डा. कैलाशनाथ काटजू ( जन्म 1887 ) पेशे से वकील थे किन्तु उन्होंने न्याय और मानवता को सर्वोपरि स्थान दिया l मुवक्किल की फीस ने उन्हें कभी नहीं ललचाया l साधन और जीविका की पवित्रता के कारण काटजू ने अपने इस पेशे में ईमानदारी और न्याय का भाव समाहित कर इसे भी परमार्थ साधना बना दिया |
कानपुर में बच्चीसिंह का मुकदमा उनके जीवन की सर्वाधिक चर्चित घटना है ---- इस मुकदमे में दोनों पक्षों की एक पीढ़ी गुजर चुकी थी , दोनों के बीच 1948 से मुकदमा चल रहा था l बच्चीसिंह अपने पिता के बाद मुकदमा लड़ रहा था , उसने अपनी रेहन रखी हुई सम्पति जिसके ऋण का मूल व सूद चुका दिया गया था , उसे प्राप्त करने के लिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया l किन्तु प्रतिवादी की अर्जी पर जिला न्यायालय ने फैसला दिया कि वादी ने सूद भी पूरी तरह नहीं चुकाया है l बच्चीसिंह इसमें बर्बाद हो गया था , कानपुर की अदालतों के निर्णय सम्बन्धी सभी रिकार्ड 1857 की क्रान्ति में नष्ट हो चुके थे l मानव कंकाल जैसी अवस्था में वह डा. काटजू के पास आया l उसकी करुण गाथा सुनकर उनका दिल पसीज गया और उन्होंने उसका मुकदमा ले लिया l रिकार्ड नष्ट होने के कारण परिस्थिति बहुत कठिन थी l कानून और मामले की बारीकियों का भलीभांति अध्ययन कर बच्चीसिंह का पक्ष इतनी द्रढ़ता पूर्वक रखा कि निर्णय उसी के पक्ष में हो गया | फैसला सुन बच्चीसिंह बहुत प्रसन्न हुआ , इतने बड़े मुकदमे की फीस मात्र 35 रु. उसने डा. काटजू के हाथ में रखे जिसे उन्होंने बड़े संतोष के साथ स्वीकार किया l भारतीय समाज , न्याय और राजनीति में वे अपने ढंग के अभूतपूर्व व्यक्ति थे l ऐसी कई घटनाएँ उनके सम्बन्ध में विख्यात हैं जो उनकी मानवीय आदर्शों के प्रति निष्ठा और न्याय का भाव व्यक्त करती हैं l
कानपुर में बच्चीसिंह का मुकदमा उनके जीवन की सर्वाधिक चर्चित घटना है ---- इस मुकदमे में दोनों पक्षों की एक पीढ़ी गुजर चुकी थी , दोनों के बीच 1948 से मुकदमा चल रहा था l बच्चीसिंह अपने पिता के बाद मुकदमा लड़ रहा था , उसने अपनी रेहन रखी हुई सम्पति जिसके ऋण का मूल व सूद चुका दिया गया था , उसे प्राप्त करने के लिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया l किन्तु प्रतिवादी की अर्जी पर जिला न्यायालय ने फैसला दिया कि वादी ने सूद भी पूरी तरह नहीं चुकाया है l बच्चीसिंह इसमें बर्बाद हो गया था , कानपुर की अदालतों के निर्णय सम्बन्धी सभी रिकार्ड 1857 की क्रान्ति में नष्ट हो चुके थे l मानव कंकाल जैसी अवस्था में वह डा. काटजू के पास आया l उसकी करुण गाथा सुनकर उनका दिल पसीज गया और उन्होंने उसका मुकदमा ले लिया l रिकार्ड नष्ट होने के कारण परिस्थिति बहुत कठिन थी l कानून और मामले की बारीकियों का भलीभांति अध्ययन कर बच्चीसिंह का पक्ष इतनी द्रढ़ता पूर्वक रखा कि निर्णय उसी के पक्ष में हो गया | फैसला सुन बच्चीसिंह बहुत प्रसन्न हुआ , इतने बड़े मुकदमे की फीस मात्र 35 रु. उसने डा. काटजू के हाथ में रखे जिसे उन्होंने बड़े संतोष के साथ स्वीकार किया l भारतीय समाज , न्याय और राजनीति में वे अपने ढंग के अभूतपूर्व व्यक्ति थे l ऐसी कई घटनाएँ उनके सम्बन्ध में विख्यात हैं जो उनकी मानवीय आदर्शों के प्रति निष्ठा और न्याय का भाव व्यक्त करती हैं l