संसार में इतना तनाव , इतनी अशांति क्यों है ? इसके लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेवार है l देवता और असुरों में शुरू से ही वैर रहा है l देवत्व को , अच्छाई को असुर कभी सहन नहीं करते l उसे मिटाने के लिए वे छल , कपट , षड्यंत्र , दूसरे को नीचा दिखाना , उनका हक छीनना , अत्याचार , अन्याय आदि हर संभव उपाय करते हैं l कर्म करना व्यक्ति की अपनी इच्छा है लेकिन जब उसे अपने दुष्कर्मों का फल मिलता है तब वह तनाव से घिर जाता है , उसका सुख - चैन सब खत्म हो जाता है l यह सिलसिला युगों से चला आ रहा है , कभी समाप्त नहीं होता l सम्पूर्ण धरती पर मानव जाति की यही गाथा है l त्रेतायुग में रावण ने छल- कपट किया , वह तो असुर था , यह तो उसका लक्षण ही था l उधर अयोध्या में माता सीता के साथ अन्याय हुआ -------- फिर द्वापर युग में महाभारत हुआ ---- यह असुरता ख़त्म नहीं होती l प्रकृति इसे सहन नहीं करती l जब अत्याचार - अन्याय अपने चरम पर पहुँच जाता है तब सामूहिक दंड के रूप में महामारी , बाढ़ , भूकंप युद्ध आदि आपदाएं आती हैं l लेकिन मनुष्य फिर भी नहीं सुधरता , इन समस्याओं से उबरकर फिर से अपराध , भ्रष्टाचार , छल - कपट आदि अपने स्वाभाव अनुसार दुष्कर्म में संलग्न हो जाता है l क्यों नहीं सुधरता ? आचार्य का , ऋषियों का कहना है कि जब तक संस्कार नहीं बदलते , व्यक्ति सुधरता नहीं है l यदि किसी अपराधी ने आत्मसमर्पण कर दिया , गलत काम न करने का संकल्प ले भी लिया तो संभव है वह सुधर जाये लेकिन उसने जो अपराध किये वे संस्कार रूप में उसकी किसी संतान में अवश्य आ जाते हैं , फिर यह सिलसिला चलता ही रहता है l बड़े - बड़े अपराधियों , षड्यंत्रकारियों का यदि इतिहास पता किया जाये तो यह निश्चित है कि उनके पूर्वजों में कोई ऐसा अपराधी अवश्य होगा l इसलिए पहले जमाने में घर के बड़े - बुजुर्ग कहा करते थे कि बेटी के विवाह से पहले लड़के की सात पीढ़ियों का पता कर लो --किसी को कोई भयंकर बीमारी न हो , कोई बड़ा अपराधी न हो , पता नहीं उस संतान में कब वो दूषित संस्कार जाग जाएँ l कहते हैं जनकपुर के लोग अभी भी अपनी बेटी का विवाह अयोध्या में नहीं करते l आज संसार को ऐसे सिद्ध पुरुषों की , योगियों की आवश्यकता है जो वह राह दिखा सकें कि बचपन से ही संस्कार परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो जाये l