29 January 2022

WISDOM -----

     योगेश्वर  श्रीकृष्ण  ने   आत्मविश्वास     को  अपने  जीवन  में  धारण  करने  की   प्रेरणा  देते  हुए  गीता   में कहा  है  ---- " संशययुक्त  मनुष्य  के  लिए  न  यह  लोक  है  ,  न  परलोक  है   और  न  सुख  ही  है  l   जीवन  के  हर  क्षेत्र  में   सफल  होने  के  लिए   और  जीवन  की  महान  उपलब्धि  को   हासिल  करने  के  लिए   आत्मविश्वासरूप   परम  बल  की    आवश्यकता है   l  "    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " संसार  उन  थोड़े  से  व्यक्तियों  का  इतिहास  है   जिन्हे  स्वयं  पर  विश्वास  था  l   आपका   सारी   दुनिया  से  विश्वास   उठ   चुका   हो  ,  पर  खुद  पर   विश्वास  बना  हुआ  हो   तो  समझिए   अभी  भी  आपके  पास  बहुत  कुछ  है  ,  जिससे  आप  सब  कुछ   पा  सकते  हैं   l  "  --------  आदिशंकराचार्य  और  मंडन   मिश्र  के  बीच  शास्त्रार्थ  होना  था  l   निर्णायक  की  भूमिका  मंडान  मिश्र  की  पत्नी   को  सौंपी  गई  l     शास्त्रार्थ  में  विजेता   कौन  हुआ  ,   इसे निश्चित   करने  के  लिए  उन्होंने  दोनों  के  गले  में   फूलों  की  माला  पहना  दी   और  कहा  कि   जिसके  गले  में  यह  माला  मुरझा  जाएगी  ,  वह  पराजित  कहलायेगा  l   शास्त्रार्थ  लम्बा  चला  ,  अंत  में  मंडान  मिश्र  के  गले  में  पड़ी  माला  मुरझा  गई   और  वे  पराजित  घोषित  हो  गए   l    यह प्रश्न  स्वाभाविक  था   कि   मंडन   मिश्र  के  गले   में पड़ी  माला  क्यों  मुरझा  गई   ?     विद्वानों  का  कहना  था  कि   दीर्घकाल  तक  चले  इस  शास्त्रार्थ  से  मंडन  मिश्र  का  मनोबल  टूटने  लगा  था  l    उन्हें लगने  लगा  था  कि  उनकी  कीर्ति  , यश   सब  डूबने  जा  रहा  है  ,  गणमान्य  लोगों  के  लिए   अपनी  पराजय  का  यह  दुःख   मरण   से भी  अधिक  दुःखदायी   होता  है   इसी लिए   उनका आत्मविश्वास  डिगने  लगा  , घबराहट  बढ़  गई  जिसके  कारण  वह  माला  मुरझा   गई   जबकि  शंकराचार्य   का  अपने  प्राण  और  मन  पर  पूरा  नियंत्रण  था  ,  वे  योग  के  महान  ज्ञाता   थे ,  उनका  धैर्य  और  विश्वास  अडिग  था   इस  कारण  वे  विजयी  हुए  l