31 May 2020

WISDOM ------

 तृतीय  सिख  गुरु   अमरदास जी ने   बासठ  वर्ष  की  उम्र  तक  कोई  गुरु  नहीं  किया  l   उन्हें  जब  यह  ज्ञात  हुआ  कि   गुरु  के  बिना  ज्ञान  नहीं  होता   तो  उन्होंने  गुरु  अंगद  देव जी  से  दीक्षा  ली  l   वे  बड़े  भोर  उठकर   तीन  कोस   दूर  नदी  से   गुरु  के  स्नानार्थ   जल  ले  आते  l   एक  अँधेरी  रात  में  वे  जल  लेकर  लौट  रहे  थे   तो  रास्ते  में  जुलाहे  की  खड्डी   से  उनका  पाँव  टकरा  गया   और  वे  गिर  पड़े  l   जुलाहा  जाग   उठा  और   पत्नी  से  बोलै --- " देख  तो  कौन  गिर  पड़ा  खड्डी   में  ? "
जुलाहिन   ने  कहा ---- " अरे  कौन  होगा  ,  वही  अनाथ  अमरु   जो  आधी  रात  में  गुरु  की  खिदमत  के  लिए  उठ  जाता  है  l "  प्रात:काल   गुरु  अंगद देव जी  ने  यह  वार्ता  सुनी  l  उन्होंने  सिखों  के  दरबार  में   रात  की  यह  घटना  बताई   और  अमरदास जी  को  गले  लगाकर  बोले  ---- " यह  अमरु  अनाथ  नहीं  है , बल्कि  सिखों  का  स्वामी  है  l  सेवा  धर्म  का  पालन  करने  के  कारण  यह  गुरु गद्दी  का  अधिकारी  है  l "
 जिस  स्थान  पर  गुरु  अमरदास  ठोकर  खाकर  गिरे  थे  ,  वहां  आज  भी  विशाल  गुरुद्वारा   उनकी  निष्ठा  का  यश  सुनाता  हुआ  खड़ा  है  l 

29 May 2020

WISDOM ------

  महाभारत  का  युद्ध  निश्चित  हो  गया  था  l   दोनों  पक्ष  अपने - अपने  सहायकों  को    एकत्र   करने  में  लग  गए  थे   l  इसी  क्रम  में  एक  दिन   दुर्योधन  भगवान  श्रीकृष्ण   के  पास  युद्ध  में  सहायता   मांगने  हेतु  पहुंचे  l   श्रीकृष्ण  उस  समय  विश्राम  कर  रहे  थे   l   दुर्योधन  उनकी  शैया  के  सिरहाने  बैठ  गए  l   तभी  अर्जुन  भी  इसी  उद्देश्य  से   श्रीकृष्ण  के  पास  पहुंचे  l  और  उन्हें  सोया  हुआ  देखकर  उनके  चरणों  के  पास  खड़े  हो  गए   l  जागने  पर  श्रीकृष्ण  ने  अपने  सम्मुख   अर्जुन  को  देखा   और  उनके  आने  का  उद्देश्य  पूछा  l   दुर्योधन  तुरंत  बोले  ---- " वासुदेव  !  पहले  मैं  आया  हूँ   l "  तब  भगवान  ने  पीछे  देखकर  दुर्योधन  के  आने  का  कारण  पूछा  l   तब  दुर्योधन  और  अर्जुन  दोनों  ने  अपने  आने  का  उद्देश्य  बताया  l
  इस  पर  श्रीकृष्ण  बोले ---- " मैं  इस  युद्ध  में   दीजिए शस्त्र  नहीं  उठाऊंगा  l   एक  ओर   मैं  शस्त्रविहीन  रहूँगा   और  दूसरी  ओर   मेरी  सेना  रहेगी  l  '   अर्जुन  ने  नि:शस्त्र   श्रीकृष्ण  को  चुना    और  दुर्योधन  ने  सेना  को  चुना   l   दुर्योधन  प्रसन्न  होकर  चले  गए   l   तब  श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  से  पूछा  --- "  तुमने  नि:शस्त्र   मुझे  क्यों  चुना  ,  सेना  क्यों  नहीं  ली  ? "
तब  अर्जुन  बोले  --- " हमारी  जय  हो  या  न  हो  ,  हम  आपको  छोड़कर  नहीं    रह  सकते  l  "
 वासुदेव  ने  हँसकर   पूछा ---- " मुझसे  क्या  कराओगे  ? "  अर्जुन  हँसकर   बोले ---- "  आपको  बनाऊंगा  सारथी  l   मेरे  रथ  की  डोर  हाथ  में  लीजिए   और  मुझे    निश्चिन्त  कर   दीजिए   l "
   जो  अपने  जीवन - रूपी  रथ  की   डोर   भगवान  के  हाथों  में  सौंप  देते  हैं  ,  उन की  लौकिक  तथा  पारमार्थिक  विजय  निश्चित  है  l 

28 May 2020

WISDOM ----- काल बड़ा बलवान

  पुराण  की  एक  कथा  है ----  दैत्यकुल  के  महाराज  बलि   इंद्रासन   पर   प्रतिष्ठित  थे  l   यह  बात  देवताओं  को  सहन  नहीं  हो  रही  थी  l   महाराज  बलि  महान  तपस्वी  थे  , वे  स्वर्ग  के  भोग - विलास ,  राग - रंग  में  मगन  नहीं  थे  ,  उनका  हर  क्षण ,  हर  पल   श्रेष्ठ  कर्मों  में  नियोजित  रहता  था  l  उनका  अपरिमित  बल  था  ,  उनकी  भक्ति  भी  असाधारण  थी  l   वे  तपस्वी  के   साथ   एक  सच्चे  भक्त  भी  थे  l     वामन  बनकर  भगवान   विष्णु   उनके  पास  गए   और  कहा  --- " बलि  ! मुझे  तीन  पग  जमीन   दान  में  दे  दो  l '  गुरु  शुक्राचार्य   ने  उन्हें  भगवान  विष्णु  के  इस  छल  के  प्रति  आगाह  भी  किया  था   लेकिन  बलि  ने  कहा --- हे  गुरुवर  !  स्वयं  भगवान  मेरे  द्वार  पर  याचक  बन  कर  आएं  , तो  मैं  उन्हें  कैसे  मन  कर  सकता  हूँ  l  "
  भगवान  विष्णु  ने  दो  पग  में  धरती - आसमान  नाप  लिए  ,  अब  तीसरा  पग  कहाँ  रखें  ,  बलि  ने  कहा  -- इसे  मेरे  सिर   पर  रखें  l   भगवान  ने  बलि  के  सिर   पर  पाँव  रखकर  उसे  पाताल   भेज  दिया  l  महाराज  बलि  का  समस्त  साम्राज्य  छिन   गया  , अब  वे  साधारण  इनसान   की  भांति  पाताललोक  में  रहने  लगे   l   यह  स्थिति  उनके  परिजनों  को  मंजूर  नहीं  थी   कि   वे  इतनी  साधारण  स्थिति  में  रहें  l  तब  महाराज  बलि  ने  उन्हें  समझाया ---- " काल  की  बड़ी  महिमा  है  l  काल  की  महिमा  से  जो  अवगत  होते  हैं  ,  वे  उसको  प्रणाम  कर  के    उसके  अनुकूल  स्वयं  को  ढाल  लेते  हैं  l   आज  काल  हमारे  साथ  नहीं  खड़ा  ,  अत:  ऐसे  विपरीत  समय  में    कोई  ज्ञान , कोई  तप , कोई  साधन  काम  नहीं  आते  l   काल  की  इस  विपरीत  दशा  में   हमें  शांत  एवं  स्थिर   बने  रहना  चाहिए  l  प्रभु  द्वारा  निर्धारित  स्थान  पर  रहकर  ,  अपनी  भक्ति  के  सहारे   आने  वाले  अनुकूल  समय  की   प्रतीक्षा  के   अलावा   और  कोई  विकल्प  नहीं  है  l   इस  समय  कोई  प्रयास - पुरुषार्थ  काम  नहीं  आता  l   इस  समय  कोई  अपना  भी  साथ  नहीं  देता  है  ,  केवल  भगवान  ही  सुनता  है  और  साथ  देता  है  l '

27 May 2020

WISDOM ------ भय जीवन का महाशत्रु और सबसे बुरी बीमारी है l

  भय  अज्ञान  से  उत्पन्न  होता  है  l   विभिन्न  प्रकार  के  मनोरोग   भय  के  कारण  ही  जन्म  लेते  हैं   और  जीवन  नारकीय  यंत्रणा  से  भर  जाता  है  l   इससे  व्यक्ति  का  मानसिक ,  चारित्रिक  और   आत्मिक  पतन  होता  है   और  व्यक्ति  का  खुशहाल  जीवन   दम    तोड़  देता  है   l 
  वर्तमान  विश्व  में    जिस  एक   वस्तु    का  व्यापार   सबसे  अधिक  हो  रहा  है  ,  वह  एक  प्रकार  का  भय  ही  है l     पश्चिमी  समाज     भय  खरीदने  और  बेचने  वालों  की  मंडी  में  तब्दील  हो   गया     है   l  जो  जितना  भय  पैदा  करता  है  ,  वह  उतना  ही  सफल  सिद्ध  हो  रहा  है   l   जो  फ़िल्में   जितना  भय  उत्पन्न  कर  सकेंगी  वे  उतनी  ही  सफल  हैं  ,  उनका  कारोबार  भी  करोड़ों   डॉलर  में  होता  है  l   वे  कॉमिक्स  जो  बच्चों  में  भय  पैदा  करते  हैं  वे  सर्वाधिक  बिकते  हैं   l   विश्व प्रसिद्ध     चिंतक   नोम   चोमस्की  ने  कहा  था था  कि   भय    व्यापार  की  छठी   इंद्रिय   है  l
  भय    मानवीय    मनो - मस्तिष्क  को  ंप्रभावित  करने  वाला   सबसे  बड़ा  कारण  है  l  व्यक्ति  ही  नहीं   समाज  एवं   राष्ट्र  भी   भयग्रस्त   हो  जाते  हैं  l   आज  सारा  संसार  आतंकवाद  और  जैविक  युद्ध  के  विनाश  से  भयभीत  है   l     कभी  भय  वास्तविक  होता  है   और  कभी  आसुरी  शक्तियां    अपने  विशिष्ट  उद्देश्यों  की  पूर्ति  के  लिए  भय  का  वातावरण   निर्मित  कर  देती  हैं   l
 भय  की  आशंका  समस्त  विपत्तियों  का  कारण  है  ,   भय  दासता  है  , इससे  प्रगति  अवरुद्ध  हो  जाती 
 है  l  भय  का  आधार  ही  स्वयं  पर  अविश्वास  है  l   जब  तक  स्वयं  पर  विश्वास  नहीं  होगा  , विकास  कैसे  संभव  होगा   l   ईश्वर विश्वास  से  ही  सभी  प्रकार  के  भय  से  मुक्ति  संभव  है  l   साहस  और  निर्भयता  ही  सफलता  का  रहस्य  है  l 

WISDOM ------- सुख से जीवन जीने के लिए शांति जरुरी है

  शांति  में  ही  समस्त  सुखों  का  अनुभव  होता  है   l   संत  इमर्सन  ने  लिखा  है ---- " युवावस्था  में  मेरे  अनेक  सपने  थे  l   उन्ही  दिनों  मैंने  एक  सूची   बनाई   थी  कि   जीवन  में  मुझे  क्या - क्या  पाना  है  l   इस  सूची   में  वे   सारी   चीजें  थीं  ,  जिन्हे  पाकर  मैं  धन्य  होना  चाहता   था  l   स्वास्थ्य , सौंदर्य , सुयश , सम्पति ,  सुख ,  इसमें  सभी  कुछ  था  l   इस  सूची   को  लेकर   मैं  बुजुर्ग  संत   थॉरो   के  पास  गया   और  उनसे  कहा  ---- " क्या  मेरी  इस  सूची   में  जीवन  की   सभी  उपलब्धियां   नहीं  आ  जाती  हैं   ? "  उन्होंने  मेरी  बात  को  ध्यान  से  सुना  l   फिर   बोले ---- " मेरे  बेटे  !  तुम्हारी  यह  सूची   बड़ी  सुन्दर  है   l   बहुत  विचार पूर्वक   तुमने  इसे  बनाया  है   l   फिर  भी  तुमने  इसमें   सबसे  महत्वपूर्ण  बात  छोड़  दी  ,  जिसके  बिना  सब  कुछ  व्यर्थ  हो  जाता  है   l  "
 मैंने  पूछा --- " वह  क्या  है  ? "     उत्तर  में   उन  वृद्ध  अनुभवी  संत  ने   मेरी  सम्पूर्ण  सूची   को  बुरी  तरह  काट  दिया   और  उसकी  जगह   उन्होंने  केवल  एक  शब्द  लिखा  --- शांति   l  "
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  ---- ' अंतर्मन  में  शांति  प्रगाढ़  हो   तो  दुःखमय   परिस्थितियां  ,  बाहरी  जीवन  के  सारे  आघात  मिलकर  भी    अन्तस्  में   दुःख  को  अंकुरित  नहीं  कर  पाते  l '

26 May 2020

WISDOM -----

  यदि  मानसिकता  दूषित  है  तो  उसके  परिणाम  हमेशा  हमेशा  घातक  होंगे   l   आसुरी  प्रवृति  के   जो  लोग  हैं  उन्हें  हमेशा  दूसरों  को  सताने  में  आनंद  आता  है  l   एक  बात  महत्वपूर्ण  है  कि   बिच्छू   की  प्रवृति  डंक    मारने    की  है   तो  वह  सबको  डंक  मारेगा   l   ऐसा  नहीं  है  कि   गरीब , कमजोर  को  मारे  और  अमीर  को  छोड़  दे   l   रावण  ने  यदि  सामान्य  जनता  पर  ,  ऋषियों  आदि  पर  अत्याचार  किया   तो  इतने  बलशाली  शनि  और  राहु  को  भी   अपनी  कैद  में  रख  लिया  l
  आसुरी  प्रवृति  के  लोगों  की  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  जाती  है   l   नियंत्रण  करना  और  लूटपाट  करना  इनके  प्रमुख  अस्त्र  हैं   l   कम  लोगों    पर   नियंत्रण  रखना  आसान  है    ,  इसलिए  इनकी  संहार  करने  में  रूचि  होती  है   l    लूटपाट  के  लिए  अब  पहले  जैसे     घोड़े  पर  सेना  सहित  नहीं  आते  अब  तो  यह  सब  सभ्य  तरीके  से  होता  है   l    विज्ञापन,  प्रचार ,  भय,   लालच  ,  छल - छद्म   आदि  से  लोग  इतने  अमीर  हो  जाना  चाहते  हैं  कि   दुनिया  पर  राज  कर  सकें   l
  जागरूक  न  होने  के  कारण  ही  व्यक्ति  अन्याय  सहता  है   l   एक  छोटा  सा  परिवार  ही  यदि  जागरूक  और  संगठित  नहीं  है  तो  गैर  लोग   मौके  का  फायदा  उठा  लेंगे  l   जिनकी  नियत  फायदा  उठाने  की  होती  है  वे  हमेशा  घात  लगाए  बैठे  रहते  हैं  ,  फिर  चाहे  बात  परिवार  की  हो  या  देश  की  l   हम  जागरूक  और  संगठित  होकर  ही   अपने  अस्तित्व  की  रक्षा  कर  सकते  हैं  l 

WISDOM ------ मारने वाला नहीं , बचाने वाला बड़ा होता है

     राजकुमार  सिद्धार्थ   और  मंत्री पुत्र  देवदत्त   दोनों  साथ - साथ  बाग़  में  घूमने  जा  रहे  थे  l   सहसा  सिद्धार्थ   ने  देखा   दो  सुन्दर  राजहंस  आकाश  में  जा  रहे  हैं  l   उन्हें  देखकर  वह  प्रसन्न  हो   उठा  और  बोला  ---- देवदत्त  !  देखो  ये  कितने  सुन्दर  पक्षी  जा  रहे  हैं  l   देवदत्त  ने  ऊपर  देखा   और  अपना  धनुष - बाण  उठाया  ,  एक  पक्षी  को  मार  गिराया  l   सिद्धार्थ   की  प्रसन्नता  , व्याकुलता  में  परिणत  हो  गई  l   सिद्दार्थ  दौड़े ,  और  रक्त  से  सने   राजहंस  को  गोदी  में  उठा  लिया  और  रोने  लगे  l
देवदत्त  ने  कहा --- इस  पक्षी  पर  मेरा  अधिकार  है   सिद्धार्थ  l   देखते  नहीं  हो  इसे  मैंने  बाण  से  मारा  है  l   सिद्दार्थ  बिना  कुछ  कहे - सुने  पक्षी  को  लेकर  भवन  चले  गए  l   वहां  उसको  पानी  पिलाया  और  बड़े  प्यार  से  उसकी  सेवा  करने  लगे   l   देवदत्त  ने  उस  समय  राजकुमार  समझकर  कुछ  झगड़ा  नहीं  किया  ,  लेकिन  फिर  न्याय  प्राप्ति  के  लिए  महाराज  के  पास  जाकर  शिकायत  की  l
महाराज  ने  दोनों  को  राजदरबार  में  उपस्थित  होने  की  आज्ञा  दी  l   एक  और  देवदत्त  खड़े  थे  और  दूसरी  ओर   सिद्धार्थ   अपनी  गोद   में  पक्षी  को  लिए  खड़े  थे  l   देवदत्त  ने  अपना  तर्क  प्रस्तुत  किया  --- महाराज  मैंने   पक्षी  को  बाण  मारा  ,  इसलिए  इस  पर  मेरा  अधिकार  है  l   सिद्धार्थ   ने  कहा --- मैंने  इसे  बचाया  , इसलिए  इस  पर  मेरा  अधिकार  होना  चाहिए  l   महाराज  ने  पक्षी  को  दोनों  के  बीच  छुड़वा  दिया  ,  वह  राजहंस  स्वयं  ही   तेजी  से  सिद्धार्थ   के  पास  चला  गया  l   मूक  पक्षी  ने  स्वयं  ही  सिद्ध  कर  दिया  कि   मारने  वाला  नहीं ,  बचाने   वाला  बड़ा  होता  है  l
अंत:करण   की  यह  करुणा  की  भावना   ही  विस्तार पाकर   व्यक्ति  को   विश्वमानव  बना  देती  है  l   सिद्धार्थ    ही   करुणावतार   भगवान  बुद्ध  कहलाए ,  जिन्हे  संसार  नमन  करता  है   l

25 May 2020

WISDOM ------

 पुरानी   आदत  आसानी  से  जाती  नहीं  l   जिन  जातियों  ने  संसार  को  हमेशा  से  अपना  गुलाम  बनाया  ,  उनकी  यह  गुलाम  बनाने  की  आदत  जाती  नहीं  l   और  जो  जातियां  गुलाम  रहीं  ,  अब  उनको  गुलामी  में  रहना  ही  अच्छा  लगता  है  l   जैसे  एक   हाथी   जब  छोटा  रहता  है ,  उसे  रस्सी  से  बांध  दो  ,  तो  उसकी  बंधे  रहने  की  आदत  बन  जाती  है  l   जब  वह  बड़ा  मजबूत  हाथी  हो  जाये  तब  भी  वह  उस  पतली  रस्सी  से  बंधा  रहता  है ,  रस्सी  तोड़  कर  भागता  नहीं  l
  गुलाम  बनाने  के  तरीके  भौतिक  प्रगति  के  साथ - साथ   आधुनिक  हो  जाते  हैं  l   पहले  मार  - पीट  कर , अत्याचार  कर  गुलाम  बनाते  थे   l   अब  तरीका  बदल  गया  l   जो  देश  गरीब  हैं , कमजोर  हैं  ,  जिन्हे  अपने  साधनों  पर  यकीन   नहीं  है  ,  उन्हें  ऋण  देकर ,  सहायता - अनुदान  के  बोझ  से  इतना  दबा  दो   की  वे  उनकी  हर  आज्ञा  को  मानने   को  विवश  हो  जाएँ  l   इसमें  नुकसान  तो  दोनों  पक्षों  का  होता  है   किन्तु   जो  शक्तिशाली  हैं  उनके  अहं   को  पोषण  जरूर  मिल  जाता  है  l 
जब  तक  लोगों  का , देश  का  स्वाभिमान  नहीं  जागेगा  ,  हम  अपनी  संस्कृति , अपने  साधनों  को  महत्व  नहीं  देंगे  ,  तब  तक  इस  जंजाल  से  मुक्ति  संभव  नहीं  है   l
   

WISDOM ---- संसार का सबसे कठिन कार्य है --- किसी को खुशी देना l

  किसी  को  कष्ट  देना ,  उसकी  खुशियां  छीन  लेना ,  किसी  की  आँखों  में  आँसू   देना  बहुत  सरल  कार्य  है   l    ऐसे  ही  कार्यों  की   आज  संसार  में  भरमार  है   l   इसलिए   लेकिन  किसी  को  खुशी   देना ,  चेहरे  पर  मुस्कान  ला  देना  ,  सच्चे  हृदय  से  किसी  के  कार्यों  की  तारीफ़   करना    बहुत  कठिन  कार्य  है   l
  किसी  को  ख़ुशी  देने  के  लिए  बहुत  बड़ी  धन - सम्पदा  देने  की  जरुरत  नहीं  है  ,  किसी  के  कठिन  वक्त  में  उसकी  मदद  करने  से  ही  उसको  ख़ुशी  मिल  जाती  है  l   एक  घटना  स्पष्ट  करती  है  कि   खुशियाँ   कैसे  आती  हैं  -----  एक  गाँव  में  बहुत  गरीबी  थी  ,  खेती  अच्छी  नहीं  थी , कोई  रोजगार  नहीं  था  ,  शासन  से  जो  मदद  मिलती  थी  , उससे  गुजारा   हो  जाता  था   l   चारों  और  सन्नाटा  था , कहीं  कोई  उमंग  नहीं  थी  l  कई  वर्ष  ऐसे  ही  सन्नाटे  में  गुजर  गए  l   कुछ  श्रद्धालुओं  ने   वहां  एक  प्राचीन  खंडहर  हुए  मंदिर  का  जीर्णोद्धार  किया  ,  उसमे  शनि महाराज  और  हनुमानजी  व  अन्य  देवी - देवताओं  की  मूर्तियां  थीं ,  साफ - सफाई  कर  के  वहां  पूजा - प्रार्थना  शुरू  करा  दी  l  श्रद्धालु  दर्शन  के  लिए  आने  लगे  l  गाँव  के  लोगों  में  उमंग  जगी  l   सुबह  जल्दी  उठकर   महिलाएं , बच्चे  सब  फूल - मालाएं  तैयार  करते ,  भजन - पूजन  की  सामग्री ,  प्रसाद    आदि   तैयार  कर  के   मंदिर  से  मुख्य  सड़क  तक  सब  खड़े  रहते   l   दिन - भर  में  सबकी      फूल - माला    आदि  की  जो  बिक्री  होती  ,  वह  उन  के  मन  को  खुश   करने  के  लिए  पर्याप्त  थी   l   शनिवार , मंगलवार  को  मेला  भरता   l  खेल - खिलौना , गुब्बारे , मिठाई  , झूला   सभी  की  कुछ  न  कुछ  बिक्री  होती   l    दिनभर  मेहनत  के  बाद  जो  पैसा  मिलता  ,  उसकी  ख़ुशी  ही  अलग  है l    मात्र  एक - दो  महीने  में  ही  उस  गाँव  का  काया कल्प  हो  गया   l   लोगों  के  जीवन  में  उमंग  आ  गई  ,  जिस  गाँव  में  सन्नाटा  पसरा  था  ,  वहां   महिलाओं  की  हंसी , बच्चों  की  खिलखिलाहट  गूंजने  लगी   l
   इसे  हम  केवल  ईश्वर  की  कृपा  नहीं  कह  सकते  l   कर्मकांड  चाहे  किसी  भी  धर्म  के  हों  ,    उनमे  अच्छाई - बुराई  हो  सकती  है   लेकिन  उनके  माध्यम  से  लोगों  को  रोजगार  मिलता  है  ,  आय  प्राप्त  होती  है  ,  गरीबों  के  जीवन  में  छोटी - छोटी  खुशियां  आ  जाती  हैं   l   उनका  सामान  खरीदकर ,  उन्हें  थोड़ी  सी  ख़ुशी  देकर    हमारे  लिए  भी     ईश्वर  की  कृपा  पाने  का   रास्ता  खुल  जाता  है   l 

24 May 2020

WISDOM ------

 भारतवर्ष   के  महामहिम  राष्ट्रपति   ए. पी. जे. कलाम  के  जीवन  का  एक  प्रसंग  है  ----  एक  बार  एक  बच्चे  ने  उनसे  पूछा    कि   क्या  उन्होंने  महाभारत  पढ़ी   है  ?   जब  उन्होंने  इसका  जवाब  ' हाँ '  में  दिया   तो  बच्चे  ने  उनसे  अगला  प्रश्न  किया   कि   इसमें  से  कौन  सा   चरित्र    उन्हें  सबसे  ज्यादा  प्रिय  है  l
 इस  महाकाव्य  के  मर्म  को  जानने  वाले   राष्ट्रपति  महोदय  ने   उस  बच्चे  को  बताया  कि   वे  महात्मा  विदुर  के   चरित्र  से   बहुत  प्रभावित  हुए  l   बच्चे  ने  उनसे  फिर  पूछा  -- ' क्यों  ? '
  उत्तर  में  उन्होंने  कहा  --- " क्योंकि  महात्मा  विदुर  ने   सत्ता  की  गलत  हरकतों  के  खिलाफ  आवाज  उठाई   और  जिन्होंने   अधर्म  की  ज्यादतियों   के  विरुद्ध   उस  स्थिति  में  भी  मोरचा   खोलने  का  साहस  किया   जब  पितामह  भीष्म ,  आचार्य  द्रोण ,  महावीर  कर्ण   आदि  सब  वीरों  ने  हथियार  डाल  दिए  थे  l  "
   महामहिम  राष्ट्रपति  के   इस  उत्तर  में   उनका  निज  का  स्वप्न  भी  शामिल  था  ,  जो  कल्पनाशील  मन   और  साहसी  विवेक  से  उपजा  था  l  महात्मा  विदुर   की  ही  भांति  स्वयं  के  चरित्र  का  निर्माण  l

23 May 2020

WISDOM ---- सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें

  जब  दसों   दिशाओं  में  रावण  का  आतंक  था  ,  आसुरी  शक्तियों   की  प्रमुखता  थी   l   रावण  इस  बात  को  अच्छी  तरह  जनता  था  कि   यदि  ऋषियों  ने  यज्ञ , हवन   आदि  किया  , प्रार्थना - पूजा  की  तो  उसकी  आसुरी  शक्ति  कमजोर  पड़   जाएगी   l   इसलिए  उसने  ऋषियों  के  यज्ञ , हवन  - पूजन  को  अपवित्र  करना  ,  उनमे  व्यवधान  डालना   शुरू  कर  दिया  था  l   इसी  तरह  हिरण्यकश्यप  ने  स्वयं  को  भगवान    मानकर   सारे  धार्मिक  स्थलों  को  बंद  कर के   जनता  को  अपनी ( हिरण्यकश्यप ) की  पूजा  करने  को विवश  किया  l
 आज  संसार  पर  आसुरी  शक्तियों  का  ऐसा  असर  हो  गया   कि   सभी  धर्मों  के  धार्मिक  स्थल  बंद  हो  गए   l   उनके  आसपास    जो  बहुत  से   छोटे - छोटे  व्यवसायी  थे  ,  ईश्वर  की  कृपा  से  जिनके  परिवार  का  भरण - पोषण  हो  रहा  था  ,  उन  सब  पर  भी  गाज  गिर  गई  l   आसुरी  शक्तियां  इसी  तरह  कमजोर  को  परेशान    कर   चारों  ओर   भय  व्याप्त  कर  देती  हैं  l   जहाँ  से  भी  थोड़ी - बहुत  सकारात्मक  ऊर्जा  उत्पन्न  होती  है    उसे  बंद  कर  नकारात्मक  ऊर्जा    जैसे  नशा  आदि  को  प्रश्रय  देती  हैं   
  इन  समस्याओं  से  निपटने  के  लिए  जागरूकता  जरुरी  है  ,  सद्बुद्धि  ही  इसका  एकमात्र  हल  है  l 

WISDOM ------

   धन  का  आकर्षण  बड़ा  जबरदस्त  होता  है   l   जब  लोभ  सवार  होता  है  ,  तो    मनुष्य    अँधा  हो  जाता  है   और  पाप - पुण्य   में   कुछ  भी  फर्क  नहीं  देखता  है   l   लोभ  के  आते  ही  पाप  की  भावनाएं  बढ़ती  हैं   और   ऐसा  व्यक्ति  स्वयं  भी  उस  पाप  के  परिणाम  से  नष्ट  हो  जाता  है  l 
  एक  कथा  है  ------ तीन    बुद्धिमान  व्यक्ति   आपस  में  विचार - विमर्श  कर  रहे  थे   कि   दुनिया  में  इतना  पाप  कैसे  बढ़ता  जा  रहा  है  ,  जिसके  कारण  लोग  इतना   दुःखी   हैं   l   यह  पता  करें  कि   आखिर  यह  पाप  कहाँ  से  उत्पन्न  होता  है   ?  इस  पाप  का  बाप  कौन  है  ?    इस  प्रश्न  के  उत्तर  की  खोज  में  वे  आगे  बढ़ते  गए  l  उन्हें  एक  वृद्ध  अनुभवी  पुरुष  मिला   l   उन्होंने  उससे  प्रार्थना  की  कि   वह  उन्हें  पाप  के  बाप  का  पता  बता  दे  l   वृद्ध  ने  ऊँगली  का  इशारा  करते  हुए   पर्वत  की  एक  गुफा  दिखाई   और  कहा  ---- "  देखो  उस  कंदरा   में  पाप  का  बाप  रहता  है  l   पर  देखो  !  सावधान  वह  तुम्हे  भी  पकड़  न  ले  l
      तीनो  मित्रों  ने  गुफा  में  पहुंचकर  देखा  ,  वहां  सोने  के  बड़े - बड़े  ढेर  हैं  ,  हजारों  मन  सोना  बिखरा  पड़ा  है  l  उन्होंने  निश्चय  किया  कि   रात्रि  में  इस  सोने  को  ले  चलेंगे ,  कोई  नहीं  देख  सकेगा  l  अभी  भोजन  कर  के    आराम  कर  लें  l
तीनों  के  मन  में  स्वर्ण  का  लालच  आ  गया  ,  वे  सोचने  लगे  कि   दो  मर  जाएँ  तो  सारा  सोना  उसे  मिल  जाये  l    जो  दो  साथी  भोजन  लेने  गए  थे  ,  उनमे  से  एक  ने  दूसरे  को  तलवार  से  मार  डाला   और  भोजन  सामग्री  में  जहर  मिला  दिया  l   तीसरा  साथी  और  भी  होशियार  था  ,  उसने   उस  साथी  के  आते  ही  उस  पर  वार  कर  उसे  मार  डाला   और  अब  वह  बड़ा  प्रसन्न  था  कि  सारा  सोना  उसे  मिल  जायेगा  l   उसने  भरपेट  भोजन  किया  l   भोजन  में  जहर  था  ,  उसके  भी  हाथ - पैर    ऐंठने  लगे  और  वह  भी  मर  गया   l   लोभ  के  आते  ही  तीनो  के  मन  में  पाप  आ  गया   और  इस  पाप  ने  ही  उन  तीनों  का  अंत  कर  दिया  l 

22 May 2020

WISDOM -----

   '  आधी  छोड़  सारी   को  धावे ,  आधी  मिले  न  सारी   पावे   l 
  यह  उक्ति  इस  संदर्भ   में  है   कि   युगों  की  दासता  के  कारण  हम  अपनी  संस्कृति  को  भुला  बैठे  l   चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  हमारे  यहाँ  आयुर्वेद है , नाड़ी   विज्ञानं  , प्राकृतिक  चिकित्सा , योग    आदि  में   आज  भी  देश  में  इतने  अनुभवी  हैं   कि   उनके  मार्गदर्शन  में   स्वस्थ  रहा  जा  सकता  है  l 
 ऐलोपैथी  में  भी  बहुत   गुण   हैं   लेकिन  हमें  अपनाना  वही  चाहिए  जो   हमारे  देश  की  जलवायु  , हमारे  रहन - सहन   और  उन  पांच  तत्वों --- पृथ्वी , जल , अग्नि, वायु  और  आकाश   जिनसे  हमारा  शरीर  बना  ,  उसके  अनुकूल  हो  l
यही  स्थिति  उन  देशों  की  भी  है   जिन्होंने  वर्षों  की  गुलामी  झेली  है   और  अपनी  संस्कृति  को  भी  खो  दिया   है  l   और  आज  ऐसे  सभी  देश   विज्ञान   और   आधुनिक   तकनीक    के  आगे   स्वयं  के  अस्तित्व  को  मिटाने   पर  उतारू  हैं  l
  आचार्य श्री  का  कहना  है  -- हमारी  हंस वृति   होनी  चाहिए  l '  जैसे  हंस  दूध  पी   लेता  है ,  उसका  पानी  छोड़  देता  है  l   उसी  तरह  हम  श्रेष्ठ  को  ग्रहण  करें  l  

WISDOM -------

  ईश्वर  दो  बार  हँसते  हैं   l   एक  बार  उस  समय  हँसते  हैं  ,  जब  दो  भाई  जमीन     बांटते  हैं   और  रस्सी  नापकर  कहते  हैं  ---- " इस  ओर   की  जमीन  मेरी   और  उस  ओर   की  तुम्हारी  l  "  ईश्वर  यह  सोचकर  हँसते  हैं   कि   संसार  है  तो  मेरा    और  ये  लोग   थोड़ी  सी  मिटटी  लेकर    इस  ओर   की  मेरी  ,  उस  ओर   की  तुम्हारी   कर  रहे  हैं   l
 फिर  ईश्वर  एक  बार  और  हँसते  हैं   l   बच्चे  की  बीमारी  बड़ी  हुई  है  l   उसकी  माँ  रो  रही  है  l   वैद्य  आकर  कह  रहा  है  --- "  डरने  की  क्या  बात  है  ,  माँ  !  मैं  अच्छा  कर  दूंगा  l  "  वैद्य  नहीं  जानता   कि   ईश्वर  यदि  मारना  चाहे    तो  किसकी  शक्ति  है  ,  जो  अच्छा  कर  सके  ?  ---- रामकृष्ण   परमहंस  l 
             रामकृष्ण  परमहंस   सिद्ध  पुरुष  थे  ,  वे  भविष्य द्रष्टा  थे  l   आज  से  इतने  वर्ष  पूर्व  उन्होंने  जो  कहा  ,  वह  आज  की  परिस्थितियों  में  सटीक  बैठता  है  l   आज  बड़े - बड़े  वैज्ञानिक  और  शक्तिशाली  सरकारें  कहती     हैं   कि   वैक्सीन   लग  जायेगा  ,  फिर  सब  स्वस्थ  होंगे  ,  कोई  नहीं  मरेगा  l   यदि  ऐसा  संभव  होता  तो    चिकित्सा  विज्ञान   ने  कितनी  तरक्की  कर  ली  है  ,  एक से  बढ़कर  एक  अमीर ,  तानाशाह ,  राजा - महाराजा  सब  अमर  हो  गए  होते  l   इसलिए  हमारे  ऋषियों  ने  कहा  है  ---' मौत  के  अनेक  बहाने  होते  हैं  ,  और  जीवन  रक्षा  के  अनेक  सहारे  होते  हैं  l '
  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  लिखा  है  --- ' यह  संसार  गणित  से  चलता  है   l  '
जो  ईश्वर  की  सत्ता  में  विश्वास  करते  हैं   , वे  इस  कथन  की  सत्यता  को  , उसकी  गहराई  को  समझते  हैं  l 

WISDOM -----

   कथा  है  ---- राजा  भोज   अपने  रथ  से  उद्दान   की  ओर   जा  रहे  थे  ,  तभी  उस  काल  के   योगी , तपस्वी  , गायत्री  सिद्ध  साधक  गोविन्द   को  देखकर  उन्होंने  रथ  रोकने  का  आदेश  दिया  और  रथ  से  उतरकर   राजा  ने  योगी  का  अभिवादन  किया  l   गोविन्द  ने  राजा  के  अभिवादन  का  उत्तर  न  देते  हुए   अपनी  दोनों  आँखें  मूँद   ली  l   गोविन्द  की  प्रतिक्रिया  से  विस्मित  राजा  ने  कहा ---- " हे  महातपस्वी  !  आपने  हमें  आशीर्वाद  देना   तो  दूर  ,  अपनी  आँखें  ही  बंद  कर  लीं  l   हमसे  ऐसी  क्या  भूल  हो  गई  l   इसे  स्पष्ट  करने  की  कृपा  करें  l "
 गोविन्द  ने  कहा  --- " महाराज  ! यदि  आप  सत्य  सुनना  चाहते  हैं   तो  मैं  सत्य  वचन  कहता  हूँ  ,  पर  ध्यान  रखें ,  सत्य  को  सह  पाना  अत्यंत  कठिन  है  l "
महाराज  भोज  ने  कहा --- " आप  सत्य  ही  कहें  l   राजदरबार  में  हमें  प्रसन्न  करने  के  लिए   गाये   गए   अतिशयोक्तिपूर्ण   गान  से  हमें  वितृष्णा  सी  हो  गई  है   l   आप  सत्य  कहें  ,  हमें  स्वीकार  है  l "
 गोविन्द  ने  कहा --- " राजन  !  लोकोक्ति  है  कि   प्रात:  किसी  कृपण  का  मुख  देखकर   नेत्र  बंद  कर   लेना  चाहिए  l   इसी   कारण  मैंने   अपनी  आँखें  मूँद   ली  हैं  l  '
   अपनी  गलती  सुनना   भी  अत्यंत  साहस  का  काम  है  l  राजा  के  माथे  पर  पसीने  की  बूंदे   दीखने   लगी  l   किसी  तरह  राजा  भोज  ने  अपने  को  संयत  किया  और  कहा  --- ' हे  तपस्वी  !  हमने  कइयों  को  दान  किया  l   क्या  हम  कृपण  हैं  ? "
 गोविन्द  ने  कहा --- " महाराज  !  आपने  जो  दान  दिया ,  वह  अपने   अहंकार  की  तुष्टि  के  लिए  दिया  है   l   जबकि  दान  किसी   सत्पात्र  को  उदारता  के  साथ   प्रदान  किया  जाता  है  l  आपने  दान  उसे  दिया  है  जिसे  उसकी  आवश्यकता  ही  नहीं  थी   l   केवल  चाटुकारों  को  आपने  दान  दिया  है  l   आप  राजा  हैं  ,  राजा  प्रजा  का  भगवान  होता  है   l   जो  राजा  अपने  इस  धर्म  का  पालन  नहीं  करता  उसकी  दुर्गति  सुनिश्चित  है   l   जो  राजकोष  का  उपयोग  केवल   अपने  सुख - भोग , वासना - तृष्णा  की  पूर्ति  के  लिए  करता  है  ,  एक  दिन  उसका  पतन  सुनिश्चित  है  ,  फिर  चाहे   वह   कितना   ही   धनबल ,  जनबल  एवं   बाहुबल    से  संपन्न  क्यों  न  हो    l   अत:  ऐसे  राजा  का  मुख  नहीं  देखना  चाहिए   और  इसलिए  हमने  अपनी  आँखें  मूँद   ली  हैं  l  "
  राजा  भोज   का  हृदय  सत्य  के  बाणों   से  बिंधता  जा  रहा  था   l   गोविन्द  आगे  बोले  ----  " महाराज  !  प्रगल्भ  की  विद्दा ,   कृपण  का  धन    और  कायर  का  बाहुबल   ----  ये  तीनों  पृथ्वी  पर  व्यर्थ  हैं  l   पृथ्वी  पर  सद्गुण  देह  छूटने  के  बाद  भी   अमर  रहता  है  l   धन  तो  चंचल  है  ,  इसका  विनिमय  तो  होना  ही  है  ,  परन्तु  उसका  सदुपयोग  सर्वोच्च  है  l   उदारता  हृदय  का  गुण   है  l   यदि  उदारता  है   तो  दधीचि ,  शिवि  और  कर्ण   के  समान  दानवीर   हुआ  जा  सकता  है  ,  जिनकी  अमर गाथा  अभी  भी  इस  धरा  पर  गायी   जाती  हैं   l  "
  गोविन्द  की  दी  गई  शिक्षा  ने  राजा  भोज  का  हृदय  परिवर्तित  कर  दिया  ,  इसके  उपरांत  उन्होंने  अपने  धन  का   अधिकतम    उपयोग   प्रजा  के  कल्याण  के  लिए  किया  l   उस  दिन  का  सूर्योदय  उनके  जीवन  में  भाग्योदय    के  रूप  में  परिवर्तित  हो  गया    l 

21 May 2020

WISDOM ------

     देवी  लक्ष्मी  और  माँ  सरस्वती  के  मध्य  संवाद  चल  रहा  था   l   लक्ष्मी जी  बोलीं --- " बहन  सरस्वती  !  देखो  , सुयोग्य  विद्वान्   भी  मेरे  द्वार  पर   नित्य  प्रति   धन  की  आशा  में  खड़े  रहते  हैं  l  "
  सरस्वती जी  बोलीं ---- " बहन  !  इसके  साथ  यह  भी  सत्य  है   कि   व्यक्ति  बहुत  धनी   हो  ,  परन्तु  अज्ञानी  हो   तो  पशु  तुल्य   ही  है  l  "  ब्रह्मा जी  दोनों  की  बातें  सुन  रहे  थे  l   वे  दोनों  को  संबोधित   करते  हुए  बोले ---- " देवियों  !  आप  दोनों  की  ही  बातें  सत्य  है   l   यदि  आप  दोनों  द्वारा  दिए  गए  गुणों  के  साथ   विवेक  और  जुड़  जाये   तो  मनुष्य  का  जीवन  संपूर्ण   हो  जाता  है  l  "
        धन   और  ज्ञान   के  साथ  विवेक  जरुरी  है   l   आज  सारे   संसार  में  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  है  l    धनी   अपने  धन  का  उपयोग  ,   अपने  खजाने  को  और  बढ़ाने  के  लिए  ही  करता  है  l   उसका  प्रयास  यही  रहता   है  कि   अपने  धन  से   सबका  मुँह   बंद  कर  के   हर  वह  कार्य  कर  ले  जिससे  उसका  खजाना  बढ़  जाये  ,  वह  अरब  से  खरबपति ---- और ---और  --- बढ़ता  ही  जाये  ,  फिर  जनता   जिए  या  मरे  ,  उसका  खजाना  बढ़ना  चाहिए  l
  इसी  तरह   यदि  ज्ञान  के  साथ  विवेक  नहीं  है    तो  वह  संसार  के  लिए  घातक  है   जैसे  विज्ञान  ने  संसार  को    अनगिनत    सुख  - सुविधाएँ  दीं ,   लेकिन   विवेक  और  संवेदना  न  होने  के  कारण   संसार  को  परमाणु   बम ,  घातक  हथियार   दिए  l   रासायनिक  खाद ,   रासायनिक  उर्वरक ,  वैज्ञानिक  तरीके  से  तैयार  किये  गए  बीज ,   जिनसे  तैयार   फल , अनाज  शरीर  को  बीमार  कर  दे l   ऐसी  दवाएं   जिनके  रिएक्शन  हो  जाएँ  l   एक  से  बढ़कर  एक  नई  बीमारियां    सब  विज्ञान   ने  ही  दीं   हैं   l   ऐसे  जीवन  में   बीमारी   होने   या  बीमारी  का  भय  होने  से  मनुष्य  के  जीवन  की  उमंग  खत्म   हो  जाती  है  l
 धन  और  ज्ञान  के  साथ  विवेक  न  होने  से  कला , साहित्य  आदि  हर  क्षेत्र   अपने  मूल्य  को  खो  देता  है   और  इन  सबके  नीचे  पिसती   जनता   की  यदि  चेतना  जाग्रत  नहीं  है  ,   तो  वह  भी  चलती - फिरती  लाश  बन  जाती  है   l 

20 May 2020

WISDOM ------ अहंकार आतंक को जन्म देता है , आत्मीयता को नहीं

  अहंकार  विवेक  का  हरण  कर  लेता  है  l  अहंकारी  को   औरों  की  पीड़ा  पीड़ित  नहीं  करती  ,  उसे  तो  केवल  अपने   सुख - दुःख  की  परवाह  होती  है  l   अहंकार  जिस  भाषा  का  प्रयोग  करता  है  उसमे  आधिपत्य  की  चाहत  होती  है   l   किसी  अन्य  पर  अधिकार  आप   तभी  तक  कर  सकते  हो  जब  तक  वह  आपके  आतंक  के  नीचे  है   l
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---  यदि  आप  चाहते  हैं  कि   लोग  तुम्हे  हृदय  से  चाहें    तो  उनके  कष्ट  के  निवारण  के  लिए  हृदय  से   प्रयास  करना   सीखो  l   मानवीय  संबंध   प्रेम  के  आधार  पर  खड़े  होते  हैं   l   हृदय  में  संवेदना   हो  तभी  लोगों  का  स्नेह  व  आदर  प्राप्त  होता  है   l  '
        अपने  पिता  बिंदुसार   से  सम्राट  अशोक  को  सुविस्तृत  राज्य  प्राप्त  हुआ   l   पर  उसकी  तृष्णा  और  अहंकार   ने  उसे  चैन  नहीं  लेने  दिया   l   आसपास  के  छोटे - छोटे  राज्य   उसने  अपनी  विशाल  सेना  के  बल  पर  जीते    और  अपने  राज्य  में  मिला  लिए  l
उसके  मन  में  कलिंग  राज्य  पर  आक्रमण  करने  की  उमंग  आई  l  कलिंग  का  राजा  धर्मात्मा  भी  था  और  साहसी  भी  था  l   उसकी  सेना  और  प्रजा  ने   अशोक  के  आक्रमण  का  पूरा  मुकाबला  किया  l  उसमे  प्राय:  सारी   आबादी  मृत्यु  के  मुख  में  चली  गई   l   अब  उस  देश  की  महिलाओं  ने  तलवार  उठाई  l   अशोक  इस  सेना  को  देखकर  चकित  रह  गया  l   वह  उस  देश  में  भ्रमण  के  लिए  गया  ,  तो  सर्वत्र  लाशें  ही  पटी   देखीं   और  खून  की  नदियां  बह   रही  थीं  l 
अशोक  का  मन  पाप  की  आग  में  जलने  लगा  l   उसने  बौद्ध  धर्म  की  दीक्षा  ली   और  जो  कुछ  राज्य  वैभव  था  ,  उस  सारे  धन  से   बौद्ध  धर्म  के  प्रसार  तथा  उपयोगी  धर्म  संस्थान   बनवाए l   अपने  पुत्र  तथा  पुत्री  को  धर्म  प्रचार  के  लिए  समर्पित  कर  दिया    एक  क्रूर  और  आततायी  कहा  जाने  वाला  अशोक  ,  प्रायश्चित  की  आग  में  तपकर    संन्यासी  जैसा  हो  गया  l 

WISDOM -----

 जरथुस्त्र   जब  जन्मे   तो  हँसते  हुए  पैदा  हुए  l   अन्य  बालकों  की  तरह  रोए   नहीं  l   सभी  आश्चर्यचकित  थे   कि   ये  रोए   क्यों  नहीं  l  भाँति - भाँति   की  अटकलें  लगाईं   गईं   l   जब  जरथुस्त्र  बड़े  हुए    तो  लोगों  ने   जन्म  के  समय   हँसने   का  वृतांत   उन्हें  सुनाया    और  इसका  रहस्य  जानना  चाहा  l
   वे  बोले ---- " हम  जन्म  के  समय  ही  नहीं  हँसे ,  हर  परिवर्तन  हँसकर   ही  झेला  जाता  है  l  "
  जरथुस्त्र   अंतिम  समय  भी  हँसे   तो  लोगों  की  समझ  में  नहीं  आया    कि   अब  क्यों  हँसे   ?   पूछा  गया  तो  बोले  --- " लोगों  को  रोते   देखकर  हँसी   आ  गई  कि   कितने  नादान   हैं   ये ,   हम  मकान  बदल  रहे  हैं   !  तो  इन्हें  क्यों  परेशानी  हो  रही  है  l  "
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---- 'यदि  हम  परिवर्तन   इसी  तरह   मुस्कराकर  स्वीकार  कर  लें    तो  जीवन  जीने  का  मंत्र   आ  जाये  l ' 

19 May 2020

WISDOM -----

   ऋषि  पुलस्त्य   से    उनके  आश्रमवासियों  ने  पूछा  --- " रावण  आपका  नाती  है ,  स्वयं  भी  शिव भक्त  है  , विद्वान्  है  ,  फिर  भी  दुष्टता  क्यों  बरतता  है  ? "
   ऋषि  बोले --- " उसे  सोने  की  लंका  बनाने   का  शौक  जो  लगा   l   बिना  शोषण  के  इतना  धन  जुटाता  कैसे   ?  यह  लिप्सा  ही  दुष्टता  की  जननी  है   l  "     आज  सारा  संसार    कुछ  लोगों  की  इसी  ' रावण  मनोवृति '  की  सजा  भुगत  रहा  है   l 
  प्राचीन    समय  में  यह  स्पष्ट  था  कि  अत्याचार  कौन  कर  रहा  है  l  त्रेतायुग  में  रावण  के  अत्याचार  से  समस्त  जनता  पीड़ित  थी   l   द्वापर युग  में  कंस  के  अत्याचार  से   सब  दुःखी   थे  l   फिर  महाभारत  में  यह  स्पष्ट  था  कि   दुर्योधन  के  अहंकार  की  वजह  से  ही  महाभारत  हुआ  l
  लेकिन  वर्तमान  युग  में    सब  कुछ  ग्लोबल  है  l   लोभ , लालच , तृष्णा ,  अहंकार    जैसे  दोषों  से  ग्रसित  व्यक्ति  सब  एक  श्रंखला  में  बंधे  हैं ,  एक  ही  नाव  में  सवार  हैं  फिर  चाहे  वे  किसी  भी  देश  के  हों  l   सब  एक - दूसरे  के  हितों  का  ध्यान  रखते  हैं   l
रावण  का  भय  तीनों  लोकों  में  व्याप्त  था  ,  उसे  मिटाने   के  लिए  भगवान   राम  ने  जन्म  लिया  l   लेकिन  आज  लोग  अदृश्य  से  भयभीत  हैं  ,   लोगों  की  चेतना  जाग्रत  होगी  ,  समाज  जागरूक  होगा   तभी  इससे  छुटकारा  संभव  है   l 

18 May 2020

WISDOM ----- अहंकारी अपने सुख से सुखी नहीं रहता

    अहंकारी  व्यक्ति  भी  एक  तरह  से  दया  के  पात्र  हैं ,  उन्हें  ईश्वर  ने  कितने  ही  सुख  क्यों  न  दिए  हों ,  उन्हें  उसमे  चैन  नहीं  मिलता  l   दूसरों  को  कष्ट  पहुंचाकर ,  उन्हें  मुसीबतों  में  डालकर  ही  उन्हें  सुकून  मिलता  है   l   इसी  से  संबंधित   एक  प्रसंग   पांडवों  के  वनवास  काल  का  है  ----    जब   द्रोपदी  और  पांचों  पांडव  वनवास  में  थे  ,  उन  दिनों  ऋषि  दुर्वासा   अपने  दस  हजार  शिष्यों  के  साथ   हस्तिनापुर  पधारे  l    दुर्योधन  ने  उनकी  खूब  खातिरदारी  की  ,  बहुत  सेवा  की  l   उससे  प्रसन्न  होकर  दुर्वासा  ऋषि  ने  उससे  वरदान  मांगने  को  कहा  l   दुर्योधन  चाहता  तो  अपने  लिए , हस्तिनापुर  के  लिए  कोई  भी  वरदान  मांग  सकता  था   लेकिन  वो  अहंकारी  था  ,  उसे  पांडवों  को  कष्ट  देकर  ही  प्रसन्नता  मिलती  थी  l   वह  जानता   था  कि   ऋषि  दुर्वासा   बहुत  जल्दी  कुपित  हो  जाते  हैं  और  शाप  दे  देते  हैं   l   पांडवों  का  अहित  करने  के  विचार  से  उसने  ऋषि  से  बड़ी  विनम्रता  से  कहा --- ' जैसे  आपने  हमारा  आतिथ्य  ग्रहण  कर   हम  पर  कृपा  की ,   वैसे  आप  हमारे   पांडव  भाइयों  का  आतिथ्य  ग्रहण  करें  ,  लेकिन   वहां  तब  पहुंचे  जब  द्रोपदी  भोजन  कर  चुकी  हो  l '
  पांडवों  के  पास  एक  अक्षय  पात्र  था  ,  जो  सूर्य   की  आराधना  से  द्रोपदी  को  मिला  था  l   अक्षय  पात्र  में  एक  बार  जो  भोजन  पक   जाता   तो  फिर  चाहे  जितने  लोग  उसे  खाएं  ,  वो  रिक्त  नहीं  होता  था   लेकिन  अंत  में  जब  द्रोपदी  भोजन  कर  लें  और  अक्षय  पात्र  धोकर  रख  दिया  जाता  ,  तो  फिर  कुछ  नहीं  हो  सकता  था  ,  फिर  उस  दिन  के  लिए  अक्षय  पात्र  खाली  होता  था  l
  अब  दुर्योधन  के  बताये  हुए  समय  पर   दुर्वासा  ऋषि   अपने  दस  हजार  शिष्यों  सहित    वन  में  पहुँच  गए    और  युधिष्ठिर  से  कहा  --- बहुत  भूख  लगी  है  ,  मैं  अपने  शिष्यों  के  साथ  नदी  पर  स्नान  करने  जा  रहा  हूँ  ,  लौटकर  हम  सब  खाना  खाएंगे  l  '  पांडव  और  द्रोपदी  भोजन  कर  चुके  थे  ,  एकाएक  ये  मुसीबत  खड़ी  हो  गई   l
द्रोपदी  ने  भगवान   को  पुकारा   l   कृष्ण जी  आये   और  आते  ही  कहा --  द्रोपदी  भुझे  बड़ी  भूख  लगी  है  कुछ  है  तुम्हारे  पास   l '  द्रोपदी  बड़ी  मुश्किल  में  पड़   गई  ,  बोली  इसी  मुश्किल  को  हल  करने  तो  हमने   आपको    बुलाया   था  l ' कृष्ण जी  बोले  --- " अरे  भई ,  अक्षय  पात्र  लाओ  ,  देखो  कहीं  कुछ  लगा  हो  तो  l   l   द्रोपदी  ने  पात्र  धोकर  रख  दिया  था  ,  जल्दी  से  ले  आईं  l   भगवान   ने  उसमें  ढूंढा  तो   उसमे  चावल  के  दो  कण  पड़े  मिल  गए  l   भगवान   ने  वे  खा  लिए  और   तृप्त  होकर  डकार  ली  l   द्रोपदी  को  बड़ी  शर्मिंदगी  महसूस  हुई  कि   उसने  बरतन   साफ   नहीं  धोया  था   l
कहते  हैं    उन  चावल  के  दो  कणों   से  दुर्वासा  ऋषि  और  उनका  पूरा  शिष्य  तृप्त  हो  गए  l   ईश्वर  में  ही  सारा  संसार  समाया  हुआ  है  l   ऋषि  और  उनके  शिष्यों  का  पेट  ऐसा  भर  गया  की  उन्हें  डकार  पर  डकार  आने  लगी  l   ऋषि  ने  अपने  शिष्यों  से  कहा  -- अब  भोजन  की  कोई  गुंजाइश  नहीं  है   l   द्रोपदी  ने  हम  सबके  लिए  भोजन  तैयार  किया  होगा  ,  वह  सती   है  कहीं  नाराज  न  हो  जाये  l   चलो  सब  जल्दी  l   सब  अपना  दंड - कमंडल  लेकर  तुरंत  चले  गए  l  '  जाको  राखे  साइंया   मार  सके  न  कोय ,  बाल  न  बांका  करि  सके  ,  जो  जग  बैरी  होय   

WISDOM ---- संवेदनशीलता और सहकारिता के अभाव के कारण ही शोषण संभव हुआ है

  शोषण  में  मानवीय  मूल्यों  का   कोई  स्थान  नहीं  है   l  शोषण  के  साथ  क्रूरता  का  भाव  है  l   इसके  लिए  इनसान   तो  बस ,  एक  उपभोग  की  वस्तु   है  l   शोषण  की  मानसिकता  यह  है   कि   दूसरे  की    कमजोरियों    का  लाभ  लेकर   उसे  सदा   नियंत्रण  में  रखो   और  अपना   हित   साधने  के  लिए  उसका   उपयोग  करो  l   जब  तक  वह  उपयोगी  है  ,  तब  तक  उसका  उपयोग  किया  जाये    और  अनुपयोगी  होने  पर    उसे  दूध  की  मक्खी  की  तरह  निकाल  कर  फेंक  दिया  जाये   l   इसलिए  शोषण  एक  प्रकार  की  विकृति  है  l   यह  विनाश  का  प्रतीक   है  l 
  अब   शोषण  भी   छोटे  क्षेत्र  में  सीमित    नहीं  रहा   इसका  स्वरुप  भी  ग्लोबल  हो  गया  है  l  

17 May 2020

WISDOM ---- जागरूकता जरुरी है

  लोभ  और  लालच  व्यक्ति  को  किस  सीमा  तक  गिरा  देता  है  ,  इसे  स्पष्ट  करने  वाली  एक  घटना  है  ----      एक   सेठ  था  ,  उसका  बहुत   बड़ा  व्यापार  था  ,  लेकिन  उसे  संतोष  न  था   l   और  अमीर  -- और  अमीर --- होना  चाहता  था   l  समाज  में  अपना  दबदबा  कायम  करने  के  लिए  उसने  कई  अस्पताल  खोले   l   दवा    बनाने  की  उसकी  कंपनियां  थीं   l   वह  हमेशा  ऐसी  तरकीब  सोचा  करता  था   कि   कैसे  जल्दी  से  जल्दी  और  अमीर  हुआ  जाये  l   अब  दवा  बनाने  के  व्यापार  में  एक  दुःखद   बात  यह  है  कि   जब  लोग  बीमार  होंगे  ,  अपनी  जिंदगी  के  लिए   भयभीत  होंगे   ,  तभी  दवा  बिकेंगी  l
  उस  सेठ  ने  एक  तांत्रिक  से  साथ - गाँठ  की  l    शहर में  बात  फैल   गई  और  लोग  उस  तांत्रिक  से  मिलने  आने  लगे  l  उसके  पास  कुछ  सिद्धि  थी  वह  हवा  से  कुछ  वस्तुएं  जैसे  छुआरा , किशमिश  आदि  प्राप्त  कर  लेता  और  लोगों  को  प्रसाद  के  रूप  में  देता  ,  सप्ताह  में  एक  दिन  आता     और    उनकी    समस्याएं  हल  कर  देता   l  साथ  ही  बताता  कि   किसी  पर  देवता  का  प्रकोप  है ,  किसी  पर   जिन्न   है  ,   भूत  - प्रेत  का  असर  है  l     लोग  भयभीत  रहने  लगे  ,  सोचते  देवता  के  प्रकोप  से  बीमार  हो  रहे  हैं   l
              तांत्रिक  की  खूब  आमदनी  होने  लगी    और  सेठ  का  व्यापार  भी  खूब  चमक  गया  l     तांत्रिक  के  पास   एक  दिन  कुछ  लोग  आये ,  उसने  उनकी  व्यथा - कथा  सुनी  और   अपनी  साधना  कर  ऊपर  हाथ  किया  , तो  उसके  हाथ  में  हलवा - पूड़ी  आ  गया  ,  जो  उसने  प्रसाद  में  बाँट  दिया  l   सामान्यत:  सब  लोग  वहीँ  प्रसाद  खा  लेते  थे  लेकिन  उनमे  एक  वृद्ध  था  ,  जो  पूड़ी  अपने  साथ  घर  ले  आया  l
  उसके  पास  एक  कपिला  गौ  थी  उसने  पूड़ी  उसके  सामने  खाने  के  लिए  रख  दी    और  अपने   कार्य  में  व्यस्त  हो  गया   l   थोड़ी  देर  बाद  आया  तो  देखा  पूड़ी  वैसे  ही    रखी  है   और  उस  पर  कीट - पतंगे  भिनक  रहे  हैं  l     दूसरे  सप्ताह  में  फिर  प्रसाद  में  पूड़ी  मिली  ,  वृद्ध  उसे  घर  ले  आया   और  गाय  को  बड़े  प्यार  से  खिलाना  चाहा  ,  लेकिन  गाय  ने  उसे  सूंघकर  छोड़  दिया  l   वृद्ध  का  माथा  ठनका  ,  किसी  विशेषज्ञ  को  दिखाया   तो  ज्ञात  हुआ  कि   उसके  ऊपर  कुछ  ऐसा  लेप  था   जो     शरीर  में  जाकर     धीरे - धीरे  शरीर  को  खोखला  कर  देता  था  ,  लोग  बीमार  हो  जाते  थे  l
अब  तांत्रिक  को  पकड़  कर  खूब  पिटाई  की  तब  उसने  बताया  कि   उसका  कुसूर  नहीं  है  ,  वह  सेठ  ऐसा  करने  को  कहता  था   कि    ऐसा  करो  कि   लोग  बीमार  पड़ें  ,  भय  से   उनका  मन  कमजोर  हो  जाये  , जिससे  उसका  व्यवसाय   चमक  जाये   -----------


WISDOM ------

  रूप , धन , पद , ज्ञान  , सत्ता , शक्ति  आदि  अनेक  ऐसे  कारण  हैं  जो  व्यक्ति  को  अहंकारी  बना  देते  हैं  l   लेकिन  इन  सबसे  ऊपर  एक  और  बड़ा  कारण  है   जो  समाज  में  तनाव  और  अशांति  उत्पन्न  करता  है  l   वह  है  ---   कुछ  लोगों    का  स्वयं  को  जन्म  से  श्रेष्ठ  समझने  का  भ्रम  l
मानवीय  कमजोरियाँ   सब  जगह  एक  सी  होती  हैं  l   हर  देश  , हर  समाज  में   ऐसे  लोग  हैं  जो  स्वयं  को  दूसरों  से  श्रेष्ठ  समझते  हैं   और  इस  अहंकार  की  वजह  से  वह    दूसरे  वर्ग  पर  अपना  आधिपत्य  चाहते  हैं   l   केवल  आधिपत्य  की  बात  हो ,  तब  भी  ठीक  है ,  लेकिन  इनके  मन  में  एक  अज्ञात  भय  होता  है  कि   जिस  वर्ग  को  हमने  अपने  से  हीन   समझा  ,  कहीं  वह   तरक्की  कर  उनसे  आगे  न  बढ़  जाये  l   इस  वजह  से  वे  उनकी  तरक्की , उनकी  खुशी ,  उनकी  चैन  की  जिंदगी  को  कभी   सहन  नहीं  करते  l   हमेशा  षड्यंत्र   या   ऐसा  कृत्य  करेंगे  ही  जिससे   दूसरा  पक्ष  उन्नति  न  कर  सके  l   जिसे  दीन - हीन   देखा  ,  उसे  अपने  बराबर  या  अपने  से  आगे  कभी  स्वीकार  ही  नहीं  कर  सकते  l
  जो   समाज - सुधारक ,  समाज  के  उपेक्षित  वर्ग   को  ऊँचा  उठाने  का  प्रयास  करते    हैं  ,  उन्हें  वे   रास्ते  से  हटाने  का  हर  संभव  प्रयास  करते  हैं  l   यह  स्थिति   हजारों  वर्षों  से  है  l 
     अब  वक्त  बदला   लेकिन  मानवीय  कमजोरियां  तो  वही  हैं  ,  अहंकारी  दूसरों  को  पीड़ित  करने  का  रास्ता  खोज  ही  लेता  है  l
 हमारे  ऋषियों  का , आचार्य   का  यही  शिक्षण  है  कि ---- हम  दूसरों  को  नहीं  सुधार  सकते  ,  स्वयं  का  सुधार  करना  ज्यादा  सरल  है   l    अपनी  शक्ति  को  पहचाने  l  आत्मविश्वासी  बनें  l   

16 May 2020

WISDOM ---- हम ईमानदारीपूर्वक जीवन जिएं , विश्वासघात न करें l हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है l

  एक  घटना  है --- मीरजाफर  के  प्रेत  की   l  इतिहास  में  है  कि     मीरजाफर   बंगाल  के  नवाब  सिराजुद्दोला  से  विश्वासघात  कर   वहां  की  गद्दी  पर  आसीन  हुआ  ,  उन्ही  दिनों  उसने  एक  शानदार  हवेली  का  निर्माण  कराया   l   वह  हवेली   बहुत   भव्य  थी  l   लेकिन  मीरजाफर  की  गद्दारी  के  कारण  यह  भव्य  संरचना  ' नमक हराम  की  हवेली  '  के  नाम  से  विख्यात  हो  गई  l  कथा  इसी  हवेली  से  संबंधित   है  -----  घटना  उन  दिनों  की  है  जब  उस  हवेली  में  सरकारी  दफ्तर  लगता  था  l   रात  की  चौकीदारी  के  लिए  एक  व्यक्ति  रखा  गया  जिसका  नाम  था  -अलीबख्श  l
  दो  महीने  बीत  गए  l  एक  रात  जब  वह  चौकीदारी  कर  रहा  था  तो  नवाबी  वेश  में  एक  तीस - पैंतीस  वर्ष  का  व्यक्ति  उसके  सामने  खड़ा  था  l  उसने  चौकीदार  से  कहा --- मैं  मीरजाफर   यहाँ  का  मालिक  हूँ ,  मेरी  इच्छा  के  विरुद्ध  कोई  यहाँ  नहीं  आ  सकता  l   --- ' तुम  कौन  हो , यहाँ  क्या  कर  रहे  हो  l '  चौकीदार  की  घिग्घी  बँध   गई  ,  बोला --- ' मैं  बहुत  गरीब  हूँ  , किसी  तरह  यहाँ  काम  कर  के  अपना  परिवार  चलाता   हूँ  l '
वह  मीरजाफर    उसको  अपने  साथ  बगीचे  के  कोने  में  ले  गया   और  एक  गोल  घेरा  बनाकर  कहा  --
 " यहाँ  चार  सोने  की  ईंट  हैं  , इनसे  तुम  अपनी  गरीबी  मिटाओ    और  जीवन  में  एक  बात  सदा  याद  रखना ---  किसी  व्यक्ति , समाज   और  राष्ट्र  के  प्रति  कभी  विश्वासघात  न  करना   l  यह  इतना  बड़ा  पाप  है  , जो  कि   दूसरी  दुनिया  में  भी  व्यक्ति  को   बेचैन  किये  रहता  है  l  '  उसने  कहा --- "  मैं  इसका  प्रत्यक्ष  सबूत   हूँ  l   मेरे  उस  एक  विश्वासघात  ने  , जिसने  देश  को   दो  सौ   वर्षों  की  गुलामी  में  जकड़   दिया  , मुझे  अशांत  बनाये  रखा  है   l   प्रेत  की  योनि  में  रहने  से  बड़ी  सजा  शायद  इस  पाप  की  न  हो  l   ऐसी  स्थिति  में  मैं  तुम्हारे  जैसे  अभावग्रस्त  की  बराबर  सहायता  करता  हूँ  ,  यही  मेरे  पाप  का  प्रायश्चित  है  , इससे  मुझे  चैन  मिलता  है  l   इस  दुनिया  में  ईश्वर  का  न्याय  चलता  है  l   तुम  कभी   किसी  के  साथ    अनीति , विश्वासघात  न  करना  , अन्यथा  तुम्हे  भी   मेरी  जैसी  स्थिति  में   वर्षों  रहकर   दंड  भोगना  पड़ेगा   और  तब  पछताने  के  अलावा   कुछ  शेष  नहीं  रहता  l  ' 

WISDOM ---- स्वार्थ , लोभ - लालच जिसमें जितना अधिक है , वही दरिद्र और सबसे ज्यादा असहाय है

   एक  महारानी  ने  अपनी  मौत  के  बाद  अपनी  कब्र   के  पत्थर  पर   निम्न  पंक्तियाँ  लिखने  का  हुक्म  दिया  था ---- " इस  कब्र  में  अपार  धनराशि  गड़ी   हुई  है  l   जो  व्यक्ति  निहायत  गरीब  एवं   एकदम  असहाय  हो  ,  वह  इसे  खोदकर  ले  सकता  है  l  "
उस  कब्र  के  पास  से  हजारों  दरिद्र  एवं   भिखमंगे  निकले  ,  लेकिन  उनमें  से  कोई  भी   इतना  दरिद्र  और  असहाय  नहीं  था  , जो  धन  के  लिए    मरे  हुए  व्यक्ति  की  कब्र  खोदे  l   एक  अत्यंत  बूढ़ा  भिखमंगा   तो  वहां  सालों - साल  से  रह  रहा  था  l  वह  हमेशा  उधर  से  गुजरने  वाले   प्रत्येक  दरिद्र  व्यक्ति  को   कब्र  की  ओर   इशारा  कर   देता  था  l
आखिर  में  वह  व्यक्ति  आ  ही  गया  , जिसकी  दरिद्रता  इतनी  ज्यादा  थी  कि   उसने  कब्र  को  खोद  ही  डाला  l   वह  व्यक्ति  स्वयं  एक  सम्राट  था   और  उसने  उस  कब्र  वाले  देश  को   बस   अभी  - अभी  जीता  था   l   उसने  अपनी  विजय  के  साथ  इस  कब्र  की  खुदाई  शुरू  करा  दी  ,  पर  उसे  उस  कब्र  में   एक  पत्थर  के  सिवाय   और  कुछ  नहीं  मिला   l   इस  पत्थर  पर  लिखा  हुआ  था  --- मित्र  !  तू   अपने  से  पूछ  ,  क्या  तू  मनुष्य  है   ?  क्योंकि  धन  के  लिए   कब्र  में  सोये  हुए    मुरदों   को  परेशान    करने  वाला   मनुष्य   हो  ही  नहीं  सकता  l  "
वह  सम्राट   जब  निराश  होकर  कब्र  के  पास  से  वापस  लौट  रहा  था   तो  उस  कब्र  के  पास  रहने  वाले   बूढ़े  भिखमंगे   को  लोगों  ने  खूब  जोर  से  हँसते  देखा  l   वह  हँसते  हुए  कह  रहा  था  --- "  मैं  कितने  सालों  से  इंतजार  कर  रहा  था  ,  आख़िरकार  आज  धरती  के   दरिद्रतम  और  सबसे  ज्यादा  असहाय   व्यक्ति  का  दर्शन   हो  ही  गया  l  "

15 May 2020

अपनी संस्कृति की ओर लौट चलें

   मनुष्य  के  शोषण  की  सबसे  बड़ी  वजह  उसकी  मानसिक  पराधीनता  है  l   अपनी  शक्ति  को  न  पहचान  कर    दूसरे  को  अपने  से  श्रेष्ठ   समझने  से  अनेक  समस्याएं  उत्पन्न  होती  हैं  l   विश्व  के  अधिकांश  देशों  की  आज  यही  स्थिति  है  l   राजनीतिक   दृष्टि  से  पराधीनता  में    हर  तरह  के  अत्याचार  सहने  के  बावजूद  भी  हम  अपनी  नस्ल  को  बचाये  रखते  हैं   लेकिन  यदि  हम  मानसिक  रूप  से  गुलाम  हो  गए    तो  हम  मात्र  एक  कठपुतली  बन  जाते  हैं   और  आने  वाली  पीढ़ी  को  स्वस्थ  रखने  और  स्वस्थ  वातावरण  देने  में  भी  असमर्थ  हो  जाते  हैं  l
  आज  की  सबसे  बड़ी  त्रासदी  चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  है  l   चिकित्सा  विज्ञान   ने  जो  तरक्की  की  ,  वह  प्रशंसनीय  है  ,  कितनी  भी  तारीफ   की  जाये  वह  कम  है  l    लेकिन  इतनी  तरक्की  के  बावजूद   अनेक  देशों  में  मृत्यु   इतनी  अधिक  है  ,  और  अधिक  बच्चों   की  मृत्यु  की   संभावना  व्यक्त  होती  है   ,  तो  यह    भयभीत  करने  वाली  स्थिति  है  l   आज  से  पचास - साठ   वर्ष  पहले  जब   बच्चों  के  लिए  कोई  इंजेक्शन  आदि  नहीं  थे  ,  तब  बच्चे  तीन  वर्ष  की  आयु  तक  केवल  माँ  का  दूध  पीकर  ही  पूर्ण  स्वस्थ  रहते  थे  l   एक  कहावत  ही  थी --' माँ  का  दूध  पिया  है  !    हमारे  वीर  क्रांतिकारी   सूखी   रोटी  और  चने  चबाकर   शारीरिक  और  आत्मिक  दृष्टि  से  मजबूत  थे   l   उस  समय  लोगों  में  प्रतिरोधक  शक्ति  थी    लेकिन  अब   हर  चीज  में  रसायन  घुल  गया  है  ,  जिसने   लोगों  के  अंदरूनी   अंगों  को  कमजोर  कर  दिया  है  l  पहले  व्यक्ति  घरेलु  नुस्खे  और  आयुर्वेदिक  इलाज  से  ही  बिना  किसी  इंजेक्शन  के  ही  अपनी  बीमारी  ठीक  कर  लेता  था ,  उसका  कोई  साइड  इफेक्ट  भी  नहीं  था    लेकिन  अब  विज्ञापन और  प्रचार - प्रसार  से   दवाइयां और  इंजेक्शन  लोगों  के  मन  में  ऐसे  बैठ  गए  हैं   कि   छोटी  सी  बीमारी  के  लिए  भी   कई  दवाएं , इंजेक्शन  लेते  हैं ,  एक  बीमारी  ठीक  कर  के  दूसरी  को  गले  लगाते   हैं  l
छोटे   बच्चे  को  पैदा  होते  ही  इंजेक्शन  लगने  शुरू  हो  जाते  हैं  l   एक  बीमारी  से  बचाव  होता  है  लेकिन   उनके  कोमल  मन  में  भय  बैठ  जाता  है  l   जिन    देशों  में  बच्चों  को  और  अधिक  इंजेक्शन  व  दवाएं  दी  जाती  है  ,  वहां  उन्हें  और  नई - नई  बीमारियां  हो  जाती  हैं  और  मृत्यु    दर    बढ़  जाती  है  l
हमें  स्वस्थ  रहना  है  और  आने  वाली  पीढ़ी  को  भी  स्वस्थ  और  सुरक्षित  रखना  है   तो  अपनी  संस्कृति  की  और  लौटना  होगा    जिसमे  कृषि , चिकित्सा , शिक्षा  सब  मूलरूप  से  हमारी  हो  ,  कहीं  कोई  मिलावट  न  हो  l 

WISDOM -----

    धूर्त  व्यक्ति  हमेशा  अपना  लाभ  देखता  है   l   वह   कमजोर  का  नित  नए  तरीके  से  शोषण  करता  है  l   यदि  वह  कमजोर  के  साथ  कोई  समझौता  करता  है  या  कोई  रहम  करता  है  ,  तो  इस  दरियादिली  की  आड़  में  वह  अपना   बहुत  बड़ा  स्वार्थ  पूरा  करता  है  ,  इसलिए  नीति   कहती  है --- धूर्त  के  साथ  सहयोग  कभी  हितकारी  नहीं  होता   l   इसी  बात  को  स्पष्ट  करती  हुई  एक  प्रेरक  कथा  है -----
   एक  शेर  ने    कुछ  सियारों  के  सहयोग  से    बारहसिंगा  मारा  l   मांस  के  बँटवारे   का  निपटारा  सिंह  को  ही  करना  था  l  उसने  शिकार  के  टुकड़े  किये   और  कहा  ---- "  एक  टुकड़ा  राजवंश  का  ' कर '  है  ,  l   दूसरा  टुकड़ा  अधिक  पुरुषार्थ  करने  से  मेरा  l    और  तीसरा  स्वयंवर  जैसा  है  ,  उसे  पाने  के  लिए   प्रतिद्वंदिता  में  जो  आना  चाहे  ,  वो  संघर्ष  के  लिए  तैयार  हो   l   सियार  बेचारे  चुपचाप  खिसक  गए  l   सिंह  ने  पूरा  बारहसिंगा  खा  डाला  l
शिक्षा    यही  है   कि   धूर्त  के  साथ  सहयोग  कभी  हितकारी  नहीं  होता   l   जहाँ  तक  हो  उससे  बचना  चाहिए   l 

14 May 2020

WISDOM ------

  गुरु  अपने  शिष्यों  के  साथ   गुरुकुल  में  बैठे  थे  ,  प्रश्न - उत्तर  का  क्रम  चल  रहा  था  l   एक  शिष्य  ने  गुरु  से  पूछा  ---- " गुरुदेव  ! सम्पति  का  सदुपयोग  न  करने  पर   मनुष्य  का  क्या  होता  है  ? "
  गुरु  ने  उत्तर  दिया  --- " वत्स  !  तुमने  रेशम  का  कीड़ा  देखा  है  ?  एक  रेशम  का  कीड़ा  रेशम  इकट्ठी  कर  के  भारी - भरकम  हो  जाता  है  l  पर  इस  प्रगति  का  क्या  लाभ  ?  वह  बेचारा  अपने  ही  बनाये  जाल  में  जकड़ कर  मर  जाता  है   l   उसके  पास  की  वह  जमा - पूंजी  ,  जिसे  वह   स्वयं  के  किसी  काम  में  नहीं  ला  सकता  ,  वह  दूसरों  का  जी  ललचाती  है   और  वो  लालची  ही   उसके  जीवन  का  नाश  करते  हैं   l   धन  का  सदुपयोग  न  करने  वाले   संपत्तिवान   भी  उस  रेशम  के  कीड़े  की  तरह  हैं  ,  जो  स्वयं  तो  आवश्यकता  से  अधिक   सम्पति  का   उपयोग  नहीं  कर  पाते  ,  परन्तु  इसके  कारण   मात्र  लालचियों   और  दुष्टों  के  भरण - पोषण    का  माध्यम  बनते  हैं   l   आवश्यकता  से  ज्यादा  एकत्रित  संपदा   स्वयं  के  लिए    एवं   परिवार  के  लिए    पतन  का  कारण  बनती  है   l  "   शिष्य  को  उसके  प्रश्न  का  उत्तर  मिल  गया  l 

13 May 2020

WISDOM ------ स्वस्थ रहना है , तो ' स्वदेशी ' को अपनाना होगा

  संसार  के  सारे  सुख  हमें  इसी  शरीर  से  मिल  सकते  हैं  ,  लेकिन  यदि  शरीर  ही  अस्वस्थ  है , रोग  से  घिरा  हुआ  है    तो   सारे  सुख  उपलब्ध  होते  हुए  भी  हम  उनका  उपभोग  नहीं  कर  पाएंगे  l
आयुर्वेद   के  अनुसार  वात  , पित्त  और  कफ   के  कुपित  होने  के   परिणाम    को  ही   रोग  कहते  हैं  ,  किन्तु  इनमे  से  किसी   का  प्रकोप  तब  होता  है  जब  व्यक्ति    विषम  तथा  अनुचित  ,     अन्नपान ,  अनुपान ,  अशास्त्रीय  आचार  एवं   जीवन  की  गतिविधियों  में  असावधानी  बरतता  है   l 
  मनुष्य   का  शरीर  पांच  तत्वों  से  मिलकर  बना  है ---- भूमि , जल , अग्नि , वायु  और  आकाश  l   जिस  देश  में  हमारा  जन्म  हुआ  है  ,  हमारा  शरीर  उसी  की  प्रकृति  के  अनुकूल  है   l  जैसे  हमारा  जन्म  भारत  में  हुआ  है   तो  यहीं  के  खाद , बीज  से   तैयार  अन्न , फल , सब्जी  हमें  फायदा  करेगी ,  इसी  भूमि  में  प्राप्त  कच्चे  माल  से  तैयार   दवाइयाँ  आदि  विभिन्न  पदार्थ  हमारे  शरीर  के  अनुकूल  होंगे  लेकिन  यदि  हम   दूसरे  देशों   के  खाद , बीज  से   उगी  हुई  सब्जी , फल , अन्न  आदि  का  उपयोग  करेंगे  ,  दूसरे  देशों  की  दवा ,  आदि  सामग्री  का  उपयोग  करेंगे  तो  शरीर  पर  उनका  साइड  इफेक्ट  अवश्य  होगा  l   यही  कारण  है   कि   देश  में  ऐसे  असंख्य  लोग  मिलेंगे  जो  नशा  नहीं  करते ,  गुटका  नहीं  खाते ,  संयम  से  रहते  हैं  ,  उनके   आचार  - विचार  सही  हैं ,  सेवा - परोपकार  भी  करते  हैं   फिर  भी  कैंसर   आदि  किसी  न  किसी  भयानक  रोग  से  ग्रस्त  हैं  l
  इसका  कारण  है  --  विषमता  या  अनुचित   l   हमारा  शरीर  जिस  प्रकृति  का  बना  हुआ  है  ,  उसमे  हमने  अन्य  देशों  के  ऐसे  पदार्थों  को  डाल   दिया  जो  हमारी  प्रकृति  से  मेल  नहीं   खाते  l   इसलिए  हम  कभी  भी  पूर्ण  स्वस्थ  नहीं  हो  पाते  l   एक  न  एक  बीमारी  बनी    रहती  है   l 
संसार  के  प्रत्येक  देश  के  लोगों  को   यदि  स्वस्थ  रहना  है  ,  ईश्वर  ने  हमें  जो  सुख - सुविधाएँ  दी  हैं ,  उनका     उपभोग  करना  है   तो    जागरूक  होना  होगा   l  प्रत्येक  देश  की  अपनी  संस्कृति  है  ,  अपने  चिकित्सा  के  तरीके  हैं  ,  अपनी  ही   प्रकृति  की  ओर   लौटना  होगा  l  आपस  का  मेलजोल  अच्छा  है  लेकिन    जो  आधार  है  , नींव  है  , वह   वही  हो   जहाँ  हम  पैदा  हुए  हैं   l 

WISDOM -----

    महाभारत  एक  दूसरे  को  सम्मान  न  दे  पाने  की  भीषण  प्रतिक्रिया  के  रूप  में  ही   उभरा  था   l   बचपन  में  दुर्योधन  राजमद  में   पांडवों  को  सम्मान  न  दे  सका   l   भीम  सहज  प्रतिक्रिया  के  रूप  में   अपने  बल  का  उपयोग  कर  के   उन्हें  अपमानित - तिरस्कृत  करने  लगे   l
द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई   कि   दुर्योधन  को   '  अंधों  के  अंधे  '  सम्बोधन  से  अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है   l   दुर्योधन  द्वेषवश  नारी  के  शील  का  महत्व   ही  भूल  गया   और  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने  पर  उतारू  हो  गया   l   यही  सब  कारण  जुड़ते  गए   तथा  छोटी - छोटी   शिष्टाचार  की  त्रुटियों   की  चिनगारियाँ   भीषण  ज्वाला  बन  गईं   l
यदि  परस्पर  सम्मान  का  ध्यान  रखा  जा  सका  होता  ,  अशिष्टता  पर  अंकुश  रखा  जाता  ,  तो  स्नेह  बनाये  रखने  में  कोई  कठिनाई  नहीं  होती   l  भीष्म  पितामह  और  वासुदेव  जैसे  युग - पुरुषों  का  लाभ  मिल  जाता   l   वह  पूरा  काल - खंड   छल - छद्द्म ,  षड्यंत्र  और   भाई - भाई  के  आपसी  झगड़ों  में  ही  व्यतीत  हो  गया   l
महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  हमें  शिक्षा  देते  हैं  कि  हम  आपस  में  झगड़कर  अपना  ही  नुकसान  करते  हैं   l  अनमोल  जीवन  को  व्यर्थ  में  गँवा  देते  हैं   l 

12 May 2020

WISDOM ------ श्रद्धा और विश्वास से रोगों का नाश

 बाबा  नीम  करौली   हनुमानजी  की  भक्ति  कर  के    हनुमान मय   हो  गए  थे  l   उन्होंने  देश  में  अनेक  स्थानों   पर    हनुमान  मंदिर  बनाए   हैं  l   वे  कहते  थे  हनुमान जी   इस  युग  के  जीवंत   देव  हैं   l   उन्हें  भाव  भरे  हृदय  से  पुकारें  ,  तो  प्रत्यक्ष  खड़े  हो  जाते  हैं   l   इनसान   हृदय  से  पुकारे   तो  कुछ  भी  असंभव  नहीं  रह  जाता   है  ,  परन्तु  पुकार  ही  तो  नहीं  पाता   है  l   व्यर्थ  की  उलझनों  में   उलझ  कर    अपना  जीवन  नष्ट  करता   रहता  है   l 
  कहते  हैं  बाबा  नीम  करौली  की  कृपा  से  सारे  रोग  मिट  जाते   हैं   l   एक  प्रसंग  है  -----  डॉक्टर  ब्रह्मस्वरूप  सक्सेना  इलाहबाद  में    होमियोपैथिक  डॉक्टर  थे   l   मकान  के  एक  हिस्से  में  ही  उन्होंने  क्लीनिक  बना  दिया  था  ,  जहाँ  वे  रोगियों  का   निरीक्षण - परीक्षण   करते  थे   l   सामान्य  जीवन  का  गुजारा   हो  जाता  था   l   एक  दिन  उनके  पास  एक  ऐसा  रोगी  आया  जिसकी  दोनों  आँखें  चेहरे  से  बाहर  निकल  आई  थीं  l   डॉक्टर  सक्सेना  ने  उससे  कहा  --- ' आप  किसी  सर्जन  के  पास  चलें  जाएँ   l   मेरे  पास  इसका  कोई  समाधान  नहीं  है  l  '  तब  रोगी  ने  कहा  --- मैं  आपसे  ही  दवा  लूंगा   और  मुझे  पूर्ण  विश्वास  है  कि   दवा  खाने  के  बाद  पूर्ण  स्वस्थ  हो  जाऊँगा  l  क्योंकि  हमारे  इष्ट  एवं   आराध्य  बाबा  नीम  करौली  ने  कहा  है   कि   आपकी  दवा  से  हम  स्वस्थ  एवं   प्रसन्न  हो  जायेंगे  l  "
 सक्सेना जी  बड़े  असमंजस  में  थे  ,  उन्होंने  उसे  दर्द निवारक  अर्निका  की  गोलियां  दीं  l   रोगी  ने  जैसे  ही  उसे   खाया  ,  उसकी  आँखें  सही  स्थित  हो  गईं  और  उसका  भयानक  चेहरा  शांत  व  सौम्य  हो  गया  l   इस  घटना  के  बाद  तो  अनेक  असाध्य  रोगी  आने  लगे  l   वे  सभी  कहते  कि   बाबा  नीम  करौली  ने  उन्हें  भेजा  है   l   सक्सेना जी  ने  बाबा  को  देखा  नहीं  था  ,  लेकिन  उनके  हृदय  में  उनके  लिए  श्रद्धा  - विश्वास  उत्पन्न  हो  गया  l
एक  दिन  बाबा  स्वयं  उनकी  क्लीनिक   आये   और  कहने  लगे----'  हाथों  में   कुछ  गर्मी  महसूस  कर  रहा  हूँ , जल्दी  से  कुछ  दवा  दे  दो  l   कुछ  अधिक  मात्रा  में  देना ,  फिर  हम  दोबारा  नहीं  आएंगे  l  '
जब  वे  बाहर  निकले  तो  मरीजों  ने  उनके  चरण स्पर्श  किए l   सक्सेना  जी  हैरान  थे  कि  इतना  धवल  व्यक्तित्व  ये  कौन  है  ?   तब  एक  मरीज  ने  कहा  --- आप  पहचानते  नहीं  ,  ये  ही  बाबा  नीम  करौली  हैं  ,  जिनकी  अलौकिक  शक्तियां   भारत  ही  नहीं  विश्व  में  प्रकाशित  हैं  l   सक्सेना  जी  को   बहुत  पश्चाताप  हुआ  कि   वे  जिसे  खोजते  रहे  ,  वे  जब  सामने  आये  तो  पहचान  न  सके  l   उन्हें  इस  बात  का  भी  दुःख  हुआ  कि   बाबा  अपनी  बारी  की  प्रतीक्षा  में  बाहर  दो  घंटे  तक  बैठे  रहे  और   बाहर  बैठे  लोगों  के  साथ  सत्संग  करते  रहे  l  इसके  बाद  सक्सेना  जी  का  जीवन  बदल  गया  , वे  सेवाभावी  हो  गए   l