पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " जन भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर कोई भी सरकार सफल नहीं रही है l इतिहास इस बात का साक्षी है l मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अंदर ही अंदर सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं l शताब्दियों से भारतीय समाज पर किए जाने वाले अत्याचारों की प्रतिक्रिया अंदर ही अंदर सुलगती रही l " इसी का परिणाम था कि देश का बच्चा - बच्चा स्वतंत्रता के लिए व्याकुल हो उठा l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ---- " जीवन साधना की सफलता तो उसे ही मिलती है जो निष्काम , निस्स्वार्थ भाव से और यश कामना से अत्यंत दूर रहकर केवल ऊँचा लक्ष्य देखता है , ऊँचा लक्ष्य सोचता है और ऊँचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है l " महान शहीद सरदार भगतसिंह के चाचा सरदार अजीतसिंह कहा करते थे ------ " बड़े वरदान बड़ी तपस्या से मिलते हैं l त्याग और बलिदान देते हुए जिनके चेहरों पर शिकन नहीं आती वे एक दिन जरूर सफलता से द्वार तक पहुँचते हैं l यदि मेरा विश्वास सच है तो उस दिन अपनी धरती पर पैर रखूँगा जब वह विदेशी शासन से स्वतंत्र हो जाएगी l " 40 वर्ष तक विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले सरदार अजीतसिंह ने 15 अगस्त के दिन जब स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था अपनी इहलीला समाप्त की l मृत्यु के समय उन्होंने दोनों हाथ जोड़े और कहा ----- " ऐ रब ! तैनूँ लाख - लाख धन्यवाद कि तैनूँ साडी साधना नूं सिद्धि दे दी : ( हे परमात्मा ! तुझे लाख - लाख धन्यवाद कि तूने मेरी साधना को सिद्धि दे दी l " यह कहकर उन्होंने अपनी आँख मूँद ली l ) ""