मनुष्य को भगवान् ने बहुत कुछ दिया l बुद्धि तो इतनी दी कि वह संसार के सम्पूर्ण प्राणियों का शिरोमणि हो गया l बुद्धि पाकर भी मनुष्य एक गलती सदैव दोहराता है और वह यह कि उसे जिस पथ पर चलने का अभ्यास हो गया है वह उसी पर चलना चाहता है l रास्ते न बदलने से जीवन के अनेक महत्वपूर्ण पहलू उपेक्षित पड़े रहते हैं l ---- धनी , धन का मोह छोड़कर दो मिनट त्याग और निर्धनता का जीवन बिताने के लिए तैयार नहीं होता , नेता भीड़ पसंद करता है , वह दो क्षण एकान्त चिंतन के लिए नहीं निकलता l डाक्टर व्यवसाय करता है ऐसा नहीं कि सेवा का सुख भी देखें , पैसे को माध्यम न बनायें l व्यापारी बेईमानी करते हैं कोई ऐसा प्रयोग नहीं करते कि देखें कि ईमानदारी से भी मनुष्य सुखी और संपन्न रह सकता है l जीवन में विपरीत और कष्टकर परिस्थितियों से गुजरने का अभ्यास मनुष्य जीवन में बना रहा होता तो अध्यात्म और भौतिकता में परस्पर संतुलन बना रहता और धरती पर शान्ति होती l
Omkar....
26 April 2018
25 April 2018
WISDOM ------
सफलता के इच्छुक व्यक्ति के लिए उपेक्षा , तिरस्कार और अभावों से परेशान न होकर निरंतर श्रम करते रहना ही सफलता का राजमार्ग है l इस मार्ग का अनुसरण कर व्यक्ति सामान्य ही नहीं विकट से विकट परिस्थितियों में भी ऊँचा उठ सकता है तथा प्रगति के उच्च शिखरों को छू सकता है l
24 April 2018
WISDOM ----- आज देश में सबसे बड़ी आवश्यकता चरित्र - निर्माण और नैतिक जागरण की है l
किसी भी समाज का जब चारित्रिक पतन होने लगे तो समझो कि उस देश की संस्कृति खतरे में है l कुछ जातियों को अपनी जातीय श्रेष्ठता का अभिमान होता है किन्तु पतन बड़ी तेजी से होता है और इसकी चपेट में सभी जाति व सम्प्रदाय आ जाते हैं , श्रेष्ठता केवल दिखावे की रह जाती है l मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों कामना - वासना का गुलाम होता है l अपना चोला बदल ले , शराफत का कोई भी आवरण ओढ़ ले , इन कमजोरियों से मुक्ति पाना आसान नहीं है l
इसलिए समस्या यह उत्पन्न होती है कि इस चारित्रिक पतन को कैसे रोका जाये l केवल भाषण या कानून बन जाने से समस्या नहीं सुलझती l कोई भी देश अपनी संस्कृति की , अपनी जातिगत श्रेष्ठता की रक्षा करना चाहता है तो उसे उन कारणों पर प्रतिबन्ध लगाना होगा जो मन की कुत्सित भावनाओं को भड़काते हैं --- अश्लील साहित्य , अश्लील फ़िल्मों और इन्हें दिखने वाली साइट पर प्रतिबन्ध हो l भारत जैसे गर्म जलवायु के देश में शराब और हर प्रकार के नशे पर प्रतिबन्ध हो , नशे की वजह से ही व्यक्ति अमानवीय कार्य करता है l समाज जागरूक हो और इससे संबंधित कठोर कानून बने तभी कुछ सुधार संभव होगा l
इसलिए समस्या यह उत्पन्न होती है कि इस चारित्रिक पतन को कैसे रोका जाये l केवल भाषण या कानून बन जाने से समस्या नहीं सुलझती l कोई भी देश अपनी संस्कृति की , अपनी जातिगत श्रेष्ठता की रक्षा करना चाहता है तो उसे उन कारणों पर प्रतिबन्ध लगाना होगा जो मन की कुत्सित भावनाओं को भड़काते हैं --- अश्लील साहित्य , अश्लील फ़िल्मों और इन्हें दिखने वाली साइट पर प्रतिबन्ध हो l भारत जैसे गर्म जलवायु के देश में शराब और हर प्रकार के नशे पर प्रतिबन्ध हो , नशे की वजह से ही व्यक्ति अमानवीय कार्य करता है l समाज जागरूक हो और इससे संबंधित कठोर कानून बने तभी कुछ सुधार संभव होगा l
22 April 2018
WISDOM ------- हमारी कथनी और करनी में एकरूपता होनी चाहिए
' जो हम कहते हैं वह अमल में भी होना चाहिए l '
हिन्दी साहित्य के महान कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध जी ' का जन्म 1865 में एक जमीदार परिवार में हुआ था l जमींदारी और पंडिताई उनका पैतृक धंधा था l उन्होंने मिडिल स्कूल की परीक्षा पास कर ली l
एक दिन उन्होंने अपने जमीदार पिता से किसी किसान को पिटते देखा l उस समय तो वे कुछ नहीं बोले l समय मिलने पर पूछा ---- ' क्या पिताजी इस दुनिया में यह सब चलता है l आप तो कथाओं में लोगों से कहा करते हैं कि किसी निरपराध प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिए l '
अपने किये पर पुत्र को टीका - टिपण्णी करते देख पिता को क्रोध आ गया , वे बोले --- " तू जानता है कि उसने कोई अपराध किया है या नहीं किया है l "
पुत्र ने कहा ---- " मेरी जानकारी में तो नहीं है l क्या आप बताने का कष्ट करेंगे l "
पिता उन्हें जमींदारी सिखाना चाहते थे , अत: कुछ शांत होकर बोले ---- " सारी फसल तो बेचकर खा गया और लगान के नाम पर वह कह रहा था कि कुछ हुआ ही नहीं l "
अयोध्या सिंह जी बोले ---- " इस साल तो पानी नहीं बरसा l यह बात तो हम लोग भी जानते हैं l फसल कहाँ से पैदा हुई होगी l "
पिता बोले --- " मिडिल पास कर ली तो खुद को मुझसे ज्यादा समझदार मानने लगा है l मैं जो कह रहा हूँ क्या वह तेरे लिए झूठ है l " यह कहकर वे बेटे की और लपके l
इस घटना ने उन्हें धर्म क्षेत्र में फैले हुए आडम्बर का बोध कराया l लोगों को दया , प्रेम का उपदेश देकर अपने स्वार्थ के लिए स्वयं उनके साथ मारपीट करना तो गलत है l जो हम कहते हैं उस पर अमल भी होना चाहिए l
अपने भावी जीवन के बारे में वे सोच रहे थे कि जमींदारी का धन्धा और पंडिताई ये दोनों काम नहीं बन सकते l कृषक की विवशता को समझकर भी उसे उपेक्षित करते हुए अमानवीय अत्याचार करना उन्हें गौरव अनुकूल नहीं लगा l जमींदारी करते हुए पंडिताई दूभर है l अब वे स्वतंत्र रूप से अपनी जीविका चलाने लगे l भारतेन्दु जी के संपर्क में आकर उन्हें सार्थक साहित्य सृजन की प्रेरणा मिली l समाज में व्याप्त कुरीतियों , मर्यादाहीन ब्राह्मण - पंडितों , बाल विवाह , वृद्ध विवाह जैसे विषयों पर उन्होंने अपनी कवितायेँ लिखीं l
हिन्दी साहित्य के महान कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध जी ' का जन्म 1865 में एक जमीदार परिवार में हुआ था l जमींदारी और पंडिताई उनका पैतृक धंधा था l उन्होंने मिडिल स्कूल की परीक्षा पास कर ली l
एक दिन उन्होंने अपने जमीदार पिता से किसी किसान को पिटते देखा l उस समय तो वे कुछ नहीं बोले l समय मिलने पर पूछा ---- ' क्या पिताजी इस दुनिया में यह सब चलता है l आप तो कथाओं में लोगों से कहा करते हैं कि किसी निरपराध प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिए l '
अपने किये पर पुत्र को टीका - टिपण्णी करते देख पिता को क्रोध आ गया , वे बोले --- " तू जानता है कि उसने कोई अपराध किया है या नहीं किया है l "
पुत्र ने कहा ---- " मेरी जानकारी में तो नहीं है l क्या आप बताने का कष्ट करेंगे l "
पिता उन्हें जमींदारी सिखाना चाहते थे , अत: कुछ शांत होकर बोले ---- " सारी फसल तो बेचकर खा गया और लगान के नाम पर वह कह रहा था कि कुछ हुआ ही नहीं l "
अयोध्या सिंह जी बोले ---- " इस साल तो पानी नहीं बरसा l यह बात तो हम लोग भी जानते हैं l फसल कहाँ से पैदा हुई होगी l "
पिता बोले --- " मिडिल पास कर ली तो खुद को मुझसे ज्यादा समझदार मानने लगा है l मैं जो कह रहा हूँ क्या वह तेरे लिए झूठ है l " यह कहकर वे बेटे की और लपके l
इस घटना ने उन्हें धर्म क्षेत्र में फैले हुए आडम्बर का बोध कराया l लोगों को दया , प्रेम का उपदेश देकर अपने स्वार्थ के लिए स्वयं उनके साथ मारपीट करना तो गलत है l जो हम कहते हैं उस पर अमल भी होना चाहिए l
अपने भावी जीवन के बारे में वे सोच रहे थे कि जमींदारी का धन्धा और पंडिताई ये दोनों काम नहीं बन सकते l कृषक की विवशता को समझकर भी उसे उपेक्षित करते हुए अमानवीय अत्याचार करना उन्हें गौरव अनुकूल नहीं लगा l जमींदारी करते हुए पंडिताई दूभर है l अब वे स्वतंत्र रूप से अपनी जीविका चलाने लगे l भारतेन्दु जी के संपर्क में आकर उन्हें सार्थक साहित्य सृजन की प्रेरणा मिली l समाज में व्याप्त कुरीतियों , मर्यादाहीन ब्राह्मण - पंडितों , बाल विवाह , वृद्ध विवाह जैसे विषयों पर उन्होंने अपनी कवितायेँ लिखीं l
21 April 2018
WISDOM ------ दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की आततायी से रक्षा करना ही शक्तिशाली का धर्म है
' किसी को ईश्वर सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सदप्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को समझना चाहिए कि वह विशेष अनुदान उसे किसी समाज उपयोगी कार्य के लिए ही मिला है l जो अपनी शक्ति का सदुपयोग करता है , दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की आततायी से रक्षा करने के साथ ही अत्याचारी और अन्यायी को कठोर दंड देने व्यवस्था करता है तो यह निष्ठा उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती है l '
20 April 2018
WISDOM ----- हम बना नहीं सकते तो बिगाड़ने का अधिकार नहीं है
बया दूर - दूर तक जाती है , एक - एक तिनका खोजकर पल - पल परिश्रम कर के घोंसला बनाती है l जिसे देखकर हर किसी को प्रेरणा मिलती है , प्रसन्नता होती है l
नन्हे से पक्षी बया के घोंसले को नष्ट कर देने वाला बिलाव हर किसी का निंदा पात्र बनता है l तब फिर परम पिता परमात्मा द्वारा रचित इस संसार को बिगाड़ना, उसे नष्ट करना निंदनीय है l संसार की हर वस्तु , हर जीव हमारी भलाई और कल्याण के लिए हैं , तब किसी को सताना , कष्ट पहुँचाना , ईश्वरीय कृति को विनष्ट करना उचित नहीं है l
इस संसार को सुन्दर बनाने का प्रयास करें l
नन्हे से पक्षी बया के घोंसले को नष्ट कर देने वाला बिलाव हर किसी का निंदा पात्र बनता है l तब फिर परम पिता परमात्मा द्वारा रचित इस संसार को बिगाड़ना, उसे नष्ट करना निंदनीय है l संसार की हर वस्तु , हर जीव हमारी भलाई और कल्याण के लिए हैं , तब किसी को सताना , कष्ट पहुँचाना , ईश्वरीय कृति को विनष्ट करना उचित नहीं है l
इस संसार को सुन्दर बनाने का प्रयास करें l
19 April 2018
WISDOM ---- महाकाव्यों से प्रेरणा लेने पर ही अनीति और अत्याचार का उन्मूलन संभव है
केवल कानून बना देने से समाज में फैली विकृतियों को दूर नहीं जा सकता , इसके लिए समाज का जागरूक होना जरुरी है l कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर भी है l असुरता सदैव देवत्व पर आक्रमण करती है , दुष्टता अच्छाई को मिटाने के लिए षडयंत्र रचती है l जागरूक रहकर ही उन षडयंत्रों से बचा जा सकता है --- यही महाभारत का शिक्षण है l
महाभारत -- जाति और सम्प्रदाय के आधार पर युद्ध नहीं था , यह तो अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए महाभारत था l
दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए सदैव षडयंत्र रचे l पांडव जब जागरूक रहे तो उन षडयंत्रों से बच गए जैसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षाग्रह में महारानी कुंती समेत जला देने की योजना बनाई l पांडव सचेत थे , समय रहते उन्होंने वहां सुरंग बना ली और बच निकले l इस जागरूकता में जरा सी चूक से उन्हें जो हानि हुई उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी l
जब महाभारत समाप्त हो गया , दुर्योधन भी पराजित हो गया तब पांचों पांडव महल में निश्चिन्त होकर सो गए l इस हार से बौखलाए ' गुरु - पुत्र ' अश्वत्थामा ने अर्द्ध रात्रि में सोते हुए पांचों पांडवों का वध करने का निश्चय किया , अपनी बौखलाहट में उसने पांडवों के पांच सुकोमल पुत्रों का वध कर दिया और अभी तक माथे पर कलंक लिए भटक रहा है l
यह कथा हमें सिखाती है कि राक्षसी प्रवृतियां रात्रि में जब चारों और सन्नाटा होता है तब क्रियाशील होती हैं lऐसी पाशविक प्रवृतियों का जाति या धर्म से कोई लेना - देना नहीं होता , यह तो व्यक्ति के भीतर बैठा दानव है जो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर पाप और अधर्म करता है l
आज के समय में भी यदि राक्षसी - प्रवृतियों से समाज को बचना है तो जागरूक रहना होगा l समाज में कोई भी ऐसा स्थान न रहे जहाँ रात्रि को अँधेरा और सन्नाटा हो जिसमे दुष्टता को पांव पसारने का मौका मिले l जागते रहो !
महाभारत -- जाति और सम्प्रदाय के आधार पर युद्ध नहीं था , यह तो अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए महाभारत था l
दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए सदैव षडयंत्र रचे l पांडव जब जागरूक रहे तो उन षडयंत्रों से बच गए जैसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षाग्रह में महारानी कुंती समेत जला देने की योजना बनाई l पांडव सचेत थे , समय रहते उन्होंने वहां सुरंग बना ली और बच निकले l इस जागरूकता में जरा सी चूक से उन्हें जो हानि हुई उसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी l
जब महाभारत समाप्त हो गया , दुर्योधन भी पराजित हो गया तब पांचों पांडव महल में निश्चिन्त होकर सो गए l इस हार से बौखलाए ' गुरु - पुत्र ' अश्वत्थामा ने अर्द्ध रात्रि में सोते हुए पांचों पांडवों का वध करने का निश्चय किया , अपनी बौखलाहट में उसने पांडवों के पांच सुकोमल पुत्रों का वध कर दिया और अभी तक माथे पर कलंक लिए भटक रहा है l
यह कथा हमें सिखाती है कि राक्षसी प्रवृतियां रात्रि में जब चारों और सन्नाटा होता है तब क्रियाशील होती हैं lऐसी पाशविक प्रवृतियों का जाति या धर्म से कोई लेना - देना नहीं होता , यह तो व्यक्ति के भीतर बैठा दानव है जो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर पाप और अधर्म करता है l
आज के समय में भी यदि राक्षसी - प्रवृतियों से समाज को बचना है तो जागरूक रहना होगा l समाज में कोई भी ऐसा स्थान न रहे जहाँ रात्रि को अँधेरा और सन्नाटा हो जिसमे दुष्टता को पांव पसारने का मौका मिले l जागते रहो !
Subscribe to:
Posts (Atom)