11 July 2013

PEARL

'जो महत्वाकांक्षी हैं ,जिनमे कुछ करने की लगन है ,उन्हें साधारण परिस्थितियां तो क्या पहाड़ भी नहीं रोक सकते | अपने ध्येय का पक्का पहाड़ को चीरता और समुद्र को तैरता हुआ आगे बढ़ता जाता है | परिवार की समस्या ,धन का अभाव ,लोगों का विरोध ,समय एवं स्वास्थ्य की शिकायत प्रगति प्रिय कर्मवीरों को नहीं रोक सकती |
      ब्रीयवे  नाम के एक अमेरिकन युवक को दूसरा विश्व युद्ध के समाप्त होने पर जर्मनी भेजा गया | यह युवा सैनिक कृषि -विशेषज्ञ भी था | वह यह भी जानता था कि जर्मनी एक विश्व स्तर की शक्ति था ,पर अब हिटलर के उन्माद के कारण ध्वस्त हो ,वह निराशा के क्षणों से गुजर रहा था | खाने के लिये पर्याप्त अन्न भी नहीं था ,वहां के लोग पूरी तरह से अमेरिकी ,अंग्रेज और फ्रेंच सेना की दया के मोहताज थे |
       ब्रीयवे अपने साथ कुछ फलों व अन्न के बीज ,जो जर्मनी की भूमि में पैदा हो सकें ले गया | सीमा पर रोककर उसकी जांच -पड़ताल की गई ,पर किसी तरह ब्रीयवे बच गये |
           फ्रैंकफर्ट से लगभग 35 किलोमीटर   दूरएक ग्रामीण क्षेत्र ,उसकी  ड्यूटी लगी | वही हुआ ,जैसा वह चाहता था | बुरी तरह से निराश जर्म न नागरिकों कीउसने  क्लास ली एवं कृषि विज्ञान की जानकारी दी ,गांव से के बाहर पांच एकड़ के टुकड़े पर उसने अपने साथ लाये बीज बो दिये ,शाक वाटिका लग गई ,गांव वाले उसे परिश्रम सींचते थे ,इसका ध्यान रखा गया कि प्रत्येक परिवार को एक क्यारी मिल जाये |
 ब्रीयवे का उद्देश्य था -पोषण के साथ ,स्वावलंबन ,सहकारिता औरसृजन की वृति का शिक्षण | इस कृषि आंदोलनने   पश्चिमी जर्मनी के बढे क्षेत्र में फैलकर ब्रीयवे का स्वपन सार्थक कर दिया ,इससे जर्मन लोगों का आत्म विश्वास बढ़ा और छोटा सा प्रयोग राष्ट्र व्यापी बन गया |
जब उसने जर्मनी से विदा ली तो पूरे जर्मनी ने उसे अनेक पुरस्कारों ,उपहारों के साथ धन्यवाद देकर विदा किया | ब्रीयवे हर युवा के लिये एक आदर्श है कि कोई चाहे तो कुछ असंभव भी करके दिखा सकता है |