8 March 2013

इंग्लैंड के इतिहास में अल्फ्रेड को 'अल्फ्रेड दी ग्रेट 'कहा जाता है उन्होंने इंग्लैंड की प्रजा की भलाई के लिये काफी काम किये ,जिनके लिये उन्हें यह नाम मिला | वैभव -विलास का जीवन जीने तथा आलस -प्रमाद का शिकार होने के कारण अल्फ्रेड का राज्य शत्रुओं ने छीन लिया ,उन्हें गददी से उतारकर भगा दिया | विवश होकर उन्हें एक किसान के घर नौकरी करनी पड़ी | छिपे वेश में वह घरेलू काम करता वहां पड़ा रहा | एक दिन किसान की पत्नी किसी जरुरी काम से बाहर गई ,जाते समय उसने पतीली में दाल चढ़ाई और कह दिया कि ध्यान रखना इसे उतार लेना | जब वह लौटी तो देखा कि पतीली की दाल जल चुकी है और अल्फ्रेड एक कोने में बैठा कुछ सोच रहा है | किसान की पत्नी बोली -"मूर्ख !लगता है तुझ पर अल्फ्रेड की छाया पड़ चुकी है ,जिसने अपना राज्य यों ही बैठे हुए गंवा दिया | तू भी उसकी तरह ऐसे मारा -मारा घूमेगा | "उस बहन को कहां मालुम था कि जिससे वह यह सब कह रही है ,वही अल्फ्रेड है |
पर अल्फ्रेड को जीवन का सबक मिल गया | उसने द्रढ़ संकल्प कर लिया कि अब जो भी करूंगा ,एकाग्र चित होकर करूंगा ,कल्पना के महल नहीं बनाऊंगा | अल्फ्रेड वहां से निकलकर अपने सहयोगियों से मिला ,धन संग्रह किया सेना एकत्र की और लंदन पर राज्य स्थापित कर 'अल्फ्रेड दी ग्रेट 'बना | उसका अनुशासन आज भी याद किया जाता है | मनोनिग्रह एवं व्यवस्थित चिंतन से कुछ भी किया जा सकता है |

SELF KNOWLEDGE

'स्वयं के भीतर प्रकाश की छोटी सी टिमटिमाती ज्योति हो तो सारे ब्रह्मांड का सारा अंधेरा पराजित हो जाता है ,लेकिन यदि स्वयं के केंद्र पर अंधियारा हो तो बाह्य आकाश के कोटि -कोटि सूर्य भी उसे मिटा नहीं सकते | '
अपने लिये अंतरिक्ष के द्वार खोलने वाले मनुष्य ने स्वयं के अंतस के द्वार बंद कर लिये हैं | जब व्यक्ति स्वयं को बदलना चाहे ,अपने ह्रदय में सद्ज्ञान का दीप जलाये तभी उसका सुधार संभव है | पांडवों और कौरवों के बीच मध्यस्थता कराने भगवान श्री कृष्ण स्वयं शांति दूत बनकर गये लेकिन दुर्योधन का विवेक नष्ट हो चुका था उसने शांति के बजाययुद्ध का निर्णय लिया | जब तक व्यक्ति स्वयं न सुधरना चाहे उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते | -'ईश्वर मात्र उन्ही की सहायता करते हैं ,जो अपनी सहायता आप करते हैं | '