन्हें  अपमानित  करने  के  लिए   एक  एक  षड्यंत्र  रचा  l  व्यक्ति  के  संस्कार  जितने  नीच  होते  हैं   , वह  उतनी  ही  घटिया  स्तर  की  चाल  चलता  है  l  विरोधियों  ने  एक   स्त्री  के  पेट   में  बहुत  सा  कपडा  बांधकर   उसे  वहां  भेजा  , जहाँ  बुद्ध  थे  l  वह  वहां  पहुंची   और  जोर -जोर  से  चिल्लाकर  कहने  लगी  ---- " देखो , यह  पाप  इसी  महात्मा  का  है  l  यह  ढोंग  रचाए  घूमता  है   और  अब  भी  मुझे  स्वीकार  नहीं  करता  l  "  नगर  में  खलबली  मच  गई  l  उनके  शिष्य  आनंद  बहुत  चिंतित  हो  गए   और  पूछा  --- " भगवन  !  अब  क्या  होगा  ? "   बुद्ध  हँसे  और  बोले --- " तुम  चिंता  मत  करो  ,  कपट  देर  तक  नहीं  चलता  l  चिरस्थायी  फलने -फूलने  की  शक्ति  केवल  सत्य  में  है  l  "  इसी  बीच  उस  स्त्री  की  करधनी  खिसक  गई  , पेट  पर  जो  अलग  से  कपड़े  बाँध  रखे  थे  , वे  जमीन  पर  आ  गिरे  l  पोल  खुल  गई  l  स्त्री  अपने  कृत्य  पर  बहुत  लज्जित  हुई   लोग  उसे  मारने  दौड़े  ,  पर  बुद्ध  ने  यह  कहकर  उसे  सुरक्षित  लौटा  दिया  -- " जिसकी  आत्मा  मर  गई  हो , वह  मरों  से  भी  बढ़कर  है  ,  उसे  शारीरिक  दंड  देने  से  क्या  लाभ  ! "     इस  प्रसंग   से  यह  स्पष्ट  होता  है  कि  आसुरी  प्रवृति  के  व्यक्ति  , देवत्व  को  मिटाने  के  लिए   ऐसी  ही  कुटिल  चालें  चलते  हैं   और  उन्हें  सफल  बनाने  के  लिए   किसी  की  गरीबी , किसी  की  मज़बूरी  का  फायदा  उठाकर   उन्हें  अपना  माध्यम  बनाते  हैं   ताकि  उनका  असली  रूप  समाज  के  सामने  न  आ  सके  l  लेकिन  विजय  हमेशा  सत्य  की  होती  है  l 

25 August 2022

WISDOM -----

   धर्म  के  नाम  पर  लड़ाई -झगड़े  बहुत  युगों  से  हो  रहे  हैं  l  हमारे  ऋषि , आचार्य जी  जानते  थे  कि  जैसे जैसे  कलियुग  अपनी  प्रौढ़ावस्था  में  आएगा  , मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  बढ़ेगा  इसलिए  उन्होंने  लघु  कथाओं  के  माध्यम  से  धर्म  के  अर्थ  को  समझाया  , जिससे  सामान्य  जन  धर्म  का  सार  समझ  सके  और  अपने  बहुमूल्य  मानव  जीवन  को  आपस  में  लड़ -झगड़कर  बरबाद  न  करे -------  1 . काशी  के  राजा  ब्रह्मदत्त   के  शासन  काल   में   धर्मपाल  नामक   एक  सदाचारी  और  धर्मनिष्ठ  ब्राह्मण  ने  अपने  पुत्र  को  तक्षशिला  अध्ययन  के  लिए  भेजा  l  एक  दिन  किसी  प्रसंगवश  युवक  ने  अपने  गुरु  से  कहा ---- " गुरुदेव  !  हमारे  कुल  में  सात  पीढ़ियों  से  कोई  युवावस्था  में  नहीं  मरा  l " आचार्य  विद्यार्थी  की  बात  का  सत्य  जानने  के  लिए   विद्यालय  को  दूसरे  की  देखरेख  में   सौंपकर  काशी  रवाना  हुए  l  रास्ते  में  उन्होंने  बकरी  की  कुछ  हड्डियाँ  लीं   और  काशी  में  जाकर  धर्मपाल  ब्राह्मण  से  बोले  --- "  बहुत  दुःख  की  बात  है  , तुम्हारा  पुत्र  असमय  मृत्यु  को  प्राप्त  हो  गया  l "  यह  सुनकर  धर्मपाल  हँसने  लगा   और  बोला ---- " महाराज  !  कोई  और  मरा  होगा  ,  हमारे  कुल  में  सात  पीढ़ियों  से  कोई  युवा  नहीं  मरा  l "  आचार्य  बोले --- " ये  हड्डियाँ  तुम्हारे  पुत्र  की  हैं  l  " धर्मपाल  ने  उन्हें   बिना  देखे  ही  कहा  --- " यह  हड्डियाँ  कुत्ते -बकरी  की  होंगी  ,  ये  हमारे  परिवार  से  किसी  की  हो  ही  नहीं  सकतीं  l "  अंत  में  आचार्य  ने  सत्य  बताया   और  उनके  कुल  में   सात  पीढ़ियों  से  किसी  युवा  की  मृत्यु  न  होने  का  रहस्य  पूछा  l   धर्मपाल  ने  कहा --- " महाराज  ! हम  धर्म  का  आचरण  करते  हैं  , सत्य  बोलते  हैं ,  जरुरतमंदों  की  सेवा  करते  हैं  और  दान  देते  हैं  l  इस  प्रकार  धर्म  की  रक्षा  करने  पर  धर्म  हमारी  रक्षा  करता  है  l  "   

2. जंगल  में  शिकारी  के  पीछे  बाघ  पड़  गया  l  शिकारी  भागकर  पेड़  पर  चढ़  गया  l  उसी  वृक्ष  पर  एक  रीछ  भी  बैठा  था  l  बाघ  वृक्ष  के  नीचे  बैठकर   मनुष्य  या  रीछ  के  नीचे  उतरने  का  इंतजार  करने  लगा  l  बहुत  देर  हो  गई  तो  उसने  रीछ  से  कहा --- " यह  मनुष्य  हम  दोनों  का  शत्रु  है  , तू  इसे  धक्का  मार , मैं  इसे  खाकर  चला  जाऊँगा   और  तेरा  जीवन  बच  जायेगा  l " रीछ  ने  कहा --- " नहीं  ,यह  यह  मेरा  धर्म  नहीं  है  l "  आधी  रात  को  रीछ  की  आँख  लग  गई   l  अब  बाघ  ने  शिकारी  से  कहा --- " वह  रीछ  को  धक्का  मार  दे  तो  उसकी  जान  बच  जाएगी  l " शिकारी  ने  रीछ  को  धक्का  मार  दिया  l  किन्तु  संयोग  से  गिरते -गिरते  वृक्ष  की  एक  डाल  रीछ  की  पकड़  में  आ  गई   l  अब  बाघ  ने  रीछ  से  कहा --- " देखा ,  जिस  मनुष्य  की  तूने  रक्षा  की  ,  वही  तुझे  मारने  को  तैयार  हो  गया   l  अब  तू  इसे  धक्का  मार  l " रीछ  ने  कहा --- " वह  भले  ही  अपने  धर्म  से  विमुख  हो  जाये  ,  परन्तु  मैं   ऐसा    नहीं  करूँगा  l  " परोपकारी  व  भावनाशील   कभी  किसी  का  अहित  नहीं  करते  l  दूसरे  के  अपकार  के  बदले , वे  उपकार  ही  करते  हैं  , किसी  का  अहित  करने  की  सोचते  भी  नहीं   l 

WISDOM -----

 ' जो  दूसरों  की  सहायता  करते  हैं, उन्हें  संकट  में  सहायता  अवश्य  मिलती  है  l '----- एक  नदी  के  किनारे  वृक्ष  की  डाल  पर  एक  कबूतर  बैठा  था  l  उसने  देखा  कि  नदी  में   एक   चींटी  डूब  रही  है   और  बड़े  प्रयास  के  बावजूद  भी  किनारे  पर  नहीं  आ  पा  रही  है  l  कबूतर  ने  एक  पत्ता  चींटी  के  पास  पानी  में  गिरा  दिया  l  चींटी  उस  पत्ते  पर  चढ़  गई  ,  पत्ता  बहकर  किनारे  पर  लग  गया  l  चींटी  ने  पानी  से  बाहर  आकर  कबूतर  का  आभार  व्यक्त  किया   कि  वह  इस  एहसान  को  कभी  नहीं  भूलेगी  l   एक  दिन  जब  चींटी  अपने  बिल  के  बाहर   घूम  रही  थी  ,  तभी  उसने  देखा  एक  बहेलिया  चुपके  से  कबूतर  को  अपने  बाँस  में  फँसाने  का  प्रयास  कर  रहा  है  l  कबूतर  अपनी  धुन  में  था  , उसने  बहेलिये  को  नहीं  देखा  l  चींटी  ने  कबूतर   को  बचाने  के  उद्देश्य  से  बहेलिये  के  पैर  में  काट  लिया  ,  जिससे  बाँस  हिल  गया   और  पेड़  के  पत्ते  खड़क  गए   और  कबूतर  सावधान  होकर  उड़  गया  l   

24 August 2022

WISDOM -----

 मनुष्य  हो  या  देवता   कामना , वासना और  तृष्णा  के  आक्रमण  से  कोई  नहीं  बचा  है  ,  लेकिन  भगवान  अपने  भक्त  की  सदैव  रक्षा  करते  हैं  , वे  परीक्षा  भी  लेते  हैं  और  उसमें   पास  भी  करते  हैं   l  पुराण  में  एक  कथा  है  ----- एक  बार  देवर्षि  नारद  को  अपने  वैराग्य  और  भजन  का  अहंकार  हो  गया  l  अहंकार  उठते  ही  मनुष्य  आत्म प्रदर्शन  के  लिए  लालायित  हो  उठता  है   l  नारद जी  के  साथ  भी  यही  हुआ  l  भगवान  को  अपने  भक्त  का  अहंकार  मिटाना  था  , कामनाओं  के  जंजाल  से  छुटाना  था  ,  सो  उन्होंने  माया  रची  ---- किसी  राजकुमारी  का  स्वयंवर  था  l  पिता  की  इकलौती  बेटी  थी  l  राजा  ने  घोषणा  कर  रखी  थी  कि   राजकुमारी  के  विवाह  के  समय  आधा  राज्य  वर  को   दिया  जायेगा  l  अहंकार  के  कारण  नारद जी  की  महत्वाकांक्षा  बढ़  रही  थी  l  राजकुमारी  का  रूप  और  विशाल  धन -वैभव  देखा  तो  उनका  मन  ललचाया   कि  अब  संसार  का  आनंद  भी  देखना  चाहिए ,  भक्ति  बहुत  हो  गई  l  लेकिन  राजकुमारी  को  पाने  के  लिए  वैसा  रूप  भी  चाहिए  ,  वे  तो  राजकुमारों  जैसे  नहीं  थे  l  बहुत  सोच विचार कर   वे  विष्णुलोक  पहुंचे   और  भगवान  से  अपनी  मनोकामना  कही   कि  भगवान   मुझे  अपने  जैसा  सुन्दर  रूप  दें   जिससे   राजकुमारी  मेरे  गले  में  वरमाला  डाले   l  भगवान  सन्न  रह  गए  l   काम  के  वशीभूत  हुए  नारद जी  को  वे  नाराज  भी  नहीं  कर  सकते    भगवान  तो  सर्वव्यापी  हैं  , वे  मनुष्य  हो ,बन्दर  हो  , हर  प्राणी  में  हैं  ,  भगवान  ने  उन्हें  ' तथास्तु '  कहकर  बन्दर  का  रूप  दे  दिया  l  नारद जी  तो  अहंकार  के  मद  में  थे ,  सीधे  स्वयंवर  में  पहुंचे  l  स्वयंवर  में  आए  सभी  राजा  उन्हें  देखकर  मुस्करा  रहे  थे  l  राजकुमारी  भी  उन्हें  देखकर  मुस्कराती  हुई  आगे  बढ़  गई  और  एक  सुन्दर  राजकुमार  के  गले  में  माला  डाल  दी  l  अब  तो  नारद जी  की  निराशा  और  खीज  का  ठिकाना  न  था  l  कामना  ने  रौद्र  रूप  ले  लिया  l  उन्हें  आश्चर्य  भी  था  कि  जब  भगवान  ने  उन्हें  इतना  सुन्दर  रूप  दिया   तो  राजकुमारी  ने  उनके  गले  में  माला  क्यों  नहीं  डाली   ?  उन्होंने  जब  पानी  में  अपनी  सूरत  देखी   तो  उनके  होश  उड़  गए  l  उन्हें  भगवान  पर  बहुत  ही  क्रोध  आया  कि  मैंने  क्या  माँगा  था  और  क्या  दे  दिया  l   क्रोध  में  भरे  हुए  वे  विष्णुलोक  पहुंचे   और  भगवान  पर  बहुत  बरसे  l  जब  थककर  शांत  हुए   तब  तक  भगवान  ने  अपनी  माया  समेट  ली   और  कहा -- अपनी  असफलता  को  मेरी  अनुकम्पा  समझो  , भला  मैं  तुम्हे  अनर्थ  में  कैसे  डुबा  सकता  था  l  नारद जी  पर  से  जब  कामना , महत्वाकांक्षा  का  नशा  उतरा   तब  उन्होंने    इसके  साथ  जुड़े  विनाश  को  समझा   कि  एक  भूल  से  वे  भक्ति  के  चरम  से  गिरकर  धरती  पर  आ  जाते  l  भगवान  ने  भक्त  की  रक्षा  की  l  अब  तो  नारद जी  भक्ति  का  प्रचार  करते  यही  कहते   कि  भजन  भले  ही  कम  करना   पर  लोभ , मोह , अहंकार  और  माया जाल  से  बचकर  रहना  l  

WISDOM

   ऋग्वेद  में  लिखा  है ---- 'अन्तरिक्ष  और  आकाश  से  भी  परे  वह  परमात्मा  अनंत  धैर्य  वाला  है  l वह  सबसे  अधिक  शक्तिशाली  और  सर्वव्यापक  होकर  भी   निर्दोष  की  रक्षा  और  पापी  को  दण्ड  देता  है  l '---------- बात  उन  दिनों  की  है  जब  चीन  में  ब्रिटेन  का  शासन  था  l  शंघाई  के  एक  गुरूद्वारे  में  आत्मासिंह  नमक  इक  ग्रंथी  रहता  था  l  वह  बहुत  सौम्य  और  चरित्रवान  था  और  ईश्वरीय  विधान  पर  उसकी  अटूट  आस्था  थी  l  उसके  पास  बाबासिंह  नमक  एक  व्यक्ति  अक्सर  आता  था   और  उसकी  पत्नी  से  भी  मिलता , बात  करता  था  l  लोगों  को  उसकी  नियत  पर  शक  था   इसलिए  कई  लोगों  ने  उनके  विरुद्ध  आत्मासिंह  के  कान  भरे , कानाफूसी  की  l  आत्मासिंह  का  कहना  था  --- " मुझे  अपनी  धर्मपत्नी  पर  पूर्ण  विश्वास  है  , इसलिए  मुझे  कुछ  करने  की  आवश्यकता  नहीं  l जो  जैसा  करेगा , वो  वैसा  भरेगा  l "  दैवयोग  से  कुछ  दिन  बाद  बाबासिंह  की  किसी  ने  हत्या  कर  दी  l  पुलिस  ने  कुछ  जांच -पड़ताल  कर  के  आत्मासिंह  को  गिरफ्तार  किया  , मुकदमा  चला  l  आत्मासिंह  अपने  निर्दोष  होने  का   कोई  पुख्ता  प्रमाण पत्र  प्रस्तुत  नहीं  कर  सका   इसलिए  कानून  ने   उसे  फांसी  की  सजा  दे  दी  l   फाँसी  के  लिए  शंघाई  से  जल्लाद  न  मिलने  पर  हांगकांग  से  जल्लाद  बुलाए  गए  l  नियत  समय  पर  फाँसी  प्रारम्भ  हुई  l  गले  में  फांसी  का  फंदा  डालकर  जैसे  ही  नीचे  का  तख्ता  हटाया  गया  ,  एक  जोर  से  धड़ाम  की  आवाज  हुई  , रस्सा  बीच  में  से  टूट  गया   और  आत्मासिंह  फर्श  पर  गिरे  , उन्हें  कोई  चोट  नहीं  आई  l  पदाधिकारी  आश्चर्य चकित  रह  गए  l  मामला  ब्रिटिश  काउन्सिल जनरल  सर जान ब्रेनन  के  पास  पहुंचा  l  विशेषज्ञ  बुलाकर  जांच  कराई  गई  लेकिन  कोई  कारण  नहीं  मिला  कि  रस्सा  कैसे  टूटा  l  दूसरा  रस्सा  मंगाया  गया  ,  उसमे  आत्मासिंह  के  वजन  से   चार  गुना  अधिक  वजन  के  पत्थर  रखकर   रस्से  की  परीक्षा  कर  ली  गई  l  दुबारा  फाँसी  की  व्यवस्था  की  गई  l  इस  बार  बड़े -बड़े  उच्च  पदाधिकारी  भी  उपस्थित  थे  l  जैसे  ही  दुबारा   फंदा  डालकर  लटकाया  गया   ,  फिर  से  धड़ाम  की  आवाज  हुई , रस्सा  टूट  गया  और  आत्मासिंह  को  कोई  चोट  नहीं  आई  l  चीन  में  ब्रिटिश  राजदूत  सर ह्यू नाचबुल  ह्युगेशन   ने  कहा --- " आत्मासिंह  निर्दोष  है ,  उसे  फाँसी  नहीं  दी  जा  सकती  l  परमात्मा  स्वयं  उसके  रक्षक  है  l  "  आत्मासिंह  को  मुक्त  कर  दिया  गया  l  

23 August 2022

WISDOM ----

   धर्म  क्या  है  ?  इस  प्रश्न  पर  संसार  में  बहुत  लड़ाई -झगड़े  हैं  l  झगड़ा  वहीँ  होता  है  जहाँ  स्वार्थ  है  ,  जितना  बड़ा  स्वार्थ  उतना  ही  बड़ा  झगडा , दंगा  !  पुराणों  में  अनेक  कथायें  हैं  जिनमें  धर्म  को  विभिन्न  तरीकों  से  समझाया  गया  है  l  महाभारत  में  एक  कथा  है ----- वनवास काल  में  एक  बार  पांडवों  को  प्यास  लगी  l  धर्मराज  युधिष्ठिर  ने  नकुल  को  जल  लाने  भेजा  l  नकुल  ज्यों  ही  सरोवर  का  पानी  पीने  लगे  ,  त्यों  ही  उन्हें  एक  आवाज  सुनाई  दी ---- इस  सरोवर  पर  मेरा  अधिकार  है  ,  पहले  मेरे  प्रश्नों  का  उत्तर  दो  ,  तब  पानी  पीना  l  नकुल  ने  इस  आवाज  पर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया   और  पानी  पीने  की  चेष्टा  करने  लगे  , पर  जल  का  स्पर्श  करते  ही  प्राणहीन  होकर  गिर  पड़े  l  नकुल  के  बहुत  देर  तक  न  लौटने  पर  युधिष्ठिर  ने  सहदेव  को  भेजा  l  उनके  साथ  भी  वैसा  ही  हुआ  l  फिर  अर्जुन  और  उनके  बाद  भीम  आए   वे  सभी  जल  का  स्पर्श  करते  ही  प्राणहीन  होकर  गिर  पड़े  l  अंत  में  युधिष्ठिर  आए   l  पानी  लेने  के  लिए  जैसे  ही  वे  आगे  बढ़े  ,  उन्हें  भी  वही  आवाज  सुनाई  पड़ी  l   युधिष्ठिर  ने  कहा ---- " मैं  किसी  के  अधिकार  की  वस्तु  नहीं  लेता  ,  तुम  जो  प्रश्न  पूछना  चाहते  हो  पूछ  लो  l "  यक्ष  ने  अनेक  प्रश्न  पूछे  ,  युधिष्ठिर  ने  सभी  प्रश्नों  का  उचित  उत्तर  दिया  l  उनके  उत्तरों  से  संतुष्ट  होकर  यक्ष  ने  कहा --- " राजन  !  तुमने  मेरे  प्रश्नों  के  ठीक  उत्तर  दिए  हैं  ,  इसलिए  अपने  भाइयों  में  से   जिस  एक  को  चाहो  ,  वह  जीवित  हो  सकता  है  l  "  युधिष्ठिर  ने  नकुल  को  जीवित  कर  देने  के  लिए  कहा  l  इस  पर  यक्ष  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ  ,  उन्होंने  कहा  --- " युधिष्ठिर  !  तुम  राज्यहीन  होकर  वन  में  भटक  रहे  हो  ,  तुम्हे  अंत  में  शत्रुओं  से  भयंकर  युद्ध  करना  है  ,  ऐसी  दशा  में  अपने  परम  पराक्रमी  भाई  भीम  या  अर्जुन  को  छोड़कर   नकुल  के  लिए  क्यों  व्यग्र  हो  ? "  धर्मराज  युधिष्ठिर  ने  कहा ---- " कुंती  और  माद्री  दोनों  मेरी  माता  हैं  l  कुंती  का  पुत्र  मैं  जीवित  हूँ  l  अत:  मैं  चाहता  हूँ  कि  मेरी  दूसरी  माता  माद्री  का  भी  वंश  नष्ट  न  हो  l  उनका  भी  एक  पुत्र  जीवित  रहे  l  "  यक्ष  युधिष्ठिर  की  धर्म निष्ठां  से  बहुत  प्रसन्न  हुए   और  चारों  पांडवों  को  जीवित  कर  दिया  l   यही  धर्म  है ,  जो  धर्म  की  रक्षा  करता  है  ,  धर्म  स्वयं  उसकी  रक्षा  करता  है  l  

21 August 2022

WISDOM -----

   हमारे  महाकाव्य   हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   लेकिन  मनुष्य  अपनी  मानसिक  विकृतियों  में  इस  तरह  फँसा  हुआ  है   कि  वह  कुछ  सीखना  ही  नहीं  चाहता    इसलिए  गलतियाँ  बार -बार  दोहराई  जाती  हैं   और    कर्म  का  फल  तो  ईश्वरीय  व्यवस्था  है  l   रावण  परम  शिव भक्त  था  ,  वेद  , शास्त्रों  का  ज्ञाता   महा विद्वान्  था    l   वह  कुशल राजनीतिज्ञ  और  अस्त्र -शस्त्र का  ज्ञाता , देवी का  भक्त  था  ,  अनेक  गुणों  से  संपन्न  था  l  ऋषि  पुत्र  था   लेकिन  स्वयं  को  राक्षस राज  रावण  कहने  में  गर्व  महसूस  करता  था   l  अपनी  प्रवृति  के  अनुरूप  उसने  ऋषियों  पर  बहुत  अत्याचार  किए ,  शनि  और  राहू  तक  को  कैद  कर  लिया   l  उसके  प्रतिनिधि  राक्षस   सब  तरफ  बहुत  आतंक  मचाते  थे   l    अनेक  पाप कर्मों  के  बावजूद  उसकी सोने  की  लंका  कायम  थी  , उसका  विशाल  साम्राज्य  था   l    उसका  पतन  कब  से  शुरू  हुआ   ?  जब  उसने  सीताजी  का  हरण  किया   l  नारी  पर  अत्याचार  प्रकृति  बर्दाश्त  नहीं  करती   l  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नाती  ,  रावण  के  पूरे  वंश  का  अंत  हो  गया   l  इसी  तरह  महाभारत  में  में  दुर्योधन   ने  पांडवों  पर  बहुत  अत्याचार  किए ,  अनेक  षड्यंत्र  रचे  l  इसके  बावजूद  स्थिति  सामान्य  ही  रही   लेकिन  जब  उसने  भरी  सभा  में  द्रोपदी  को  अपमानित  किया   , उसी  पल  से  महाभारत  की  शुरुआत  हो  गई   और  उसने  स्वयं  ही  अपने  हाथ  से  कौरव  वंश  के  अंत  का  दुर्भाग्य  लिख   लिया   l  आज  भी  संसार  में  नारी  पर  बहुत  अत्याचार  होते  हैं  ,  मानसिक  विकृति  इस  हद  तक  है  कि  बच्चियां  भी  सुरक्षित  नहीं  हैं  l  परिवार  हो , समाज  हो  या   सभ्यताएं  ,   अपने  अंत  की  कहानी  स्वयं  ही  लिखते  हैं   l   

WISDOM ------

     अनमोल  मोती ------ तुर्की  के  एक  अमीर  के  पुत्र  खुसरो  को  सत्यान्वेषण  की  ऐसी  धुन  लगी   कि  वह  सब  जायदाद ,  ऐश्वर्य   सब  छोड़कर  फकीर  बन  गया   l  उसे  किसी  सत्पुरुष  की   तलाश  थी  ,  जो  उसका  आध्यात्मिक  मार्गदर्शन  कर  सके  l  संयोगवश  उसकी  भेंट  हजरत  निजामुद्दीन  औलिया   से  हुई   l  दोनों  ने  एक  दूसरे  को  पाकर  संतोष  व्यक्त  किया   l  औलिया   को  लगा  कि   अब  एक  सत्पात्र  शिष्य  मिल  गया   l  फिर  भी  परीक्षा  लेनी  जरुरी  थी   l  औलिया  ने  कहा  ----- " तुम  विद्वान्  हो  l   इतनी  भाषाएँ -- अरबी , फारसी , संस्कृत  व  अन्य  हिन्दुस्तानी   भाषाएँ   भी  तुम्हे  आती  हैं   l  तुम्हे  राजदरबार  जाना  चाहिए    l  "   खुसरो  ने  कहा ------     " मैं   सब  छोड़कर   आपके  दरबार  में  आया  हूँ   l  मुझे  किसी  शाही  दरबार  की  जरुरत  नहीं   l  "  हजरत  औलिया  ने   उत्तर  से  प्रसन्न  होकर   उसे  शिष्य  के  रूप  में  स्वीकार  कर  लिया   l   आध्यात्मिक  क्षेत्र  की  प्रगति  गुरु  के   मार्गदर्शन  में  चलती  रही   l  हिंदुस्तान  की  तब  की  स्थिति  को  देखते  हुए   हजरत  साहब  ने  खुसरो  से  कहा  ----- " मैं  तुम्हे  अपने   लिए  ,  देश  के  लिए  कुरबान  करना  चाहता  हूँ   l  तुम  हिन्दू - मुस्लिम  के  बीच  फैली   नफरत  की  आग  को  बुझाओ   l  पूरे  हिंदुस्तान  का  दौरा  करो   l  वह  फिजा  बनाओ   कि  पूरा   राष्ट्र  एक  रह  सके   l  "  अमीर  खुसरो   गुरु  का  आदेश  मानकर  देश  के  कोने -कोने  में  गए   ,  संस्कृति  और  मान्यताओं  से  जुड़े   अपने  गीत  सुनाए   l  तत्कालीन  राष्ट्रीय  एकता  में  खुसरो  का  बड़ा  हाथ  रहा  है   l  आज   भी   भारत  ही  नहीं नहीं ,  पूरे  विश्व  को   अनेक  अमीर  खुसरो   की  जरुरत  है  l 

20 August 2022

WISDOM -----

   अनमोल  वचन -----  ' उल्लू  को  दिन  में  नहीं  दीखता   और  कौए  को  रात  में  नहीं  दीखता    लेकिन  कामांध  और  स्वार्थान्ध  को   न  दिन  में  दीखता  है  ,  न  रात  को  l  "   

 " पुण्यात्मा  के  सत्संग  से  भले  ही  पापी  में  परिवर्तन  न  आए  ,  पर  पापी  की  घनिष्ठता   आग  की  तरह  जलाए  बिना   नहीं  रहती   l  " 

"  जिस  प्रकार  सूखे  बाँस  आपस  की  रगड़  से  ही  जलकर  भस्म  हो  जाते  हैं  ,  उसी  प्रकार  अहंकारी  व्यक्ति   आपस  में  टकराते  हैं   और  कलह  की  अग्नि  में  जल  मरते  हैं   l " 

 " पाप  पहले  आकर्षक  लगता  है   l  फिर  आसान  हो  जाता  है   l  इसके  बाद  आनंद  का   आभास  देने  लगता  है   तथा  अनिवार्य  प्रतीत  होता  है  l  क्रमशः   वह  हठी  और  ढीठ  बन  जाता  है   l  अंततः  सर्वनाश  कर  के  छोड़ता  है   l  "  

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " चिन्तन  और  चरित्र  यदि  निम्न  स्तर  का  है   तो  उसका  प्रतिफल  भी  दुःखद .  संकट ग्रस्त  एवं  विनाशकारी  होगा   l  उन  दुष्परिणामों  को  कर्ता      स्वयं  तो  भोगता  ही  है  ,  साथ  ही  अपने  सम्बद्ध  परिकर   को  भी  दलदल   में  घसीट  ले  जाता  है   l  नाव  की  तली  में  छेद  हो  जाने  पर   उसमे  बैठे  सभी  यात्री   मँझदार  में  डूबते  हैं   l  स्वार्थी , विलासी  और  कुकर्मी   स्वयं  तो   आत्म -प्रताड़ना , लोक -निंदा   और  दैवी  दंड विधान  की   आग  में  जलता  ही  है  ,  साथ  ही  अपने  परिवार  , संबंधी , मित्रों , स्वजनों  को  भी  अपने  जाल - जंजाल  में  फंसाकर   अपनी  ही  तरह  दुर्गति   भुगतने  के  लिए  बाधित  करता  है   l  इससे  समूचा  वातावरण   विकृत ,  दुर्गंधित   होता  है   l  प्रत्येक  व्यक्ति  समाज  पर  अपना  भला -बुरा  प्रभाव  छोड़ता  है  , किन्तु  सुगंध   की  अपेक्षा   दुर्गन्ध  का   विस्तार  अधिक  होता  है   l   एक  नशेवाला , जुआरी , कुकर्मी , व्यभिचारी   अनेकों  संगी -साथी  बना  सकने  में   सहज  सफल  हो  जाता  है   लेकिन  आदर्शों  का , श्रेष्ठता  का   अनुकरण  करने  की  क्षमता  हल्की  होती  है   l  पानी  नीचे  की  ओर  तेजी  से  बहता  है   लेकिन  ऊपर  चढ़ाने  के  लिए  प्रयास  करना  पड़ता  है   l  गीता  पढ़कर  उतने  आत्मज्ञानी   नहीं  बने   जितने  कि   दूषित  साहित्य , अश्लील  द्रश्य  और  अभिनय   से  प्रभावित  होकर   कामुक  अनाचार  अपनाने  में  प्रवृत  हुए   l    कुकुरमुत्तों  की  फसल  और  मक्खी -मच्छरों   का  परिवार  भी  तेजी  से  बढ़ता  है   पर  हाथी  की  वंश  वृद्धि   अत्यंत  धीमी  गति  से  होती  है   l  

19 August 2022

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " समाज  में  छाये  हुए   अनाचार , असंतोष  और  दुष्प्रवृतियों   का   मात्र  एक  ही  कारण  है   कि   जन  साधारण  की  आत्मचेतना  मूर्च्छित   हो  गई  है   l   समुद्र  के  बीच  में  खड़ा  प्रकाश स्तम्भ   बुझ  जाये   तो  फिर  उस  क्षेत्र  में  चलने  वाले   जलयान  चट्टान  से  टकराकर   दुर्घटना ग्रस्त  होंगे  ही   l  "       आचार्य न्श्री  लिखते  हैं ----- ' धूर्तता  के  बल  पर   आज  कितने  ही  अपराधी  प्रवृति  के  लोग   क़ानूनी  दण्ड  से  बच  निकलने   में  सफल  हो  जाते  हैं   l  लेकिन  असत्य  का  आवरण   अंतत:  फटता  ही  है   l  जनमानस   में  व्याप्त  घ्रणा  का   सूक्ष्म  प्रभाव   उस  मनुष्य  पर   अद्रश्य   रूप  से   पड़ता  है   l  जिसकी  आत्मा  धिक्कारेगी   उसके  लिए  देर -सबेर   सभी  कोई  धिक्कारने   वाले  बन  जायेंगे  l  ऐसी  धिक्कार  एकत्रित  कर  के   यदि  मनुष्य   जीवित  भी  रहा  तो   उसका  जीवन  न  जीने  के  बराबर  है   l  विपुल  साधन -संपन्न   होते  हुए  भी   व्यक्ति  इसी  कारण   सुख  शांति  पूर्वक   नहीं  रह  पाते    क्योंकि   उन  उपलब्धियों  के  मूल  में   छुपी  अनैतिकता   व्यक्ति  की  चेतना  को   विक्षुब्ध  किए  रहती  है    l  '   

18 August 2022

WISDOM -----

      पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ------ "  कायरता  मनुष्य  का  बहुत  बड़ा  कलंक   है   l   कायर  व्यक्ति  ही  संसार  में  अन्याय , अत्याचार  तथा  अनीति  को  आमंत्रित   किया  करते  हैं  l  संसार  के  समस्त  उत्पीड़न  का   उत्तरदायित्व   कायरों  पर  है  l   "      कायरता  इस  सीमा  तक  है   कि    युद्ध  में  वीरता  के  नाम  पर  संसार  में     युद्ध   की  आड़  में  महिलाओं  पर  अत्याचार  सर्वाधिक  होते  हैं   l  पुरुष  को  सबसे  ज्यादा  भय  महिलाओं  से  है   कि   कहीं  उनका  व्यक्तित्व   पुरुष  से  प्रखर  न  हो  जाये ,  कहीं  महिलाएं   योग्यता  में , विचारों  में  पुरुष  से  आगे  न  हो  जाएँ  ,-----   पुरुषों  के   इस   भय  के  कारण  ही  परिवारों  में  , विभिन्न  संस्थाओं  में   , समाज  में  महिलाओं  को  शोषण , उत्पीड़न  का  सामना  करना  पड़ता  है   l   जब  तक   महिलाओं  के  हित  में  कानून  नहीं  थे  तब  तक   उन  पर  अत्याचार  खुलेआम  होते  थे ,  सती -प्रथा ,  बाल -विवाह ,  विधवाओं  की  दयनीय  स्थिति  --- इतिहास  के  पन्ने    इन  आंकड़ों  और  आहों  से  भरे  हुए  हैं   l  हर  जाति , हर  धर्म  ने  महिलाओं  को  सताया  है  ,  सबके  तरीके  अलग -अलग  हैं  l   अब  महिलाओं  के  हित  में  अनेक  कानून  बन  गए ,  लेकिन  कानून  बन  जाने  से  मानसिकता  नहीं  बदलती   l    पुरानी  आदतें  छूटती  नहीं  हैं ,  पीढ़ी -दर -पीढ़ी  संस्कार  रूप  में  आती  हैं   l    मानसिकता  वही  है  अत्याचार   करने  की   , उत्पीड़ित  करने  की    लेकिन  अब  इस  आधुनिक  समाज  में  स्वयं  को   सभ्य  , सुसंस्कृत    और  सज्जन  पुरुष  दिखाने  की  होड़  है   l  कहते  हैं   अच्छाई  में  गजब  का  आकर्षण  होता  है    इसलिए  बुरे  से  बुरा  व्यक्ति  भी   अच्छाई  का  मुखौटा  लगाकर  घूमता  है    l  इस  मुखौटे  ने  उनकी  वीरता  को  छीन  लिया   ,  अब  महिलाओं  को  सताने  के  लिए  छल -कपट , षड्यंत्र ,  धोखा , फरेब  ----- आदि  अनेक  तरीकों  का  इस्तेमाल  होता  है  ,    सूचना    तंत्र  के  आविष्कारों   ने   इसे  और  भी  अधिक  सरल  बना  दिया  है  l   फिर  तंत्र -मन्त्र ,  काला  जादू  आदि  को  चाहे  कानून  मान्यता  न  दे    लेकिन    असंख्य    बाबा -वैरागी  इसी  की    दम  पर   पूरे  संसार  में  हैं   l    समस्या  तो  बहुत  विकट  है  ,  इसका  समाधान  पुरुष  के  हाथ  में  है   l   स्थान -स्थान  पर  पुरुषों  के  सुधार  के  कैम्प  लगने  चाहिए   l  यदि  आने  वाली  पीढ़ियों  को   आदर्श   चाहते  हैं   तो  स्वयं  अच्छे  बनों  ,  विचारों  से  भी  और  आचरण  से  भी   l  क्योंकि  बच्चे  अपने  माता -पिता  का  ही  प्रतिरूप  होते  हैं  ,  बबूल  के  पेड़  में  कभी  आम  नहीं  लगता   l    

17 August 2022

WISDOM

   मनुष्य  को  भगवान  ने  बहुत  कुछ  दिया  है   l  बुद्धि  तो  इतनी  दी  है   कि  वह  संसार  के  सम्पूर्ण  प्राणियों  का   शिरोमणि  है   l  लेकिन  मनुष्य  अपनी  इस  बुद्धि  का  दुरूपयोग  सर्वप्रथम  अपनी  ही  असलियत  छुपाने  में  करता  है   l  वह  अपने  वस्त्रों , अपना  धन -वैभव   अपने  तौर - तरीकों  से  स्वयं  को   समाज  का  सभ्य  और  सम्मानित  प्राणी  दिखाता  है    और  इन  विभिन्न  आवरणों  के  पीछे  कितनी  कालिमा  है  ,  उसे  छुपा  जाता  है  l  यदि  बाहर  से  अच्छे  दिखने  वाले  वास्तव  में  उतने  अच्छे  होते   तो  परिवारों  में  , समाज  और  संसार  में  इतनी  अशांति  न  होती   l  बर्नार्ड  शा   के  एक  नाटक  ' मिसेज  वरेंस  प्रोफेशन  '  में  समाज  में   फैली  दुष्प्रवृत्तियों  पर  आक्रमण  किया  गया  है   l  उसमे  दिखाया  गया  है   कि  जो  लोग  समाज  में  ऊपर  से   ' सज्जन  '  और  ' सभ्य '   बने  रहते  हैं   उनमें  से  कितनों  का  ही   भीतरी  जीवन   कैसा  पतित  होता  है   l     इस  नाटक  की  मुख्य  शिक्षा  यही  है  कि   ' दुरंगा '     व्यक्तित्व  रखना  नीचता  का  लक्षण  है   l  मनुष्य  जैसा  विश्वास  रखता  हो    ,  उसे  वैसा  ही  जीवन  व्यतीत  करना  चाहिए   l    '      पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  भी  लिखा  है  -----  ' सचमुच  में  अपने  को   सभ्य  कहने   वाला  मनुष्य   आज  कितना  बनावटी  हो  चला  है  l  बात -बात  पर  अभिनय  करने  वाला  ,  समय - समय  पर  भिन्न  -भिन्न  मुखौटे   ओढ़ने   की  विडम्बना  में   फँसा  हुआ  है  l  उसके  जीवन  का  सारा  रस  इस  दोहरेपन  ने  सोख  लिया  है  l   "

16 August 2022

WISDOM ----

   एक  ऋषि  अपने  शिष्य  के  साथ   किसी  यात्रा  पर  जा  रहे  थे   l  वे  उस  नगर  के  पास  से  गुजरे   जहाँ  के  राजा  को   कुछ  दिन  पूर्व  युद्ध  में  मार  दिया  गया  था  l  राज -प्रासाद  जो  कभी  हास -विलास  का   केंद्र  था  ,  आज  भूत -प्रेतों  का   वास  बना  हुआ  था   l  खंडहर  देखकर  ऋषि  ने  कहा ---- " कितना  भयंकर  लगता  है  यह  स्थान  ,  आदमी  की  गति  न  होने  से   स्थान  नीरव  और  उदास  लगते  हैं  l  पता  नहीं  उस  दिन  धरती  की  स्थिति  क्या  होगी  ,  जिस  दिन  पृथ्वी   से  मानव  का  अस्तित्व  उठ  जायेगा   l  "    शिष्य  ने  प्रश्न  किया  ---- " क्या  यह  संभव  है    भगवान  कि   पृथ्वी  जन शून्य  हो  जाएगी   ? "    ऋषि  ने  उत्तर  दिया  ----- " हाँ   वत्स  !  यह  संभव  है  l  लाखों -करोड़ों  आदमी  भले  ही  न   मरें  ,  पर  जिस  जिस  दिन   धरती  से  उन  आदमियों  का   अन्तर्धान  हो  जायेगा  ,  जिनके  आधार  पर   मनुष्यता  और  धरती  की  प्रतिष्ठा  है   l  जिस  तरह  यहाँ  राजा  के  न  होने  से    तमाम   लोगों  की  हलचल  का  महत्त्व  नहीं  रहा  ,  उसी  तरह   प्राणप्रद   पुरुषों  के   न  होने  से    धरती  की  शोभा  जाती  रहती  है   l    संसार  की  गति  उसमें  बसने  वाले     साधारण  आदमियों  से  नहीं   है  ,  बल्कि   उस  आदमी  के  कारण  है  ,  जिसकी  स्फूर्ति  से   अनेक  आदमियों  के  जीवन   सही  दिशा  में  चलते  हैं   l  उनका  न  रहना  और  संसार  का  प्रेतवास   बनना  एक  समान  है   l  "  

WISDOM

  लघु -कथा --- निर्भयता  के  सामने  ब्रह्म राक्षस  भी  पराजित  हुआ  -----  राजा  विक्रमादित्य  ने   आयु  के  चौथेपन  में  संन्यास  ले  लिया   और  वे  अवधूत  का  जीवन  व्यतीत  करने  लगे  l   उनके  स्थान  पर  जो  भी  राजा  बैठता , उसे  भयंकर  ब्रह्मराक्षस   रात्रि  के  समय  मार  डालता  l   इस  प्रकार  कितने  ही  राजाओं  की  मृत्यु  हो  गई   l  भेद  कुछ  खुलता  ही  नहीं  था  l    अत: मंत्रियों  आदि  ने   राजा  विक्रमादित्य  को  खोज  निकालने  और   समस्या  का  हल  निकालने  का  निश्चय  किया   l  खोजने  पर  वे  एक  स्थान  पर  मिल  गए  ,  उन्हें  सारी  स्थिति  समझाई  गई  l  विक्रमादित्य  ने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  ब्रह्म राक्षस  की  करतूत  समझ  ली   l  उनने  रात्रि  में  शयन कक्ष  के  बाहर   इतने पकवान -मिष्ठान  रखवा  दिए   कि  उन्हें  खाकर   उसका  पेट  भर  गया   l  फिर  भी  राजा  को  मारने  शयन कक्ष  में   पहुँच  गया   l  विक्रमादित्य  बहुत  बुद्धिमान  थे  , उन्होंने  ब्रह्मराक्षस   को  पलंग  पर  बैठाया   और  वार्तालाप  में  लगाया   l  राजा  ने  उसकी  भूख  बुझाने  का  उपयुक्त  प्रबंध   करा  देने  का  भी  आश्वासन  दिया   l  साथ  ही  मित्रता  की  शर्त  के  रूप  में   यह  वर  माँगा  कि  वह  उनकी  आयु  बता  दे   l  ब्रह्मराक्षस  ने  सौ  वर्ष  बताई   l  राजा  ने  कहा  ---- इनमें  से  आप  दस  वर्ष  घटा  या  बढ़ा  सकते  हैं  क्या   ?  उसने  मना  कर  दिया  और  कहा  कि  यह  कार्य  तो  विधाता  का  है   l  विक्रमादित्य  तलवार  निकाल  कर  खड़े  हो  गए   और  कहा   कि  जब  आयु  निर्धारित  है  ,  तो  तुम  मुझे  कैसे  मार  सकते  हो   ?   निर्भय  राजा  के  सामने  राक्षस  सहम  गया   और  वहां  से  उलटे  पैरों  भाग  खड़ा  हुआ   l  इसके  बाद  राजगृह  में   प्रवेश  करने  का  साहस  उसने  कभी  नहीं  किया   l   

15 August 2022

WISDOM -------

    सम्राट  चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य   के  समय  में   चीनी  यात्री  फाह्यान  भारत  आया  था  l  तीन  वर्ष  तक  वह  मगध  की  राजधानी  पाटलिपुत्र  में  रहा  l    चन्द्रगुप्त  विक्रमादित्य   की  महानता , कुशल  शासन  प्रबंध  और   भारतीय  जनता  की   उच्च  सामाजिक  और  मानवीय  चेतना  का   वृतान्त  उसने  चीन  में  अपने  मित्र   को  सुनाया  था   l  उसने  इस  वृतान्त  को   लिपिबद्ध  कर  लिया  था  l  जो  आज  उस  समय  की  हमारी   सभ्यता , संस्कृति , धर्म  और  सामाजिकता   की  उच्चता   का  प्रमाणिक  दस्तावेज  है   l   उसकी  कुछ  पंक्तियाँ  हैं -------- " अनेकों  बार   मैं  ऐसे  प्रदेशों  से  गुजरा  हूँ  ,  जहाँ  मुझे  अपने  लूटे  जाने   का  भय   उपजा  था    क्योंकि  मेरे  पास   सम्राट  और  अतिथि  सत्कार  प्रिय  नागरिकों  द्वारा   भेंट  किए  गए   बहुमूल्य  वस्त्र -आभूषण   और  मूल्यवान  पुस्तकें  थीं  l  अकेले  सुनसान  जंगलों  और   वीरान  सड़कों  से  गुजरते  हुए   मेरे  मन  में  ऐसी  आशंका  उत्पन्न  हो  जाती  थी   कि  कोई  मुझे  लूट  लेगा   l  लेकिन  जो  भी  मिला   उसने  सहायता  ही  की   l  किसी  ने  भी  मुझे  परेशान  नहीं  किया   और  विनम्र   शब्दों  में   अपना  आतिथ्य   स्वीकार  करने  का  आग्रह  किया   l  कितने  अच्छे  हैं  यहाँ  के  लोग --- सभी , सुसंस्कृत ,  शिष्ट  और  उदार  ,  तभी  तो   सम्रद्धि  इनके  चरण  चूमती  है  l   ------- संपन्न  होते  हुए  भी  ये  लोग  धन  को  नहीं , चरित्र  को  महत्त्व  देते  थे   l  सत्य  और  नैतिकता  पालने  वाला   व्यक्ति   ही  समाज  में  सम्मानित  माना   जाता  था    l  व्यक्ति  की   महत्ता  का  आधार   उसका  चरित्र  था ,  धन  नहीं   l   लोग  मांस , मदिरा  का  सेवन  नहीं  करते  थे   l  ------- "    फाह्यान  के  वर्णन  से  पता  चलता  है  कि  वो  काल   हमारी  सभ्यता  और  संस्कृति  के  चरम -उत्कर्ष  का  काल  था   l         आज  हमें  आत्म  अवलोकन  करने  की  जरुरत  है   कि  हम   कहाँ  थे   और   क्या     हो  गए  ?    किसी  भी  जाति  , धर्म   का  अस्तित्व  उसकी  संख्या  पर  नहीं ,  उसके  चरित्र  पर  निर्भर  करता  है   l     छल - कपट , धोखा , बेईमानी ,   षड्यंत्र  ,  दूसरों  का  हक   छीनना  ,  दूसरा   कोई  सुखी  न  रहे   इसलिए  उसके  परिवार  में  फूट  डलवा  देना ,   घरेलू  हिंसा  , शोषण  , अपहरण , बलात्कार ,  झूठ , बेईमानी  ,  भ्रष्टाचार    छोटे -बड़े  घोटाले   ,   कला  और  साहित्य  में  अश्लीलता  ,   विभिन्न   अपराधिक  कार्य  -------- किस  जाति  और  किस  धर्म  में  ज्यादा  हैं   ?    इसके  लिए  किन्ही  फाइलों  में  आंकड़ों  को  नहीं  तलाशना  है    l    हम  किसी  भी  जाति  या  धर्म  के  हों    हमें  अपने  ही  अंतर  को  टटोलने  की  ,  अपने  ही  ह्रदय  में  झाँकने  की  जरुरत  है   l    ----- अंत  में  एक  ही  सत्य  समझ  में  आएगा    कि  संसार  में  एक  ही  जाति  है ----- मानवीयता    और  एक  ही  धर्म   है ----- इंसानियत   l  l  जब  अति  हो  जाती  है    फिर  भगवान  का  डंडा  पड़ेगा   तो    , बस  !  यही  बचेगा   ' मानव  धर्म  '  l   हम  इनसान  बनें  ,  उसी  में  जीवन  की  सार्थकता  है   l  

13 August 2022

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी   , महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग  '  में   लिखते  हैं  ----- 'पराधीनता  मनुष्य  के  लिए  बहुत  बड़ा  अभिशाप  है  ,  वह  चाहे   व्यक्तिगत  हो  या  राष्ट्रीय  l  उससे  मनुष्य  के  चरित्र  का  पतन  हो  जाता  है   और  तरह -तरह  के  दोष  उत्पन्न  हो  जाते  है   l  इसलिए  कवियों  ने   पराधीनता  को  एक  ऐसी   ' पिशाचनी  '  की  उपमा   दी  है  जो  मनुष्य  के   ज्ञान , मान , प्राण   सबका  अपहरण  कर  लेती  है  l                  दूसरे  को  पराधीन  बनाना   संसार  में  सबसे  बड़ा  अन्याय  और  दुष्कर्म  है  l  भगवान  ने  संसार  में  अनेक  प्रकार  के   छोटे -बड़े , निर्बल -सबल , मुरका -चतुर   प्राणी  बनाये  हैं   l    ईश्वरीय  नियम  तो  यह  है   कि  जो  अपने  से  छोटा , कमजोर , नासमझ  हो   उसको   आगे  बढ़ने  में  ,   उन्नति  करने  में  सहायता  दी  जाये  ,  प्रगति  के  क्षेत्र  में  उसका  मार्गदर्शन  किया  जाये    पर  इसके  विपरीत   जो  कमजोर  को  अपना  भक्ष्य  समझते  हैं  ,  छल -बल  से    उनके    स्वत्व  का  अपहरण    करने  को  ही  अपनी   विशेषता  समझते  हैं  ,  उन्हें  कम -से -कम     ' मानव ' पद  का  अधिकारी  तो  नहीं  कह  सकते   l  इनकी  गणना  तो  उन  क्रूर  , हिंसक  पशुओं  में  की  जा  सकती  है  ,  जिनका  स्वभाव  ही  खूंखार  बनाया  गया  है   और  जो  सब  के  लिए  भय  का  कारण  होते  हैं   l  '

WISDOM ------

   गुलाम  बनाना  एक  मानसिकता  है   l  फिर  चाहे  एक  राष्ट्र  दूसरे  राष्ट्र  को  गुलाम  बनाए  या   परिवार   या   हर  छोटी  बड़ी  संस्था  में  ऐसे  लोग लोग  होते  हैं   जो  चाहते  हैं    कि  सब  लोग  उनके  हिसाब  से  चलें l  उनके  अनुसार  न  चलो  तो  चैन  से  जीने  न  देंगे   l  एक  राष्ट्र  तो  संघर्ष  कर  के   आजाद  हो  भी  जाता  है   लेकिन   ये  जो  व्यक्तियों  में   गुलाम  बनाने  की  प्रवृति  है   उससे  आजादी  तभी  हो  सकती  है   जब  विचारों  में  परिवर्तन  हो  ,  चेतना  का  परिष्कार  हो   l  परिवारों  में   देखें  तो  माता -पिता  अपने  बच्चे  का  सुखद  भविष्य  अवश्य  चाहते  हैं   लेकिन  अपनी  इच्छाओं  के  लेकर , समाज  में  अपने  स्टेट्स  को  लेकर  इतने  कठोर  हो  जाते  हैं  कि  उनकी  इच्छानुसार  बच्चे  को  डॉक्टर , इंजीनियर  बनना  ही  है   फिर  चाहे  उसका  मन  न  हो   l  इसका  परिणाम  हमें  समाज  में  देखने  को  मिलता   l  युवाओं  में  आत्महत्या  और  नशे  की  प्रवृति  बढ़  रही  है  l  महिलाओं  की  आजादी  एक  दिखावा  है   l  पुरुष  ने  महिलाओं  को  प्रदर्शन  की  वस्तु  बना  दिया  है  ,  अंग  प्रदर्शन  की  तो  जैसे  बाढ़  आ  गई  है   l  पुरुष  अपने  स्वार्थ  के  लिए   अपनी  ही  भारतीय  संस्कृति  को  मिटाने  को   आतुर  हैं  l   महिलाएं  अपनी  महत्वाकांक्षा  के  कारण   किसी  पद  पर  पहुँच  भी  जाती  हैं   तो  वे  स्वयं  जानती  हैं   कि  कितने  पापड़  बेलने  पड़े  हैं  l  फिर  अधिकांश  जगह  वे  केवल  हस्ताक्षर  करने  के  लिए  हैं  ,  उनके  विचार  की  कोई  अहमियत  नहीं  है  l  घरेलु  हिंसा , उत्पीड़न  की  क्या  कहें   वो  तो  जग जाहिर  है  l   यह  गुलामी  तभी   समाप्त  होगी   जब  लोगों  की  चेतना  विकसित  होगी ,  उनमे  आत्मविश्वास  होगा  ,  आवश्यकताएं  सीमित  होंगी  l  एक  नया  समाज  हो ----- ' जियो  और  जीने  दो  l '

11 August 2022

WISDOM

   अनमोल  मोती ------ पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ------ " व्यक्ति  जब   अपनी  योग्यताओं  और  क्षमताओं  को   अपने  लिए  ही   सीमित , संकुचित  न  रखकर   राष्ट्र  व  समाज  के  स्तर  पर   नियोजित  करता  है   तो  वह  निश्चित  रूप  से  श्रेय  व  सम्मान  का  अधिकारी  बनता  है   l  सरदार  पटेल  इस  द्रष्टि  से  निश्चित  ही  उस  श्रेय   तथा  सम्मान  के  अधिकारी  हैं   जो  उन्हें  दिया  जाता  है   l   स्वतंत्रता  के  पहले  तथा  स्वतंत्रता  के  बाद  राष्ट्रोत्थान  में   उनकी   अनूठी  भूमिका  रही   l  इस  भूमिका  का  आधार   उनका  त्याग , तप ,  उनकी  निष्ठां ,  भक्ति  आदि  थी  l  " ----------- घटना   1946   की  है   l  बम्बई  बंदरगाह  के   नौसैनिकों  ने  विद्रोह  का  झंडा  खड़ा  कर  दिया   l  अंग्रेज  अधिकारियों  ने  उन्हें  गोली  से  भून   देने  की  धमकी  दी   थी  साथ  ही   भारतीय  -नौसैनिकों  ने   जवाब  में  उनको  खाक  कर  देने  की  चुनौती  दे  रखी  थी  l  उस  समय  वहां  की  व्यवस्था  देखने   की  जिम्मेदारी  सरदार  पटेल  के  हाथ  में  थी  l  लोग  उनकी  तरफ  बड़ी  घबड़ाई    नजरों  से  देख  रहे  थे  l  किन्तु  सरदार  पटेल  पर   परिस्थिति  का  रंच -मात्र  भी  प्रभाव  नहीं  पड़ा  l  वे   न  तो  अधीर  थे  और  न  विचलित  l  बम्बई  के  गवर्नर  ने  उन्हें   बुलाया   और  काफी  तुर्सी  दिखाई   l  इस  पर  सरदार  पटेल  ने   शेर  की  तरह  दहाड़  कर   गवर्नर  से  कह  दिया   कि  वे  अपनी  सरकार  से  पूछ  लें   कि  अंग्रेज  भारत  से   मित्रों  के  रूप  में  विदा  होंगे   या  लाशों  के  रूप  में   l  अंग्रेज  गवर्नर  सरदार  का  रौद्र  रूप   देखकर  कांप  उठा    और  फिर  उसने  कुछ  ऐसा  किया    कि  बम्बई  प्रसंग  में   अंग्रेज  सरकार  को   समझौता  करते  ही  बना   l   

10 August 2022

WISDOM -----

   न्यूयार्क  के   पत्र   " नेशन "  ने  बहुत  वर्ष  पहले   महात्मा  गाँधी   के  वास्तविक  महत्त्व  को  समझ  कर  लिखा  था ------ " वर्तमान  युग  में   जब  संसार  के  लोग  वैज्ञानिक  चमत्कारों  पर  ही  विशेष   जोर  दे  रहे  हैं  ,  भारतवर्ष  का  यह  वीर   और  तपस्वी  नेता   अपने  सात्विक  गुणों   और  आत्मशक्ति  के  कारण   देश  और  विदेश  में  अत्यधिक  सम्मान  प्राप्त  कर  रहा  है  l  जिस  समय  पाश्चात्य    सभ्य  राष्ट्र   अपनी  प्रतिष्ठा  बनाए  रखने  के  लिए   युद्ध  के  अतिरिक्त   और  कोई  मार्ग  जानते  ही  नहीं   उस  समय  महात्मा  गाँधी   अपने  राष्ट्रीय  आन्दोलन  को   ' अहिंसात्मक  असहयोग  '  के  पथ  पर  चला  रहे  हैं   l  वे  कहते  हैं  कि  भारत  को  रक्तपात  से  ही  स्वराज्य   मिल  सकता  है  ,  तो  हम  दूसरों  के  बजाय   अपना  ही  रक्त  क्यों  न  बहाएं   ? "    गाँधी जी  कहते  थे   ---'हम  दूसरों  को  न   मारकर  ,  स्वयं  अपने  ही  प्राण  देकर   स्वतंत्रता  को  प्राप्त  करेंगे   l '  गाँधी जी  की  यह  घोषणा  सुनकर  ब्रिटिश  सरकार   तो  क्या  पूरा  संसार  ही  चक्कर  में  आ  गया  l   वे  वर्तमान    राजनीति  और  युद्धनीति  को  बदल  देना  चाहते  थे   l  महापुरुष  टालस्टाय  लिखते  हैं ---- " वर्तमान  काल  में   एकमात्र  गाँधी जी   ईश्वरीय  प्रतिनिधि  हैं    l  

WISDOM -----

    अनमोल  मोती  -----  रक्षाबंधन  का  पुनीत  पर्व  l  बीकानेर  नरेश  का  दरबार  लगा  हुआ  था  l  राजद्वार  पर  ब्राह्मणों  की  लम्बी  कतार  थी   l  उन्ही  ब्राह्मणों  के  मध्य  पं. मदनमोहन  मालवीय जी  भी  एक  नारियल  लिए  खड़े  थे   l  प्रत्येक  ब्राह्मण  नरेश  के  पास  जाकर  राखी  बाँधता   और  दक्षिणा    लेकर  ख़ुशी -ख़ुशी  घर  लौटता  जा  रहा  था   l  मालवीय  जी  का  नंबर  आया  तो   वे  नरेश  के  समक्ष  पहुंचे  ,  राखी  बाँधी  , नारियल  भेंट  किया   और  संस्कृत  में  स्वरचित  आशीर्वाद  दिया   l  नरेश  के  मन  में   इस  विद्वान्  ब्राह्मण  का  परिचय  जानने  की  जिज्ञासा  हुई   l  जब  उन्हें  मालूम  हुआ  कि   यह  तो  मालवीय जी  हैं   तो  वह  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  मन  ही  मन   अपने  भाग्य  की  सराहना  करने  लगे   l   मालवीय  जी  ने  विश्वविद्यालय  की  रसीद  बही  उनके  सामने  रख दी  l  उन्होंने  भी  तत्काल  एक  सहस्त्र  मुद्रा  लिखकर  हस्ताक्षर  कर  दिए   l   नरेश  अच्छी  तरह  जानते  थे  कि  मालवीय  जी  द्वारा  संचित  किया  हुआ   सारा  द्रव्य   विश्वविद्यालय   के  निर्माण  में  ही  व्यय  होने  वाला  है   l  मालवीय जी  ने  विश्वविद्यालय  की  समूची  रुपरेखा  नरेश  के  सम्मुख  रखी   l  उस  पर  संभावित  व्यय   तथा  समाज  को  होने  वाला  लाभ  भी  बताया   तो  नरेश  मुग्ध  हो  गए   और  सोचने  लगे   इतने  बड़े  कार्य  में   एक  सहस्त्र  मुद्राओं   से  क्या   होने  वाला  है  ,  उन्होंने  पूर्व  लिखित  राशि  पर   दो  शून्य  और  बढ़ा  दिए  ,  साथ  ही  अपने  कोषाध्यक्ष  को   एक  लाख  मुद्राएँ  देने  का  आदेश  प्रदान  किया   l 

9 August 2022

WISDOM -------

   अनमोल  मोती ------ मेढ़क  दौड़ता  है ,  उसके  पीछे  सर्प  दौड़ता  है  ,  सर्प  के  पीछे  मयूर  ,  मयूर  के  पीछे  सिंह   और  सिंह  के  पीछे  शिकारी  दौड़  रहा  है   l  इस  प्रकार  सब  अपने -अपने   भोजन  और  विहार  की  सामग्रियों   के  पीछे  व्याकुल   हो  रहे  हैं  ,  पर  पीछे   जो   चोटी   पकड़े   काल  खड़ा  है   ,  उसे  कोई  नहीं  देखता 

8 August 2022

WISDOM ------

   अनमोल  मोती ------  एक  रात  भयंकर  तूफान  आया   l  सैकड़ों  विशालकाय  वृक्ष  धराशायी  हो  गए   l  अनेक  किशोर  वृक्ष  भी  थे  ,  जो  बच  तो  गए  ,  पर  बुरी  तरह  सकपकाए  खड़े  थे   l  प्रात:काल  आया  ,  सूर्य  ने  अपनी  रश्मियाँ   धरती  पर  फेंकी   l  डरे  हुए  पौधों  को  देखकर   किरणों  ने  पूछा ---- " बालकों  !  तुम  इतना  सहमे  हुए  क्यों  हो  ? "   किशोर  पौधों  ने  कहा ---- " देवियों  !  ये  देखो  हमारे  कितने   पुरखे  धराशायी  पड़े  हैं  l  रात  के  तूफ़ान  ने   उन्हें  उखाड़  फेंका   l  न  जाने  कब   यही  स्थिति  हमारी  भी  आ  जाये   l  "  किरणें  हँसी  और  बोलीं ---- "  वत्स  ! आओ  और  इधर  देखो  ---- ये  वृक्ष  तूफान  के  कारण  नहीं  ,  जड़ें  खोखली  हो  जाने  के  कारण  गिरे  ,  तुम  अपनी  जड़ें  मजबूत  रखना  ,  तूफान  तुम्हारा  कुछ  नहीं  बिगाड़  पाएंगे   l  "   

WISDOM -----

     गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने   रामचरितमानस  में  लिखा  है ----- ' परहित  सरिस  धर्म  नहिं  भाई  l  पर  पीड़ा  सम  नहिं  अधमाई   l l '  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  भी  यही  कहा  कि  दूसरों  की  पीड़ा  निवारण  करना  l   उनको  पतन  के  मार्ग  से  सन्मार्ग  पर  लाना  ही  धर्म  है  l   "              धर्म  की  कितनी  सरल  व्याख्या  है   लेकिन  आज  समाज  ने  अपने  स्वार्थ  के  लिए   धर्म  का  भी  इस्तेमाल  कर  लिया ,  धर्म  को  जटिल  बना  दिया   l   आज  मनुष्य  स्वयं  के  सुख  से  ज्यादा  दूसरों  के  दुःख  के  लिए  ,  उन्हें  तरह -तरह  से  उत्पीड़ित  करने ,  तनाव  देने    को  लालायित  है   l  यदि  संसार  में  सुख न-शांति  चाहिए  तो  धर्म  के  सही  अर्थ  को  समझना  होगा  l --------- ---------  पंढरपुर  के  विट्ठल  मंदिर  में  भक्तों  की  लम्बी  कतार  लगी  थी  l   लोग  स्तुति -प्रणाम  करते  , भेंट  चढ़ाते  l  लक्ष्मी जी  भगवान  से  बोलीं ---- "  इतने  भक्त  इतनी  उमंग  से   आ -जा  रहे  हैं  ,  आप  हैं  कि  नीचे  द्रष्टि  किए   उदास  खड़े  हैं l  "   भगवान  बोले ----- " देवि  !  मैंने  पंक्ति  के  अंत  तक   द्रष्टि  डालकर  देख  लिया  l  सभी  अपने -अपने  स्वार्थ  के  लिए  आए  हैं   l  मेरे  लिए  कोई  नहीं  आया  है   l  मुझे  कोई  नहीं  चाहता  ,  सब  मुझसे  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करना  चाहते  हैं  l  "  यह  सुनकर  लक्ष्मी जी  बहुत  उदास  हो   गईं  ,  उन्होंने  कहा ----- " क्या   ऐसा  कोई  नहीं  है  ,  जो  हमारे  लिए  हमारे  पास  आए   ?  "  भगवान  बोले  ---- "  तुकाराम  है  ,  पर  वह  बीमार  पड़ा  है  ,  यहाँ  तक  चलकर  आ  नहीं  सकता  l  चारपाई  पर  दर्शन  के  लिए   व्याकुल  पड़ा  है   l  "    लक्ष्मी जी  की  उदासी  हटी  ,  वे  बोलीं  ---- "  तो  चलिए  ,  हम  ही  उसे  दर्शन  दे  आएं   l  "   मंदिर  में  दर्शनार्थियों   की  भीड़   टूटी  पड़  रही  थी    और  भगवान   अपने  सच्चे  भक्त  तुकाराम  के  पलंग  के  सामने  खड़े  थे   l