देवता हों या असुर जो भी तपस्या करता है , संघर्ष करता है उसे उसका प्रतिफल, वरदान अवश्य मिलता है l पुराणों में अनेक कथाएं हैं जिनमे यह बताया गया है कि असुर बहुत कठिन तपस्या करते हैं l देवता या दैवी प्रकृति के लोग जब तपस्या करते हैं तो उनका उद्देश्य लोक कल्याण होता है और वे इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ईश्वर से वरदान मांगते हैं लेकिन असुर कठिन तपस्या इसलिए करते हैं कि उन्हें ईश्वर से अमर होने का वरदान मिल जाये l कलियुग में जब आसुरी प्रवृति का वर्चस्व है तब विभिन्न अविष्कार - अनुसन्धान इसी उद्देश्य से किए जाते हैं कि किसी तरह मृत्यु से बचा जाएँ , उसे हराया जाये , ऐसा इलाज हो कि मृत्यु असंभव हो जाये लेकिन क्या कोई मृत्यु से बचा है ? पुराण में एक कथा है ------ तारकासुर ने कठोर तप किया और ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान माँगा l ब्रह्मा जी ने कहा --- यह तो प्रकृति के विरुद्ध है , तब तारकासुर ने कहा ---- ऐसा वरदान दें कि मैं केवल शिव पुत्र के हाथों ही मारा जाऊं l उस समय शिवजी तप और वैराग्य में इतने लीन थे कि उनके विवाह की संभावना ही नहीं थी l इसलिए तारकासुर ने सोचा कि जब शिवजी का विवाह ही नहीं होगा , तो पुत्र भी नहीं होगा और इस तरह वो अमर बना रहेगा l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- मृत्यु को असंभव बनाने वाले वरदान असुरों को मिल भी जाते हैं किन्तु जीवन - मृत्यु प्रकृति का अनिवार्य व्यवस्था क्रम है l जब किसी स्थान पर कोई कर्म किया जाता है तो तत्काल प्रकृति इसके परिणाम देने की व्यवस्था करने लगती है और असुरों को मृत्यु को असंभव बनाने का वरदान मिल जाता है लेकिन प्रकृति सही समय , सही स्थान में उनकी मृत्यु -- उन्ही के बताये रास्ते के अनुसार उन्हें खोज लेती है l , वरदान के अनुरूप शिव - पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया l आज के युग में भी चिकित्सा के क्षेत्र में कितनी प्रगति हुई है कि किसी तरह लोगों का जीवन बच जाये लेकिन जितने इलाज हैं उससे कहीं ज्यादा और नई - नई बीमारियाँ हैं l यहाँ भी प्रकृति का नियम है , मृत्यु सही समय व सही स्थान पर जिसकी आ गई है , उसे खोज लेती है l इसलिए मनुष्य का प्रयास मृत्यु से बचने का नहीं , जीवन को सार्थक करने का होना चाहिए l
19 September 2021
WISDOM--------
राम -रावण का युद्ध समाप्त हुआ l रावण के अतिरिक्त युद्ध में कुम्भकरण की भी मृत्यु हुई l कुम्भकरण के पुत्र का नाम था मूलकासुर l मूलकासुर जब बड़ा हुआ तो उसके मन में प्रतिशोध की भावना बलवती हुई l घनघोर तपस्या कर उसने अपार शक्ति अर्जित कर ली और वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु किसी नर के हाथों नहीं होगी l असुरों की निगाह में नारी का कोई महत्त्व नहीं है , वे नारी शक्ति को समझते नहीं हैं इसलिए ऐसा वर माँगा l इसके उपरांत उसने असुरों की सेना एकत्र कर लंका पर चढ़ाई कर दी , उस समय लंका पर विभीषण का राज था , उसने अपनी हार प्रत्यक्ष देखकर भगवान राम से सहायता मांगी l भगवान श्रीराम जानते थे कि मूलकासुर किसी नर से पराजित नहीं हो सकता l इस स्थिति में भगवान राम ने सीताजी से अनुरोध किया l सीताजी ने वहां पहुंचकर भगवती का रूप धारण कर मूलकासुर का वध किया , आदिशक्ति के हाथों असुरता का संहार हुआ l