20 July 2013

AWAKENING

'मनुष्य भटका हुआ देवता है ',यह सत्य है पर सत्य यह भी है कि जब वह अंतस की चिनगारी जाग जाती है तो व्यक्ति का गंतव्य पुन:देवत्व की उपलब्धि व पूर्णता की प्राप्ति बन जाता है |
            सूर ,तुलसी ,आम्रपाली ,अंगुलिमाल अजामिल ,विल्वमंगल ,अशोक आदि आरम्भ से वैसे न थे ,जैसे कि विवेक का उदय होने के बाद हो गये | नये सिरे से अपनायी गई श्रेष्ठता इतनी समर्थ होती है कि उसके दबाव से पिछले दिनों बरती गई अवांछनीयता को दबाया जा सके |
       दिव्य जीवन जीने के लिये संकल्प उभारनेऔर साहस करने के लिये समर्पित लोगों में से किसी को भी मझधार में डूबना नहीं पड़ा |
        आचार्य इन्द्रदत्त के स्नातकों में कपिल गौर वर्ण ,उन्नत ललाट ,अति सुंदर थे | एक दिन जब नगर सेठ प्रसेनजित के द्वार पर कपिल ने गुहार लगाई -"भिक्षां देहि "-तब नगर सेठ की अति सुंदर परिचारिका मधूलिका भिक्षा लेकर आई ,यह उन दोनों के जीवन का बहुत ही मार्मिक क्षण था | भिक्षा झोली में पड़ी रही ,कितने क्षण बीत गये कुछ पता ही न चला |
    इसके बाद कपिल को जब भी समय मिलता वही द्वार --और तब प्रारंभ हुई पतन की करुण कथा |
      वसंत पर्व समीप था ,मधूलिका ने भिक्षु कपिल से सौ स्वर्ण मुद्राओं की याचना की और युक्ति भी बताई -"आप श्रावस्ती नरेश के पास चलें जायें ,वे अप्रतिम दानी हैं ,सौ स्वर्ण मुद्राएँ उनके लिये बड़ी बात नहीं है |
             कामांध कपिल अपना विवेक खो चुके थे रात्रि में ही राजप्रसाद में प्रवेश करना चाहा | प्रहरी ने प्रताड़ित किया और दस्यु की आशंका से रात भर बंदी गृह में रखा | दूसरे दिन वे बंदी के वेश में राजा के सम्मुख प्रस्तुत हुए |
       कपिल ने अपना आत्म-सम्मान ,शील खोया ,परन्तु उन्हें उबारने वाला 'सत्य 'अभी उनके पास था | उन्होंने महाराज को सारी गाथा स्पष्ट बता दी | सम्राट कपिल की निश्छलता पर प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा -"युवक !अब तुम क्या चाहते हो ,जो मांगोगे मिलेगा | "कपिल ने सोचा सौ क्यों ,हजार ,नहीं एक लाख ,क्यों न ऐसा कुछ मांगा जाये जिससे मधूलिका के साथ आजीवन सुख से रहा जाये | कपिल ने कहा -"आपका सम्पूर्ण राज्य चाहिये | "समस्त सभासद स्तब्ध रह गये ,किन्तु श्रावस्ती नरेश विचलित नहीं हुए | वे बोले -"तथास्तु !कपिल!मैं निस्संतान हूँ ,राज्य भोग ने मेरी आत्मिक शक्तियों को जर्जर कर दिया था ,मैं चाहता ही था कि कोई सुयोग्य पात्र मिल जाये तो मैं इस जंजाल से मुक्त होकर आत्म कल्याण का मार्ग खोजूँ -तुमने आज मेरा भार उतार दिया ,आज से श्रावस्ती तुम्हारी हुई | "
राजा की उदारता से स्तब्ध कपिल की अन्तर चेतना जाग्रत हुई -क्या आत्म शांति ,आत्म कल्याण इतना महान है जिस पर राज्य न्योछावर किया जा सके | कपिल संभले और बोले -"नहीं !नहीं !क्षमा करें राजन !मैं अपने उसी श्रेय पथ की ओर प्रस्थान करूंगा जिसका निर्देश मेरे गुरुदेव ने दिया था | "क्षण भर में लोगों ने देखा वे राजमहल से दूर -बहुत दूर -अति दूर जा रहें हैं ,पतन से उत्थान की ओर ,श्रेय पथ पर जा रहें हैं