पुराणों में अनेक ज्ञानवर्धक कथाएं हैं जो हमें सिखाती हैं कि हम अपनी चेतना को जगाएं और सही अर्थों में मनुष्य बनें l एक कथा है ------ एक बार महर्षि वेद व्यास एक नगर से होकर जा रहे थे l उन्होंने एक कीड़े को तेजी से भागते देखा l उन्हें यह जानने की जिज्ञासा हुई कि एक छोटा सा कीड़ा इतनी तेजी से किस कारण भागा जा रहा है ? महर्षि व्यास कीड़े - मकोड़े और पशु - पक्षियों की भाषा के गहरे जानकर थे और उनमें सभी से संवाद करने की अद्भुत क्षमता थी l
उन्होंने उस कीड़े से पूछा ---- " तुम इतनी तेजी से कहाँ भागे जा रहे हो ? "
कीड़े ने कहा --- " अरे ! मैं तो अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा हूँ l देख नहीं रहे पीछे कितनी तेजी से बैलगाड़ी चली आ रही है l "
कीड़े के उत्तर ने महर्षि को चौंकाया , वे बोले ---- " पर तुम तो इस कीट योनि में पड़े हो l यदि मर गए तो तुम्हे दूसरा और बेहतर शरीर मिलेगा l "
वह कीड़ा बोला ---- " महर्षि ! मैं तो कीड़े की योनि में रहकर कीड़े का आचरण कर रहा हूँ , परन्तु ऐसे प्राणी तो असंख्य हैं , जिन्हें विधाता ने शरीर तो मनुष्य की दिया है , पर वे मुझ कीड़े से भी गया - गुजरा आचरण कर रहे हैं l मेरे पास तो शरीर ही ऐसा है कि अधिक ज्ञान नहीं पा सकता , पर मानव तो श्रेष्ठ शरीर धारी है , परन्तु उनमे से ज्यादातर ज्ञान से विमुख होकर कीड़े जैसा आचरण कर रहे हैं l "
कीड़े की इन बातों को सुनकर महर्षि सोचने लगे कि मानव जीवन पाकर भी जो कामना , वासना , ईर्ष्या और अहंकार के वशीभूत होकर दुराचरण करता है वह है तो कीड़े जैसा ही , बल्कि कीड़े से भी बदतर है l
महर्षि ने कहा --- : " हम तुम्हारी सहायता कर देते हैं l तुम्हे अपने हाथ में उठाकर मैं आने वाली बैलगाड़ी से दूर पहुंचा देता हूँ l "
इस पर कीड़े ने कहा -------- " आपका आभार मुनिवर ! परन्तु श्रम रहित पराश्रित जीवन विकास के सारे द्वार बंद कर देता है l मुझे स्वयं ही संघर्ष करने दीजिए l इस संघर्ष में यदि मृत्यु हो भी गई तो भगवती आदि शक्ति स्वयं ही मेरे लिए विकास के द्वार खोल देंगी l l "
कीड़े के कथन में हम सबके लिए ज्ञान का नया सन्देश है l
उन्होंने उस कीड़े से पूछा ---- " तुम इतनी तेजी से कहाँ भागे जा रहे हो ? "
कीड़े ने कहा --- " अरे ! मैं तो अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा हूँ l देख नहीं रहे पीछे कितनी तेजी से बैलगाड़ी चली आ रही है l "
कीड़े के उत्तर ने महर्षि को चौंकाया , वे बोले ---- " पर तुम तो इस कीट योनि में पड़े हो l यदि मर गए तो तुम्हे दूसरा और बेहतर शरीर मिलेगा l "
वह कीड़ा बोला ---- " महर्षि ! मैं तो कीड़े की योनि में रहकर कीड़े का आचरण कर रहा हूँ , परन्तु ऐसे प्राणी तो असंख्य हैं , जिन्हें विधाता ने शरीर तो मनुष्य की दिया है , पर वे मुझ कीड़े से भी गया - गुजरा आचरण कर रहे हैं l मेरे पास तो शरीर ही ऐसा है कि अधिक ज्ञान नहीं पा सकता , पर मानव तो श्रेष्ठ शरीर धारी है , परन्तु उनमे से ज्यादातर ज्ञान से विमुख होकर कीड़े जैसा आचरण कर रहे हैं l "
कीड़े की इन बातों को सुनकर महर्षि सोचने लगे कि मानव जीवन पाकर भी जो कामना , वासना , ईर्ष्या और अहंकार के वशीभूत होकर दुराचरण करता है वह है तो कीड़े जैसा ही , बल्कि कीड़े से भी बदतर है l
महर्षि ने कहा --- : " हम तुम्हारी सहायता कर देते हैं l तुम्हे अपने हाथ में उठाकर मैं आने वाली बैलगाड़ी से दूर पहुंचा देता हूँ l "
इस पर कीड़े ने कहा -------- " आपका आभार मुनिवर ! परन्तु श्रम रहित पराश्रित जीवन विकास के सारे द्वार बंद कर देता है l मुझे स्वयं ही संघर्ष करने दीजिए l इस संघर्ष में यदि मृत्यु हो भी गई तो भगवती आदि शक्ति स्वयं ही मेरे लिए विकास के द्वार खोल देंगी l l "
कीड़े के कथन में हम सबके लिए ज्ञान का नया सन्देश है l