1 June 2019

WISDOM ---- दूसरों को पराधीन बनाना संसार में सबसे बड़ा अन्याय और दुष्कर्म है ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य श्री  ने   वाड्मय  में  लिखा  है ---- ' पराधीनता  मनुष्य  के  लिए  सबसे  बड़ा  अभिशाप  है ,  वह  चाहे  शारीरिक  हो  या  मानसिक  पराधीनता ,  व्यक्तिगत  हो  अथवा  राष्ट्रीय  ,  उससे  मनुष्य  के  चरित्र  का  पतन  हो  जाता  है  , गुणों  का  ह्लास  होने  लगता  है   और  तरह - तरह  के  दोष  उत्पन्न  होने  लगते  हैं  l '    कवियों  ने  पराधीनता  को  ऐसी    ' पिशाचिनी  '  की   उपमा   दी  है   जो  मनुष्य  के  ज्ञान ,  मान  ,  प्राण  सबका  अपहरण  कर  लेती  है   l
                                 भगवान  ने  संसार  में  अनेक  प्रकार  के  छोटे - बड़े , निर्बल - सबल ,  मूर्ख - चतुर  प्राणी  बनाये  हैं  l  ईश्वरीय  नियम  तो  यह  है  कि  जो  अपने  से  छोटा , कमजोर ,  नासमझ  हो  उसको  आगे बढ़ने  में , उन्नति  करने  में  सहायता  दी  जाये  ,  प्रगति  के  क्षेत्र  में  उसका  मार्गदर्शन  किया  जाये   , पर  इसके  विपरीत  जो  कमजोर  को  अपना  भक्ष्य  समझे  हैं  ,  छल - बल  से  उनके  स्वत्व  का  अपहरण  करना ,  उनकी  कमजोरी  का  फायदा  उठाकर   उनसे  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  को  ही   अपनी  विशेषता  समझते  हैं  ,  उन्हें  कम  से  कम  ' मानव '  पद  का  अधिकारी   तो  नहीं  कह  सकते  l   इनकी  गणना  तो  उन  क्रूर  हिंसक  पशुओं  में  ही  की  जा  सकती  है   जिनका  स्वभाव  ही  खूंखार  बनाया   गया  है   और  जो  सबके  लिए  भय  का  कारण  होते  हैं   l