27 January 2020

WISDOM ---- उचित यही है कि हम जैसे हैं , वैसे ही बाहर दिखें

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---' महत्व   को  पाने  की  ललक  एक  ऐसा  विष  है  , जो  जिस  क्षेत्र  में  घुलेगा  उसे  विषैला  बनाएगा   l   इसकी  टोह   में  लगा  आदमी   अंदर  से  नीति ,  मर्यादाओं  और  अनुशासन  की  अवहेलना  करते  हुए   बाहर  से  नैतिक , मर्यादित  और  अनुशासनप्रिय   दिखाने   का  प्रयत्न  करता  है  l   सम्मान  पाने  के  लिए  नकली  समाज सेवी  पनपते  हैं , अमीरी  पाने  के  लिए  चोरी , बटमारी , तस्करी  फैलती  है  l '
  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- 'नैतिकता  या  अच्छाई  का  खोल  ओढ़े  लोगों  से    अनैतिक  अमर्यादित  दिखने  वाले  लोगों  की  अपेक्षा  कहीं  अधिक  खतरा  है  l   बुराई    बुराई  है  पर  अच्छाई  के  गर्भ  में  बुराई  को  भरण - पोषण  मिलना  और  अधिक  भयंकर  है  l   पाप  को  पाप  समझ  लेने  के  बाद  उससे  बचा  जा  सकता  है  ,  लेकिन  जो  पाप  पुण्य  की  आड़  में  किया  जाता  है  ,  उससे  बच  पाना  बहुत  कठिन  है   l   बुराई  का  अपना  कोई  अस्तित्व  नहीं  है  ,  वह  अच्छाई  में  घुसकर  पनपती  है  l 
  शत्रु   से  बचाव  आसान  है  ,  पर  मित्र  बने  शत्रु  से  बच  पाना  असंभव  है   l   जितने  व्यक्ति  जहर  से  नहीं  मरते   उतने  मिठाई  में  जहर  छिपा  कर  दिए  जाने  से  समाप्त  हो  जाते  हैं  l  डाकू  को  पहचानना  और  उससे  बचना  सामान्य  क्रम  है   किन्तु  साधु  के  वेश  में  घूमने  वाले  डाकू  से  बच  पाना  आसान  नहीं  है   l   डाकू  संसार  की  जितनी  हानि  नहीं  करते    तथाकथित   सफ़ेद  पोश   उससे  कहीं  अधिक  परेशानी  खड़ी  करते  हैं   l
  महानता  कमाई  जाती  है  , इसे  किसी  तरह  छीनना - झपटना  संभव  नहीं  है  l   अपनी  स्थिति  को  बढ़ा - चढ़कर  दिखाने   का  प्रयत्न  विकास  की  राह  से  भ्रष्ट  कर  देता  है   और  हमेशा  यही  डर   बना  रहता  है  कि   कहीं  भेद  न  खुल  जाये  l  '