12 May 2022

WISDOM-------

   कट्टरपंथी  हिन्दू  और  मुसलमान   दोनों  कबीरदास जी  के   विरोधी  थे  l  एक  बार  दोनों  मिलकर  बादशाह  सिकंदर  लोदी  के  पास  गए  l   दोनों  की  शिकायत  यह  थी  कि   वह  हमारे  धर्म  में  हस्तक्षेप  कर  रहा  है   l  मुसलमान  होकर   राम -राम  जपकर  हमारे  धर्म  का  अपमान  कर  रहा  है  l   कट्टरपंथी  हिन्दुओं  ने  कहा ---  मुसलमानों  को  राम -राम  नहीं  कहना  चाहिए   l   कबीरदास जी  को  दरबार   में  हाजिर  किया  गया   l  दरबार  में  आकर  उन्होंने   एक  बार  चारों  और  देखा और  जोर  से  अट्टहास  कर  उठे  l  सभी  दरबारी  चौंक  गए  l  बादशाह  की  आँखें  क्रोध  से  लाल  हो  गईं   l  उन्होंने  पूछा ---- ' तुम्हारे  हँसने  का  मतलब  क्या  है  ? ' कबीरदास जी  ने  कहा ---  " जहाँपनाह  !  मैं  यही  चाहता  था  कि  हिन्दू  और  मुसलमानों  में  मेल  हो  l  मेरे  इस  प्रयत्न  की   लोग  हँसी  उड़ाते उड़ाते  आए  हैं   l  आज  यह  संभव  हो  गया  ,  लेकिन  मैं  इन्हें  ईश्वर  के  दरबार  में  मिलाना  चाहता  था  ,  मगर  ये  लोग  जहाँपनाह  के  दरबार  में  मिल  रहे  हैं   l  बस ,  ठिकाना  जरा  गलत  हो  गया   l  इसलिए  मैं  हँसा  था   l  यह  सिंहासन  छोटा  है   l  मैं  तो  उस  परमेश्वर  के   सिंहासन  के  पास  इन्हें  ले  जाना  चाहता  था,  जो  सारी    दुनिया  का  मालिक  है  l    '  धर्म  के  नाम  पर  लोग  युगों  से  लड़ते  चले  आ  रहे  हैं   l  पीढ़ी - दर -पीढ़ी   l  मामला  सुलझता  ही  नहीं   l  यह  भी  एक  प्रकार  का  नशा  है  ,  जो  ये  सब  कराते  हैं  उन्हें  इसी  में  आनंद  आता  है   l  यह  मानव  जाति  का  दुर्भाग्य  है   कि     अपनी   ऊर्जा  को  लोग  जीवन  के  विभिन्न  क्षेत्रों  में   लड़ -झगड़  कर  , छल -कपट , ईर्ष्या -द्वेष  , लोभ -लालच  में  गँवा  देते  हैं   , इसलिए  चेतना  के  स्तर  पर  मनुष्य  अभी  भी   किस  स्तर  पर  है  ?  इसका  चिंतन -मनन  स्वयं  करे  l