2 March 2019

WISDOM --- मनुष्य की संकीर्ण स्वार्थपरता सामूहिक जीवन के लिए सदा घातक रही है

  तक्षशिला  के  राजा   आम्भीक  के  निमंत्रण  प र   सिकंदर  ने  भारत  पर  आक्रमण  किया  l  जहाँ  आम्भीक  जैसे  देशद्रोही  थे  वहां  अनेक  देशभक्त  राजा  भी  थे  l  इन  राजाओं  में  देश भक्ति की  भावनाएं  तो  थीं  किन्तु   एकता  की  बुद्धि  का  सर्वथा  अभाव  था   l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने अपने  वाड्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग ' में  पृष्ठ  1. 35  पर  लिखा  है  ----- " सिकंदर  के  विरोधी  होने  पर  भी  वे  आपसी  विरोध  को  भुला  न  सके  l  किसी  एक  राष्ट्र  के  कर्णधारों  में   परस्पर  प्रेम  रहने  से  ही  कल्याण  की  संभावनाएं  सुरक्षित  रहा  करती  हैं  ,  फिर  भी  यदि  उनमे  किसी कारण  से  मनोमालिन्य   रहेगा   ,  तब  भी   किसी  संक्रामक  समय  में  उन्हें  आपसी  भेदभाव   मिटाकर  एक  संगठित   शक्ति  से  ही   संकट  का  सामना  करना  श्रेयस्कर  होता  है   अन्यथा  आया  हुआ  संकट    अलग - अलग  सबको  नष्ट  कर  देता  है l "
       देशद्रोही    आम्भीक  को  देखकर  अन्य  राजा  भी  देशद्रोही     बनते  जा  रहे  थे   l   जब  कोई  पापी   किसी   मर्यादा   की  रेखा  उल्लंघन  कर  उदाहरण  बन  जाता  है  ,  तब  अनेकों  को  उसका  उल्लंघन  करने  में   अधिक  संकोच  नहीं  रहता   l  
  भारत  के  प्रवेश  द्वार  पर  ,  एकमात्र  प्रहरी  के  रूप  में  महाराज  पुरु  रह  गए  थे   l  अनेक  अभागे  राजा   सिकंदर  की  सहायता  करते  हुए   उसकी  विजयों  में  अपने  लाभ  का  भाग  देखने  लगे  थे  l  
  जब  तक  पुरु  जैसे  वीर   भारत- भूमि  पर पैदा  होते  रहेंगे  ,  इसकी  गौरव  पताका  युग - युग  तक  आकाश  में  फहराती  रहेगी   l