पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने लेखन से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है l जब संसार में चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है , छल -कपट , षड्यंत्र , धोखे का बोलबाला है , संवेदनहीनता है l ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हम अपने मन को कैसे शांत रख सकते है ? इसका ज्ञान ही जीवन जीने की कला है l ------- आचार्य श्री लिखते हैं दूसरों द्वारा किए जाने वाले व्यवहार पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता और न ही दूसरों के विचारों और कार्यों पर हमारा नियंत्रण हो सकता है लेकिन हम स्वयं के व्यवहार , विचार और कार्यों पर नियंत्रण जरुर ही कर सकते हैं l यदि हमारे जीवन में ऐसे लोग हैं जो हमें अच्छे नहीं लगते , उनका व्यवहार हमारे प्रति अच्छा नहीं है तो हमें इन व्यक्तियों से लड़ने के बजाय उनसे निश्चित दूरी बना बना लेनी चाहिए l l यहाँ दूरी से तात्पर्य है --हमें मन से उन सीमाओं को निश्चित करना है , जिससे हमें व्यक्ति विशेष के साथ कटु व्यवहार के लिए विवश न होना पड़े l यदि हम किसी को अपना मित्र नहीं बना सकते तो उसे अपना शत्रु भी नहीं बनाना चाहिए l किसी को भी अपना नजदीकी मित्र बनाने से पहले उसे कई बार परख कर निर्णय लेना चाहिए l