पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' प्रकृति हमारे कर्मों का हिसाब - किताब पाप व पुण्य के रूप में करती है l जो कर्म शुभ भावना से किए जाते हैं , दूसरों को सुखी करते हैं वे पुण्य कर्म होते हैं लेकिन जो कर्म दूसरों को नुकसान व पीड़ा पहुँचाने के लिए किए जाते हैं वे कर्म पाप की श्रेणी में आते हैं l जो कर्म हमने किए हैं , उनका परिपाक समय के गर्भ में होता है l इनका परिपाक हो जाने पर एक निश्चित स्थान पर काल उनका परिणाम प्रस्तुत करता है l व्यक्तिगत जीवन में यदि कर्म अशुभ होता है तो उसका परिणाम रोग , शोक , पीड़ा व पतन बनकर प्रस्तुत होता है l यदि सामूहिक जीवन में अशुभ कर्म होता है तो उसका परिणाम प्राकृतिक आपदाओं , युद्ध , महामारी , भूकंप , बाढ़ , सूखा अकाल आदि के रूप में प्रकट होता है l "
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