26 February 2022

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " परमात्मा   न  तो  अपने  हाथ  से   किसी  को  कुछ  देता  है   और  न   छीनता   है  l   वह   इन  दोनों  के  लिए   मनुष्यों  की  आंतरिक  प्रेरणा  द्वारा   परिस्थितियां  उत्पन्न  करा  देता  है  ,  और  आप  तटस्थ  भाव  से  मनुष्यों  के  उत्थान - पतन  देखा  करता  है   l  "       मनुष्य  के  जैसे  संस्कार  है , जैसी  उसकी  प्रवृति  है  , उसी  के  अनुरूप  वह  कर्म  करता  है  , अपना  मार्ग  चुनता  है   और  उसके  कर्म  का  फल   कब  और  क्या  होगा  यह  काल  निश्चित  करता  है   l   महाभारत  युद्ध   निश्चित  हो  गया  ,  अर्जुन  और   दुर्योधन   दोनों  के  सामने  विकल्प  था   कि   वे  भगवान  को  चुनें  या  उनकी  सेना  को   l   दुर्योधन  में  अहंकार  था  ,  वह  तो  भगवान  को  भी  अशुभ  शब्द  बोलता  था , जब  कृष्ण जी  शांति दूत  बन  कर  गए  थे   तब  वह  उनको  बाँधने  चला  था   l   उसे  अपनी  शक्ति  का  घमंड  था  और  वह  शक्ति  उसके  किसी  काम  न  आई  l   आज  यदि  संसार   में    शांति  चाहिए  तो   स्वयं  को  शक्तिशाली  समझने  वालों  को  रामायण  और  महाभारत  का  अध्ययन  कर   उसमे   जो तथ्य  छुपा  है  उसे  समझना  चाहिए  l   रावण  की  नाभि  में   अमृत  था    अर्थात  जिस  शक्ति  का  उसे  घमंड  था   वह  नाभि  में  थी   ,  उसी   केंद्र  में   बाण  लगने  से  विस्फोट  हुआ   और  नामोनिशान  मिट  गया  l  हर  असुर  के  साथ  यही  होता  है  ,   असुर  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  करता  है   इसलिए  उसकी  शक्ति  ,  उसको  मिला  हुआ  वरदान  ही  उसके  अंत  का  कारण  बन  जाता  है  l   भस्मासुर  को  वरदान  था  कि   जिसके  सिर   पर  हाथ  रखे   वह  भस्म  हो  जाये   l   उसकी  बुद्धि  ऐसी  भ्रष्ट  हुई  कि  उसने  अपने  ही  सिर   पर  हाथ  रख  लिया  और  भस्म  हो  गया  l 

WISDOM -------

   महाभारत  का  युद्ध  चल  रहा  था   l   द्रोणाचार्य  और  अर्जुन   आमने - सामने  थे   l   द्रोणाचार्य  ने  अर्जुन   को  धनुर्विद्द्या   सिखाई  थी ,  उसके  बावजूद  वे  उसके  सामने  असहाय  दिख  रहे  थे  l   कौरवों  ने  प्रश्न  किया  ---- " आश्चर्य  की  बात  है   कि   गुरु  हार  रहे  हैं   और  शिष्य  जीत  रहा  है  l  "  द्रोणाचार्य  बोले ---- " मुझे  राजाश्रय   की  सुख - सुविधा   भोगते  हुए   वर्षों  गुजर  गए  ,  जबकि  अर्जुन  इतने   ही समय  तक   कठिनाइयों  से  जूझता  रहा   है  l   सुविधासम्पन्न   अपनी  सामर्थ्य  गँवा  बैठते  हैं   और  संघर्ष शील   निरंतर  शक्तिसम्पन्न   बनते  रहते  हैं  l  "       महर्षि  अरविन्द  ने   कहा  है  ---- " दुःख   भगवान   के  हाथ  का  हथौड़ा  है  ,  उसी  के  माध्यम  से   मनुष्य   का जीवन  सँवरता   है  l  "   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- "  जीवन  में  दुःख ,  कठिनाइयाँ   हमें  कुछ  सिखाने   आती   हैं ,  हम  उसे  चुनौती  मानकर   उसका  सकारात्मक  ढंग  से  सामना  करें   l   रो कर , विलाप  कर  उस  समय  को  न  गुजारें ,  दुःख  को  तप  बना  लें  l   यदि  जीवन  में  सुख  का  समय  आता  है   तो  उसे  ईश्वर  की  देन   मानकर  निरंतर  निष्काम  कर्म  करें  ,  उसे  आलस - प्रमाद , भोग - विलास  में  न  गंवाएं   l  "