3 July 2023

WISDOM ----

    ' सच्चे  गुरु  के  लिए  सैकड़ों  जन्म  समर्पित  किए  जा  सकते  हैं  l  सच्चा  गुरु  वहां  पहुंचा  देता  है  , जहाँ  शिष्य  अपने  पुरुषार्थ  से   कभी  नहीं  पहुँच  सकता  l  '   केवल  गुरु  का  नाम  लेना  ही  पर्याप्त  नहीं  है ,   गुरु  के  विचारों  को  अपने  जीवन  में  उतार कर  और  उसके  अनुरूप  आचरण  कर  के  ही   सच्चा  शिष्य  बना  जा  सकता  है  l  गुरु  ही  हैं  जो  हमारी  चेतना  को  जगाते  हैं  ताकि  हम  अध्यात्म  के  पथ  पर  आगे  बढ़  सकें  l ----  एक  प्रसंग  है  ---नाथ  परंपरा  में  दीक्षित  योगी  माणिकनाथ  के  जीवन  का  l   उन्हें  अपनी  सिद्धियों  का  बहुत  अहंकार  हो  गया  था  l  उनका  आश्रम  गुजरात  में  माणिक  नदी  के  तट  पर  था  l  उन  दिनों  वहां  के  शासक  अहमदशाह  थे  , वे  अपने  नाम  पर ' अहमदाबाद '  नगर  बसाना  चाहते  थे  ,  इसके  लिए   उस    स्थान  का  चयन  हुआ  जहाँ    माणिकनाथ    का  आश्रम  था  l   जब  आश्रम  के  सामने  निर्माण  कार्य  शुरू  हुआ   तो   माणिकनाथ  को  बहुत  गुस्सा  आया   कि  यदि  कोई  निर्माण  कार्य  करना  था  तो  हम  से  पूछ  लिया  होता  l  बिना  पूछे  करने  से  योगी  का  अपमान  होता  है  l  अब  वे  अपनी  सिद्धियों  के  बल  पर  निर्माण  कार्य  में  रूकावट  डालने  लगे  l  सुल्तान  परेशान  होकर  उनके  पास  गए  , उनकी  बहुत  प्रशंसा  की  और  कहा  आप  तो  सिद्धियों  के  स्वामी  है , कार्य  में  अड़चन  डालना  आपको  शोभा  नहीं  देता  l  अपनी  प्रशंसा  सुनकर  योगीजी  का  अहंकार  और  बढ़  गया  l  वे  कहने  लगे  --मैं  चाहूँ  तो  आकाश  में  उड़  जाऊं ,  मैं  चाहूँ  तो  तुम्हारे  सामने  रखे  इस  गंगासागर लोटे  में  समा  जाऊं ,  तुमने  मेरा  अपमान  किया  !     सुलतान  चतुर  थे  , उन्होंने  कहा  --- इतनी  बड़ी  काया  और  इतना  छोटा  सा  लोटा ,  आप  कैसे  इसमें  समा  सकते  हैं  , हमें  दिखाइए  l  सुलतान  ने  उनकी  तारीफ़  कर  के  उन्हें  उकसाया  l  योगी  माणिक नाथ  भी   फूले   नहीं  समाये  l  अपनी  सिद्धियों  का  प्रयोग  कर  के   उन्होंने  अपने  को  एकदम  लघु  बना  लिया  और  लोटे  में  प्रवेश  कर  गए  l  सुल्तान  ने  अपने  दीवान  को  इशारा  किया  कि  लोटे  का  मुँह  बंद  कर  दो  l  अब  तो  योगी  लोटे  में  बंद  बड़ी  मुश्किल  में  फंस  गए  l  अन्दर  से  धमकी  देने  लग  गए  कि  मैं   तुम्हारा  सर्वनाश  कर  दूंगा , राज्य  को  नष्ट  कर  दूंगा  l  जब  सुल्तान  नहीं  माने  तो  योगी  ने  कहा --- सावधान  !  मैं  लोटा  फोड़कर  बाहर  आ  रहा  हूँ  और  तुम्हे  सबक  सिखाऊंगा  l   माणिक नाथ  वज्रास्त्र  का  प्रयोग  करने  को  तत्पर  हुए  ,  लेकिन  यह  क्या   !  वे  तो  सब  सिद्धियाँ  भूल  गए   क्योंकि  उनके  गुरु  ने  उनको  पहले  ही  समझा  दिया  था   कि   सामान्य  मनुष्य  हो  या  योगी  , उसे  अहंकार  से  दूर  रहना  चाहिए ,  यदि  तुम   अहंकार  प्रदर्शन  करोगे  तो  संपूर्ण  विद्या  भूल  जाओगे  l   अपनी  ऐसी  हालत  देखकर  योगी  रो  पड़े  और  अपने  गुरु  गोरखनाथ जी  का  स्मरण  किया  l  बाबा  गोरखनाथ जी  उनके  लोटे  में  प्रकट  हुए  और  कहा --- अहंकार  उचित  नहीं  है ,  सुल्तान  के  काम  में  विध्न  पैदा  न  करो  l  इतना  कहकर  वे  अंतर्ध्यान  हो  गए  l   माणिक नाथ  ने  सुल्तान  से  निवेदन  किया  कि   लोटे  का  मुँह  खोल  दो  , मेरे  गुरु  मुझे  समझा  गए , अब  मैं  तुम्हारे  कार्य  में  बाधा  नहीं  डालूँगा  l   सुल्तान  के  संकेत  पर  लोटे  का  मुँह  खोल  दिया  गया  ,  वे  उससे  बाहर  आ  गए  l  सुल्तान  उनके  चरणों  में  गिरकर  क्षमा  मांगने  लगे  l  योगी  ने  उन्हें  अभयदान  और  आशीर्वाद  दिया  l  इसके  बाद  उसी  स्थान  पर  उन्होंने  अपने  शरीर  का  परित्याग  कर  दिया  l  उनकी  स्मृति  में  सुलतान  ने  नगर  के  परकोटे  के  एक  बुर्ज  का  नाम  माणिक बुर्ज   और  नगर  के  मुख्य  चौक  का  नाम  माणिक  चौक  रखा  l  अहमदाबाद  का  माणिक बुर्ज  और  माणिक  चौक  आज  भी  योगी  माणिकनाथ   की  याद  दिलाते  हैं  l