7 August 2023

WISDOM -----

     कलियुग  के  अनेक  लक्षण  हैं  , उनमें  से  एक  यह  भी  है  कि  इस  समय  में  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  बढ़  जाने  से   मनुष्य  भगवान  को  पूजता  नहीं  है  ,  भगवान  के  नाम  पर   लड़ता  है , विवाद  और  दंगा  करता  है  l  अधिकांश  इसी  को   अपनी  रोजी -रोटी  कमाने  का  साधन  बना  लेते  हैं   l   यदि  धर्म  और  जाति  के  नाम  पर  होने  वाले  झगड़े   क्या  वास्तव  में  इसी  आधार  पर  हैं  ?  तो  घरेलू  हिंसा , परिवार  में  धन , संपत्ति  के  विवाद , परिवार  में  ही  वर्चस्व  के  लिए  लड़ाई , सदस्यों  का  शोषण , उत्पीड़न , कार्य स्थल  पर  उत्पीड़न ---  यह  तो  समान  धर्म  के  लोग  ही  आपस  में  एक  दूसरे  को  सताते  हैं  l  इसलिए  इस  लड़ाई  में   ईश्वर  को  बीच  में  लाकर   प्रकृति  को  नाराज  नहीं  करना  चाहिए  l  पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  जिनमें  बताया  गया  है  कि  ईश्वर  का  निवास  हम  सब  के  ह्रदय  में  है ,  गीता  में  भी  यही  कहा  गया  है  l  लड़ाई -झगडे  में  अपनी  इतनी   ऊर्जा  और  जीवन  का  बहुमूल्य  समय   गंवाना  मूर्खता  है  l  ---- पुराण    में  एक  कथा  है  -- दो  महा पराक्रमी  और  अजेय  राक्षस  थे --- हिरण्याक्ष  और  हिरण्यकशिपु   l  देवासुर  संग्राम  में   हिरण्याक्ष  की  मृत्यु  हो  गई   तो  भाई  की  मृत्यु  का  बदला  लेने  के  लिए   हिरण्यकशिपु   गदा  लेकर  भगवान  से  लड़ने  के  लिए  निकल  पड़ा  l   जैसे  ही  युद्ध  आरम्भ  हुआ  भगवान  अंतर्धान  हो  गए  l  उनको  ढूंढते  हुए   उसकी  भेंट  नारद जी  से  हुई  l  नारद जी  ने  उससे  पूछा  कि  युद्ध  में  किसकी  विजय  हुई   ?  हिरण्यकशिपु   बोला --- ' लड़ते -लड़ते  वह   न  जाने  कहाँ  छुप  गया  , मैं  उसे  देख  नहीं  सका  l "  नारद जी  ने  जाकर  भगवान   से  पूछा --- " आप  कहाँ  छिप  गए  , जिससे  हिरण्यकशिपु   आपको  देख  नहीं  सका  l  l " भगवान  ने  कहा --- " मैं  सब  भूतों  में  अपने  रहने  के  स्थान   उसकी  ह्रदय गुहा  में  जा  बैठा  था  ,  जहाँ  बैठकर  अपनी  माया  द्वारा   प्राणियों  को   उनके  कर्मानुसार   संसार चक्र  में  घुमाता  हूँ  l "