14 August 2019

WISDOM ----- धर्म - परिवर्तन

  धर्मांतरण  के  राजनीतिक  और  सामाजिक  अर्थ  जो  भी  हों  , भारतीय  परंपरा  मानती  है  कि  आध्यात्मिक  द्रष्टि  से  यह  असंभव  कर्म  है  l  इस विषय  पर  ' गाँधी  वाड्मय ' में  गांधीजी  के  विचार  बिखरे  पड़े  हैं  l   गांधीजी  मानते  थे  कि  धर्म  बदलने  का अर्थ  है  ---- व्यक्ति की  अंतरात्मा  को  बदलना  l  अंतरात्मा  कोई  वस्त्र  या  आभूषण  नहीं  जिसे  बदला    या  पहना  और  उतारा  जा  सके   l  यह  पिछले  जन्मों  के  संस्कारों  का   सम्मुचय  है  l  संस्कार  ही   वह  प्रमुख  कारण  है   जिसके  कारण  धर्म - परिवर्तन  असंभव  और  प्रकृति  विरुद्ध  कर्म  है  l  '
 महात्मा  गाँधी   ने  लिखा  है  कि  माता - पिता  की  भांति  धर्म  भी  व्यक्ति  को  जन्म  के  साथ  ही  मिलता  है  l  माता - पिता  को  जैसे  नहीं  बदला  जा  सकता  ,  उसी  प्रकार  धर्म  भी  नहीं  बदला  जा  सकता  l उन्होंने  कहा   कि  धर्म  परिवर्तन  के  प्रयत्न  सफल   नहीं  होते  और  व्यक्ति  कहीं  का  नहीं  रह  जाता  l  महात्मा  गाँधी  ने  यह  बात  अपने  छोटे  पुत्र  हरिलाल  के  संबंध  में  कही  थी  l  संगति - दोष  के  कारण  हरिलाल  में  कई  बुरी  आदतें  आ   गईं  थीं  , उसके  दुर्व्यसनों  के  कारण  महात्मा  गाँधी  भी  उसे  पसंद  नहीं  करते  थे  l  कुछ  अवसरों  पर  तो  उन्होंने  अपने  इस  बेटे  को  स्वीकार  करने  से  भी  मना  कर  दिया  था  l दुर्व्यसनों  और  कुटेवों  के  कारण  हरिलाल  पर  कर्ज  भी  चढ़  गया  था   l
  धर्म - परिवर्तन  के  काम  में  जुटी  संस्थाओं  ने   हरिलाल  को  इस  शर्त  पर  आर्थिक  सहायता  दी  कि  वह  अपना  धर्म  छोड़कर  दूसरा  धर्म  अपना  लेगा  l  हरिलाल   ने    यह  शर्त  स्वीकार   कर  ली  l  महात्मा  गाँधी  से  उस  अवसर  पर  पत्रकारों  ने  पूछा   कि  अब  आपका  क्या  कहना  है  ,  आपका  पुत्र  धर्म  बदल  रहा  है  l  गांधीजी  ने  कहा  था   कि  जो  लोग  धर्मांतरण  को  सही मान  रहे  हैं  ,  वे  गलत  हैं   l  हरिलाल  यदि  किसी  प्रलोभन  के  कारण  धर्मांतरण  कर  रहा  है  , तो  कल  कुछ  और  संस्थाएं   उसे  वापस  भी  ला  सकती  हैं   l  कुछ  महीनों  बाद  सनातन  धर्म  के  नेताओं  ने   हरिलाल  को  समझा - बुझाकर   वापस  हिन्दू  बना  लिया   l  ' धर्मांतरण '  और  ' परावर्तन '  के  काम  में  लगीं  संस्थाओं  को  महात्मा  गाँधी ने  समानधर्मा  कहा  है  l  उनमें  भी  ' परावर्तन '  करने  वाली  संस्थाओं  को  सराहा  है  क्योंकि  वे  एक  भूल  को  सुधारने  में  लगी  हुई  हैं   l