इमर्सन का कहना है ---- " आओ हम चुप रहें , ताकि फरिश्तों के वार्तालाप सुन सकें l " यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं तो हमें कुछ देर मौन रहने की जरुरत है l शान्त और एकाग्र मन से ही हम प्रकृति के सन्देश को सुन सकते हैं , समझ सकते हैं l ईश्वर ने इस संसार को बनाया और उसे अपनी इस रचना से बहुत प्रेम है l प्रकृति ने हमें स्वस्थ रहने के लिए सब कुछ दिया लेकिन स्वयं को बुद्धिमान समझने के कारण हम उसके महत्व को समझ नहीं रहे हैं l जिन पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है , अंत में वह उसी में विलीन हो जाता है l यह सत्य सम्पूर्ण संसार के लिए है लेकिन इनके आधार पर जो जलवायु है , पर्यावरण है वह सब जगह भिन्न - भिन्न है और लोगों की आकृति , रंग रूप में भी इसी कारण अंतर होता है l यह ईश्वरीय व्यवस्था है कि हम जिस मिट्टी में पैदा हुए उसकी अपनी एक विशेषता है इसलिए उसी के अनुरूप कृषि पदार्थ , चिकित्सा , सौंदर्य प्रसाधन , खान- पान , वेशभूषा हमारे लिए उपयुक्त होगी l यदि हम यह सोचें कि पूरी दुनिया के लिए एक जैसा खान - पान , एक जैसी वेशभूषा , एक ही चिकित्सा पद्धति हो तो कोई भी स्वस्थ नहीं रह सकेगा l विद्वानों का कहना है --- एक पौधा जो ब्रिटेन या अमेरिका में रोपा गया , वह वहीँ की जलवायु में फलेगा - फूलेगा यदि हम उसे वहां से लाकर किसी दूसरी जलवायु के क्षेत्र में लगाएंगे तो वह सूख जायेगा और जहरीला हो जायेगा l ' मानवीय मूल्यों , नैतिकता के नियम सम्पूर्ण संसार के लिए एक जैसे हों l