5 July 2025

WISDOM ------

  श्री माँ ( श्री अरविन्द  आश्रम ) पांडिचेरी  लौट  रही  थीं  l l  तूफ़ान  के  कारण  जहाज  में  हिचकोले  लगने  लगे  l  अंत:द्रष्टि  संपन्न  श्री माँ  ने  देखा   कि  संभवतः  कोई  भी  न  बचे  , ऐसा  भयंकर  तूफान  है  l  उन्होंने  सुप्रसिद्ध  तंत्र  विशेषज्ञ  ' तेओं '  से  दीक्षा  ली  थी  l  वे  केबिन  में  चली  गईं   और  स्वयं  को  बंद  कर  लिया  l  सूक्ष्म  शरीर  से  वे  समुद्र  में  चली  गईं  l  उन्होंने  देखा  , कुछ  सूक्ष्म  शरीरधारी  आत्माएं   समुद्र  के  पानी  को   तीव्र  वेग  से  उछाल  रही  हैं  l  उनसे  उन्होंने  वार्तालाप  किया  l  वे  बोलीं  ---- "  हम  तो  खेल  रहे  हैं  l  आपका  जहाज  ही  बीच  में  आ  गया  l "  श्री माँ  ने  कहा --- " आप  थोड़ी  देर  विराम  कर  लें  l  हम  इस  बीच  जहाज  निकाल  लेंगे  l "   श्री  माँ  यह  विनती  कर  के  केबिन  से  बाहर  आ  गईं  l अचानक  तूफान   थम  गया  l  उन्होंने  कहा --- " तुरंत  जहाज  निकाल  लो  l  फिर  तूफान  आ  सकता  है  l "  स्पीड  बढ़ाकर  जहाज  निकाला  गया  l  देखा  गया  पीछे  फिर  तूफान  आरम्भ  हो  चुका  था  l  ' श्वेत कमल '  ग्रन्थ  में  इस  घटना  का  उल्लेख  है  l  

4 July 2025

WISDOM -----

   इस  युग  की  सबसे  बड़ी  त्रासदी  यह  है  कि  मनुष्य  के  भीतर  ज्ञान  तो  बढ़ता  जा  रहा  है  लेकिन  वह  विवेकशून्य  होता  जा  रहा  है  l  उसे  स्वयं  नहीं  मालूम  कि  वह  आखिर  चाहता  क्या  है  ?   भीषण  युद्ध  हो  रहे , दंगे  हो  रहे  , बेकसूर  लोग  मारे  जा  रहे  हैं  l  बेकसूर  महिला , बच्चों  को  मारने  और  पर्यावरण  को  प्रदूषित  करने  का  कोई  ठोस  कारण  नजर  नहीं  आता  l  दुर्बुद्धि  का  सबसे  बड़ा  प्रमाण  तो  यह  है  कि  जब  कहीं  वश  न  चले  तो  धार्मिक  स्थलों  को , प्राचीन  मूर्तियों  को  ही  तोड़  डालो  l  यदि  इस  संबंध  में  गहराई  से  विचार  करें  तो  एक  बात  स्पष्ट  है  कि  मनुष्य  कितना  भी  आधुनिक  हो  जाए  वह    ईश्वर  से  डरता  तो  है   लेकिन   ईश्वर  की  प्रतीक  मूर्तियों  को  तोड़कर  वह  स्वयं  को  नास्तिक   होने  का  दिखावा  करता  है  l  प्रत्येक  मनुष्य  के  भीतर  एक  आत्मा  है  , जो  पवित्र  है  l  व्यक्ति  जो  भी  कुकर्म  करता  है  ,  उसकी  आत्मा  उसे  बार -बार  बताती  है  कि  तुम  ये  गलत  कर  रहे  हो   लेकिन  वह  अपनी  आत्मा  की  आवाज  को  अनसुना  कर  देता  है   और  एक  बड़े  अपराधी  की  तरह   अपने  कुकर्मों  के   सबूत    मिटाना  चाहता  है  l  उसे  लगता  है  कि   धार्मिक  स्थल  और  उनमें  छिपा  बैठा  ईश्वर  उसे  देख  रहा  है  ,  कहीं  उसे  दंड  न  दे  दे  , इसलिए  इस  सबूत  को  मिटा  डालो  l  ऐसे  लोग  वास्तव  में  बड़े  भोले  हैं  , उन्हें  नहीं  मालूम  ईश्वर  तो  प्रकृति  के  कण -कण  में  है  , वे  हजार  आँखों  से  हमें  देख  रहे  हैं  l  एक  आस्तिक  व्यक्ति  तो  अपने  धार्मिक  स्थल  पर   अपने  तरीके  से  पूजा -पाठ  कर  लौट  आता  है  , वहां  ईश्वर  हैं  या  नहीं  , यह  सोचने  की  उसे  फुर्सत  नहीं  है  क्योंकि  दैनिक  जीवन की  अनेक  समस्याएं  हैं   लेकिन  जो   ईश्वर  के  प्रतीक  चिन्हों  को  तोड़ते  हैं  , वे  अवश्य  ही  किसी  न  किसी  जन्म  में  ईश्वर  के  बड़े  भक्त  रहे  होंगे  , वे  इन  प्रतीकों  में  ईश्वर  का  अस्तित्व  देखते  हैं  , उनकी  निगाहों  से  डरते  हैं   इसलिए  उन्हें  मिटाकर  चैन  की  साँस  लेते  हैं  l  बड़े -बड़े  भक्तों  से  भी  कभी  कोई  गलती  हो  जाती  है , वे  अपनी  राह  भटक  जाते  हैं  l  उन्हें  अपना    पूर्व  जन्म  याद  नहीं  आता   इसलिए  पाप  के  मार्ग  पर  चलते  जाते  हैं  l  यदि  उनके  जीवन  को  सही  दिशा  मिल  जाये  , वे  स्वयं  को  पहचान  जाएँ  तो  संसार  में  बिना  वजह  के  युद्ध , दंगे  सब  समाप्त  हो  जाएँ  l  बड़ी  मुश्किल  से  जो  मानव  जन्म  मिला  ,  उसे  सुकून  के  साथ  जी  सकें  l  

2 July 2025

WISDOM ------

प्रकृत्ति  के  कण -कण  में  भगवान  हैं   लेकिन  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  ऐसा  प्रकोप  है  कि  वह  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  है   और  अपनी  शक्ति  व  वैभव  का  दुरूपयोग  कर  मानवता  को  ही  समाप्त  करने  पर  उतारू  है  l  ऐसे  ' महामानवों '  को  समझना  चाहिए  क्या  वे  नदी , समुद्र , पहाड़ , आकाश  , मिटटी  और  सम्पूर्ण  प्रकृत्ति  का  सृजन  कर  सकते  हैं  ?   ध्वंस  बहुत  सरल  है   l  हमारे  धर्म  में  पेड़ -पौधे , नदी , पर्वत  , आकाश  सभी  को  देवी -देवता  के  रूप  में  पूजने  का  विधान  है  l  हम  उन्हें  सम्मान  देते  हैं , नष्ट  नहीं  करते  क्योंकि  हम  सब  एक  माला  के  मोती  है  , प्रत्येक  मोती  का  अपना  महत्त्व  है  l  --------पुराणों  में   गोवर्धन  पर्वत  के  संबंध  में  कथा  आती  है   कि  वह  कभी  सुमेरु  पर्वत  का  शिखर  हुआ  करता  था  l  जब  श्री  हनुमान  जी  सेतुबंधन  के  समय  उसे  ला  रहे  थे   तो  उनके  ब्रजभूमि  तक  पहुँचते -पहुँचते   घोषणा  हो  गई  कि  सेतुबंधन  का  कार्य  पूरा  हो  गया  है  l  अब  पर्वत  लाने  की  आवश्यकता  नहीं  है  l  यह   घोषणा   सुनकर  हनुमान जी  ने   गोवर्धन  पर्वत  को  वहीँ  रख  देना  चाहा  , जहाँ  से  वे  उसे  उठाकर  ला  रहे  थे  l  ऐसे  में  गोवर्धन  पर्वत  ने   श्री  हनुमान जी  से  कहा  ---- "  तुम  मुझे  घर  से , परिवार  से , कुटुंब  से  अलग  कर  के   भगवान  की  सेवा  के  लिए   ले  जा  रहे  थे  ,  सो  तू  ठीक  था  ,  लेकिन  अब  मुझे  भगवान  की  सेवा  में  लगाए  बिना   मार्ग  में  यों  ही  छोड़  देना  ,  यह  किसी  भी  द्रष्टि  से  उचित  नहीं  है  l  हमारे  लिए  उचित  व्यवस्था  बनाए  बिना  छोड़कर  मत  जाओ  l "  हनुमान जी  असमंजस  में  पड़े  तो  उन्होंने  भगवान  राम  से  पूछा  --- "  क्या  किया  जाए  ? "   भगवान  राम  ने  उत्तर  दिया  ---- "  गोवर्धन  को  ब्रज  में  स्थापित  कर  दो  l  अभी  तो  मेरा  राम  अवतार  है  ,  जब  मैं  कृष्ण  अवतार  में  आऊंगा   तब  गोवर्धन  को  अपना  लीलाकेंद्र  बनाऊंगा  l  अभी  तो  उसे  यहाँ  सेतु  पर  रख  दिया  जाए   तो  मैं  सेतु  पार  करते  समय  उस  के  ऊपर  पाँव  रखकर  निकल  जाऊंगा  l  लौटते  समय  संभव  है  कि  सेतु  का  प्रयोग  न  करना  पड़े  l  इसलिए  ब्रज  में  गोवर्धन  के  स्थापित  हो  जाने  पर   कृष्ण  अवतार  में  मैं   उस  पर  गाय  चराने  के  लिए  नंगे  पाँव  विचरण  करूँगा  ,  उसके  झरनों  के  जल  में  स्नान  करूँगा  ,  उसकी  मिटटी  को  अपने  शरीर  में  लगाऊंगा  ,  उसके  फूलों  से  अपना  श्रंगार  करूँगा   और  अपना  सम्पूर्ण  किशोर काल  वहीँ  गुजारूँगा  l "    भगवान  की  इस  घोषणा  से  संतुष्ट  होकर    गोवर्धन  ब्रजभूमि  में  स्थापित  हो  गए  l  

16 June 2025

WISDOM ------

 आज  संसार  में  जितनी  भी  आपदाएं -विपदाएं  हैं  ,  उनके  मूल  में  कारण   ' आर्थिक '  है  l  धन  जीवन  के  लिए  बहुत  जरुरी  है    लेकिन  धन  को  ही  सब  कुछ  मान  लेने  के  कारण   आज  मानव  जीवन  का  प्रत्येक  क्षेत्र  व्यापार  बन  गया  है   और  व्यापारी  केवल  अपना  लाभ  देखता  है  l  जो  जितना  अमीर  है  , उसका  लालच  उतना  ही  बड़ा  है  l  गरीब  तो  सूखी  रोटी  खाकर  चैन  से  सोता  है  लेकिन  अमीर  और  अमीर ----और  अमीर  ----  बनने  के  लिए   कोई  कोर -कसर  बाकी  नहीं  रखते  l  उनकी  इस  अंधी  दौड़  के  कारण  ही   सम्पूर्ण  मानव  जाति  पर  खतरा  है  l  धन  की  अति  लालसा  ने  ईमानदारी  के  गुण  को  ही  समाप्त  कर  दिया  है  l  मनुष्य  न  घर  में  सुरक्षित  है  , न  बाहर  l  ईश्वर  कभी  किसी  का  बुरा  नहीं  चाहते   l  मानव  जीवन  पर  आज  जो  भी  विपत्तियाँ  हैं  , वे  सब  मानव निर्मित  है  l  रावण , कंस , भस्मासुर , हिरण्यकश्यप   के  पास   धन -संपदा  , सुख -वैभव  की  कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  इनकी   गन्दी  मानसिकता  के  कारण  प्रजा  परेशान  थी  l  ये  असुर  भी  स्वयं  को  भगवान  समझते  थे   लेकिन  मृत्यु  भेदभाव  नहीं  करती  l  l  

15 June 2025

WISDOM ------

   कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है  ,  वही  इस  धरती  पर  है  l  महर्षि  वेद  व्यास  ने  इस  महाकाव्य  के  माध्यम  से  संसार  को  यह  समझाने  का  प्रयास  किया  कि  धन -वैभव , पद -प्रतिष्ठा  के  साथ  यदि  मनुष्य  में  सद्बुद्धि  और  विवेक  नहीं  है  ,  उसकी  धर्म  और  अध्यात्म  में  रूचि  नहीं  है    तो   ऐसा  व्यक्ति  संवेदनहीन  होता  है  और  वह  अपनी   कभी  संतुष्ट  न  होने  वाली  तृष्णा  और  महत्वाकांक्षा  के  लिए  कितना  भी  नीचे  गिर  सकता  है   l -------- दुर्योधन  के  पास  सब  कुछ  था  , लेकिन  उसे  संतोष  नहीं  था   l  वह  पांडवों  से  ईर्ष्या करता  था ,  उनकी  उपस्थिति  को  वह  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकता  था  और  उनको  जड़  से  समाप्त कर   हस्तिनापुर  पर  अपना  एकछत्र  राज्य  चाहता  था    और  इसके  लिए  उसने  शकुनि  के  साथ  मिलकर   बहुत  ही  गुप्त  रूप  से   पांडवों  को  जीवित जला  देने  की  योजना   बनाई  l   दुर्योधन  के  मन  की  इस   घिनौनी  चाल का  पता  किसी  को  नहीं  था  l   अब  उसने   पांडवों  का  हितैषी  बनकर   अपने  पिता  धृतराष्ट्र  से  कहा  कि  वे  पांडवों  को  वारणावत   में   होने  वाले  भव्य  मेले  की  शोभा  देखने  और  सैर  करने  के  लिए   जाने  की  अनुमति  दें  l  पांडव  भी  प्रसन्न  थे  l  माता  कुंती  के  साथ  उन्होंने  पितामह  आदि  सभी  सबसे  अनुमति  ली  l  महात्मा  विदुर  से  अनुमति  लेने  वे  उनके  पास  गए  तब  विदुर जी  ने  युधिष्ठिर  से  सांकेतिक  भाषा  में  कहा  ----- "जो  राजनीतिक -कुशल  शत्रु  की  चाल  को  समझ  लेता  है  ,  वही  विपत्ति  को  पार  कर  सकता  l  ऐसे  तेज  हथियार  भी  होते  हैं  ,  जो  किसी  धातु  के  बने  नहीं  होते  , ऐसे हथियार  से  अपना  बचाव  करना  जो  जान  लेता  है  ,  वह  शत्रु  से  मारा  नहीं  जा  सकता  l  जो  चीज  ठंडक  दूर  करती  है   और  जंगलों  का  नाश  करती  है  ,  वह  बिल  के  अन्दर  रहने  वाले  चूहे  को  नहीं  छू  सकती  l  सेही  जैसे  जानवर   सुरंग  खोदकर   जंगली  आग  से   अपना  बचाव   कर  लेते  हैं  l  बुद्धिमान  लोग  नक्षत्रों  से  दिशाएं  पहचान  लेते  हैं  l  "     महात्मा  विदुर  ने  सांकेतिक  भाषा  में  दुर्योधन  के  षड्यंत्र   और  उससे  बचने  का  उपाय   युधिष्ठिर  को   सिखा  दिया  l    दुर्योधन  की  पांडवों  को  जीवित  जला  देने  की  गहरी  चाल  थी  l  उसने  अपने  मंत्री  पुरोचन  को  वारणावत  भेजकर  पांडवों  के  लिए  एक  सुन्दर  महल  बनवा  दिया  l  उस  महल  का  वैभव  और  सब  सुख -सुविधा  देखकर  प्रजा  यही  समझे  कि  दुर्योधन  पांडवों  का  हितैषी  है  l  लेकिन  सच  यह  था  कि  वह  महल  लाख  का  बना  था  ,  हर  तरह  के  ज्वलनशील पदार्थों  से  मिलकर  वह  लाख  का  महल  तैयार  हुआ  था  l  दुर्योधन  की  योजना  थी  कि  कुछ  दिन  वहां  आराम  से  रहेंगे  ,  फिर  एक  रात  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  जाएगी  l  इस  षड्यंत्र  का  किसी  को  पता  नहीं  चलेगा   ' सांप  भी  मर  जाए   और  लाठी  भी  न  टूटे  l "    विदुर जी  की  गूढ़  भाषा  समझकर  पांडव  जागरूक  हो  गए  थे  ,  उस  लाख  के  महल  में  रहकर   और  रात्रि  भर  जागकर   उन्होंने   उस  महल  के  नीचे  से  एक  सुरंग  तैयार  कर  ली  l  लगभग  एक  वर्ष  बीत  गया  l  युधिष्ठिर  दुर्योधन  के  मंत्री  पुरोचन  के  रंग -ढंग  देखकर  समझ  गए  कि    वह  क्या  करने  की  सोच  रहा  है  l  उन्होंने  उसी  रात  एक  भव्य  भोज  का  आयोजन  किया  , सभी  नगर  वासियों  को  भोजन  कराया  गया  ,  जैसे  कोई  बड़ा  उत्सव  हो  l  सभी  कर्मचारी  , नौकर  चाकर  भी  खा -पीकर   गहरी  नींद  सो  गए  , पुरोचन  भी  सो  गया  l  आधी  रात  को  भीम  ने  ही  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  और  पांचों  पांडव  और  माता  कुंती  सुरंग  से  सुरक्षित  बाहर  निकल  कर  सुरक्षित  स्थान  पर  चले  गए  l  दुर्योधन  आदि  कौरव  तो  मन  ही  मन  बहुत  प्रसन्न  थे  कि  पांडवों  का  अंत  हुआ  लेकिन  ' जिसकी  रक्षा  भगवान  करते  हैं , उन्हें  कोई  नहीं  मार  सकता  l  यह  प्रसंग  हमें  यही  सिखाता  है    कि  मनुष्य  को   जागरूक  होना  चाहिए  l  कलियुग  का  प्रमुख  लक्षण  ही  यही  है  कि  जिसके  पास  धन , पद  , प्रतिष्ठा   है  , उसके  सिर  पर कलियुग  सवार  हो  जाता  है   और  फिर  वह  उससे  वही  सब  कार्य  कराता  है  जो  आज  हम  संसार  में  देख  रहे  हैं  l  

11 June 2025

WISDOM -----

   महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  मात्र  कहने  और  सुनने  के  लिए  नहीं  है  l  महर्षि  उन  प्रसंगों  के  माध्यम   प्रत्येक  युग  की  परिस्थितियों  के  अनुरूप   संसार  को  कुछ  सिखाना  चाहते  हैं  l  इस  काल  की  बात  हम  करें  तो   यह  स्थिति  लगभग  सम्पूर्ण  संसार  में  ही  है  लोग  धन , पद , प्रतिष्ठा   और  अपने   विभिन्न  स्वार्थ , कामनाओं  और  वासना  के  लिए  बड़ी  ख़ुशी  से  ऐसे  लोगों  का  साथ  देते  हैं  जो   अन्यायी  हैं  , विभिन्न  अपराधों  में  , पापकर्म  में  लिप्त  हैं  l  यह  स्थिति  परिवार  में , संस्थाओं  में   और  हर  छोटे -बड़े  स्तर  पर  है  l  देखने  पर  तो  ऐसा  लगता  है  कि  गलत  लोगों  का  साथ  देने  पर  भी  सब  सुख -वैभव  है   लेकिन  इसके  दीर्घकाल  में  परिणाम  कैसे  होते  हैं  ,  यह  महाभारत  के  इस  प्रसंग  से  स्पष्ट  है  ----- महाभारत  का  सबसे  आकर्षक  व्यक्तित्व  --'कर्ण '    जो  सूत पुत्र  के  नाम  से  जाना  जाता  था  ,  उसकी  वीरता  देखकर  दुर्योधन  ने  उसे  अंगदेश  का  राजा  बना  दिया  l  इस  उपकार  की  वजह  से  दुर्योधन  और  कर्ण  घनिष्ठ  मित्र  बन  गए   और  कर्ण  ने  अपनी  आखिरी  सांस  तक  मित्र  धर्म  निभाया  l  दुर्योधन  अत्याचारी  व  अन्यायी  था  , बिना  वजह  पांडवों  के  विरुद्ध षड्यंत्र  कर  उन्हें  हर  तरह  से  उत्पीड़ित  करता  था  l  ऐसे  दुर्योधन  का  साथ  देकर   कर्ण  अंगदेश  का  राजा  तो  बन  गया  ,  लेकिन  उसका  स्वयं  का  जीवन   धीरे -धीरे  खोखला  होता  गया  l  अपने  गुरु   का  श्राप  उसे  मिला  कि  जब  उसे  जरुरत  होगी   तो  वह  यह  विद्या  भूल  जायेगा  l   फिर  एक  रात्रि  को  स्वप्न  में  स्वयं  सूर्यदेव  ने  उससे  कहा  कि  देवराज  इंद्र  तुम्हारा  कवच -कुंडल  मांगने  आएंगे  ,  तुम  अपने  कवच -कुंडल  नहीं  देना  , इनसे  तुम्हारा  जीवन   सुरक्षित  है  l   लेकिन  कर्ण  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी  और  अपने  कवच -कुंडल  इंद्र  को  दे  दिए  l  इंद्र  ने  उससे  प्रसन्न  होकर  उसे  एक  अमोघ  शक्ति  प्रदान  की   , जिसे  कर्ण  ने  अर्जुन  को  युद्ध  में  पराजित  करने  के  लिए  सुरक्षित  रखा  था   लेकिन  वह  शक्ति  भी  भीम  के  पुत्र  घटोत्कच  का  वध  करने  में   चली  गई  l  अत्याचारी  , अन्यायी  का  साथ  देने  से   वह  राजा  तो  था  लेकिन  संयोग  ऐसे  बनते  जा  रहे  थे  कि  ईश्वर  प्रदत्त  उसकी  शक्तियां  उससे  दूर  होती  जा  रहीं  थीं  l  अंत  में  उसे  सारथि  भी  शल्य  जैसा  मिला   जो  निरंतर  अपनी  बातों  से  उसके  मनोबल  को  कम  कर  रहे  थे  l  कहीं  न  कहीं  कर्ण  के  मन  में  भी  राजसुख  भोगने  का  लालच  था  l  जब  दुर्योधन  ने  पांडवों  को  लाक्षा गृह  में  जीवित  जलाने  का  षड्यंत्र  रचा  ,  फिर  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  किया   तब  कर्ण  चाहता  तो  कह  सकता  था  कि  मित्र ! अपना  अंगदेश  वापस  ले  लो  ,  ऐसे  अधर्म  और  अत्याचार  का  साथ  हम  नहीं  दे  सकते    या  वह  अपने  विभिन्न  तर्कों  से  दुर्योधन  को  समझाने  का  प्रयास  भी  कर  सकता  था  l  यदि  वह  ऐसा  करता  तो  कहानी  कुछ  और  होती   l  महर्षि  ने  इस  प्रसंग  के  माध्यम  से   संसार  को  यही  समझाया  कि  अत्याचारी  अन्यायी  का  साथ  देना   या  अनीति  और  अन्याय   को   देखकर  मौन  रहना  ये  ऐसे  अपराध   हैं  कि  व्यक्ति  ऐसा  कर  के  अपने  जीवन  में  ईश्वर  से  मिली  जो  विभूतियाँ  हैं  उन्हें  धीरे -धीरे  खोता  जाता  है   और  जीवन  में  ऐसा  अभाव  आ  जाता  है  जिनकी  भरपाई    उस  धन -संपदा   से  नहीं  हो  सकती  l  अनीति  से  प्राप्त  सुख  में  व्यक्ति  इतना  डूब  जाता  है   कि  जब  होश  आता  है  तब  तक  बहुत  देर  हो  चुकी  होती  है  , वापस  लौटना  संभव  नहीं  होता  l  जैसे  कर्ण  को  अंत  में  मालूम  हुआ  कि  वह  तो  सूर्य पुत्र  है  , महारानी  कुंती  उसकी  माँ  है   लेकिन  अब  बहुत  देर  हो  गई  थी  , अनीति  और  अत्याचार  के  दलदल  से  उसका  निकलना  संभव  नहीं  था  l  लालच , स्वार्थ  ----ऐसे  दुर्गुण  हैं   जिनके  वश  में  होकर   व्यक्ति  क्षणिक  सुखों  के  लिए  स्वयं  को  ही  बेच  देता  है  ,  एक  प्रकार  की  गुलामी  स्वीकार  कर  लेता  है  l 

9 June 2025

WISDOM -----

  पुराणों  में  देवताओं  और  असुरों  के  बीच  संघर्ष   की  अनेक  कथाएं  हैं   l  युगों  से  अच्छाई  और  बुराई  में , देवता  और  असुरों  में  संघर्ष  चला  आ  रहा  है   जिनमें  अंत  में  विजय  देवताओं  की   होती  है  ,  सत्य  और  धर्म  ही  विजयी  होता  है  l  उस  युग  में   दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोग  बहुत  थे  ,  वे  संगठित  भी  थे  और  उनका  आत्मिक  बल  बहुत  अधिक  था   इसलिए  वे  असुरों  से  मुकाबला  कर  उन्हें  पराजित  कर  देते  थे  l  कलियुग  की  स्थिति  बिलकुल  भिन्न  है   l  अब  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  , दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोगों  की  संख्या  बहुत  कम  है  ,  वे  संगठित  भी  नहीं  हैं  l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग  उन्हें  चैन  से  जीने  नहीं  देते   फिर  अपने  परिवार  की  खातिर   उन्हें  सत्ता  से  भी  समझौता  करना  पड़ता  है  l  इसलिए  इस  युग  में  पहले  जैसा  देवासुर  संग्राम  संभव  ही  नहीं  है  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  साम्राज्य  सम्पूर्ण  धरती  पर  है  ,  मुट्ठी  भर  देवता  उनका  क्या  बिगाड़  लेंगे  ?   लेकिन  असुरता  का  अंत  तो  होना  ही  है  , अन्यथा  यह  धरती  घोर  अंधकार  में  डूब  जाएगी  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  अंत  कैसे  हो  ?  इसका  संकेत  भगवान  ने  द्वापर  युग  के  अंतिम  वर्षों  में  ही  दे  दिया  था  l  किसी  कुल  या  किसी  विशेष   खानदान    में  जन्म  लेने  से  कोई  भी  देवता  या  असुर  नहीं  है  l  ईश्वर  ने  बताया  कि  मनुष्य  अपने  कर्मों  से  देवता  या  दानव  कहलायेगा  l  व्यक्ति  का  श्रेष्ठ  चरित्र  ,  उसके  श्रेष्ठ  कर्म  उसके  देवत्व  का  प्रमाण  होंगे  l   अब  दैवीय  गुणों  से  संपन्न  किसी  को  भी  असुरता   से   संघर्ष  की  जरुरत  नहीं  है  l  अपने  श्रेष्ठ  कर्मों  से  मनुष्य  के  पास  नर  से  नारायण  बनने  की   संभावना  है  l  यह  मार्ग  सबके  लिए  खुला  है  l    जो  लोग  अपनी  दुष्प्रवृत्तियों  से  उबरना  ही  नहीं  चाहते ,  अति  के  भोग -विलास  के  कारण   उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  है  ,  वे  अपने  ही  दुर्गुणों  के  कारण  आपस  में  ही  लड़कर  नष्ट  हो  जाएंगे  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  ही  कुल  के  उदाहरण  से  संसार  को  समझाया  कि  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  के  वंशज  होने  के  बावजूद   अति  के  सुख -सम्पन्नता  के  कारण  पूरा  यादव  वंश  भोग  विलास  में  डूब  गया  था  ,  उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  था   इसलिए  पूरा  यादव  वंश  आपस  में  ही  लड़ -भिड़कर  नष्ट  हो  गया   और  द्वारका  समुद्र  में  डूब  गई  l  देवता  या  असुर  बनना  अब  मनुष्य  के  हाथ  में  है  ,  हमें  निर्णय  लेना  है  ,  चयन  का  अधिकार  प्रत्येक  को  है  l