प्रतिभा वस्तुतः कोई ईश्वरीय देन नहीं होती l वह तो मनुष्य की अपनी जिज्ञासा , अपनी कर्म निष्ठा, लग्न और तत्परता के संयोजन का ही एक स्वरुप होती है जो दिन - दिन अभ्यास के द्वारा विकसित होती जाती है l
मनुष्य अपनी दीन-हीन दशा से समझौता नहीं कर ले और एक -एक कदम प्रगति के पथ पर बढ़ाता रहे तो उसे उसका लक्ष्य मिल ही जाता है l ' बहुत से व्यक्ति यह भूल करते हैं कि सफलता के लिए जो धैर्य और अनवरत श्रम चाहिए , उसके लिए एक -एक कदम बढ़ाकर मंजिल छू लेने की जो योजना बनाई जानी चाहिए , मन में अटल विश्वास रखना चाहिए , वह रख नहीं पाते l उसी का परिणाम यह होता है कि सफलता उनके लिए ' खट्टे अंगूर ' बन जाया करती है l '
मनुष्य अपनी दीन-हीन दशा से समझौता नहीं कर ले और एक -एक कदम प्रगति के पथ पर बढ़ाता रहे तो उसे उसका लक्ष्य मिल ही जाता है l ' बहुत से व्यक्ति यह भूल करते हैं कि सफलता के लिए जो धैर्य और अनवरत श्रम चाहिए , उसके लिए एक -एक कदम बढ़ाकर मंजिल छू लेने की जो योजना बनाई जानी चाहिए , मन में अटल विश्वास रखना चाहिए , वह रख नहीं पाते l उसी का परिणाम यह होता है कि सफलता उनके लिए ' खट्टे अंगूर ' बन जाया करती है l '