शिवाजी के गुरु के समान थे संत तुकाराम l वे शिवा के ह्रदय में बसते थे l शिवा की भावनाओं में तुकाराम स्पंदित होते थे l भक्तों के बीच तुकाराम कह रहे थे ------ " शिवा इस राष्ट्र की धरोहर हैं l इनका होना हिंदुत्व और मानवता के लिए सबसे बड़ा वरदान है , क्योंकि वे इस राष्ट्र को भीषण संकट से बचा सकते हैं l उनके संरक्षण में वर्तमान मानवता जीवित रहकर विकास कर सकती है l शिवा इन आतताइयों से राष्ट्र को सुरक्षा प्रदान करेंगे l वे इस राष्ट्र के ज्वलंत प्रहरी हैं l "
बीस वर्ष की आयु से ही शिवाजी ने अनेक किले जीत लिए थे l उनके वीरता व साहस के किस्से सब की जुबान पर थे l आदिलशाह और औरंगजेब षड्यंत्र से शिवा को बन्दी बनाना चाह रहे थे औरंगजेब को अपने ख़ुफ़िया तंत्र से पता लग गया था कि आज शिवा सत्संग में अवश्य आयेंगे l
तुकाराम के माथे पर चिन्ता की रेखाएं उभर आईं थीं , पर अब चिंता से क्या लाभ ? शिवाजी उनके चरणों में निश्चिन्त और शांति से बैठे थे l तुकाराम और शिवाजी के बीच काफी देर तक वार्तालाप होता रहा l तुकाराम कह रहे थे ----- " शिवा ! भगवान द्वारा दी गई जिम्मेदारियों का अवश्य निर्वहन करना l सफलता और सार इसी में है कि दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन कितने अच्छे ढंग से किया गया l इन जिम्मेदारियों का बोझ तब भारी हो जाता है , जब हम सोचते हैं कि हम कर रहे हैं l अधिकारों के मिलने से अहंकार जाग जाता है , परन्तु जब यह सोच लिया जाये कि कर्ता तो कोई और है , हम तो यंत्र मात्र हैं , निमित मात्र हैं l इस सोच से हम चिंता और तनाव से मुक्त हो जाते हैं l जाओ ! तनाव मुक्त रहो और साक्षी भाव से राष्ट्र धर्म का पालन करो सभी लोग वहां से शिवा के सकुशल निकल जाने के लिए भगवान से प्रार्थना कर थे किन्तु खतरों से खेलने के आदी शिवा निश्चिन्त मन से सत्संग का श्रवण कर रहे थे l अचानक कुछ साधुओ ने संत तुकाराम का जय घोष करते हुए सत्संग - क्षेत्र में प्रवेश और इसी के साथ कुछ साधु चिमटा बजाते हुए और अभंग गाते हुए बाहर निकल गए l सैनिक पहरा ही देते रहे , और शिवा साधु वेश में कब के निकल चुके थे l
बीस वर्ष की आयु से ही शिवाजी ने अनेक किले जीत लिए थे l उनके वीरता व साहस के किस्से सब की जुबान पर थे l आदिलशाह और औरंगजेब षड्यंत्र से शिवा को बन्दी बनाना चाह रहे थे औरंगजेब को अपने ख़ुफ़िया तंत्र से पता लग गया था कि आज शिवा सत्संग में अवश्य आयेंगे l
तुकाराम के माथे पर चिन्ता की रेखाएं उभर आईं थीं , पर अब चिंता से क्या लाभ ? शिवाजी उनके चरणों में निश्चिन्त और शांति से बैठे थे l तुकाराम और शिवाजी के बीच काफी देर तक वार्तालाप होता रहा l तुकाराम कह रहे थे ----- " शिवा ! भगवान द्वारा दी गई जिम्मेदारियों का अवश्य निर्वहन करना l सफलता और सार इसी में है कि दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन कितने अच्छे ढंग से किया गया l इन जिम्मेदारियों का बोझ तब भारी हो जाता है , जब हम सोचते हैं कि हम कर रहे हैं l अधिकारों के मिलने से अहंकार जाग जाता है , परन्तु जब यह सोच लिया जाये कि कर्ता तो कोई और है , हम तो यंत्र मात्र हैं , निमित मात्र हैं l इस सोच से हम चिंता और तनाव से मुक्त हो जाते हैं l जाओ ! तनाव मुक्त रहो और साक्षी भाव से राष्ट्र धर्म का पालन करो सभी लोग वहां से शिवा के सकुशल निकल जाने के लिए भगवान से प्रार्थना कर थे किन्तु खतरों से खेलने के आदी शिवा निश्चिन्त मन से सत्संग का श्रवण कर रहे थे l अचानक कुछ साधुओ ने संत तुकाराम का जय घोष करते हुए सत्संग - क्षेत्र में प्रवेश और इसी के साथ कुछ साधु चिमटा बजाते हुए और अभंग गाते हुए बाहर निकल गए l सैनिक पहरा ही देते रहे , और शिवा साधु वेश में कब के निकल चुके थे l