1 April 2020

WISDOM -----

 ' बुरा  जो  देखन  मैं  चला , बुरा  न  मिलिया  कोय  l  जो  दिल  खोजा   आपना , मुझसे  बुरा  न  कोय  l
  आचार्य श्री  ने  लिखा  है ---- 'विवेकहीन  मनुष्य  अपने  शत्रुओं  की  खोज  में   अपने  समय  को  गंवाते  रहते  हैं  l   इन्हे  खोजने  व  इनसे  निपटने  के  लिए  वे  भारी - भरकम  व्यवस्था  करते  हैं  l  अनेकों  से  इसके  लिए  सहायता  की  याचना    व  प्रार्थना  करते  हैं  ,  ताकि  वे  अपने  शत्रुओं  को  पहचान  सकें  ,  उन्हें  परास्त  कर  सकें    लेकिन  ये  सारे  प्रयास ,  इस  काम  में  नियोजित  सभी  पुरुषार्थ  हमेशा  निष्फल  ही  साबित  होते   रहते  हैं    क्योंकि  व्यक्ति  के  यथार्थ  शत्रु   तो  स्वयं  के  अस्तित्व  में  छुपे  रहते  हैं  l   इन्हे  कहीं  बाहर  ढूंढने  - तलाशने  की  कोशिश  ही  बेकार  है  l   इन्हे  तलाशने  के  लिए  जरुरत  है  स्वयं  के  विवेक  की  l   इनकी  सही  पहचान  के  लिए  आत्मसमीक्षा  की  आवश्यकता  है  l
आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- सद्गुणों  की  सम्पति  मनुष्य  को  समर्थ  बनाती   है   और  दुर्गुण  ही  उसे  दुर्बल  बनाते  हैं  l   जो  वासनाओं  के  अँधेरे  से  घिरे  हैं  ,  उनसे  बड़ा  असहाय  इस  जगत  में  अन्य  कोई  भी  नहीं  है  l 

WISDOM ---- आध्यात्मिक जीवन शैली

  दो  वैज्ञानिकों  आर. डेविडसन  और  पी. एरिक्सन  ने  एक  प्रयोग  संपन्न  किया  l   इसमें  उन्होंने  400  व्यक्ति  लिए  l   इनमे  से  200   ऐसे  थे  ,  जिनकी  अध्यात्म  के  प्रति  आस्था  थी  ,  जो  संयमी , सदाचारी  जीवन  जीते  थे  l  इसके  विपरीत  200   ऐसे  थे  , जो  भोग - विलास  में , शराबखानों - जुआघरों  में  समय  बिताते  थे  l
  लगातार  दस  वर्षों  के  अध्ययन  के  बाद   उनने  पाया  कि   जिनकी  अध्यात्म  के  प्रति  आस्था  थी  , संयमी - सदाचारी  थे  ,  वे  बीमार  कम    होते   हैं  l   उन्हें  अनावश्यक  तनाव ,  दुश्चिंताएँ  कम    होती  है  l   बीमार  होने  पर  भी  जल्दी  ठीक  हो  जाते  हैं  l
  इसके  विपरीत  विलासी  मनोभूमि  वालों  की   जीवनी  शक्ति  नष्ट  होती  रहने  के  कारण  उन्हें  बीमारियाँ   निरंतर  घेरे  रहती  हैं  l  तनाव , दुश्चिंता, उत्तेजना ,  आवेग  तो  उनका  स्वभाव   ही  होता  है  l
  दोनों  वैज्ञानिकों  के  इस  निष्कर्ष  ने   आध्यात्मिक  जीवन  शैली  की  ओर   सभी  का  ध्यान  खींचा  l   इस  शोध  अध्ययन  को  बड़ा  महत्वपूर्ण  माना   जाता  है   l 

WISDOM ---- सुख - वैभव इनसान को संवेदनहीन बनाता है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य श्री  लिखते  हैं ----  ' इनसान   जीवन  भर  श्रेष्ठ  कर्म  कर  के   पुण्य  अर्जित  करता  है   और  जब  इस  पुण्य  का  भोग  करने  के  लिए  उसे   मान - सम्मान   एवं   पद - प्रतिष्ठा  मिलती  है   तो  उसके  अंदर   इसे  और  पाने  की  लालसा  जगती  है  l   इस  लालसा - लोभ  में   इनसान   इतना  क्रूर  एवं   निष्ठुर  व  संवेदनहीन    हो  जाता  है  कि   वह  अनेकों  की  पीड़ा  को  भूल  जाता  है  l   वह  सुख  पाने  की  लालसा  में  अनेकों  का  सुख  छीन  लेता  है  l   उसके  इस  सुख  में  जाने  कितनों  के  अरमान  दफन   हो  जाते  हैं  l 
   आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' इस  लालसा - लोभ    में   वह  बहुत  कुछ  ऐसा  कर   गुजरता  है  ,  जिसे  करने  में  सर्वदा  परहेज  करना  चाहिए  , अन्यथा  परिणामस्वरूप   वह  सुखभोग  के  फेर  में   फिर  से  एक  नया  भोग  बना  लेता  है  ,  जो  कालांतर  में  पाप  के  रूप  में  फलित  होता  है   l  '
      आचार्य श्री   के  ये  वचन   सुख - वैभव  संपन्न , पद - प्रतिष्ठित  लोगों  की   चेतना  जगाने  के  लिए  हैं  l  उन्हें  जागरूक  करने  के  लिए हैं  कि   कहीं  अपने  सुख - वैभव  को  चिरस्थायी  बनाने  के  लिए  वे  गरीबों  और  बेसहारों  पर  जुल्म  तो  नहीं  कर  रहे  ?   हानिकारक  और    जानलेवा  व्यवसायों  से  बहुत  लाभ  कमाने  के  लिए   लोगों   के  जीवन  में  अमिट    दुःख   तो    नहीं  दे  रहे  ?