योगेश्वर श्रीकृष्ण ने आत्मविश्वास को अपने जीवन में धारण करने की प्रेरणा देते हुए गीता में कहा है ---- " संशययुक्त मनुष्य के लिए न यह लोक है , न परलोक है और न सुख ही है l जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने के लिए और जीवन की महान उपलब्धि को हासिल करने के लिए आत्मविश्वासरूप परम बल की आवश्यकता है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " संसार उन थोड़े से व्यक्तियों का इतिहास है जिन्हे स्वयं पर विश्वास था l आपका सारी दुनिया से विश्वास उठ चुका हो , पर खुद पर विश्वास बना हुआ हो तो समझिए अभी भी आपके पास बहुत कुछ है , जिससे आप सब कुछ पा सकते हैं l " -------- आदिशंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ होना था l निर्णायक की भूमिका मंडान मिश्र की पत्नी को सौंपी गई l शास्त्रार्थ में विजेता कौन हुआ , इसे निश्चित करने के लिए उन्होंने दोनों के गले में फूलों की माला पहना दी और कहा कि जिसके गले में यह माला मुरझा जाएगी , वह पराजित कहलायेगा l शास्त्रार्थ लम्बा चला , अंत में मंडान मिश्र के गले में पड़ी माला मुरझा गई और वे पराजित घोषित हो गए l यह प्रश्न स्वाभाविक था कि मंडन मिश्र के गले में पड़ी माला क्यों मुरझा गई ? विद्वानों का कहना था कि दीर्घकाल तक चले इस शास्त्रार्थ से मंडन मिश्र का मनोबल टूटने लगा था l उन्हें लगने लगा था कि उनकी कीर्ति , यश सब डूबने जा रहा है , गणमान्य लोगों के लिए अपनी पराजय का यह दुःख मरण से भी अधिक दुःखदायी होता है इसी लिए उनका आत्मविश्वास डिगने लगा , घबराहट बढ़ गई जिसके कारण वह माला मुरझा गई जबकि शंकराचार्य का अपने प्राण और मन पर पूरा नियंत्रण था , वे योग के महान ज्ञाता थे , उनका धैर्य और विश्वास अडिग था इस कारण वे विजयी हुए l