3 January 2018

WISDOM ----- संवेदना का विस्तार ही मानव - धर्म है

  ' मुर्दे  का  सहज  धर्म  है  निष्क्रियता , निष्ठुरता  l  मुर्दा  यदि  सक्रिय  भी  हो  तो  सड़न  और  बीमारी  फैलाएगा  l    पर  जीवन्त  व्यक्ति  तो  वही  है  ,  जो  मानव - मात्र  की  वेदना  के  प्रति  संवेदनशील  हो  l '
       बात  उन  दिनों  की  है -----  महान  संगीतकार  पेडरेवस्की  संगीत  आयोजन  में  भाग  लेने   पोलैंड  से  अमेरिका  आये  l   टिकट  की  बिक्री  का  और  आयोजन  का  सारा  कार्यभार    एक  साधारण  लुहार  के  लड़के  को  दिया  l  उनकी  भावना  थी  कि   गरीब  बालक  की  कुछ  आर्थिक  सहायता   हो  जाएगी  l  पर  अनेक  कारणों  से  टिकट  कम  बिकी ,  श्रोता   कम  आये  l    उस  लड़के  के  चेहरे  पर  हवाइयां  उड़  रही  थीं  l  हाथ  में  थोड़े    से  नोट  लिए  वह  संगीतकार  के  पास  गया  l  उन्होंने     हाथ  पकड़  कर  स्नेह  से  अपने  बिस्तर  पर  बैठाया ,  काफी  पिलाई  l   लड़के  में  कुछ  हिम्मत  आई  ,  उसने  नोटों  की  गड्डी  उनके  हाथ  में  थमाई  l 
    उन्होंने  उसके  कंधे  पर  हाथ  रखते  हुए  पूछा कि   हाल  का  किराया ,  बिजली  का  बिल  चुक  गया  ?
लड़के  ने  कहा -- " नहीं  !  टिकटों  की  बिक्री  से  केवल  आठ सौ   सैंतीस  डालर  मिले  ,  जो  आपके  सामने  हैं  l  ये  आप  लें ,  हाल  का  किराया  आदि  मैं  धीरे - धीरे  चुका  दूंगा  l " 
" कैसे  चुकाओगे  ? "  वे   लुहार  के  लड़के  की  आर्थिक  स्थिति  को  समझ  रहे  थे  l    उन्होंने  कहा --- "  तुम  निराश  मत  हो ,  निराशा  जीवन  का  शत्रु  है  l  "  उन्होंने  उस  नोट  के  बण्डल  में  अपनी  और से   कुछ  बड़े  नोट  मिलाये  और  उस  लड़के  की  जेब  में  रखते  हुए  कहा --- "  इनमे  से  हाल  का  किराया  और  बिजली  का  बिल  चुकाने  के  बाद  इतना  बच  जायेगा  कि  तुम  कोई  नया  धन्धा  शुरू  कर  सको  l " 
  उनकी  इस  अकल्पनीय  उदारता  से  वह  आश्चर्यचकित  रह  गया  l    उसने  कहा ---- "  आपका  यह  ---- अहसान --- मैं  कभी ----  भुला ----  नहीं  ----- l "
संगीतकार  पेडरेवस्की  ने  कहा ---- ' यह  अहसान  नहीं ,  जीवन्त  मनुष्य  का  फर्ज  है  l  यदि  तुम  इसे  चुकाना  चाहते  हो  तो  स्वयं  संवेदनशील  बनना  l  जीवन  चेतना  का  औरों  में  प्रसार  करना  l  संवेदना  का  वितरण  करना ,  जिसे  तुम  उदारता  कहते  हो  इस  परंपरा  को  निभाना  l  यदि  तुम  ऐसा  कर  सके  तो  समझना  कि  तुमने  मेरा  अहसान  चुका  दिया  और  मुझे  अहसानमंद  बना  दिया  l  " 
    वक्त  गुजरता  गया  l  वह  लड़का  युवक  बना  l  खानों  के  उद्दोग  में  उसने  करोड़ों  कमाए  l  प्रथम  विश्व युद्ध  की  समाप्ति  पर    यूरोप  की  शोचनीय  दशा  में  सुधार  लाने  के  लिए   अमेरिका  ने  जो  दस  करोड़  डालर  का  ऋण  स्वीकृत  किया  ,  उसके  वितरण  का   जिम्मा    उसे  ही  मिला  l    ऋण  वितरण  करते  समय   उसने  1874  की   अपनी  पुरानी  याद  को  संजोते  हुए  कहा  ---  " मैं  यह   अमेरिका  का  धन  नहीं  ,  पोलैंड  के  संगीतकार  पेडरेवस्की   की  दी  गई  संवेदना  को  बाँट  रहा  हूँ  l "   संवेदनाओं  के  इस  वितरक  को   अमेरिका वासियों  ने  राष्ट्रपति  के  सर्वोच्च  आसन  पर  बैठाया  l  विश्व  ने  इसे  ' हर्बर्ट  हूवर '  के  नाम  से  जाना  l    उनके  राष्ट्रपति  के  कार्यकाल  में   1930  की  महान  मंदी   आई  l  इस  मंदी  से  ग्रसित   यूरोपीय  राष्ट्रों   ने  ऋण  चुकाने  में  असमर्थता   व्यक्त  की    तो  हूवर  ने  उदारतापूर्ण  व्यवहार  करते  हुए  कहा  --- मेरा  कार्य   मानव  धर्म  का  निर्वाह   है ,   जीवन  का  प्रसार  है   l "
     हूवर  की  भांति  यदि  मानव  आज   की  विषाद  पीड़ित  मानवता  पर  स्वयं  की  संवेदनाओं  का   अमृत   छिड़क  सके  ,  मानव  धर्म  का  निर्वाह  कर  जीवन  का  प्रसार  कर  सके  तो   आने  वाला  कल  उसे  भी   लोक  नायक  बनाये  बिना  न  रहेगा   l