11 June 2019

WISDOM ---- महात्मा गाँधी के सच्चे भक्त

 डॉ. मार्टिन  लूथर  किंग ( 1929 - 1968) ने   अपने  जीवन  के  आरम्भ  से  ही  देखा  था  कि अमेरिका  में  गोरे  लोग   नीग्रो - जनों  के  साथ   कैसा    अन्यायपूर्ण  और  अपमानजनक  व्यवहार  करते  हैं  l  उनको  यह  विश्वास  हो  गया  था  कि   जातिगत - अन्याय  और  आर्थिक - अन्याय  दोनों  आपस  में  मिले - जुले  चलते  हैं  l   उन्होंने  जब   महात्मा  गाँधी  के  सत्याग्रह  आन्दोलन  के  विषय  में  सुना  और  कितनी  पुस्तकें  पढ़कर  उसका  अच्छी  तरह  अध्ययन  किया  , तब  उन्होंने  समझ  लिया   कि   हम  शांतिपूर्ण  और  द्वेष  रहित  उपायों  से  भी  दुष्ट  प्रकृति  के  लोगों  का  प्रतिकार   कर    सकते   हैं  l    सर्वोदय  आन्दोलन  के  एक  कार्यकर्ता   श्री सतीशकुमार  जब  शान्ति-प्रचार  के  सम्बन्ध  में  अमेरिका  गए  थे  तो  वहां  श्री  किंग  से  भी  मिले  l  उनसे  प्रश्न  किया  गया  कि  ' आपके  अहिंसात्मक  नीग्रो  आन्दोलन  पर  गांधीजी  का  प्रभाव  कहाँ  तक  है   ? '  तो  उन्होंने   कहा ---- " एक  हद  तक  गांधीजी    मेरी  प्रेरणा  हैं  l  उनके  सत्याग्रह    तरीकों  को  जब  मैंने  पढ़ा ,  तब  मुझे  लगा  ,   मानो  मेरे  मन  की  बात  को  किसी  ने  भाषा  दे  दी  हो  l  नीग्रो - स्वातंत्र्य  की  प्राप्ति  के  लिए   गांधीजी  का  तरीका   एक  कारगर  हथियार  के  रूप  में  इस्तेमाल  किया  जा  सकता  है  l  इसका  सक्रिय  अनुभव   मुझे  तब  हुआ    जब   मौंटगुमरी  में  हमने  इस  हथियार  का   द्रढ़ता पूर्वक  प्रयोग  किया  और  सफलता  पाई  l  " 
 श्री  किंग  ने  अपनी 1959  की  भारत  यात्रा  का  जिक्र  करते  हुए  कहा ---- " उस  धरती  पर  जाना  जहाँ  गांधीजी  ने  जीवन  बिताया , एक  तीर्थ यात्रा  के  समान  ही  था l  उन  लोगों  से  मिलना  और  बात  करना  जिन्होंने  गांधीजी  के  साथ  काम  किया , मेरे  लिए  असाधारण  आनंद  की  बात  थी  l   यदि  अहिंसात्मक  सिद्धांतों  के  बल  पर  एक  देश   राजनीतिक  आजादी  प्राप्त  कर  सकता  है   तो  हम  नीग्रो  सामाजिक  आजादी  और  नागरिक  समानता  प्राप्त  करने  के  लिए  उन्ही  सिद्धांतों  पर  क्यों  न  चलें  ?  इस  विचार  ने  मेरे  जीवन  को  ही  बदल  डाला   l  इसलिए  मैं  अपने  ऊपर  भारत  का  महान  उपकार  मानता  हूँ  l "  
श्री  किंग  को   1964  का   ' शान्ति  नोबेल  पुरस्कार  प्राप्त  हुआ   तब  उन्होंने  कहा --- " सभ्यता  और  हिंसा  परस्पर  विरोधी  विचार  हैं  ----  अहिंसा  निष्क्रियता  का  नाम  नहीं  है ,  वरन  वह  एक  ऐसी  प्रबल  नैतिक  शक्ति    , जो  सामाजिक  कायापलट  कर  देती  है   -------- " l