धर्मांतरण के राजनीतिक और सामाजिक अर्थ जो भी हों , भारतीय परंपरा मानती है कि आध्यात्मिक द्रष्टि से यह असंभव कर्म है l इस विषय पर ' गाँधी वाड्मय ' में गांधीजी के विचार बिखरे पड़े हैं l गांधीजी मानते थे कि धर्म बदलने का अर्थ है ---- व्यक्ति की अंतरात्मा को बदलना l अंतरात्मा कोई वस्त्र या आभूषण नहीं जिसे बदला या पहना और उतारा जा सके l यह पिछले जन्मों के संस्कारों का सम्मुचय है l संस्कार ही वह प्रमुख कारण है जिसके कारण धर्म - परिवर्तन असंभव और प्रकृति विरुद्ध कर्म है l '
महात्मा गाँधी ने लिखा है कि माता - पिता की भांति धर्म भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिलता है l माता - पिता को जैसे नहीं बदला जा सकता , उसी प्रकार धर्म भी नहीं बदला जा सकता l उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन के प्रयत्न सफल नहीं होते और व्यक्ति कहीं का नहीं रह जाता l महात्मा गाँधी ने यह बात अपने छोटे पुत्र हरिलाल के संबंध में कही थी l संगति - दोष के कारण हरिलाल में कई बुरी आदतें आ गईं थीं , उसके दुर्व्यसनों के कारण महात्मा गाँधी भी उसे पसंद नहीं करते थे l कुछ अवसरों पर तो उन्होंने अपने इस बेटे को स्वीकार करने से भी मना कर दिया था l दुर्व्यसनों और कुटेवों के कारण हरिलाल पर कर्ज भी चढ़ गया था l
धर्म - परिवर्तन के काम में जुटी संस्थाओं ने हरिलाल को इस शर्त पर आर्थिक सहायता दी कि वह अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेगा l हरिलाल ने यह शर्त स्वीकार कर ली l महात्मा गाँधी से उस अवसर पर पत्रकारों ने पूछा कि अब आपका क्या कहना है , आपका पुत्र धर्म बदल रहा है l गांधीजी ने कहा था कि जो लोग धर्मांतरण को सही मान रहे हैं , वे गलत हैं l हरिलाल यदि किसी प्रलोभन के कारण धर्मांतरण कर रहा है , तो कल कुछ और संस्थाएं उसे वापस भी ला सकती हैं l कुछ महीनों बाद सनातन धर्म के नेताओं ने हरिलाल को समझा - बुझाकर वापस हिन्दू बना लिया l ' धर्मांतरण ' और ' परावर्तन ' के काम में लगीं संस्थाओं को महात्मा गाँधी ने समानधर्मा कहा है l उनमें भी ' परावर्तन ' करने वाली संस्थाओं को सराहा है क्योंकि वे एक भूल को सुधारने में लगी हुई हैं l
महात्मा गाँधी ने लिखा है कि माता - पिता की भांति धर्म भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिलता है l माता - पिता को जैसे नहीं बदला जा सकता , उसी प्रकार धर्म भी नहीं बदला जा सकता l उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन के प्रयत्न सफल नहीं होते और व्यक्ति कहीं का नहीं रह जाता l महात्मा गाँधी ने यह बात अपने छोटे पुत्र हरिलाल के संबंध में कही थी l संगति - दोष के कारण हरिलाल में कई बुरी आदतें आ गईं थीं , उसके दुर्व्यसनों के कारण महात्मा गाँधी भी उसे पसंद नहीं करते थे l कुछ अवसरों पर तो उन्होंने अपने इस बेटे को स्वीकार करने से भी मना कर दिया था l दुर्व्यसनों और कुटेवों के कारण हरिलाल पर कर्ज भी चढ़ गया था l
धर्म - परिवर्तन के काम में जुटी संस्थाओं ने हरिलाल को इस शर्त पर आर्थिक सहायता दी कि वह अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेगा l हरिलाल ने यह शर्त स्वीकार कर ली l महात्मा गाँधी से उस अवसर पर पत्रकारों ने पूछा कि अब आपका क्या कहना है , आपका पुत्र धर्म बदल रहा है l गांधीजी ने कहा था कि जो लोग धर्मांतरण को सही मान रहे हैं , वे गलत हैं l हरिलाल यदि किसी प्रलोभन के कारण धर्मांतरण कर रहा है , तो कल कुछ और संस्थाएं उसे वापस भी ला सकती हैं l कुछ महीनों बाद सनातन धर्म के नेताओं ने हरिलाल को समझा - बुझाकर वापस हिन्दू बना लिया l ' धर्मांतरण ' और ' परावर्तन ' के काम में लगीं संस्थाओं को महात्मा गाँधी ने समानधर्मा कहा है l उनमें भी ' परावर्तन ' करने वाली संस्थाओं को सराहा है क्योंकि वे एक भूल को सुधारने में लगी हुई हैं l