पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " बुद्धिजीवी विचारशील वर्ग पर भगवान ने संसार रूपी बगिया के माली का भार सौंपा है l यदि वह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में प्रमाद करते हैं तो किसी न किसी समय , किसी - न -किसी तरह उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा l " आज संसार ऐसी स्थिति से गुजर रहा है कि विश्व शांति , पर्यावरण सुरक्षा , बाल - कल्याण जैसे शब्द अर्थहीन हो गए हैं असुरता तभी शक्तिशाली होती है जब देव पक्ष कमजोर होता है और कलियुग में जब स्वार्थ , लालच , अति महत्वाकांक्षा लोगों पर हावी होती है , वे या तो डरते हैं या फिर अपनी दुकान बचाने में लगे रहते हैं इसलिए संगठित होकर असुरता का सामना नहीं करते l मनुष्य के भीतर देवता और असुर दोनों हैं , अपने मन के तराजू में इन्हे तोलने की जरुरत है , कहीं उसमे असुरता का पलड़ा भारी तो नहीं हो गया ? आज तक ऐसी कोई दीवार नहीं बनी है जो मृत्यु को रोक सके l