22 November 2019

WISDOM ------ कर्मयोग

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  था  ---- ' कर्मयोग  परिश्रम  की  पराकाष्ठा  का  नाम  है   और  जो  परिश्रम  को  ही  त्याग  बैठते  हैं  ,  वे  जीवन  के  किसी  भी  आयाम  में   न  तो  उन्नति  कर  पाते  हैं   और  न  ही  व्यक्तित्व  की   समग्रता  को  प्राप्त  कर  पाते  हैं   l   श्रम  की  उपेक्षा  ही  हमारे  समाज  में   दरिद्रता  का  कारण   है  l   वे  कहते  हैं  कि   भारतीय  समाज  ने  विकास  के  दोहरे  मानदंड  तय  कर  लिए  हैं   l   हम  श्रम  करने  वालों  से  तो  घृणा  करते  हैं    और  बिना  मेहनत ,  आराम  का  अन्न   खाने  वालों  को    ऊँचा  स्थान  देते  हैं  ,  इसलिए  यह  देश  दरिद्रता  के  गर्त  में   गिरता  चला  गया  और  अपनी  समृद्धि  गँवा  बैठा  l 
 आचार्य जी  कहते  हैं --- अध्यात्म  का  पहला  पाठ   परिश्रम  और  ईमानदारी  से  प्राप्त  समृद्धि  है   और  यह  कर्मयोग  से  ही  प्राप्त  होती  है   l '