1 March 2023

WISDOM-----

   संत  गुरु  नानक  यात्रा  पर  थे   तो  किसी  ने  आकर  पूछा  ---- " हिन्दू  और  मुसलमान  में  कौन  बड़ा  है  ?  "  गुरु  नानक जी  ने  उत्तर  दिया  ---- " धर्म  का  मर्म  अच्छे  कर्म  करने  में  है  l  बड़ा  वह  कहलाता  है  जो  अच्छे  कर्म  करता  है  l  कोई  धर्म  के  आधार  पर  बड़ा  नहीं  होता  l  कहने  को  तो  खजूर  का  पेड़  भी  बड़ा  होता  है  ,  पर  उससे  किसी  की  भलाई  नहीं  होती   और  तुलसी  का  छोटा  सा  पौधा  भी  अनेक  रोगों  का  नाश  कर  देता  है  l  यदि  बडप्पन  और  महानता  का  आकलन  करना  हो  तो   व्यक्ति  के  कर्मों  को  देखो  l  वह  किस  सम्प्रदाय   या  मजहब  को  मानता  है  , इससे  उसके  बडप्पन  का   मूल्यांकन    मत  करो  l  "  उस  व्यक्ति  ने  फिर  पूछा  ---- "  क्या  अच्छे  कर्म  करने  के  लिए  किसी  धर्म  को  मानना  जरुरी  है   ?"   गुरु  नानक जी  बोले ---- " अच्छे  कर्म  करना  ही  धर्म  है  l  अच्छे  कर्म  करने  वालों  को   किसी  धर्म  को  मानने   की  आवश्यकता   नहीं  है  l  "

WISDOM -----

   मनुष्य  का  जन्म  तो  हमें  मिल  जाता  है  लेकिन  यदि  जीवन  जीने  की  कला  का    ज्ञान   न  हो  तो   वह  जीवन  ऐसे  ही   रोते -कल्पते , छल -कपट  षड्यंत्र  करते , बीमारी  और  तनाव  झेलते  या  ईर्ष्या  और  अहंकारवश  दूसरों  को  नीचा  दिखाते , उनकी  खुशियाँ  छीनते  बीत  जाता  है  l  कलियुग  की  सबसे  बड़ी  सच्चाई  यही  है  कि   मनुष्य  न  तो  स्वयं  सुख -चैन  से  जीता  है  और  न  ही  दूसरों  को  सुख  चैन  से  जीने  देता  है  l  जीवन  जीने  की  कला  सिखाने  वाले  हमारे  महाकाव्य  है   लेकिन  उसके  विभिन्न  प्रसंगों  से  जो  अच्छाई  सीखनी  चाहिए  वह  नहीं  सीखता  l   उन  प्रसंग  में  जो  अन्याय  और  अनीति  है  उसे   ग्रहण  कर    लेता  है  l  महाभारत  में  दुर्योधन  युवराज  था  l  उस  समय  विशाल  भारत  में  एक  से  बढ़कर  एक  ऋषि , विद्वान्  थे  ,  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  थे , हस्तिनापुर  में  ही  महात्मा  विदुर  महान  नीतिज्ञ   थे  लेकिन  दुर्योधन  को  तो   सब  को  छोड़कर  केवल    शकुनि  की  ही  सलाह  पसंद  आती  थी  l   षड्यंत्रकारी  शकुनि  की  सलाह  पर  चलने  वाला  दुर्योधन   पूरे  कौरव  वंश  के  अंत  का  जिम्मेदार  हो  गया  l  केवल  महाकाव्य  ही  नहीं   अनेक  छोटी -छोटी  कहानियाँ  हैं  जो  हमें  सिखाती  हैं  कि  हमें  मित्रता  कैसे  लोगों  से  करनी  चाहिए ,  किन  पर  विश्वास  करें  और  किस  की  सलाह  माननी  चाहिए  l  एक  कथा  है ----- एक  राजा  था  l  उसका  विशाल  महल , बाग़ -बगीचा  था  l  अनेक  फलदार  पेड़  थे  l  एक  फलदार  पेड़  उसके  शयन  कक्ष  की  खिड़की  के  बिलकुल   सामने  था  l  उस  के  फल  खाने  रोज  एक  बन्दर  आया  करता  था  l  धीरे -धीरे  राजा  की  उस  बन्दर  से  मित्रता  हो  गई   l  राजा  जब  विश्राम  करता  तब  वह  बन्दर  भी  वहां  आ  जाता  l  बन्दर  नकलची  होता  है  , जब  उसने  सेवकों  को  पंखा  झलते  देखा  तो  अब  उसने  उनके  हाथ  से  पंखा  छीन  लिया   और  राजा  के  विश्राम  करने  पर  बन्दर  पंखा  झलता  l  दिन  बीतते  गए  l  एक  दिन  जाने  कहाँ  से  एक  मक्खी  उस  कक्ष  में  आ  गई   और  राजा  जब  सो  रहा  था  तो  उसकी  नाक  पर  बैठ  गई  l  बन्दर  उसे  बार -बार   पंखे  से  भगाने  की  कोशिश  कर  रहा  था   लेकिन  वह  पुन:  आकर  नाक  पर  बैठ  जाती  l  अब  बन्दर  ने  पास  में  रखा  चाकू  उठा  लिया  और  जैसे  ही  मक्खी   नाक  पर  बैठी , उसने  चाकू  मारा  l  राजा  चीख  कर  उठ  बैठा  l  सारे  सेवक  दौड़कर  अन्दर  आए  ,  बन्दर  खिड़की  से  कूदकर   जंगल  में  भाग  गया  l  राज पुरोहित  आए  , उन्होंने  गंभीरता  से  कहा -- हमने  तुम्हे  कितनी  बार  समझाया  कि  मूर्ख  से  मित्रता  नहीं  करो , यह  उसी  का  परिणाम  है  l